विजयंत खत्री
बखमुत का युद्ध
इक्कीसवीं सदी के सबसे भयानक युद्ध, बखमुत के युद्ध को 20 मई 2023 को शाम 3 बजकर 54 मिनट पर रूस ने जीत लिया है। इससे ठीक एक साल पहले 20 मई 2022 को ही रूसी सेनाओं ने मारियुपोल शहर को एक लंबे युद्घ के बाद जीता था। मारियुपोल का युद्ध भी अपने आप में बड़ा भीषण युद्घ था,पर बखमुत के युद्ध ने भीषणता और रक्तपात की सभी सीमाओं को लाँघ दिया था। तो आज बात करते है कि कैसे 21 वी सदी के इस सबसे भीषण युद्घ ने आने वाले समय के लिए दुनिया को क्य़ा सीख दी है और ये युद्घ क्यूँ इतना महत्वपूर्ण था दुनिया के लिए।
युद्ध का प्रारंभ
बखमुत पर गोलाबारी मई 2022 में शुरू हुई, शहर की ओर मुख्य हमला 1 अगस्त को शुरू हुआ जब रूसी सेना पोपस्ना की दिशा से उस मोर्चे से एक यूक्रेनी हार के बाद आगे बढ़ी।मुख्य हमले में प्रमुख रूप से रूसी प्राइवेट मिलिटरी संगठन वैगनर ग्रुप के सैनिक शामिल थे जो नियमित रूसी सैनिकों और डीपीआर और एलपीआर के अलगाववादी सैनिकों द्वारा समर्थित थे।
बखमुत पर कब्जा करना रूसी सेना के लिए और उसे बचाए रखना यूक्रेनी सेना के लिए बहुत महत्वपूर्ण था क्यूंकि बखमुत दोनबास क्षेत्र का मुख्य परिवहन केंद्र है।
एक समय ऐसा आया कि बखमुत को बचाने के लिये शहर में करीब 40 हजार यूक्रेन के सैनिक मौजूद थे।इस युद्ध में यूक्रेन के सबसे बेहतरीन और नाटो द्वारा प्रशिक्षित सैनिक शामिल रहे। साथ ही पश्चिमी देशों द्वारा दिये गए हथियारों का भारी मात्रा में प्रयोग हुआ।आखिरकार रूसी बलों ने यूक्रेन को इस बड़े युद्घ मे परास्त कर ही दिया।
इस युद्ध के अंत के बाद दुनिया ने कई बाते सीखीं।
हालांकि भारतीय सेना बेहद अच्छी है और उसे किसी से सीखने की कोई आवश्यकता नहीं है फिर भी भारतीय सेना के लिए भी सीखने के लिये बहुत कुछ है इस युद्ध से।
तो पहले बात करते हैं कि आखिरकार इस युद्ध से क्य़ा क्या बातें निकल कर सामने आयी।
बखमुत के युद्ध की प्रमुख बातें
1- पश्चिम के हथियार इस युद्ध में ज्यादा प्रभावी नहीं रहे हैं।पश्चिम द्वारा दिए गए भारी वाहन यूक्रेन और रूस के सर्दियों के बाद बर्फ पिघलने वाले मौसम मे कारगर नहीं रहे, क्यूँकि वहाँ कीचड़ वाले हालातों मे उनकी गति प्रभावित होती है जबकि रूसी भारी वाहनों और टैंको को उसी मौसम के अनुकूल बनाया गया है।
2- पश्चिम से यूक्रेन को तोप और हथियार तो मिले पर उनमें प्रयोग होने वाले तोप के गोले बहुत अच्छे नहीं थे और हमले में आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त होने पर उन्हें सुधारना असंभव था।
3- युद्ध के मोर्चे पर हथियार और राहत सामग्री पहुंचाने में रूस की सप्लाई चेन बहुत बेहतरीन है जबकि यूक्रेन और नाटो देश इस मामले में विफल रहे।
4- रूसी सेना की आर्टीलरी (तोपखाना रेजीमेंट ) दुनिया मे नंबर एक है। बखमुत मे यूक्रेन की ओर से लड़ने वाले विदेशी लड़ाकों ने बताया कि वो इतनी गोलियां नहीं चलाते जितना रूसी सेना तोप के गोले दागती है।
5- बखमुत के शहरी युद्घ मे रूस के वैगनेर ग्रुप ने अद्भुत कौशल दिखाया। वैगनर ग्रुप ने अकेले दम पर बखमुत मे नाटो को परास्त कर दिया, अगर ऐसा कहा जाए तो अतिशयोक्ति न होगी।
6- ड्रोन, भविष्य के युद्ध का अभिन्न अंग होंगे। दोनों पक्षों ने इस युद्ध मे ड्रोन का प्रयोग खूब किया पर रूसी सेना को ईरान से मिले सस्ते ड्रोनों ने पश्चिम और तुर्की से मिले महंगे ड्रोनों को परास्त किया। इसका मुख्य कारण ये भी रहा कि इलेक्ट्रोनिक वारफेयर मे रूस ने पश्चिम से बेहतर प्रदर्शन किया।
7- रूसी सेना अपनी गलतियों से बहुत जल्दी सीखती है।युद्ध के प्रारंभ मे बड़े वाहनों और टैंकों के प्रयोग की बड़ी गलती हो या खेरसान और खारकिव ऑफन्सिव के समय हथियार आपूर्ति मे की गयी गलतियां, इन सब से रूसी सेना ने बहुत जल्द सीख ली है।
8- नाटो सेना और उसके हथियार अविजित नहीं हैं।ये तभी तक अच्छा प्रदर्शन करते है जब सामने शत्रु कमजोर हो। अफगानिस्तान, इराक, लीबिया, सर्बिया जैसे कमजोर शत्रु से ही अभी तक इनका पाला पड़ा था। पर बराबर की टक्कर की रूसी सेना के समक्ष ये उतने प्रभावी नहीं रहे।
9- रूस युद्घ को लंबा खींचना चाहता है क्यूँकि रूस के पास सोवियत युग के समय से विकसित एक बड़ी हथियार उत्पादन शक्ति है।जबकि नाटो के पास इतने लंबे युद्घ के लिए हथियार उत्पादन की क्षमता अभी तो नहीं ही है।
10- रूसी हथियार पश्चिम के हथियारों से क्वालिटी मे भले अच्छे ना हो पर क्वांटिटी मे बहुत ज्यादा है।
भारत के लिये सीख
भारत के लिए भी इस युद्ध से सीख लेने के लिए बहुत कुछ है। तो अब देखते हैं कि भारत इस युद्ध से क्य़ा सीख सकता है।
1- भारत को अगर लंबे युद्घ की तैयारी करनी है तो उसे अपने हथियारों के बड़े पैमाने पर उत्पादन क्षमता विकसित करनी होगी जोकि अभी हमारे पास नहीं है।
2- भारतीय सेना अभी तक ड्रोन युद्घ के प्रति गंभीर नहीं है।भारत को इस विषय में बड़े कदम उठाने होंगे।साथ ही इलेक्ट्रोनिक वारफेयर को गंभीरता से लेना होगा।
3-रूसी लड़ाकू विमान गुणवत्ता में इतने अच्छे नहीं है उनका अभी तक युद्ध में प्रदर्शन आशानुरूप नहीं रहा है।तो इस बात पर तो भारत को और भी गम्भीर होना होगा क्यूँकि भारतीय वायुसेना 80% रूसी लड़ाकू विमान ही प्रयोग करती है।
4- रूसी एंटी मिसाइल सिस्टम S-400 पश्चिम के एंटी मिसाइल सिस्टम से बेहतर है।
5-भारत रूसी टैंक प्रयोग करता है तो भारत को रूसी टैंक और अधिक चाहिए क्यूँकि वो झुंड मे अच्छा प्रदर्शन करते हैं अकेले नहीं।
6- साथ ही सेना को इंनफेन्ट्री के साथ साथ आर्टिलरी पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
7- युद्धकाल के समय, युद्ध सामग्री के सप्लाई चेन मैनेजमेंट पर गम्भीरता से काम करना होगा।
कुल मिलाकर बात ये है कि रूसी सेना ने बखमुत में यूक्रेन को परास्त नहीं किया बल्कि पूरे नाटो को परास्त किया है।
और भारतीय सेना के लिये भी ये एक अध्ययन का विषय हो सकता है।
विजयंत खत्री
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