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आपका -विपुल

प्रायोजक – फाबा हनी

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बीस लाख का बवाल

कानपुर नगर की ग्रामीण बैंक में जब अपने कॉलेज के साइकिल स्टैंड की रकम जमा करने पहुंचा तो भीड़ में मेरे आगे 57 साल के अधेड़ प्रणेय गुप्ता लगे थे।मैं केजरीवाल मेमोरियल शीशमहल कॉलेज में गणित का प्रोफेसर था और मेरे प्रिंसिपल रमाकांत रॉय पढ़ाने के अलावा साइकिल स्टैंड का ठेका भी लिये थे।

लाइन धीमे बढ़ने का कारण ये था कि कैश काउंटर पर एक बला की खूबसूरत सुंदर कन्या बैठी थी जिससे काउंटर पर पहुंचा हर व्यक्ति ज्यादा बात करना चाह रहा था और दूसरा ये कि शायद कन्या वो प्रियंका चतुर्वेदी स्कूल ऑफ़ मैथ्स की प्रोडक्ट थी जो नोट जल्दी नहीं गिन पा रही थी।

खैर, लाइन बढ़ी आगे।
मैं अब लाइन में दूसरे नंबर पर था।मेरे आगे खड़े व्यक्ति ने रोडवेज बस की सीट की रैक्सीन से बने झोले से 2000 के नोटों की कई गड्डियां निकाल के रखीं और अपने पैन कार्ड की फोटोकॉपी कैशियर को देनी चाही।
वो फोटोकॉपी जमीन पर गिरी, मैंने उठा कर दी और नाम पढ़ा।
प्रणेय गुप्ता
57 साल।
और तभी

जमा पर्ची और बीस लाख का कैश , कैश काउंटर के अंदर ही रखा था गुप्ताजी ने कि गुप्ता जी का दिल उस कैशियर की खूबसूरती सह ही न सका, जिसका नाम उसके गले में टांगे आईकार्ड के हिसाब से सपना श्रीवास्तव था।
गुप्ता जी की दिल की धड़कन बढ़ गई और वो धड़ाम से गिरे।

मेरी और सपना की आँखें मिलीं और सपना ने सबसे पहले वो काम किया,जो सबसे जरूरी था।
मतलब वो दो हजार के सारे नोटों की गड्डियां कैश काउंटर के नीचे जो गुप्ता जी ने जमा करने के लिये कैश काउंटर पर रखीं थीं।
मैंने गुप्ता जी को संभाला,बैंक वाले आ गये तब तक।
मैंने इज्जतदार शहरी की तरह गुप्ता जी पर दिमाग लगाने की बजाय उस कन्या पर दिमाग लगाया जो सुंदर भी थी और कैश भी भरपूर था अभी उसके पास।

एंबुलेंस आने में देर थी इसलिए बैंक के सामने खड़े रहते सब्जी ठेले वाले के ठेले पर लाद कर गुप्ता जी को कार्डियालोजी अस्पताल भिजवा दिया गया। उसके बाद मैंने साइकिल स्टैंड के चिल्लर जमा करते हुए मुस्कुरा कर बताया सपना को कि अभी जो बूढ़ा बेहोश हुआ है, मेरा चाचा है।
तुरंत पैसे वापस करो।

सपना ईमानदार होने के साथ साथ समझदार भी थी।उसके सर में तुरंत दर्द हो गया और आधे दिन की छुट्टी लेकर आधे घंटे बाद वो मेरे साथ रेस्टोरेंट में बैठी थी।
बात 20 लाख रुपयों की थी,2000 की गड्डियों की थी।कोई और होता तो पूरे ले लेता, मेरा सौदा 50 प्रतिशत पर थम गया।
गुप्ता जी की सांसों की तरह।

खबर आ चुकी थी टीवी पर।हम दोनों ही निश्चिंत थे।खुर्राटे भर भर के सोए हम।अब हम दस लाख के मालिक थे।पर कोई था जो निश्चिंत नहीं था।
कोई था जो बेचैन था और वो था शहर भर के सूखे नशे का सप्लायर सत्या चौधरी।
जो दिखाने को तो स्पोर्ट्स के सामान का व्यापारी था, पर असल में बहुत बड़ा सट्टेबाज माफिया था।

अपनी गंदी आदतों के कारण अपने लड़कों द्वारा घर से निकाला जा चुका प्रणेय गुप्ता दरअसल इसी सट्टा माफिया के लिए काम करता था जिसकी सत्या चौधरी खेलवाले के नाम से शहर भर में स्पोर्ट्स शॉप थीं।शहर के आईपीएल सट्टे की कैश कलेक्शन वोही जमा करता था बैंक में।
सत्या चौधरी उसे अच्छी पगार देता था।

और सत्या चौधरी वाली ये बात मुझे तब पता चली जब मैं अगले दिन कॉलेज पहुंचा और मेरे कॉलेज के ऑफिस बॉय राहुल ने मुझे बताया कि कॉलेज के स्टाफ रूम में पुलिस स्टाफ मेरा इंतजार कर रहा है।
ये पुलिस स्टाफ एक जड़ बुद्धि दरोगा विजयंत खत्री और कुछ न सुनने वाला ईमानदार हवलदार दीपक यादव थे।

और ईमानदारी से उन्होंने मुझे पूरी बात बताई कि प्रणेय गुप्ता सत्या भाई के पैसे जमा करने गया था।बूढ़ा गुप्ता अभी मरा नहीं था, कोमा में था।सत्या भाई को पैसे वापस चाहिए थे।बैंक में जमा नहीं हुये तो सत्या भाई की इंटेलिजेंस ने खबर पता लगा ली थी कि एक हैंडसम गणित टीचर का कुछ रोल था इसमें।

चूंकि पूरे शहर में सबसे हैंडसम गणित का प्रोफेसर मैं ही था तो उन्हें मुझ पर शक हुआ था।मैंने उनका शक और उनकी ईमानदारी दोनों को कायम रखते हुए दो हजार के दो नोट देकर उन्हें विदा किया और उन्होंने मुझे सलाह दी कि हुलिया बदल के शहर छोड़ दो कुछ दिनों के लिए।
20 लाख ज्यादा बड़ी रकम नहीं है सत्या भाई के लिये।
सत्या भाई जल्द ही भूल जायेंगे।


वो पुलिस वाले कॉलेज से निकले और मैं घबड़ा ही चुका था कि मेरे पास अननोन नंबर से एक कॉल आई।
“मैं सपना!फ्लैट नंबर 420 मधुर मिलन अपार्टमेंट, जल्दी, अर्जेंट”
इतनी मधुर और इतनी दर्द भरी आवाज थी कि मैं कॉलेज छोड़ मधुर मिलन अपार्टमेंट पहुंच गया।
फ्लैट के बाहर ही खड़ी थी।
सपना?
नहीं नहीं
पुलिस।

और पुलिस वहां कंट्रोल कर रही थी उन किन्नरों को जो सपना के दरवाजे पर खड़े होकर चिल्ला रहे थे, पैसे वापस करो, वरना तुमको भी किन्नर बना दूंगी।
अब ये क्या तमाशा है यार?
मेरा वैज्ञानिक दिमाग इस गुणा भाग में लग गया कि लड़की को किन्नर कैसे बनाया जा सकता है यार?
🤔🤔🤔

खैर, मैंने सपना को उसी नंबर पर दोबारा फोन किया। उधर से एक घबराई सी आवाज आई कि इन किन्नरों के कारण तुम्हें सामने वाले दरवाजे से नहीं बुला सकती,अपार्टमेंट के पीछे से दीवार फांद के आओ।
मैं बाहर निकला,दीवार फांदा और रेन पाइप के सहारे तीसरी मंजिल पर बने सपना के फ्लैट में खिड़की से घुसा।

मुझे देखते ही सपना मेरे गले लग गई और फफक फफक के रोने लगी।
सत्या चौधरी को पता लग चुका था कि सपना कहां रहती है। उसने अपनी प्रेमिका शमा किन्नर को सपना को धमकाने भेजा था। सपना ने पुलिस और मुझे साथ साथ फोन कर दिया था।
पुलिस पहले पहुंच गई थी,मैं बाद में पहुंचा था।
शमा दरवाजे पर अब भी थी।

शमा एक आखिरी बार सपना को पैसे वापस करने के लिए धमका के चली गई।
कुछ देर सन्नाटा रहा,फिर सपना रोने लगी।
मुझे अच्छा नहीं लगा।मैंने उसको चुप कराने के लिए उसका कंधा पकड़ा,पर वो मुझसे लिपट गई।
और फिर हमारे बीच वो सब होने लगा, जो मुझे बताने में शर्म आती है।


आप तो जानते ही हैं मेरा स्वभाव, कितना शर्मीला हूं मैं!

सपना ने मुझे बताया कि वो संथाल कबीले की श्रीवास्तव है। उसका घर झारखंड में है।
उसके माता पिता नहीं हैं।छत्तीसगढ़ के कुनकुरी चर्च में बागवानी का काम करने वाले मनीष सेबेस्टियन से उसकी शादी फिक्स हो चुकी है।
लेकिन मेरी हैंडसमनेस और इंटेलिजेंस देख कर वो मुझ पर फिदा है,और अब हम उसके घर झारखंड चलेंगे। संथाल कबीले के उसके गांव में।

हम दोनों के पास पैसे हैं।सपना अपना ट्रांसफर झारखंड करवा लेगी और मैं झारखंड में चर्च के स्कूल में पढ़ाने के साथ पर्यावरण वादी भी बन सकता हूं।
एकदम प्राकृतिक माहौल में।
ये सपना इतना सुहाना था कि बिना कुछ सोचे मैं अगले दिन सपना के साथ झारखंड निकल पड़ा, बस से।
पहला स्टॉप रांची था।

रात हो चुकी थी।सपना श्रीवास्तव का संथाल कबीले का गांव अभी दूर था।हमने एक होटल में रुकने का फैसला किया और फिर हमारे बीच रात में वही सब कुछ हुआ जो मुझे बताने में शर्म आती है।


पूरे बीस लाख नकद हमारे पास थे।मजे थे।
पर एक बात जो हम भूल रहे थे,
दो हजार के नोटों में लगी चिप।


और दूसरी बात जो हमें पता ही नहीं थी कि दुर्भाग्य से ये सत्या भाई के सट्टा सिंडीकेट का ही होटल था।


ये मुझे सुबह पता चला जब सपना गायब थी और मेरे रूम सर्विस वाले लड़के आयुष ने जो शक्ल से ही छिनरा लग रहा था ,सत्या चौधरी से फोन पर मेरी बात करवाई।
सपना को बचाने के लिए मैं उसकी बात मानने को तैयार हुआ।मुझे कुछ लोग एक गाड़ी से लिवाने आये और मैं उनके साथ जाने को मजबूर हुआ।
ये एक बड़ी गाड़ी थी।मेरी आंखों पर पट्टी बांध कर मुझे एक फॉर्म हाउस में लाया गया जहां एक बहुत बड़ा स्विमिंग पूल था और कई रेसिंग मोटरबाइक्स खड़ी थीं।

मेरी आंखों से पट्टी खोली गई।ये किसी क्रिकेटर का घर सा लग रहा था।कई बैट बॉल पड़े थे इधर उधर।
तभी डुकाटी मोटर साइकिल की आवाज आई और पीली क्रिकेट ड्रेस में एक लंबा चौड़ा सा एथलेटिक फिगर का आदमी उससे उतर के आया।


उसके मुंह पर मास्क था।
वो सामने कुर्सी पर बैठा और मुझे फोन दिया एक।

उस फोन में एक वीडियो चल रहा था और उस वीडियो में मैं वो सब करते दिख रहा था जिसे करने में मुझे शर्म आती है।
मैं कुछ बोलना चाहा पर उसने मुझे चुप रहने का इशारा किया।
अपने एक आदमी को बुला कर कहा,
“अगर ये हमारे साथ शामिल होता है तो उस बीस लाख के अलावा बीस लाख और दे देना।अगर ईमानदार बनता है तो भी बीस लाख इसी पर खर्च करना।
इसका ताबूत पूरे बीस लाख का ही आना चाहिए।”


मैं दहल गया।
“मुझे क्या करना होगा?”
मैंने थूक गटक के पूंछा।
“कुछ खास नहीं”
वो हंसा।
“बस अपने ड्रीम में भी ड्रीम इलेवन के बारे में बात मत करना कभी”


कुछ देर ठहर कर वो फिर बोला।
“लोगों से मैच फिक्सिंग के बारे में बात करना छोड़ दो,कोमा में पड़े गुप्ता जी की जगह कानपुर में डेली कैश हैंडलिंग का काम तुम्हीं संभाल लो।अच्छा पैसा है इसमें। हमें एक आदमी चाहिए और तुम्हें अपनी सपना।”

मैंने दो मिनट सोचा और एक ईमानदार और आन बान शान वाले व्यक्ति की तरह फैसला लिया।
मैं पूरी स्टाइल से उठा और पूरी रंगबाजी से बोला।
“धर्म के पथ पर चलने वाले व्यक्ति व्यक्तिगत मान अपमान से नहीं डरते।”
“किसी की धमकियों में नहीं आते।”

“मैं भी मैच फिक्सिंग में शामिल होने को तैयार हूं।”


मैं वापस होटल पहुंचा दिया गया।
सपना वहीं थी।वो तो बाहर जलेबी खाने गई थी।उसे किसी ने उठाया नहीं था।मुझे बेवकूफ बनाया गया था।
पर उस वीडियो के कारण मैं जाल में फंस गया था जो मेरे रूम में लगे गुप्त कैमरे से बना था।
शरीफ सत्या चौधरी भोले भाले लोगों के निजी क्षणों को रिकॉर्ड कर बेचता था, ये उसका झारखंड साइड का साइड बिजनेस था।
सपना अभी सुरक्षित थी पर मुझे पता था ये बड़े खतरनाक लोग हैं। वेस्टइंडीज में बॉब वूल्मर मर तक गया था इनके चक्कर में।
और मैं अपनी इज्ज़त भी नहीं नीलाम होने देना चाहता था।
ऊपर से मुझे अभी अभी ध्यान आया था कि मैं शादीशुदा भी हूं
उफ्फ।
😮😮😮।

सपना मुझे संथाल कबीले के अपने गांव ले जाने की इच्छुक थी।पर अब मेरा मन बदल चुका था। लेकिन फिर भी मैं सपना को वहां जाने से मना नहीं कर पाया। शाम को निकलना था हम दोनों को।सपना के कुछ चचेरे चाचा उसे कार में लेने आए थे।वो रेस्टोरेंट में उनको अटेंड कर रही थी कि तभी सत्या का खबरी आयुष मेरे पास आया।

आयुष बोला-“ये काले जंगली आपको इस गोरी लड़की के चाचा वाकई में लग रहे हैं क्या?”
मैंने उसको घूरा तो उसने बताया कि संथाल जनजाति के श्रीवास्तव लोग आदमखोर हैं।वो अपने कबीले में कुछ गोरे लोगों को भी रखते हैं जो शहर से उनके लिए शिकार ले कर आते हैं।ये लड़की कई शिकार ला चुकी है। खुद भी आदमखोर है ये लड़की।

मैं आयुष की बात का बिलकुल विश्वास न करता अगर आयुष सपना की टेबल के नीचे लगे माइक्रोफोन की लाइव रिकॉर्डिंग मुझे न सुनाता।
उसके चाचा मुझे नज़रों में तौल के बोल रहे थे।
“मोटा तो ठीक ठाक है पर पूरे कबीले की दावत तो नहीं हो पाएगी।”
सपना बोली-
“ये बेवकूफ समझ रहा था मैं सट्टेबाजों से डरती हूं।”
उसके बाद वो सब जो खिलखिला के हंसे तो मैं दहल ही उठा था। उनके साथ संथाल कबीले के कुछ बच्चे भी थे और बच्चे मन के सच्चे होते हैं।
एक बच्चा मुझे देख कर बोल रहा था – “अबकी बुआ मोटा आदमी लाई है। पिछली बार वाले में मांस ही नहीं था।अबकी नमक कम रखना।”


हे भगवान!
इतना सुनना था कि मैं वापस कमरे में पहुंचा।बैग पैक किया और होटल के पीछे के दरवाजे से निकला।

इधर सत्या भाई के सट्टा सिंडीकेट के आदमियों ने पहले ही होटल के पीछे मेरे लिये कार लगा रखी थी। मुझे बस में बैठा के सुरक्षित रांची से निकाल दिया गया।
जब मैं कानपुर वापस पहुंचा तो मुझे पूरी बात पता चली।

सपना ने पूरा खेल ही मुझे फंसा कर संथाल कबीले ले जाने को खेला था।
अबकी बार उसका टारगेट पूरे 100 किलो के आदमी को फंसा कर उसके आदमखोर कबीले में ले जाने का था।वो यही काम ही करती थी। संथाल कबीले का उसे पूरा सपोर्ट था।

पहली नजर में ही मैं उसे भा गया था।
गुप्ता जी के पैसे उसने जानबूझ कर मुझे दिये थे।
अपने दस लाख उसने सट्टा सिंडीकेट को तुरंत लौटा दिये थे। उसे रुपयों की जरूरत ही नहीं थी।उसके घर पर किन्नर वगैरह का उसको धमकाने का ड्रामा उसी का रचा हुआ था था ,सट्टा सिंडीकेट के साथ मिल कर। लेकिन तब तक सट्टा सिंडीकेट को ये नहीं पता था कि सपना श्रीवास्तव आदमखोर संथाल कबीले से ताल्लुक रखती है।

उधर सट्टा सिंडीकेट को कानपुर की कैश हैंडलिंग के लिये एक आदमी चाहिए था गुप्ता की जगह,जो उन्हें मुझमें दिखा।
मेरा रांची पहुंचना सपना और सट्टा सिंडीकेट दोनों के लिए जरूरी था क्योंकि दोनों का मुख्यालय रांची में ही था।
सुबह जब सपना मेरे शिकार के बारे में अपने चाचा से बात कर रही थी तो सट्टा सिंडीकेट के एक आदमी ने सुन लिया था।

सट्टा सिंडिकेट के लिये मैं जिंदा ही काम का था,मुर्दा नहीं।
इसलिये सट्टा सिंडीकेट ने मुझे सपना की हकीकत बता कर वहां से सुरक्षित निकलवा दिया।
गुप्ता जी कोमा से निकल कर वापस काम पर आ ही गये थे तो उन्हें मेरी जरूरत ही न पड़ी।
अच्छे लोग थे।जान बचाई मेरी।
आईपीएल 2023 चेन्नई ही जीतेगी। ऐसा मेरा पूर्ण विश्वास है।

आप का- विपुल

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