आपका -विपुल
तो आज बात पत्रकारों और पत्रकारिता की बात कर ही ली जाये।समाचार और समाचार जगत की बात कर ही ली जाये।
भारत के प्राचीन व मध्यकालीन इतिहास में समाचार जगत और पत्रकारों का उल्लेख मुझे नहीं दिखता। मैं गलत भी हो सकता हूं।
इंगलिश का News शब्द New से बना है।अपुष्ट जानकारी के अनुसार 1337 से शुरू हुये इंग्लैंड फ़्रांस युद्ध के दौरान जब एक पहाड़ी पर बैठे कुछ अंग्रेज लोग युद्ध के क्षेत्र से आते लोगों से।कुछ नया ,कुछ नया (New,New) पूंछते थे, वहीं से New से News शब्द बना जिसका शाब्दिक अर्थ हिंदी में समाचार हुआ।
ये New, लैटिन भाषा के Neo से आया था और Neo का अर्थ भी नया होता है।
हमारे एक अध्यापक के अनुसार News का फुल फॉर्म “North East South West” होता था और NewsPaper का फुल फॉर्म “North East South West Past and present Early Reoprter “.
समाचारों के प्रति उत्सुकता आम जनता में प्राचीन काल से होती थी।पश्चिमी जगत में लिखित समाचारों का सबसे पुराना विवरण इतिहास में 59 ईसा पूर्व के आसपास रोमन साम्राज्य का है।उस समय,रोम पश्चिमी दुनिया का केंद्र था और नवीन आविष्कारों का केंद्र था।ग्रिड आधारित शहरों से लेकर कंक्रीट के आविष्कार तक, रोम सबसे आगे था।अधिकांश इतिहासकार रोमनों को नियमित लिखित समाचार के जन्म का श्रेय देते हैं।
प्राचीन रोम में पहला समाचार पत्र था Acta Diurna,जिसका मोटे तौर पर अनुवाद हुआ दैनिक सार्वजनिक रिकॉर्ड।
Acta Diurna राजनीति, सैन्य अभियानों, रथ दौड़ और व्यापार को कवर करता था।इसे पत्थर या धातु की चादरों पर कठोर नक्काशीदार तरीके से उकेरा जाता था।इसे दैनिक रूप से प्रकाशित किया जाता थाऔर रोमन फोरम में सरकार द्वारा पोस्ट किया जाता था था।Acta Diurna मूल रूप से गुप्त रखा गया था लेकिन बाद में जूलियस सीज़र द्वारा 59 ईसापूर्व में इसे सार्वजनिक कर दिया गया था।
मध्य युग के अंधकार के बाद मुद्रित समाचार पत्र का इतिहास 17 वीं शताब्दी के यूरोप से फिर दिखा जब जोहान कैरोलस ने 1605 में जर्मनी में
Relation aller Fürnemmen und gedenckwürdigen Historien’ (Account of all distinguished and commemorable news)
(सभी प्रतिष्ठित और यादगार समाचारों का लेखा-जोखा) नामक पहला समाचार पत्र प्रकाशित किया था।17वीं सदी में यूरोप मुद्रित समाचार पत्रों का केंद्र था। यहां जर्मन, फ्रेंच, डच, इतालवी और अंग्रेजी में समाचार पत्र छपने लगे थे।
भारत में छपने वाला पहला समाचार पत्र 1780 में हिक्की का बंगाल गजट था जोकि कलकत्ता की एक प्रिंटिंग प्रेस में छपा था।
30 मई 1826 को भारत का पहला हिंदी समाचार पत्र उदन्त मार्तण्ड छपा।
समाचार पत्र लोगों की जिन्दगी का रोजाना का हिस्सा बन गए और 1920 में रेडियो समाचार आने के बाद भी और 1950 से टेलीविजन समाचार आने के बाद भी समाचार पत्रों की अपनी जगह बनी रही।
भारत के प्राचीन और मध्यकालीन इतिहास में समाचार पत्र और पत्रकारों का एक भी विवरण नहीं दिखा मुझे। हमारे यहां इसके लिये नाई होते थे।(मजाक है यार)।
सरकार अपने मतलब की सूचना इकट्ठा करती थी,उसके लिये गुप्तचर विभाग तो रावण की लंका में भी था और नंद के शासन काल में भी।
रामायण के सुंदर काण्ड में शुक सारण नामके गुप्तचरों का उल्लेख है और मुद्राराक्षस नामका संस्कृत नाटक ही गुप्तचरों पर आधारित है।
मतलब कुल मिलाकर ये कहना चाह रहा हूं कि समाचार पत्र, समाचार और पत्रकार भारतीयों के लिये ऐसी चीज नहीं है जो पूर्व से भारत के सामाजिक परिवेश से जुड़ी रही हो, ये वस्तुतः एक विदेशी सी चीज है भारतीयों के लिये।
और अब यहां से हम अपने मुद्दे पर आते हैं।समाचार और पत्रकारिता के मुद्दे पर।
पत्रकार शब्द दरअसल इंगलिश के Journalist शब्द का हिंदी अर्थ है और Journalist शब्द Journal से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ है एक पत्र जिसमें एक हो विषय से संबंधित लेखों का वर्णन हो।मतलब पत्रकार के लिये एक पत्र तो जरूरी ही है।बिना जर्नल के कोई जर्नलिस्ट नहीं हो सकता।लेकिन आज के दिन सारे तथाकथित पत्रकार टी वी और यू ट्यूब पर बिना पत्र के ही घूम रहे हैं।
एक खबर सिर्फ एक खबर ही होती है।और कुछ नहीं होती।
जिस चीज को खबर समाचार या न्यूज़ कहते हैं वो एकदम सीधी पारदर्शी और स्पष्ट होती है।उस खबर के होने और घटने के कई कारण हो सकते हैं और वो भी एक समाचार बन सकते हैं , पर उस खबर को अपनी विचारधारा के अनुसार नमक मिर्च लगा कर प्रस्तुत करने से ,कुछ तथ्यों को छिपा कर,कुछ तथ्यों को बढ़ा कर और उस खबर को उससे असंबंधित कुछ खबरों को जोड़ कर छापना या टीवी या रेडियो पर प्रस्तुत करना खबर नहीं होती बल्कि एक बेईमान की बेईमानी होती है।
एक पेशेगत ईमानदार पत्रकार को एक खबर को सिर्फ एक खबर की तरह ही प्रस्तुत करना चाहिये।
लेकिन असली झोल तो यहीं है।
एक पत्रकार कभी ईमानदार नहीं होता, एक पत्रकार कभी ईमानदार हो ही नहीं सकता।
और ये ध्रुव सत्य है।
और ये मेरा मत है मैं नहीं कह रहा कि आप मुझसे सहमत हों।
जरूरी नहीं है,बिल्कुल भी जरूरी नहीं है ।
अगर आप आम ग्रामीण जनजीवन से जुड़े हैं तो कभी सरकारी ऑफिसों के चक्कर लगा के आइये,कभी भी।
कुछ तथाकथित पत्रकार आपको एसएचओ के कमरे में ,तहसीलदार के ऑफिस में, बीडीओ के ऑफिस में दलाली करते, ब्लैकमेलिंग करते दिख ही जायेंगे।
अखबारों के छोटे मोटे पत्रकारों की आजीविका ही इस ब्लैकमेलिंग से चलती है।15 अगस्त,26 जनवरी को अपने अखबार के लिये विज्ञापन लेने के लिये सरकारी ऑफिसों में कई बार ब्लैकमेलिंग की हदें भी पार होती हैं।
मुझसे एक बार एक बुजुर्ग ने व्यंगात्मक लहजे में बोला था,
आजकल काले कोट, प्रॉपर्टी डीलर और पत्रकार ये सब सबसे बड़े शरीफ ही होते हैं , खुद को सबसे बड़ा शरीफ मनवाने के लिये ये तीनों शहर भी बंद करवा सकते हैं।
सुरेंद्र मोहन पाठक के एक उपन्यास में पढ़ा था।
पुलिस बल संगठित अपराधियों का सबसे बड़ा गिरोह है।
और जवाब में कोई कहता है।
समाचार जगत और न्यायपालिका संगठित उचक्कों का सबसे बड़ा गिरोह है।
पहले की बात मुझे नहीं पता लेकिन इस बात को अब मैं व्यावहारिकता में देख पा रहा हूं।
एक फर्जी फैक्ट चेकर जिसके माता पिता का पता और पूर्व का कोई रिकॉर्ड नहीं है, वो भारत के तथाकथित पत्रकारों का अगुआ बना है, भारत पर आतंकी हमले के समय हर पल की खबर पाकिस्तानियों की आका को पहुंचाने वाली पत्रकार सुरक्षित बैठी है।भारतीय सेना के नई दिल्ली पर कब्जा करने की फर्जी खबर छापने वाला जब सुरक्षित बैठा हो और इन सबके खिलाफ़ एक्शन लेने पर समूची पत्रकार बिरादरी एक स्वर में बोले तो उस बुजुर्ग की बात सही ही लगती है।
समाचार पत्रों में विज्ञापन और राज्य और केंद्र सरकार की तारीफों के अलावा वो खबरें भी मिलती हैं जिनको न जानने से भी आप पर कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला।रेडियो मन की बात के लिये आरक्षित हो चुका है और टीवी चैनल सास बहू की साजिश और विश्वयुद्ध की आशंकाओं वाली भविष्यवाणी के अलावा मोदी के सारे चुनावी गैर चुनावी कार्यक्रम भी दिखाते हैं और जहरीली बहसें भीं जिनके कारण कुछ की गर्दन कट चुकी है, कुछ जेल जा चुके हैं, कुछ जान बचाते घूम रहे हैं।
रवीश कुमार रहे हों या सुधीर चौधरी ये प्राइम टाइम और डीएनए चलाकर खुद को चमका गये, वैसे भी ये पत्रकार नहीं टीवी एंकर ही थे।पर पत्रकारिता के बड़े बड़े सम्मान लेते हुये इनके हाथ भी नहीं कांपे।
भारतीय टीवी पत्रकारिता की स्तरहीनता का अंदाजा इसी से लगाइए कि भारतीय टीवी पत्रकारिता का सबसे बड़ा सम्मान रामनाथ गोयनका के नाम पर है जो एक उद्योगपति रहा है और अगर अदानी अंबानी भ्रष्ट हैं तो रामनाथ गोयनका क्या ईमानदार रहे होंगे? वो भी तो मुनाफा कमाने वाले एक व्यापारी ही थे।
वैसे भी वर्तमान भारतीय टीवी पत्रकारिता जगत के स्वनामधन्य चिलगोजे अभिसार शर्मा को ये पुरस्कार मिला ही है और भारतीय टीवी पत्रकारिता महात्मा गांधी रवीश कुमार के अनुसार हर बड़ा व्यापारी चोर होता ही है तो भारतीय पत्रकारिता जगत के व्यापारी रामनाथ गोयनका भी साहूकार तो नहीं ही हो सकते।
बाकी सारे उद्योग धंधे व्यापारों की तरह समाचार जगत का भी अपना एक उद्योग धंधा व्यापार है। चाहे प्रिंट मीडिया हो या टीवी मीडिया, प्रिंट मीडिया के पब्लिकेशन हाउस हों या टीवी न्यूज़ चैनल, ये केवल पैसा कमाने के लिये किये जा रहे एक व्यापार ही हैं तो इसके मालिक, इसके कारीगर ईमानदार कैसे हो सकते हैं?
ईमानदारी से हिंदुस्तान में कोई व्यापार नहीं कर सकता, किसी पुराने व्यापारी से पूंछ लेना, यही बतायेगा।
बात ज्यादा लंबी नहीं ले जाऊंगा। बस दो तीन बातें खुद से पूछिएगा।
कितने समाचार पत्रों और टीवी चैनलों के मालिक लोक सभा या राज्यसभा में हैं या किसी राजनैतिक दल के सदस्य हैं?
क्या विनोद शर्मा और शेखर गुप्ता जैसे प्रच्छन्न कांग्रेसियों राजदीप और अभय दुबे जैसे प्रच्छन्न आपियों और रवीश कुमार जैसे प्रच्छन्न वामपंथियों और बरखा दत्त जैसे प्रच्छन्न नक्सली लोगों को आप ईमानदार पत्रकार तो छोड़ो सिर्फ पत्रकार भी मान सकते हैं?
क्या एक व्यापारी से 100 करोड़ की रिश्वत मांगने के अपराध में जेल जा चुके सुधीर चौधरी को या एक राजनैतिक पार्टी के नेता रह चुके आशुतोष पत्रकार कहलाने के लायक़ हैं और क्या एक मजबूर बाप को सरेआम बेइज्जत करने वाली अंजना ओम कश्यप पत्रकारिता करती हैं?
आपका जवाब कुछ भी हो , मेरा मानना है कि ये सब केवल पैसे कमाने के लिये और अपने पब्लिकेशन हाउस, टीवी चैनल या अपने मालिक को मुनाफा कमा कर देने का प्रयास करते हैं।
हर पत्रकार सिर्फ पैसे कमाने के लिये ही काम करता है ,
हमारे आपके तरह!
इसी वजह से कोई पत्रकार कभी ईमानदार हो ही नहीं सकता।
मुझे आज भी सुरेंद्र मोहन पाठक के उस उपन्यास की बात याद आ गई।
पत्रकारिता जगत संगठित उचक्कों का सबसे बड़ा गिरोह है।
और इस बात में आपको कभी संदेह हो तो आजमा भी लेना।
निराश नहीं होंगे।
मैं केवल अनुभव लिखता हूं परीकथा नहीं।
इस अमृतकाल में जय श्रीराम रहेगा।
मैं भी डरता हूं।
आपका -विपुल
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Well Written Article Bhaiya ❣️