Spread the love

प्रस्तुति -विपुल मिश्रा

भाजपा को उत्तर प्रदेश में 2024 लोकसभा चुनाव में अपेक्षित सफलता क्यों नहीं मिली?

कुछ तो बात थी ही


भाजपा को उत्तर प्रदेश में 2024 लोकसभा चुनाव में अपेक्षित सफलता क्यों न मिली जबकि शायद ही नरेंद्र मोदी से ज्यादा लोकप्रिय भाजपा नेता इस समय भारत में कोई है और शायद ही भाजपा से ज्यादा सुव्यवस्थित तरीके से चुनाव योजना बनाने वाली पार्टी भारत में कोई दूसरी हो सकती है।
विभिन्न सोशल मीडिया पटलों पर इस संबंध में मैं अपनी बात बहुत बार रख चुका हूं।आज वो सब बातें थोड़ा सिलिसिलेवार और सुनियोजित तरीके से रखना चाहूंगा।
आप गौर करें कि बनारस से भी उन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जीत का अंतर मात्र डेढ़ लाख है जिनका लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनना लगभग तय था। वहीं डिंपल यादव तक मोदी से ज्यादा वोटों से जीती जिनकी पहचान मात्र ये है कि वो उत्तर प्रदेश के एक पूर्व मुख्यमंत्री की पत्नी और एक पूर्व मुख्यमंत्री की पुत्रवधू हैं। राहुल गांधी की जीत का अंतर भी मोदी के मुकाबले कहीं ज्यादा है।मतलब कुल मिलाकर ये तो साफ था कि पूरे उत्तर प्रदेश में न सही कम से कम उत्तर प्रदेश में तो भाजपा के खिलाफ एक गुस्सा और मोदी के खिलाफ एक नाराजगी सी थी।
ऐसा क्यों हुआ उसपर चर्चा की जा सकती है।

अग्निपथ योजना और अग्निवीर

बात शुरू होगी इस बात से कि भाजपा मूलरूप से सवर्णों की राजनैतिक पार्टी मानी जाती रही है। और अपनी महत्वाकांक्षी अग्निपथ योजना से जिस तबके के सेना में भर्ती चाहने वाले युवाओं का सबसे ज्यादा नुकसान हुआ वो यही योजना थी।मात्र सेना ही ऐसी सरकारी नौकरी देती है जहां आरक्षण नहीं है और पुरानी पेंशन है।जहां सेना की स्थाई नौकरी में आरक्षण न होना सवर्णों को थोड़ा दिलासा देता था, वहीं पुरानी पेंशन योजना अन्य वर्गो के युवाओं को भी ललचाती थी। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में अन्य पिछड़ा वर्ग के युवा परंपरागत रूप से लगातार सेना की नौकरी हेतु तैयारी करते आये हैं।
एकदम हड़बड़ी में तैयार की गई चार साल की सेना में नौकरी की इस योजना को जमीनी स्तर पर सिरे से नापसंद किया जा रहा था जिसमें भर्ती हुये 100 में से मात्र 25 अग्निवीरों को ही स्थाई नौकरी के मौके मिलने थे।
जमीनी स्तर पर सवर्ण वर्ग इस योजना से बहुत ज्यादा नाराज था पर मुंह न खोला क्योंकि मोदी की लोकप्रियता की हवा में उड़ रहे भाजपा के नेतृत्व ने जमीनी कार्यकर्ताओं की इस इनपुट को मानने से ही इंकार कर दिया।
अगर गौर करें तो अगर पश्चिम यूपी से पूर्वांचल तक विभिन सवर्ण जातियों के 20 प्रतिशत भाजपा वोटर भी इस योजना से नाराज हुये और वोट डालने न गये तो भाजपा को समूचे नुकसान का प्रतिशत बहुत बड़ा रहा होगा।

भर्तियों में प्रश्नपत्र लीक


दूसरा कारण ये कि जहां केंद्र की मोदी सरकार सरकारी नौकरियों को धीमे धीमे खत्म करने की बात करती आई है, वहीं उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के समय में हुई सरकारी नौकरियों की भर्तियों में प्रश्नपत्र लीक और प्रतियोगी परीक्षाओं के रद्द होते रहने की घटनाओं ने बेरोजगार युवाओं में काफी आक्रोश भर रखा था।
आर ओ /ए आर ओ परीक्षा और पुलिस आरक्षी भर्ती परीक्षा में हुई धांधलियों को पहले तो उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा नकारने का प्रयास किया गया, फिर परीक्षा रद्द करवा दी गई।
इससे आम बेरोजगार युवा के मन में भाजपा सरकार की नकारात्मक छवि ही बनी। लेखपाल परीक्षा में उत्तीर्ण युवकों को अब तक उत्तर प्रदेश सरकार नियुक्ति पत्र ही न दे पाई।
वहीं पूर्व की सपा सरकार ने लेखपाल, ग्राम सचिवों, अध्यापकों और पुलिस भर्ती कर रखी थी।
ये सरकारी नौकरी और अग्निवीर के मुद्दे भले ही भाजपा के नेता हवा में उड़ा देते हों पर सत्य ये है कि 2014 में जो युवा 15 से 18 साल का था वो अब रोजगार की तलाश में था और अबकी बार भाजपा ने उस बेरोजगार युवा को गंभीरता से न लिया जो 2014 में उसके साथ था जब वो छात्र था।

आवारा पशुओं का मुद्दा


तीसरी बात ये कि आवारा पशुओं का मुद्दा उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में इतना ज्यादा बढ़ रखा है कि किसान एकदम त्रस्त है। इन आवारा पशुओं में गाय भैसों के मुकाबले सांडो की संख्या ज्यादा है। ऐसा इसलिये कि पहले की तरह अब खेती के लिये बछड़ों को बधिया करके बैल नहीं बनाया जाता।और इसके अलावा कोल्हू भी संख्या में कम हो चुके हैं तो बैलों की ज़रूरत ही नहीं।
पहले बूचड़खानों में ये बछड़े बेच दिये जाते थे,अब इन पर रोक है। और इन बछड़ों के किसी काम का न होने के कारण आम ग्रामीण इन्हें छुट्टा छोड़ देता है।और ये सांड अव्यवस्था फैलाते हैं। कई बार फसलों का नुकसान और कई बार जानमाल का नुकसान भी करते हैं ये सांड।
योगी सरकार ने हालांकि इस समस्या के निस्तारण हेतु हर ग्राम सभा में एक गौशाला बनवाने का कार्यक्रम चलवाया था पर वो कार्यक्रम इसलिये न सफल हुआ क्योंकि उसमें कई व्यवहारिक दिक्कतें थीं।
कोई भी ग्राम प्रधान या सचिव अपनी ग्राम सभा में गौशाला नहीं बनवाना चाहता क्योंकि गौशाला बनने के बाद एक एक जानवर की जान माल का जिम्मेदार वोही होगा और ज्यादा धन इन जानवरों के लिये आवंटित नहीं होता।
ऊपर से स्थानीय ब्लैकमेलर किसी गाय की मृत्यु पर उन प्रधानों सचिवों को परेशान भी करते हैं और इन जानवरों को गौ तस्करों से बचाना भी एक समस्या ही होती है।
ये आवारा जानवरों का मुद्दा उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में विकट है और आप गौर करें भाजपा को ग्रामीण क्षेत्रों में इस बार कम वोट मिले हैं।

टिकट वितरण और अति आत्मविश्वास


चौथी बात ये कि भाजपा का टिकट वितरण जैसा था, वैसा था उससे ज्यादा फर्क इससे पड़ा कि सारे भाजपाई नेता कार्यकर्ता इस दिवास्वप्न में खोये थे कि भाजपा पूरे देश में 400 नहीं तो 350 सीटें ले ही आयेगी और उत्तर प्रदेश में 70 सीटें कहीं न गईं भाजपा की।
कुछ अति आत्मविश्वासी लोग तो राहुल गांधी के रायबरेली से हारने की अखिलेश के कन्नौज से हारने की और डिम्पल यादव के मैनपुरी से हारने की बातें शर्त लगा कर कह रहे थे। वहीं यही लोग ये मानने को तैयार नहीं थे कि स्मृति ईरानी अमेठी से हार सकती हैं और बनारस में मोदी की फिजा पिछली बार जितनी अच्छी नहीं।
नतीजे आते ही ये सब फरार हो गये।
इन्हीं लोगों की बातों में आकर भाजपा के बूथ कार्यकर्ता ने इस बार लोकसभा चुनावों में वोट मांगने के लिये निकलने की जहमत न उठाई।
वहीं भाजपा प्रत्याशी तो पुराने ज़माने की तरह मोहल्ले मोहल्ले वोट मांगते शायद ही दिखे।
भाजपा कार्यकर्ताओं ने अपने बूथ पर अपने वोटरों के वोट बढ़वाने और फर्जी वोटरों के नाम कटवाने का गंभीरता से प्रयास शायद ही किया। ये चुनाव ऐसा चुनाव था जिसमें भाजपा जमीन से ज्यादा सोशल मीडिया पर थी और वहां भी ध्रुव राठी से हार रही थी।

नकद पैसे देने वाली योजना का अभाव


पांचवा कारण ये कि 2019 में भाजपा ने काश्तकारों को किसान सम्मान योजना द्वारा सीधे उनके खाते में कैश पैसे भेजने की जो योजना चलाई थी, वो गेम चेंजर थी। हाल में हुये मध्य प्रदेश चुनाव में ऐसी लाडली बहन योजना भी कारगर हुई थी।
पर इस बार भाजपा नेतृत्व इतने आत्मविश्वास में था कि उसने इस तरह की नकद पैसे देने वाली योजना का सहारा लेना उचित न समझा और कांग्रेस और सपा ने यहां ऐसे ही बढ़त बना ली।

भाजपा की सोशल मीडिया टीम


छठा कारण ये कि भाजपा की सोशल मीडिया टीम अब भाजपा के लिये काम न करके मोदी के लिये काम करती दिखी।
भाजपा की आई टी सेल ने केवल मोदी के महिमामंडन पर ध्यान दिया और जो भी मोदी सरकार की योजनाओं पर प्रश्न करता दिखा, उसके चरित्र हनन का प्रयास करता दिखा।
ध्रुव राठी के वीडियो की काट करने में ये इतने पिछड़ इसलिये गये क्योंकि पिछले कई सालों से भाजपा आई टी सेल ने कुछ नया करना सोचना छोड़ दिया था और केवल यशस्वी प्रधानमंत्री के गुण गान के अलावा शायद ही कुछ किया हो।बहुत ज्यादा किया तो ये किया कि राहुल गांधी, अखिलेश या प्रियंका की खिल्ली उड़ाई। भाजपा की आई टी सेल कोई सकारात्मक कार्य भाजपा के हित में करती आखिरी बार कब दिखी थी, पता नहीं। पिछले कुछ सालों से भाजपा आईटी सेल का काम केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इमेज लार्जर दैन लाइफ बनाना ही रह गई थी।
इसके अलावा बहुत से कारण हो सकते हैं पर मुझे इतने ही समझ आये। उत्तर प्रदेश की राजनीति समझने वाले जानते हैं कि सपा यहां कभी बहुत कमजोर नहीं रही और इस बार के लोकसभा चुनाव के सबक अगर भाजपा ने गंभीरता से न सीखे तो 2027 में सपा के अखिलेश यादव मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार होंगे।

विपुल मिश्रा

सर्वाधिकार सुरक्षित -Exxcricketer.com


Spread the love

3 thoughts on “2024 लोकसभा चुनाव में भाजपा को उत्तर प्रदेश में अपेक्षित सफलता क्यों नहीं मिली ? 

  1. बहुत अच्छा विश्लेषण बस विक्ष का झूठा प्रचार और जोड लेते तो बात पूर्ण हो जाती ।

  2. बहुत बढ़िया लिखा है विपुल भाई। इस लेख में सत्या भाई की छाप स्पष्ट दिखाई दे रही है।

  3. 1) एक टाइम था bjp पोस्टल बैलेट मे हमेशा जीतती थी किसी भी चुनाव, अभी कुछ चुनाव मे mp राजस्थान छत्तीसगढ़ मे और इस चुनाव मे वो पोस्टल बैलेट मे हरी है
    2) अधिकतर कोचिंग इंस्टिट्यूट bjp सरकार के खिलाफ ही पढ़ाते है

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *