राहुल दुबे
एलएसजी की हार
यशस्वी जी ने 2017 में यूपी को लिए कहा था कि यहां के लोग कहते हैं कि यूपी में – “यहां भी खुदा, वहां भी खुदा. यहां भी खुदा, उधर भी खुदा. जहां नहीं खुदा है, वहां कल खुदेगा.”
अब उस समय लोगों ने इस बात के भले अलग राजनीतिक अर्थ बताये होंगे लेकिन लोगों को क्या ही पता कि यशस्वी जी ने ये बात लखनऊ की आईपीएल टीम के लिए कहा हो सकता है, बस शब्द बदल दिए हो- LSG में यहां भी बवाल, वहां भी बवाल, आज भी हारे, कल फिर हारेंगे, अबकी तीन रन आउट हुए , अगली बार 11 रन आउट।
अपनी LSG की टीम है ही ऐसी क्रांतिकारी।हम बस बवाल काटने में माहिर है, एक तुक्के के रन चेस के बाद हमने इतनी ओवर एक्टिंग की कि उसके बाद हम 36 गेंदों में 30 रन न बना पाए, जिस टीम को चिढाकर उसके फैंस के रोने की स्टोरी उस टीम के खिलाड़ियों ने डाली थी उसी टीम को हमारे अपने ही घर में जोरदार समर्थन मिला और जब हम हारे तो हम उनके रिएक्शन को सहने के बजाय हम लड़ने लगे।
हमारे एक खिलाड़ी ने तो बेचारे इतने आम खा लिए और हमारे अन्य बल्लेबाजो को इतने आम खिला दिये कि हम 10 अप्रैल के बाद मात्र एक ही मैच में चेस करते हुए जीत पाए।
मानव शिरोमणि रवीश जी का तो कहना है कि कल लखनऊ की हार ने सम्पूर्ण जगत को फिर से उल्लास से भर दिया है।पक्षी फिर से धुन में गाने लगे हैं, दुःखी लोगो को ऐसी खुशी मिल गयी है कि जैसे मानो अब मोटर वाहन पेट्रोल/डीजल के बजाय पानी से ही चलने लगेंगे।रेगिस्तान में बसंत ऋतु आ गयी हो ,वहां रेत के बजाय सुंदर सुंदर मखमली घास उग आई हो।
कोरोना के कारण 2020 में ठप्प पड़ी भारतीय अर्थव्यवस्था को जिस प्रकार शराबियों ने एक दिन में ही दारू गटक कर भारतीय अर्थव्यवस्था को संजीवनी देने का काम किया था वैसे ही लखनऊ की टीम की हार ने उन सभी लोगो को संजीवनी दी है जो समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता में विश्वास रखते हैं। रवीश जी कहते हैं कि लखनऊ की टीम को हराने में विशेष योगदान देने वाले खिलाड़ी जैसे आकाश मधवाल, दीपक हूडा, लखनऊ के कप्तान क्रुणाल आदि को यूपी के मुख्यमंत्री को स्वयं सम्मानित करना चाहिए ।
और यदि मुख्यमंत्री जी ऐसा नहीं करते हैं, तो अयोग्य सांसद श्री श्री राहुल गांधी को उनको एक बार ट्रक की सवारी तो करा ही देनी चाहिए।
आखिर सम्पूर्ण विश्व को इन्होंने वापस से जिंदा कर दिया है। बुद्धिजीवी वर्ग का मानना है कि LSG की जीत फ़ासिज़्म को बढ़ावा देती ।आप समझिए यदि लखनऊ की टीम जीतती तो वहां खुशी में खूब आम खाये जाते और पका आम होता है भगवा अब आपको तो पता ही है भगवा का क्या मतलब होता है।
और आप बताइए कौन से गरीब को अभी पके आम मिल रहे हैं? गरीब लोग एकदम बढ़िया आम खरीद नहीं सकते हैं ।उनके वृक्षों के आम अभी पके भी नही हैं,तो मतलब फिर तो लखनऊ की जीत खतरनाक असमानता का पर्याय बनती।
महान वकील नितिन मेश्राम की भाषा में कहें तो बड़े आराम से आर्टिकल 14, 15, 16, 17 और जितने भी ऐसे आर्टिकल हैं, सबका उल्लंघन हो जाता, इससे अच्छा था LSG का हार जाना।
और LSG की हार में उनके ही लोग लगे पड़े थे ।काइल मेयर्स, दीपक हूडा, आयुष बदोनी सबने एकसाथ LSG को हराने के लिए संघर्ष किया।वेस्टइंडीज से आये मेयर्स और जाट किसान दीपक हूडा को LSG का जीतना समाजवाद को गला घोंटकर मारने जैसा लग रहा था और दिल्ली के बदोनी यूपी में सोमनाथ भारती और संजय सिंह के अपमान से नाखुश थे।
एक प्रसिद्ध क्रिकेट की वेबसाइट Exx Cricketer डॉट कॉम के मुखिया ने LSG की टीम के गुण बताये थे ।
संघी मुखिया के अनुसार भाजपा के MP गौतम गम्भीर जैसा गम्भीर मेंटर कोई हो नहीं सकता जबकि ये सबको पता था कि उसी मेंटर ने दिल्ली की टीम की नैया कभी पार नहीं लगाई।
खैर एडीटर साहब क्रिकेट निरपेक्ष आदमी है( क्रिकेट भी मजहब ही है) वो तो आज LSG की खिंचाई करके खुश हो जायेंगे लेकिन दुःख LSG के पंखों को लेकर हो रहा है।
बेचारों ने बहुत कोशिश की थी फ़ासिज़्म को स्थापित करने की।
पसमांदा नवीन उल हक के लिए थोड़ा दुःख होता है बेचारे ने एक पूंजीवादी खिलाड़ी को ट्रोल करने के लिए कुछ आम क्या खा लिए कि लोग उसके पीछे ही पड़ गए हैं।नवीन भाई के लिए हम भी दुःखी हैं, दो रोटी अधिक खा लेंगे क्योंकि अब खाना उनको तो हजम होने वाला नहीं है।
ख़ैर LSG की हार ने बहुत कुछ बदल दिया है-
बच्चों को गर्मियों की छुट्टी में होमवर्क कम मिला है।
लाल सिंह चड्ढा दुबारा रिलीज होकर हिट फ़िल्म हो जाएगी।
यशस्वी जी ने अपने ट्रैड विंग की सारी मांगे मान लेने की बात कही है।
कन्हैया कुमार पूरे भारत में लोकप्रिय हो गए है।।
नोयडा की सेक्टर- 63 की लावण्या के ओपिनियन को गम्भीरता से लेते हुए माननीय उच्च न्यायालय ने केजरीवाल जी को दिल्ली का असली बॉस बना दिया है।
वामपंथी भाइयों के कहानियों के हीरो टैक्सी ड्राइवर्स को नोबेल देना की घोषणा स्वयं अल्फ्रेड नोबेल ने कर दी है।
प्रोफेट बजिन्दर सिंह को सर्वसम्मति से पूरे भारत का एकमेव कैंसर रोग निवारक मान लिया है।
जरा सोचिए एक हार ने इतना बदला है तो क्या लखनऊ को ऐसे ही नहीं हारता रहना चाहिए? अकेले आरसीबी ही कब तक हारती रहेगी?
राहुल दुबे
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