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आपका -विपुल

कानपुर नगर निगम का चुनाव खत्म हो चुका था।
गल्ला मंडी में अपना चुनावी गल्ला जब जमा करके निकला तो रात के डेढ़ बजे थे।
घर पहुंचते पहुंचते शायद ढाई बज जाते।एक मित्र का घर भी गल्ला मंडी के सामने ही था और वो साथ में थे भी चुनावी ड्यूटी में।
उन्होंने कहा यहीं सो जाओ,सुबह चले जाना और मैंने मान भी लिया।
अब दूसरे के घर नींद वैसे भी नहीं आती और मैं शुभमन गिल का फैन भी हूं।
“थोड़ा थोड़ा टिंडर आत्थी।”

वैसे तो शादी डॉट कॉम पर भी मेरी प्रोफाइल थी और उसपर मेरी पंद्रह साल पुरानी फ़ोटो लगी थी जिसमें मैं एकदम एथलेटिक फिगर का स्मार्ट हैंडसम और सेक्सी लगता था ।
लेकिन टिंडर पर मैंने उससे भी एक साल पुरानी फ़ोटो अपने फेसबुक से निकाल कर लगाई।
तीस मिनट में तीन मैच मिल गये।
एक को राइट स्वाइप करते ही अगले तीस मिनट में मेरे पास व्हाट्सएप,ईमेल और मैसेज थे तनुप्रिया त्रिनेत्र के।
लेकिन मुझे टिंडर पर ज्यादा भरोसा नहीं था।शादी डॉट कॉम पर ज्यादा भरोसा था जहां मैंने खुद को एक पहली पत्नी से पीड़ित व्यक्ति बता रखा था।थोड़ी ही देर में शादी डॉट कॉम से भी तनुप्रिया त्रिनेत्र का हवाला मिला।
मतलब ये मोहतरमा असल में शी/हर ही थीं।
मेरे बच्चे उनकी मम्मी के साथ उनके मामा की मम्मी के यहां थे और कल आने वाले थे।
आज तो सुबह के चार बज ही गये थे,टिंडर चलाते चलाते।
तनुप्रिया त्रिनेत्र से शाम के चार बजे केरला कैफे में मिलने की बात डन हुई।
एक विवाहित संभ्रांत और शरीफ पुरूष होने के बावजूद मैं ये मीटिंग क्यों करने वाला था?


एक तो तीन दिनों से अपनी पत्नी से अलग रहने के बाद मेरा मुरझा चुका स्वाभिमान धीरे धीरे बड़ा होने लगा था।दूसरे मैंने पक्का इरादा कर लिया था कि अब मुझे उस शादी से निकलना है जो मेरी इच्छा के खिलाफ जबरदस्ती हुई थी और जिस शादी में मैं केवल बेइज्जती,जिल्लत और रुसवाई से जूझ रहा था।
और तीसरा महत्वपूर्ण प्वाइंट ये कि सत्या चौधरी मेरा नया नया दोस्त बना था।

चार बजे आंख लगी तो नौ बजे मैं अपने दोस्त की बीवी की आवाज से उठा जो अपने पति से पूंछ रहा थी,
“ये मोटू कब जायेगा?”
मैं उसका लिहाज करते हुये पांच मिनट बाद उठा और दोस्त से जाने की इजाजत मांगी।
एक कप चाय के साथ विदाई ली।
बाहर निकलते ही एक गिलास मट्ठा के साथ दो पाव खाये
घर अभी जल्दी पहुंचना नहीं था और द केरला स्टोरी फिल्म की तारीफ भी बहुत सुन रखी थी। इसलिये जेड स्क्वायर मॉल।
बड़े चौराहे का टैंपो यहां से सीधा ही मिल गया।
आगे की सीट मिली।ड्राइवर की जांघों से मेरी टांगें टकरा रही थीं।
वो बड़ा अजीब अंदाज से मुझे देखते हुये मुस्कुरा रहा था।जब मैं उतरा तो धीरे से मुस्कुरा के बोला।
“आप बहुत हैंडसम हैं बाबू।”
“थैंक्यू”
मैं इतना ही बोल पाया कि उसने मुझे आंख मार के बोला।
“मुझे कल्लन तिवारी कहते हैं।”

आजकल ये चंद्रचूड़ टाइप लोग कुछ ज्यादा ही नहीं बढ़ गये ?

अभी शायद जेड स्क्वायर मॉल में झाड़ू भी कायदे से नहीं लगी थी और मैं मॉल के कैफिटेरिया के अंदर था।भूख बहुत लगी थी। रेस्टोरेंट में मैं अकेला ग्राहक दिख रहा था और जब मैंने चार प्लेट छोले भटूरे का ऑर्डर दिया तो तो ऑर्डर लेने वाला लड़का चौंका।
“बाकी तीन लोग कहां हैं सर?”
“इन्हीं के शरीर के अंदर!”
पिस्टल पांडे की आवाज आई जो कैफिटेरिया में बस घुसा ही था।
गुलाबी पैंट,काली शर्ट,ठिगना कद ,लौकी के बीजे जैसे दांत और कमर पर लगी पिस्टल।
पिस्टल पांडे इस कैफिटेरिया का मैनेजर होने के साथ मेरा दूर का साला भी था।

दूर का इसलिये क्योंकि मेरे और उसके विचार दूर दूर तक नहीं मिलते थे।वो संघी गुंडा है और मैं वॉक लिबरल और फेमिनिस्ट।
उसकी हिकारत भरी नज़रों को परे झटक कर मैंने चार प्लेट छोले भटूरे खाये और फिर साढ़े ग्यारह के द केरला स्टोरी के शो में घुस गया।


वर्किंग डे था और कानपुर के नवयुवक और नवयुवतियां अपना काम पूरी तल्लीनता से कर रहे थे।लगभग आधे खाली सिनेमा हॉल के अंधेरे में।
मैंने भी अपना काम किया और अपनी नींद पूरी करने लगा।
इंटरवल में थोड़ी देर के लिये नींद खुली थी जब थियेटर की रोशनियां जल उठी थीं।दोबारा सो गया और तब उठा जब सिनेमा हॉल में मूवी खत्म होने के बाद सफाई करने वालों ने झकझोर के उठाया।

ऊंघता हुआ बाहर निकला।फोन देखा,व्हाट्सएप पर तनुप्रिया त्रिनेत्र का मैसेज पड़ा था।
4 pm
केरला कैफे।

आज पता नहीं किस्मत कैसी थी, जल्दी के चक्कर में जिस ऑटो में बैठा,ये फिर वही था।
कल्लन तिवारी!
चंद्रचूड़ की बिरादरी वाला।
साला,जांघों से जांघें रगड़ता रहा रास्ते भर।
अब मेरे जैसा पुरूष अपने शोषण की शिकायत भी किससे करे?

केरला कैफे से कोई 300 मीटर पहले ही इस ऑटो को चेकिंग पर लगे पुलिस वालों ने रोक लिया।
“इस रूट पर चलने का परमिट नहीं है तेरे पास कल्लन तिवारी!”
एक सिपाही थोड़ा तैश में बोला।

” तो तेरे पास मेरा ऑटो रोकने की कौन सी पावर है?एक तो फ्री में चलते हो और ऊपर से 100 रुपयों के लिये कहीं भी गाड़ी रुकवा लेते हो?”
ये ऑटो ड्राइवर कल्लन तिवारी शायद कोई हाई क्वालिटी का माल फूंके था।क्योंकि सामान्य अवस्था में तो ऑटो ड्राइवर किसी सिपाही से ऐसा बोलने की सोच भी नहीं सकते।
उस सिपाही ने कल्लन तिवारी को थोड़े देर गौर से घूरा जैसे कच्चा ही चबा जायेगा।
माहौल बिगड़ता देख मैंने धीरे से कल्लन तिवारी से कहा।
“माफी मांग लो और मामला रफा दफा करो।”
लेकिन कल्लन तिवारी पुराना कांग्रेसी निकला जो उसके ऑटो में लगे तिरंगे के स्टीकर से मैं समझ नहीं सका था,उसके तेज आवाज में दिये गये जवाब ने समझा दिया।
“मैं कोई सावरकर नहीं हूं जो माफी मांगता फिरूं।”


एक पल का सन्नाटा!
सिपाही ने मुझे थोड़ा सा इशारा किया।
मैं बीस रुपए फुटकर ऑटो के गल्ले पर रख कर वहीं उतर गया। बाकी सवारियां पीछे थीं।मुझे क्या मतलब?
“धड़ाक”
“चप्पाट”
” सटाक”
“भड़ाक”
ऐसी वीभत्स आवाज़ें मेरे पीछे आ रही थीं।कल्लन तिवारी पुराने कांग्रेसियों की तरह पुलिस से लाठी भी खा रहे थे अब।

300 मीटर पैदल चल के ही केरला कैफे पहुंचा।


ठीक 4 बजे थे और तनुप्रिया त्रिनेत्र एक टेबल पर विराजमान थी।उसकी फ़ोटो मैं टिंडर और शादी डॉट कॉम पर देख चुका था, इसलिये देखते ही पहचान गया था ।
औसत कद, गेंहुआ रंग, गोल चेहरा और मैरून साड़ी। उमर 35 से कम नहीं रही होगी।आंखों पर स्टाइलिश नजर वाला चश्मा।

“हैलो!”
मैं उसकी टेबल पर पहुंचा और उसने मुस्कुरा के स्वागत किया मेरा।
“मुझे लग ही रहा था,आपने पुरानी फ़ोटो डाली होगी अपनी।”
समझदार महिला थी ये।समय की पाबंद भी थी।
दो कोल्ड कॉफी के ऑर्डर के साथ हमारी बातचीत की शुरुआत हुई।


वो कानपुर कांग्रेस के बहुत पुराने नेता धरणीधर तिवारी की परपोती थी और पिछ्ले बीस वर्षों से जे एन यू में पढ़ाई कर रही थी।वहीं से अपना सरनेम तिवारी से हटाकर त्रिनेत्र रख लिया था।

अचानक उसको शादी की इच्छा हुई थी और मेरी प्रोफाइल उन्हें अच्छी लगी थी।
चूंकि वो फेमिनिस्ट थीं इसलिये उनका बचपन से सपना था कि उन्हें किसी गरीब बदसूरत और एक शादी कर चुके आदमी से ही शादी करना था।मैं उनके लिये सर्वथा उपयुक्त था।

कोल्ड कॉफी की चुस्कियां लेते हुये उन्होंने मुझसे पूछा।
“मोदी के बारे में क्या विचार है आपका?”
मैंने मुंह बना कर कहा:-
“मोदी इज साइकोपैथ एंड कावर्ड।”

और साला मेरा फोन भी इसी समय बजना था।
“आयेंगे तो योगी ही,आयेंगे तो मोदी ही।”
मैंने बिना ये देखे फोन काट दिया कि फोन किसका था।


“आपकी रिंगटोन?”
उसने थोड़ा हैरत से मुझे देखा।
“सेफ्टी!”मैं मुस्कुराया।”सरकारी नौकरी है और सरकार भाजपा की।दिखाना पड़ता है।”
वो थोड़ा नरम हुई।
बात आगे बढ़ी।वो सुरीले अंदाज में बोली।
“राजीव गांधी कंप्यूटर लाये थे।”
“जगत्तू लाला भी कंप्यूटर लाये थे!”
मैं खुद ही हैरान रह गया।ये मैं क्या बोल गया यार?
“जगत्तू लाला कौन थे?”
उसने घूर के देखा मुझे।
“पुराने कांग्रेसी थे कानपुर के। कान के कैंसर से मर गये थे।”
“कान का कैंसर?”थोड़ा अचंभित होकर बोली वो।
“खैर!मैं पूर्व प्रधानमंत्री राजीव जी की बात कर रही थी।”
“जी! मैंने बात संभाली।
“मैं समझ गया।भारत में कंप्यूटर क्रांति राजीव जी ही लाये थे।”

मैं नया नया वॉक लिबरल और फेमिनिस्ट हुआ था,इसलिये अपने अंदर के पुराने संघी को मार नहीं पा रहा था।
खुद पर कंट्रोल पाने की कोशिश कर ही रहा था कि फिर एक गलती हो गई,जब तनुप्रिया त्रिनेत्र बोली:-“इंदिरा वाज सच एन आयरन लेडी।”
“प्रेस करती थी?”
केवल घूरना अलग बात थी, तनुप्रिया ने धीमी आवाज में जो मुझ पर लांछन लगाया, बर्दाश्त नहीं कर पाया मैं!
“तुम क्या संघी हो?”
“मैं कट्टर कांग्रेसी हूं।”
मैंने उसे घूरा।
“तुमको इंदिरा जी के नाम के आगे जी लगाना चाहिये था, इज्ज़त से नाम लेना चाहिये था।”
एक पल की शांति
फिर

“आयेंगे तो योगी ही, आयेंगे तो मोदी ही।”
मैंने दोबारा बिना ये देखे फोन काट दिया कि फोन किसका था।

एक कोल्ड कॉफी के बाद दूसरी कोल्ड कॉफी मंगाने तक सारी बातें फाइनल हो गईं थीं।
तनुप्रिया अभी अगले कुछ साल जे एन यू में पढ़ाई करेगी।मैं भी साथ में रह सकता हूं।
मुझे अपनी पत्नी से तलाक लेना होगा।
एक एनजीओ खोलना होगा जो उन सब लोगों की मदद करेगा जिन्हें हिंदुत्ववादी गुंडे एलजीबीटीक्यू होने के कारण परेशान करते हैं।

अभी हमारी डील फाइनल हो ही पाई थी कि अचानक मेरे गले में पीछे से दो छोटे से हाथ आये।
“पापा! आपको कब से फोन लगा रही हूं। “
मैंने पलट कर देखा मेरी बिट्टो थी और उसके पीछे हाथों में फोन लिये बिट्टो की मम्मी।
“पापा से कहो हम भी आइस क्रीम खायेंगे”
बिट्टो को एकदम ट्रेंड कर रखा था जैसे श्रीमती जी ने।मुझे बूढ़ा दिखाया जा रहा था जानबूझ कर और खुद को जवान।
श्रीमती जी काले सलवार सूट में थीं इस वक्त।
“ये आपके पापा हैं?”
तनुप्रिया त्रिनेत्र हैरत से बोली।
“नहीं लगते न?”
श्रीमती जी कुटिलता से मुस्कुराईं।
“बचपन से ही संतूर साबुन खाते हैं न।”
“लेकिन आपकी शक्ल नहीं मिलती?”
“कुंडली मिलती है।”
इसके बाद मुझे वहां से घसीटते हुये ले जाया गया।बीवी के लगातार तीन फोन न रिसीव करने का अंजाम इससे भी बुरा हो सकता था,अनुभवी लोग जानते ही हैं।

इसके बाद आगे कुछ बताने की जरूरत नहीं है।लेकिन फिर भी बता रहा हूं।
श्रीमती जी सुबह ही घर आ चुकी थीं।एक पेपर में विज्ञापन था कि शाम 4 बजे से केरला कैफे के बाहर फ्री में मेंहदी लगाई जायेगी।
वो वहीं आईं थीं और मुझे देख लिया था।
शादी डॉट कॉम बकवास है और टिंडर अश्लील।
हड्डी की चोट में एलोवीरा का पत्ता थोड़ी हल्दी लगाकर बांधने से आराम मिलता है और बेल्ट की चोट के जख्म साबुन लगाने से दुखते हैं।

तनुप्रिया त्रिनेत्र से दोबारा संपर्क नहीं हो पाया अभी।
एक फोन अक्सर रात को दो बजे आने लगा है जिसपर ट्रू कॉलर में कल्लन तिवारी का नाम लिख कर आता है।
और
द केरला स्टोरी आंखें खोलने वाली मूवी है।
ज़रूर देखियेगा।
आपका -विपुल
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One thought on “मेरा रिव्यू – द केरला स्टोरी

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