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वर्तमान शासन की नींव
प्रस्तुति -प्रभात तिवारी

वारेन हेस्टिंग्स


ऑक्सफोर्डशायर में जन्मा वारेन हेस्टिंग्स सन 1750 में सत्रह साल की उम्र में कंपनी के एक क्लर्क के रूप में भारत आया और पदोन्नत होते हुए सन 1772 में उसने हुगली के तट पर फोर्ट विलियम्स में बंगाल प्रेसीडेंसी के गवर्नर का पदभार ग्रहण किया और इसी के साथ शुरू होता है भारतीय शासन व्यवस्था में ब्रितानी हितों के अनुरूप बदलाव। हेस्टिंग्स ने एक ऐसी शासकीय व्यवस्था की नींव रखी जिसकी मदद से कुछ मुट्ठी भर अंग्रेज अधिकारियों ने आने वाली दो सदियों तक भारत पर राज किया।

डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर

बक्सर के युद्ध के बाद हुई इलाहाबाद संधि के फलस्वरूप 1765 में कंपनी को बंगाल, बिहार और उड़ीसा में दीवानी का अधिकार मिला। 1769-70 में पड़े भयानक सूखे के बाद छिन्न भिन्न हो चुकी कृषि और राजस्व प्रणाली को वापस पटरी पर लाने और कंपनी के हित साधने हेतु हेस्टिंग्स ने कुछ सुधार किए जिसके तहत एक पद सृजित किया गया, जिसका नाम था- डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर। नाम के अनुरूप इस पद पर नियुक्त अंग्रेज का काम था अपने अधीन जिले से ज्यादा से ज्यादा राजस्व जमा करना। समय समय पर इस पद पर आसीन व्यक्ति की जिम्मेदारियों और शक्तियों में वृद्धि और कमी होती रही। कभी कलेक्टर राजस्व के साथ साथ मजिस्ट्रेट और शासन के भी कार्य देखता था तो कभी उसकी शक्तियां सिर्फ जमीन, फसलों के सर्वेक्षण और राजस्व तक ही सीमित रहती थी।

न्याय प्रणाली

1772 में ही एक ऐसी न्याय प्रणाली भी बनाई गई जिसमें हर जिले में दो अदालतें होती थी – एक सिविल या दीवानी अदालत और दूसरी क्रिमिनल या फौजदारी अदालत। फौजदारी अदालत में अमूमन मुस्लिम कानून चलता था। सिविल कोर्ट में सामान्यतः यूरोपीय जिला कलेक्टर जज की भूमिका में होते थे। कलकत्ता में एक हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की भी स्थापना की गई। हालांकि इसके समानांतर मुर्शिदाबाद में एक सदर निजामत अदालत भी चलती रही। 1775 आते आते हेस्टिंग्स के कहने पर 11 ब्राह्मणों ने सिविल मामलों (विवाह, विरासत, उत्तराधिकार) के जल्द निपटारे के लिए हिंदू पर्सनल लॉ कोड तैयार किया और 1778 में मुस्लिम पर्सनल लॉ बना। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद औपचारिक रूप से लॉर्ड मैकाले के नेतृत्व में बने लॉ कमिशन द्वारा बनाए गए तीन कानून भारत में लागू किए गए – कोड ऑफ सिविल प्रोसीजर, इंडियन पीनल कोड, क्रिमिनल प्रोसीजर कोड, जो कि 2023 तक हमारे संविधान का हिस्सा रहे।

पुलिस महकमा

सन 1843 में सिंध के तत्कालीन गवर्नर सर चार्ल्स नेपियर ने ब्रिटेन की रॉयल आयरिश कांस्टेबलरी (जो कि आयरलैंड में विद्रोह को कुचलने के लिए बनाई गई थी) की तर्ज पर सिंध में एक अलग पुलिस महकमा बनाया। इस नई व्यवस्था में इंस्पेक्टर जनरल और सुपरिटेंडेंट जैसे पद सृजित हुए। सुपरिटेंडेंट जिले के कलेक्टर और इंस्पेक्टर जनरल दोनो के प्रति जवाबदेह होता था। आगे चलकर यही व्यवस्था कुछ सुधारों के साथ बंबई, मद्रास प्रेसीडेंसी और समूचे भारत में लागू हुई। पर अंग्रेजों ने यह जरूर सुनिश्चित रखा की अफसरों के पदों पर सिर्फ यूरोपियन लोगों की ही नियुक्त हो, किसी भारतीय की नहीं।

साम्राज्य के विस्तार के साथ अंग्रेजों को यह एहसास हुआ कि अब शासन के लिए सुदृढ़ ब्यूरोक्रेसी की जरूरत है जो कि भारतीय भाषाओं और कानून की अच्छी समझ रखती हो। इसी प्रेरणा के साथ लॉर्ड वेलेजली ने एक व्यवस्था स्थापित की जिसमें फोर्ट विलियम कॉलेज, कलकत्ता में 3 साल के प्रशिक्षण के बाद ही किसी यूरोपीय को भारतीय प्रशासनिक सेवा में नियुक्ति दी जाती थी, पर उनके जाने के बाद व्यवस्था में कुछ बदलाव हुआ।

सन 1805 में लंदन के पास हेलेबरी में ईस्ट इंडिया कॉलेज की स्थापना की गई, जहां लॉर्ड मैकाले के बनाए हुए पाठ्यक्रम पर शासकीय सेवा के अधिकारियों को 2 साल की ट्रेनिंग दी जाती थी और फिर उनकी नियुक्ति भारत में होती थी। सन 1858 में हेलेबरी कॉलेज भी बंद कर दिया गया और अफसरों की भर्ती के लिए लंदन में एक वार्षिक परीक्षा का आयोजन होने लगा।

इंडियन सिविल सर्विस

सन 1892 में पब्लिक सर्विस कमिशन के सुझावों के अनुरूप शासकीय सेवा में फिर कुछ परिवर्तन किए गए और अब इस सेवा को ‘इंडियन सिविल सर्विस’ और ‘प्रोविंशियल सिविल सर्विस’ के नाम से जाना जाने लगा। 1919 में भारतीयों के दबाव में गवर्नमेंट आफ इंडिया एक्ट के तहत भारत में ही सिविल सेवा भर्ती परीक्षा के आयोजन का प्रावधान किया गया। इसके तहत फरवरी 1922 में पहली बार भारतीय भूमि पर सिविल सेवा परीक्षा इलाहाबाद में आयोजित की गई। आज भी इलाहाबाद उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग का मुख्यालय होने के साथ-साथ सिविल सेवा परीक्षा का एक गढ़ है।

वारेन हेस्टिंग्स द्वारा रोपा हुआ शासन व्यवस्था का पौधा उसके बाद के अनेक गवर्नर जनरल और वायसरॉय द्वारा सींचा गया। इस शासन व्यवस्था के पीछे अंग्रेजों की मूल भावना भारत के लोगों को एक आधुनिक शासन व्यवस्था देने की नही बल्कि एक ऐसी व्यवस्था कायम करने की थी जिसमें नियुक्त अधिकारी सिर्फ ब्रितानी हितों के अनुरूप सोचें और कार्य करें, जिस से अधिक से अधिक राजस्व वसूली, भारत से कच्चा माल निर्यात और ब्रिटेन के कारखानों में बने माल का भारत में आयात हो सके। समय के साथ इस सेवा में भारतीयों की संख्या बढ़ती गई और इसके फलस्वरूप इस शासकीय सेवा की भावना और स्वभाव भारत के अनुरूप होने लगा। आजादी के समय हमें यही व्यवस्था उत्तराधिकार में मिली जिसे कई बदलावों के बाद हम आज भी प्रयोग करते हैं।

प्रस्तुति – प्रभात तिवारी

इस लेख के लेखक प्रभात तिवारी हैं। प्रभात सूचना प्राद्योगिकी के क्षेत्र में कार्यरत हैं और तकनीकी विशेषज्ञ हैं। प्रभात इतिहास, संस्कृति तथा अंतर्राष्ट्रीय राजनीति जैसे विषयों में रुचि रखते हैं। लेखक ट्विटर पर @prabhat_t99 से विचार रखते हैं।
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One thought on “वर्तमान शासन की नींव

  1. बहुत ही बढ़िया आलेख प्रभात जी। आप यशस्वी होवें।

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