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आपका -विपुल

सुबह सीवर साफ करने, दरवाजे पर पड़ा गोबर साफ करने के बाद
रात के बर्तन धोकर पहली चाय बनाकर घर में सब को सर्व करने के बाद जब सत्या भाई ने एक दिन की छुट्टी अपनी माता जी की बहू से मांगी तो चार गालियों ,दोपहर का खाना अभी बना कर जाने और 9 तक बजे लौट कर आने की शर्त के साथ स्वीकृत हुई।
जल्द ही आलू की सब्जी और परांठे बना के कैसरोल में रखने के बाद सत्या भाई ग्रे पैंट और स्लेटी गर्म कोट पहन कर बुलेट पर सवार होकर घर से निकले।
एक बार सत्या भाई की जान मंजरी बोली थी कि ये ड्रेस सत्या भाई पर बहुत जंचती थी ।
और हां मंजरी सत्या भाई की पत्नी का नाम नहीं था।
पूर्व निर्धारित एजेंडे के अनुसार सत्या भाई को ठीक 11 बजे मंजरी से मिलना था माल रोड चौराहे पर और वहां से दोनों को लल्लन टॉप मॉल जाना था।
जहां दोनों का ब्लू वाली फिल्म देखने का प्रोग्राम था।
नहीं नहीं,
गलत मत समझें।
ब्लू वाली फिल्म जिसमें सब ब्लू ब्लू था।
मतलब अवतार
दूसरी वाली।
पार्ट टाइम राजनीती विशेषज्ञ और फुल टाइम छिनरा सत्या भाई की टाइमिंग इतनी सटीक थी कि इधर मंजरी माल रोड चौराहे पर आटो से उतरी और उधर सत्या भाई की बुलेट मंजरी के सामने पहुंच चुकी थी।
अपने पिछ्ले साढ़े सात अफेयर में फीमेल के धोखे में शीमेल से धोखा खा चुके सत्या भाई को पूरा यकीन था कि मंजरी मोना डार्लिंग ही है, बार्बी डार्लिंग नहीं।
साढ़े सात अफेयर?
हां एक बार तो वो किन्नर भी नहीं था, पुरूष था।
हल्की सांवली , तीखे नैन नक्श, स्लिम ट्रिम बॉडी और मनमोहक मुस्कान
मंजरी काली साड़ी में थी।
और लाल रुमाल हाथ में।

बुलेट की पिछली सीट पर मंजरी और आगे सत्या भाई।
मंजरी का सत्या भाई कमर पर हाथ,
बादलों भरा मौसम
ठंडी हवाएं
और मंजरी का कहना।
“कितने डैशिंग हैं आप। कितने हैंडसम।”
बुलेट की स्पीड 40 से 70 हो गई सत्या भाई से।
‘ कितनी प्यारी है ये। ‘
सत्या भाई गदगद थे।

रिमझिम गिरती बारिश के बीच सत्या भाई को मंजरी से पहली मुलाकात ध्यान आई थी। जब सत्या भाई अपनी धर्म पत्नी की साड़ी में फाल लगवाने चूड़ी वाली गली में गए थे और मंजरी वहां मिली थी। बेचारी को फाल लगाना नहीं आता था। सत्या भाई ने न सिर्फ उसे फाल लगाना सिखाया, बल्कि पैसे भी दिये थे।

फोन नंबरों का आदान प्रदान कुछ ऐसा हुआ और दोनों की ट्यूनिंग कुछ ऐसी जमी कि स्वयंसेवी सत्या भाई अक्सर ही मंजरी को साड़ी की फाल लगाना सिखाने जाने लगे ।
लेकिन मंजरी के व्यक्तिगत जीवन और घर परिवार के बारे में सत्या भाई जान नहीं पाए थे।
उसने बस इतना बताया था कि वो तलाकशुदा है और फ्री लाइफ में विश्वास रखती है । दुकान के अलावा वो कहीं मिली नहीं थी सत्या भाई को।
एक दिन सत्या भाई ने अपना दिल खोल के बताया कि मंजरी उन्हें कितनी पसंद है ।
मंजरी तो रो ही आई थी गले लगकर रोई और बोली पहले हम इक दूसरे को जान समझ लें फिर रिलेशनशिप।
लिव इन।
सत्या भाई खुश ।

मंजरी ने ही प्रोग्राम बनाया था अवतार 2 फिल्म आज देखने का।
संडे था ।
लल्लन टॉप मॉल पहुंचे दोनों।
लिफट से ऊपर।
फिल्म बारह पचास की थी। अभी साढ़े ग्यारह था।
कैफेटेरिया में सत्या भाई और मंजरी।
कॉफी के साथ स्नैक्स । बढ़िया।

“तो पहली बीवी के आपसे तलाक के बाद आप अभी तक अकेले ही हैं!क्यों?
सत्या भाई ने अपने कल ही कलर किए बालों पर हाथ फिराया ।
” बस! कोई मन की नहीं मिली।”
उधर गुलाबी पैंट और काली शर्ट में लौकी के बीजे जैसे दांतो वाला छोटे कद का एक कृष्ण वर्ण युवक जो कमर में पिस्टल खोंसे था अचानक प्रकट हुआ।

“श्रीमान जी “
उस खतरनाक से दिखते व्यक्ति के माथे पर तिलक और गले में रुद्राक्ष की माला साफ बता रही और शर्ट में लगा भगवा रंग का पेन साफ बता रहा था कि ये व्यक्ति संघी था।
“क्या आप एकलव्य नगर के विस्तारक हैं? सत्यप्रकाश जी?”
“नहीं!”
ये विस्तारक होता क्या है भई? प्रचारक तो सुना था भाई ने।
सत्या भाई हैरान थे।

“तो कृपया इस टेबल को छोड़ दें।
यह सत्यप्रकाश जी के लिये आरक्षित है।”
शुद्ध हिंदी ,
शुद्ध अपमान।
सत्या भाई लड़ने को हुऐ, पर मंजरी ने समझदारी दिखाई।
टेबल बदल ली।

सत्या भाई का मूड उखड़ चुका था।
वो कैफिटेरिया से चल दिए।अवतार 2 फिल्म के दीवाने कई चंगू मंगू बदन पे नील थोपे घूम रहे थे।
अचानक उन्होंने ध्यान दिया उनका फोन टेबल पर छूट गया था । वो कैफिटेरिया लौटे। टेबल पर फोन नहीं था।
अचानक जिन्न की तरह उनके पीछे फिर पिस्टल पांडे प्रकट हुआ।

उसके हाथ में एक प्लास्टिक कवर में सत्या भाई का फोन था।
“ओह ! “
सत्या भाई की जान में जान आई ।
“थैंक्यू भाई। मेरा फोन सुरक्षित रखने के लिए।”
“आपके संस्कारों की तरह आपकी भाषा का भी पतन हो चुका है।”
पिस्टल पांडे बोला।

“इस दूषित फोन में इतने खराब चलचित्र हैं कि मेरे जैसे साधु का मन भी विचलित हो गया।”
पिस्टल पांडे गुस्से में था।
“लगता है राज कुंद्रा ने अपनी सारी फिल्मों का पैसा आपसे ही कमाया है।।”
सत्या भाई चुप रह गए। अच्छा था कि मंजरी को बाहर ही छोड़ आए थे कैफिटेरिया के।
चुपचाप फोन लिया।

“लेकिन मेरी भाषा तो ठीक थी।”सत्या भाई ने फोन जेब में डाला।
“धन्यवाद की जगह थैंक्यू बोलकर आप जैसे लोग ही सनातन संस्कृति का अपमान करते हैं।”
पिस्टल पांडे अब भी नाराज था।
खैर !
सत्या भाई कैफिटेरिया से निकले। मंजरी के साथ इधर उधर मॉल में घूमे फिरे।
ठीक 12 बजकर पचास मिनट पर थियेटर में थे सत्या भाई और मंजरी।
ब्लू फिल्मों के अलावा सत्या भाई का किसी और फिल्म में कोई इंट्रेस्ट कतई नहीं था। यहां भी बच्चों वाली फिल्म में इंट्रेस्ट नहीं था सत्या भाई को।
वो चिपके ही जा रहे थे मंजरी से।
इंटरवल तक मंजरी को बता चुके थे कि उनके 20 बीघा खेत हैं, आमों के बाग हैं और अभी इन्दौर में एक फार्म हाउस खरीदा है।
उनकी पहली पत्नी उन्हें गरीबी के कारण डायवोर्स दे गई थी उसके बाद सत्या भाई की लॉटरी लगी।

उस लॉटरी के पैसों से सत्या भाई ने धड़कन फिल्म के सुनील शेट्टी की तरह व्यापार बढ़ाया और अब वो अरबपति हैं और मंजरी के पति बनना चाहते हैं।
इतना सब कहने के बाद सत्या चौधरी बोले।
“एक किस दो न यार!”
“लो ना यार”
आवाज पीछे की सीट से आई थी और तभी इंटरवल हो गया।
लाइट जल गई थी हॉल की
और सत्या भाई की भी।

सत्या भाई के ठीक पीछे की सीट पर मिसेज सत्या बैठी थीं।
उनके बगल में पिस्टल पांडे और एक महिला कांस्टेबल।
मंजरी के हथकड़ियां पड़ गई थीं।
पिस्टल पांडे ने मिसेज सत्या को तब फोन किया था जब सत्या भाई फोन कैफिटेरिया में भूल आए थे ।
मंजरी एक खूंखवार डकैती गैंग की मेंबर थी जिसके कई मेंबर
पकड़े जा चुके थे । मंजरी के पास नए शिकार ढूंढने का काम रहता था। मंजरी का असली नाम शिखा था और शिखा पिस्टल पांडे के पड़ोस की गांव की थी, वो उसे और उसके डकैती गैंग को जानता था ।
सत्या भाई को उस दिन अपनी पत्नी का एक दूसरा ही अवतार दिखा।
खौफनाक
पूरे रास्ते पिटे।
अभी भी पिट रहे हैं।
पिटते ही रहेंगे।
कर्म ही ऐसे हैं।
आपका -विपुल
सर्वाधिकार सुरक्षित -Exxcricketer.com


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