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भाग 1- गिलहरियों के दुश्मन

आपका विपुल

सब इंस्पेक्टर सत्या के कारनामे
भाग 1- गिलहरियों के दुश्मन

आपका -विपुल

मूलरूप से हनुमानगढ़ के सत्या चौधरी को हनुमानजी तभी याद आते थे जब उन पर कोई विपदा हो।
विपदा थी और जबरदस्त थी।
अब तक थाना फीलखाना में फीलगुड महसूस करते रहे सब इंस्पेक्टर सत्या चौधरी इस समय पुलिस चौकी बाबा कुंआ बिकरू के बीहड़ में पोस्टेड थे। इसलिए हनुमानजी का मंगल का प्रसाद चढ़ रहा था।

गलती सिर्फ इतनी थी सत्या भाई की कि एसपी आउटर की बीवी को ” यू आर सो सेक्सी” बोल दिया था ।
एसपी आउटर ने ये बात पुलिस कमिश्नर कानपुर को बताई तो सत्या भाई को शहर से आउट कर दिया गया और एसपी आउटर के अधीन आने वाले थाना चौबेपुर की बिकरू के पास बनी नई पुलिस चौकी में भेज दिया गया।

इस चौकी में चार दीवारें ,एक टीनशेड, एक काई लगा मटका , टूटी मेज, नाई की दुकान वाली लकड़ी की कुर्सी,चाय की दुकानों पर पड़ी रहने वालीं बेंच और एक दिमाग से पैदल हवलदार उन्हें चार्ज में मिला था।
देवी शंकर प्रसाद पंडित उर्फ डीएसपी पंडित।
डीएसपी ने ही तो इन सब चीजों की व्यवस्था की थी।

और हनुमानजी को पूरे इक्कीस रुपए के बेसन के लड्डू भोग लगाकर फिर तिलक लगाकर अभी सत्या भाई अपनी कुर्सी पर बैठे ही थे कि अचानक चौकी में तूफान सा आया।
शूर्पनखा की सल्तनत की ब्यूटी क्वीन जैसी शक्ल और नाइजीरिया के जंगलों में पाई जानें वाली भैंस के रंग जैसी काली एक औरत सी दिखने वाली चीज पुलिस चौकी में घुसी।

होमो सेपियंस मादा जैसी दिखती ये वस्तु खली से लंबाई में बस दो तीन इंच छोटी थी और भारत के सबसे बड़े पहलवान ऋचा चड्ढा से बस दो इंच मोटी।
गंदी नीली जींस के साथ हरा कुर्ता और सफेद दुपट्टा।
अधपके सफेद काले बालों में किल्लोल करते जुएं साफ बता रहे थे कि बंदी फेमिनिस्ट है।

“फक”

“फक”
इंगलिश के चार अक्षरों वाले इस शब्द ने सत्या भाई के शक की पुष्टि कर दी।
बंदी फेमिनिस्ट ही थी।
“हाउ डिस्गस्टिंग”
उस महिलानुमा चीज के अगले शब्द मोदीभक्त सत्या भाई के कलेजे को चीर गए।
“अब पुलिस के दरोगा तिलक लगा के नौकरी करेंगे।इस हिंदू फासिस्ट मोदी के शासन में क्या क्या देखना पड़ेगा ?

सत्या भाई के दिल में जो गुस्सा उठा, उसे उनको ये समझ कर पीना पड़ा कि सरकारी नौकरी में थोड़ा तो दबना ही पड़ता है।
चाय की दुकान से पार की गई अध टूटी बेंच पर उस हिप्पोनुमा मादा प्राणी के बैठने का सवाल ही नहीं उठता था।
वो इंसानी मादा फिर चिल्लाई
“क्या करते हो तुम लोग यहां बैठकर ?”

और सत्या चौधरी को जवाब देने की जरूरत ही नहीं पड़ी। वो और हवलदार डीएसपी पंडित वहां क्या करते रहते हैं। ये तुरन्त प्रत्यक्ष हो गया जब डीएसपी पंडित एक दुबले पतले लेकिन खूंखवार से दिखते एक व्यक्ति को थपड़ियाते हुए चौकी में घुसे।

“तो बोसरी के ! अक्टूबर महीना 31 का था। और सट्टे के अड्डे का हिसाब केवल तीस दिन का। ऊपर से तूने 2 भट्टी बताई थीं , ये तीसरी भट्टी का हिसाब कौन देगा ?”

सत्या और उस फेमिनिस्ट हिप्पो दोनों की निगाहें उस तरफ गई।
और वो बदमाश मुस्कुरा रहा था। पूरी बेशर्मी से बोला।
“तीसरी भट्टी का हिसाब सीओ साहब का है।”

उस फेमिनिस्ट के गुस्से में इसने घी का काम किया।
इस बार वो जितनी जोर से “फक” बोली कि कोई हलका फुल्का मर्द अगर उसके आसपास होता तो प्रेगनेंट ही हो जाता।
“मुझे रवनीश को बताना ही पड़ेगा और जूं बार को भी। उनको प्राइमटाइम में फैक्टचेक करना होगा कि चौबेपुर में कितने चौबे रहते हैं?”

“लेकिन मैडम !”डीएसपी बोला।

“इस बात का तो कोई तुक ही नहीं हुआ।”
फेमिनिस्ट हिप्पो ने डीएसपी को दो पल घूरा।
“तो इस बात का क्या तुक हुआ कि 120 करोड़ की आबादी में इलेकशन में पड़े वोटों के आधे से भी कम वोट पाकर वो हिंदू फासिस्ट मोदी पी एम बन गया ?”
“इस बात का क्या तुक है कि देश का पी एम 10 करोड़ का सूट पहने ?”

अब तक घाट घाट का पानी पी चुके सत्या भाई ये समझ चुके थे कि उनके सामने खड़ी महिला रवनीश कुमार व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर है।
सो सत्या भाई ने सम्मान से कहा।
“शांति रखिए मैडम । आप अपना नाम और अपनी समस्या बताएं ।और हां! ये पुलिस चौकी मुगलों के ज़माने की है।”

मुगलों का नाम सुनते ही वो फेमिनिस्ट अचानक ही जनाना हो उठी। शांत हो गई।
“हवलदार !”सत्या भाई गुर्राए।”मैडम के लिए एक मुगलिया चाय और मुगलिया कबाब मुगलिया रेस्टोरेंट से लेकर आओ।”
इतनी बार मुगल सुनकर वो फेमिनिस्ट सत्या भाई से इतना प्रभावित हुईं कि उस बेंच पर शांति से बैठ गई ,जिस बेंच की हालत करण जौहर के पुरुषत्व से ज्यादा अच्छी दशा में नहीं थी।
“सर आई एम सुमेधा सातसर! वाइल्ड लाइफ एक्टिविस्ट । ये शिकायत करनी है कि इस क्षेत्र में गिलहरियां अचानक से कम हो रही हैं। पिछले साल यहां 9775 गिलहरियां थीं , इस साल 9675 गिलहरियां बची हैं।”

“तो इतनी तो मर गई होंगी अपने आप।”
सत्या भाई बोले।
“तो इससे ज्यादा पैदा भी तो हुई होंगी?”
अब तक सुमेधा सातसर खादी के झोले से एक कागज का नक्शा निकाल कर मेज पर फैला चुकी थी।
चश्मा लगाकर उसने सत्या भाई को वो प्वाइंट दिखाने शुरू किए कि कहां कहां पर गिलहरियां कम हुई हैं।

स्कूली दिनों में ग्राफ कॉपी के पन्ने को प्रेम पत्रों में इस्तमाल करते रहे सत्या भाई को नक्शा तो नहीं समझ आया , ये समझ आया कि इस बहाने उगाही के नए मौके मिल सकते हैं। गिलहरियों के साथ चूहे , छछूंदर, ये भी तो सब कम हुए होगें।
चलो वसूली करते हैं।
इस मामले की तहरीर सत्या चौधरी द्वारा सुमेधा सातसर से ले ली गई।
पहला भाग समाप्त

अगला भाग – तहकीकात

आपका – विपुल
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