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सपना का सपना 

भाग 1

मैथ के नेशनल ओलंपियाड में रजत पदक जीतने के बाद कालिंदी एक्सप्रेस से दिल्ली से कानपुर लौट रहा था। स्वर्ण पदक महाराष्ट्र की मशहूर गणितज्ञ रियंका चौबे ने जीता था और मुझे कोई गिला नहीं था।

वो मुझसे ज्यादा जानकार गणितज्ञ थी। काबिल लोगों से हारने में मुझे कभी शर्म नहीं आई।

अपर बर्थ पर सो रहा था कि अचानक तेज आवाजों से नींद खुली।

होमो सेपियंस प्रजाति की एक दैत्याकार मादा अपने शरीर पर खाकी वर्दी चढ़ाए एक खूबसूरत सी लड़की पर चिल्ला रही थी।

“बीड़ी में डाल के कोकीन पीती है?”

“वो भी एक बीड़ी नहीं दस बंडल रखे है तू”

“तू ड्रग पेडलर है, सिंडीकेट से है, चल! मासूमियत मत दिखा।”

कोई और बोल नहीं रहा था, पर एक तो ब्लैक जींस और क्रीम कलर के हाई नेक टॉप  में वो लड़की बहुत खूबसूरत दिख रही थी और दूसरा  मैं जॉनी सीन्स की एक ऐसी फिल्म देख के सोया था जिसमें वो हीरोइन की ट्रेन में मदद करता है तो अचानक हीरोपंती जाग गई थी मेरी।

“एक्सक्यूज मी ऑफिसर!”

मैं रौब से बोला।

“आप किसी मासूम का केवल शक के आधार पर उत्पीड़न नहीं कर सकते।”

“ठीक है सर, नीचे आयेंगे प्लीज!”

“मेहरबानी होगी।”

लेडी इंस्पेक्टर बोली  मुझसे।

मैं कूद के नीचे उतरा।

“आप जरा मेरी नेमप्लेट को दस सेकंड तक ध्यान से पढ़िए और उसके बाद जरा इस नेमप्लेट के अक्षर छू के बताइए ये कौन सा मेटल है, आपकी बहुत सी गलतफहमियां दूर हो जायेंगी इस लड़की के बारे में।”

मैंने नेमप्लेट पढ़ी दस सेकंड तक। सविता कुमारी नाम था उसका और फिर उसकी नेमप्लेट पर जैसे ही हाथ लगाया –

मेरी कनपटी पर एक पुलिस वाले का झापड़ पड़ा।

मैं कुछ समझ न पाया।

सविता कुमारी मुस्कुराते हुए बोली।

“एक महिला को 3 सेकेंड से ज्यादा घूरने और एक महिला पुलिस अफसर से छेड़खानी के आरोप में तुम्हें गिरफ्तार किया जाता है।”

“क्या?”

मैं हतप्रभ था।

“वीडियो प्रूफ भी है।”वो फिर मुस्कुराई 

मैंने देखा वहां कई पुलिस वाले और थे और कम से कम दो तो केवल वीडियो ही बना रहे थे।

आसमान से गिरे, खजूर में अटके 

दिल्ली से चले , टूंडला में टपके।

सीधे हवालात में।

भाग 2

एक अनजान शहर के अनजान से मोहल्ले में बने एक अनजान से थाने की हवालात में मैं एक अनजान लड़की के साथ बंद था।

ये पता नहीं कैसी जेल थी कि महिला पुरूष दोनों को एक ही कोठरी में ही बंद रखा था।

उस लड़की के बारे में केवल इतना पता चला था कि उसका नाम सपना था। उसके पिता भूटानी और मां नेपाली थीं जो पहले म्यांमार में रहते थे और कुछ ही दिन पहले उसकी फैमिली भारत के मणिपुर में शिफ्ट हुई थी।

“पर तुम तो न नेपाली लगती हो न भूटानी!”

जब मैंने पूंछा तो उसने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया कि उसके बाबा बिहार के थे जिन्होंने एक कोरियन लड़की से शादी की थी जब वो भूटान में तैनात थे।

और उसकी नानी बेंगलुरु की थीं जिन्होंने एक थाई से शादी की थी जो नेपाल में रहता था।

इतने ज्यादा तो देशों का तो कभी भूगोल की कॉपी में नक्शा भी नहीं बनाया था मैंने, जितने देशों के नाम मैं अब तक सुन चुका था।

“और कोई देश तो बाकी नहीं रह गया तुम्हारी फैमिली में?”

मैंने मजाक में पूंछा पर उसने गंभीरता से जवाब दिया।

मेरी मम्मी के पहले हसबैंड इंडोनेशिया के थे जिनसे पैदा हुई मेरी एक बहन फिलीपींस में रहती है और मेरे पापा की पहली वाइफ से उनके दो बेटे हैं, मेरे दो भाई।

एक फिजी में रहता है और एक मलेशिया में।

अब मेरा सर घूम रहा था।

“तुम इतनी अच्छी हिंदी कैसे बोल लेती हो फिर?”

मेरे इस सवाल का सीधा जवाब था उसके पास।

“निर्मला आंटी की कोचिंग क्लास।”

“कौन निर्मला आंटी?”

“जीएसएसटी वाली।”

“जीएसएसटी?”

“गुड़गांव संस्कृत शिक्षा तीर्थ “!

सर दर्द हो गया 

मैं उठ के सलाखों के पास गया ।

भाग 3

सलाखों के पास एक युवावस्था से अधेड़ अवस्था को जाता एक हवलदार तैनात था जो शायद अपने मोबाइल पर सपना चौधरी का डांस देख रहा था।

मुझे सलाखों के पास आता देख बुरा सा मुंह बनाया उसने।

“भाई मेरे! मुझे क्यों पकड़ा जरा सी गलती के लिए और जेल में भी डाल दिया तुम्हारी उस इंस्पेक्टर ने।

मैं माफी मांग लेता भाई वहीं पर, मौका भी नहीं दिया।

इस स्मगलर के साथ मुझे भी फंसा दिया।” 

“मैं स्मगलर नहीं हूं मौगा मानस! तोहार &&&& की &&&”

उस लड़की की चीख और भाषा से मुझे विश्वास हो गया कि इसकी रगों में कहीं न कहीं इसके बाबा का बिहारी खून अभी तक बरकरार है।

“मैं तुम्हें बचा सकता हूं, बल्कि तुम दोनों को।”

वो हवलदार मेरी ओर पलटा।

दीपक यादव!

दीपक यादव नाम की नेम प्लेट लगी थी उसकी छाती पर।

“और छोड़े दोनों इकट्ठे ही जाओगे। या तो दोनों एकसाथ लंबे समय के लिये जेल जाओगे या दोनों आज ही एकसाथ छोड़े जाओगे 

“तो बचाओ न!”

सपना भी सलाखों के पास आ गई थी।

“कोई केस भी नहीं होगा और तुम दोनों निकल भी जाओगे चुपचाप। कोई भी नहीं जानेगा कि तुम आज हवालात में स्मग्लिंग के जुर्म में गिरफ्तार हुये।

अभी जी डी पर कुछ चढ़ा नहीं। मैडम ने हुक्म नहीं दिया।”

दीपक यादव के चेहरे पर शैतानी भरी मुस्कुराहट थी।

“हमें क्या करना होगा?”

मुझसे ज्यादा सपना बेचैन थी।

“कठिन समय पर हमेशा सच्चे भारतीय महापुरुष ही काम आते हैं। आपके भी काम आयेंगे। मैं  गांधी जी का बड़ा पुजारी हूं। आप गांधी जी की कुछ तस्वीरें मुझे दे दीजिए।”

“बस इतना ही ?”

“हां! बस वो गांधी जी की तस्वीरें नोटों पर हों जिनकी कीमत बीस हजार हो!”

“ओह!”मेरे मुंह से निकला।

मेरा और सपना का फोन तो इंस्पेक्टर ने ले ही लिया था पर पर्स छोड़ दिया था।

मेरे पर्स में बीस हजार ही थे।

“ठीक है! मैं तैयार हूं।” मैं बोला।

“पूरी बात तो सुनो।”

दीपक यादव हंसा।

“ये बीस हजार सपना मैडम को छोड़ने के लिये। तुम्हें सविता मैडम को खुश करना होगा। उनका दिल आ गया है तुम पर।”

“मैं शरीफ आदमी हूं!”

“तो शराफत से करना bsdk”

ये डॉयलॉग दीपक यादव ने नहीं सपना ने मारा था।

“20 हजार मैं दे दूंगी। तुम उधर का काम निपटाओ।

अगर मैं आज यहां रह गई और किसी को पता चल गया कि मैं कौन हूं तो किम ताऊ बहुत नाराज़ होंगे।”।

“किम ताऊ?”

“किशोरीलाल मंगत!”

मजबूरी थी।

खुद की जान और इज्ज़त बचाने के लिये मुझे मर्दों की भूखी इस इंस्पेक्टर सविता रानी के जिस्म की प्यास बुझानी पड़ी। वो एक तलाकशुदा औरत थी और बहुत भूखी।उसने रात भर मुझ शरीफ युवा पुरूष का यौन शौषण किया।

सुबह मुझे और सपना दोनों को हमारा जब्त सामान देकर छोड़ दिया गया।

मैं उस स्मगलर के चक्कर में पड़ कर यहां पहुंचा था।इसलिए थाने से छूटते ही मैंने उसका साथ छोड़ा और कानपुर चला आया।

पर किस्मत ने मेरे लिए कुछ और ही सोच रखा था।

भाग 4

सपना का सपना 

भाग 4

जिस आचार्य राहुल देव सनातनी महाविद्यालय में मैं गणित पढ़ाता था, वहां के प्रधानाचार्य शमाकांत जॉय हिंदी के एक बेहद विद्वान और रसिया व्यक्ति थे जिन्हें हिंदी के म अक्षर से शुरु होने वाली चीजें बहुत पसंद थीं जैसे मांस मछली मदिरा मुद्रा और …!

खैर जाने दो।

हालांकि 59 साल के वृद्ध शमाकांत इस उम्र में स्त्रियों से केवल नयन सुख के अलावा कोई और सुख नहीं उठा सकते थे लेकिन उनकी हरकतों के चर्चे आम थे महाविद्यालय में। जबकि मेरी गिनती एक शरीफ आदमी के तौर पर होती थ,, इसलिए मैं उनसे कटता रहता था। और जहां वो बैठते थे, मैं जाता नहीं था।

पर उस दिन रुक नहीं पाया।

स्टाफ रूम में मेरी तरफ पीठ किये क्रीम कलर की साड़ी में एक महिला ऐसी बैठी थी जो बिना शक्ल देखे भी मुझे कुछ पहचानी हुई लगी। मेरी मेमोरी ही ऐसी है।

वो शमाकांत जॉय से कुछ बात कर रही थी। जो स्टाफ रूम में पड़ी उस टेबल के दूसरी तरफ बैठे थे 

मैंने पास जाकर शमाकांत जी को हैलो कहा और उस महिला की शक्ल देखते ही चौंक पड़ा।

“इनसे मिलिए” शमाकांत जी आदतन खिलखिलाए।

“हमारे गणित लेक्चरर विपुल जी “

सपना मुझे देख के मुस्कुराई और हाथ बढ़ाया।

“हैलो! आई एम सपना सरस! न्यू इंग्लिश टीचर ऑफ दिस कॉलेज!”

मैं हतप्रभ था।

ये  चल क्या रहा है bsdk?

भाग 5

सपना का सपना

भाग 5

“क्या हम पहले कहीं मिले हैं?”

मैंने जानबूझ कर उससे हाथ मिलाते हुए पूंछा।

“शायद नहीं!”

वो मुस्कुराई। “आपको मैंने आज पहली बार देखा है। आप काफी हैंडसम हैं।”

“शुक्रिया!” मैं बोला “आप भी कम सुंदर नहीं। कहां की रहने वाली हैं आप?”

“जी मैं मणिपुर की हूं। मेरी शक्ल से पता चल ही जाता है लोगों को।”।

वो खिलखिलाई।

“आपके मम्मी पापा भी वहीं के हैं क्या?.”

मैंने पूंछ ही लिया।

“मणिपुर की हूं तो वहीं के तो होंगे मम्मी पापा। कैसी बेतुकी बातें करते हैं आप!”

वो थोड़ी झुंझलाई।

“पर आपकी हिंदी बहुत अच्छी है न, इसलिए पूंछा।”

मैंने बात संभाली।

“उसका कारण रागा है।”

वो बोली।

“राहुल गांधी?”

मैं चौंका।

“राष्ट्र गान “

“वो कैसे?”

“राष्ट्रगान सुन के ही मुझे हिंदी सीखने का चस्का लगा और मैंने फिर म्यांमार जाकर हिंदी सीखी।”उसने बोला।

“म्यांमार?” शमाकांत जॉय चौंके।”पूरा इंडिया छोड़ म्यांमार हिंदी सीखने क्यों गईं?”

“क्योंकि वहां के टीचर इंडिया से बहुत अच्छे हैं।”

सपना ने घूर कर शमाकांत को देखा और उठ खड़ी हुई।

“मुझे क्लास लेने जाना है।”

मैं थोड़ा परेशान था। अगर ये वही सपना नहीं तो है कौन। शक्ल आवाज सब मिल रही है। चलने बोलने का अंदाज भी।

ये बीड़ी में भरकर कोकीन बेचने वाली इस महाविद्यालय में टीचर बन के कैसे? ये टीचर कम मॉडल ज्यादा दिख रही थी। मैं पशोपेश में था, पर मेरी सेहत पर मुझे कोई फर्क पड़ता न दिखा, अगर ये वही सपना है तो भी।

अगर वो उस रात की बात नहीं करना चाहती तो मैंने भी चुप रहना मुनासिब समझा।

वो कॉलेज में मुझे भाव नहीं देती थी, मैं भी उसको ज्यादा लिफ्ट नहीं देता था, पर एक दिन एक बहुत बड़ी घटना हुई ।

बहुत बड़ी 

और बहुत सी चीजें बदल गईं। 

भाग 6

सपना का सपना

भाग 6

हमारे महाविद्यालय के ऑफिस बॉय राहुल ने आत्महत्या का प्रयास किया था। पुलिस केस हुआ था और लड़का कुबूल गया कि वो एक विशेष किस्म का ड्रग्स लेता था जो उसे कई दिनों से मिला नहीं था , इसलिए जीवन से तंग आकर खुदकुशी का प्रयास किया था।

हालांकि लड़का नाटक करता दिखा मुझे।

केवल चार पांच नींद की गोली खाकर ऑफिस में आत्महत्या का प्रयास कौन करता है भाई?

सीन में एक भ्रष्ट दरोगा विजयंत भी आ गया अब। और उसने सबसे पहले ये सवाल पूंछा कि पिछ्ले 4 5 दिनों से कॉलेज से कौन गायब है ?

और ये थी सपना सरस।

जो पिछ्ले एक हफ्ते से कॉलेज नहीं आई थी।

दरोगा विजयंत का शक सपना पर गया और मेरा भी। पर एक पेंच था।

ट्रेन वाली सपना बीड़ी वाली कोकीन बेचती थी।

कोकीन बहुत मंहगा आता है।

अपनी तनख्वाह के अलावा ड्रीम 11 में सट्टा लगाकर और विराट कोहली की 300 रुपए रोज के हिसाब से ट्विटर पर पी आर करने वाले राहुल के पास कोकीन खरीदने जितना पैसा नहीं हो सकता था।

उसके एक छिनरे सट्टेबाज साथी आयुष से मैंने बातचीत की जो केवल लड़कियां ताकने के लिये ही कॉलेज के कैंटीन में मुनीमी करता था, उसने भी बताया कि राहुल नशा तो करता था, पर कोकीन का नहीं।

और सपना के आसपास तो वो कभी दिखा भी नहीं था।

पुलिस की जांच अलग चल रही थी। पहले मैंने सपना का पता लगाना जरूरी समझा।

उसका कॉलेज में मौजूद ऑफिशियल फोन नंबर मिल नहीं रहा था। किसी के पास उसका कोई दूसरा नंबर नहीं था।

वो जिस मकान में किराए पर रहती थी, उसमें ताला लगा था।

सपना का कोई दोस्त कोई सहेली यहां थी नहीं और उसके मणिपुर के पते तक जाने की हिम्मत किसी में नहीं थी 

मुझे छोड़ कर।

सपना लापता थी।राहुल अस्पताल में था। आयुष छिनरई कर रहा था। विजयंत इस केस में ड्रग्स पेडलर्स की जांच कर रहा था।

और मैं?

मैं रोज रोज रेस्टोरेंट के छोला भटूरा खा के बोर रहा था।

अब मुझे शादी कर लेनी चाहिये थी।

एक जरूरी काम से मुझे दिल्ली जाना पड़ा और

और यहां फिर कहानी में एक ट्विस्ट आया ।

ज़बरदस्त वाला 

भाग 7

सपना का सपना

भाग 7

मैं एक रेस्टोरेंट से छोले भटूरे ही खाकर वापस अपने होटल के रूम पर जा रहा था कि अचानक मुझसे एक भागती हुई लड़की टकराई। ब्लैक कलर की जींस और क्रीम कलर के हाई नेक टॉप में।

ये तो सपना थी।

भूटानी बाप नेपाली मां वाली।

वो भी मुझे देख चौंकी।

“सब बता दूंगी। पहले यहां से मुझे निकालो चुपचाप और अपने साथ ले चलो।”वो बोली।

मैं उसका हाथ पकड़ बगल के एक शॉपिंग मार्ट में घुस गया। कुछ देर ऐसे ही टहलने के बाद उसने एक नीली जींस,जैकेट और कैप खरीदी और पहन भी ली ट्रायल रूम में जाकर।

मैं समझ रहा था।

शायद उसका पीछा कोई कर रहा था और कम से कम कपड़ों के आधार पर तो अब वो उसे जल्दी ट्रैस नहीं कर पायेगा।

ओला कैब बुला कर मैं उसे अपने होटल में ले गया।

डिनर करते हुए उसने पूरी बात बताई।

वो राजस्थान के मीणा गांव की खो खो की चैंपियन प्लेयर थी। बहुत सुंदर थी और उसका सपना मिस इंडिया बनने का था।

उसके गांव में छछुंदर बहुत थे और छिपकलियां भी।राजस्थान का एक भ्रष्ट नेता सत्या चौधरी जो कोई ड्रग्स सिंडीकेट का पार्टनर भी था, एक किस्म की नकली कोकीन बना के बेचता था।और इसी से उसने बहुत पैसा बनाया था और अब एमपी में एक शरीफ आदमी बन के रहता था।

सत्या चौधरी की नकली कोकीन, छछुंदर की टट्टी, सीप के मूत्र और छिपकली की पूंछ से बनती थी।

केवल सीप का मूत्र उसे साउथ से स्मगल करना पड़ता था। छछुंदर की टट्टी और छिपकली की पूंछ के लिये सत्या चौधरी मीणा गांव पर निर्भर था।

सत्या चौधरी पूरे गांव के सभी लोगों को छछुंदर की टट्टी और छिपकली की पूंछ खोजने में लगाए रहता था। भारी पैसे भी देता था और वो नहीं चाहता था कि मीणा गांव का कोई भी आदमी औरत गांव से बाहर निकले।

क्योंकि उसका राज खुल सकता था।

सत्या चौधरी की बनाई ये नकली कोकीन बीड़ी में भर कर आल इंडिया सप्लाई दिल्ली से होती थी।

सपना इंटेलीजेंट और समझदार थी। और सत्या चौधरी के इतने खूंखार माफिया बनने के पहले ही गांव से निकल चुकी थी। पर गांव आती जाती रहती थी।

दिल्ली में रहकर सपना ने पढ़ाई की और मिस इंडिया बनने का सपना देखा था। वो अपने माता पिता को भी मीणा गांव से निकाल कर दिल्ली लाना चाहती थी पर सत्या चौधरी ने एक शर्त रख दी।

भाग 8

सपना का सपना

भाग 8

सपना का अपने माता पिता को गांव से दिल्ली रहने बुलाने और सपना का मिस इंडिया बनने का सपना पूरा करने के लिये उसे सत्या चौधरी की ये शर्त माननी थी कि वो उसकी नकली कोकीन की सप्लाई मध्य यूपी तक पहुंचाए।

कालिंदी एक्सप्रेस जो दिल्ली से कानपुर जाती थी और फर्रुखाबाद से कानपुर तक कई व्यापारियों का माल पहुंचाती थी। उससे जाते नकली कोकीन के माल की सप्लाई की जिम्मेदारी सुपरवाइजर के तौर पर सपना को निभानी थी एक महीने तक।

क्योंकि लड़की होने के कारण न तो उस पर कोई शक करता, न ही ध्यान देता।

उस दिन कालिंदी एक्सप्रेस में सपना अपना महीने का सबसे आखिरी और सबसे बड़ा कन्साईनमेंट ले कर जा रही थी।

करोड़ों का माल था और उस दिन टूंडला में जिन पुलिस वालों ने हमें पकड़ा था, वो नकली थे।

दुश्मन गैंग के।

सपना अपनी हकीकत मुझे नहीं बताना चाहती थी, इसलिए सब अंड बंड बताया अपने बारे में।

पूरा माल दुश्मन गैंग के हाथ भी नहीं लगा था। 75 प्रतिशत माल कानपुर पहुंच गया था।

उसका पता लगाने को सत्या चौधरी ने सपना को मेरे कॉलेज में इंग्लिश टीचर बन कर जाने को मजबूर किया। सपना मजबूर थी क्योंकि उसके मां बाप सत्या चौधरी के पास बंधक थे।

और मेरे कॉलेज में सपना का आना इत्तेफाक नहीं था।

हमारे प्रधानाचार्य शमाकांत जॉय , दरअसल सत्या चौधरी गैंग के ही आदमी थे। कानपुर क्रिकेट आईपीएल के सट्टे का हिसाब वही रखते थे।

सपना ने वहां पहुंच के पता लगा लिया था कि नकली कोकीन का बहुत बड़ा हिस्सा उस दिन कहां पहुंचा था। ये अभी रेलवे के खोया पाया विभाग में ही था। एक बड़े से बोरे में।

उस बोरे को लेबरों से उठवा कर सपना ने कॉलेज के स्टाफ रूम के पास बनी कोठरी में रखवा दिया था।

राहुल को बीड़ी पीने का नया नया शौक चढ़ा था।

उसने उस कोठरी में बीड़ी से भरा बोरा देखा और रोज पीने लगा।

उसे लत लग गई।

सपना ने जब वो नकली कोकीन सत्या के बताए ठिकाने पर पहुंचा दी तो राहुल को दो तीन दिन नकली कोकीन वाली बीड़ी नहीं मिली और वो परेशान हो गया। किसी से बता नहीं सकता था कि वो कोहली फैन होने के बावजूद बीड़ी पीता था, इसलिए डिप्रेशन में आकर सुसाइड का प्रयास किया।

सपना भी अपना कन्साइनमेंट सही जगह पहुंचा कर खुश थी और वो कानपुर से दिल्ली लौटी पर मामले बिगड़ गए थे।

भाग 9

सपना का सपना

भाग 9

मीणा गांव में लोगों ने विद्रोह कर दिया था कि सत्या चौधरी अगर एक परिवार को गांव से बाहर जाने की इजाजत दे सकता है तो सबको क्यों नहीं।

या फिर सपना के मां बाप भी दिल्ली न जाएं और सपना को भी वापस दिल्ली बुलाया जाए।

सत्या चौधरी ने मुनासिब समझा कि सपना के मां बाप को दिल्ली न भेजा जाए और सपना को भी वापस गांव बुला लिया जाए या मार दिया जाए।

10 दिनों से सपना अपने मां बाप का दिल्ली में इंतजार कर रही थी और आज ही उसे सत्या के गैंग वालों ने ये जानकारी दी थी।

वो उसे मारना नहीं चाहते थे। पकड़ कर गांव ले जाना चाहते थे।

पर वो उन सबको चकमा देकर भाग निकली थी और वो उसका पीछा कर रहे थे।

अब समस्या ये थी कि अगर सपना नहीं पहुंची तो गुस्से में सत्या गैंग सपना के मां बाप को मार सकते थे।

इतना दुख भरी कहानी सुनने के बाद मेरा सपना को सांत्वना देना बनता था।

वो मुझसे चिपक चिपक कर रोई।

मैंने उसे चुप कराया। सहायता का आश्वासन दिया।

फिर मजबूरी में उसको नॉर्मल करने के लिये मुझे उसके साथ वो करना पड़ा जो सुहागरात में करते हैं।

मैं शरीफ आदमी हूं, पर उसे नॉर्मल करना था।

मैं शरीफ आदमी हूं, पर उसे नॉर्मल करना था। सांत्वना प्रदान करना था। ढाढस बंधाना था। यही बेस्ट तरीका था ।

भाग 10

सपना का सपना

भाग 10

सपना ने मुझसे पूंछा  कि क्या उसका एक भरोसेमंद आदमी जिसने उसे बच निकलने का मौका दिया था, वो उसके जरूरी सामान के दो तीन सूटकेस लेकर यहां मेरे होटल आ जाए?क्योंकि क्योंकि जहां वो रहती थी, अब कभी जाने वाली नहीं वापस दोबारा।मैं पूरी तरह से संतुष्ट था कि सारे राज खुल चुके थे।

मैंने इजाजत दी। सपना ने एक फोन किया।

कुछ ही देर में हमारे कमरे में सपना के चार सूटकेस थे। बड़े वाले। सपना ने एक सूटकेस से निकाल कर कपड़े बदले। नाइटी पहनी।

मैने काफी ऑर्डर की थी। हमने फिर एक बार वो किया जो उसे ढांढस बंधाने को जरूरी था। फिर मैं ये सोचते सोचते सो गया कि सपना मेरे पास थी। सत्या चौधरी के कब्जे से सपना के मां बाप को छुड़ाना ज्यादा कठिन नहीं था।

भाजपा में मेरे भी अच्छे संबंध थे। फाबा जैसा अर्जेंटीनी गैंगस्टर मेरी पहचान वाला था और राजा भैया के एक फोन घुमाने की देर थी कि सत्या चौधरी खुद ही सपना के मां बाप को मेरे सामने ले आता।

पर जब मेरी आंख खुली तो 

 कहानी में फिर एक ट्विस्ट आया।

सबसे बड़ा वाला 

भाग 11

सपना का सपना

भाग 11

मेरी आंख खुली तो मेरे कमरे में पुलिस ही पुलिस थी।

सपना के चार सूटकेस खुले पड़े थे और उनमें से कोकीन वाली बीडियों के बंडल के बंडल निकले दिख रहे थे।

सपना गायब थी और कालिंदी एक्सप्रेस में मिली इंस्पेक्टर सविता कुमारी मेरे सर के पास बैठी थी।

आज वो ड्रेस में नहीं थी।

नीली डेनिम पैंट और सफेद शर्ट में।

कमरे में कई बावर्दी पुलिस वाले थे और एक डॉक्टर भी जो मेरे ऊपर झुका कुछ चेक कर रहा था मेरी छाती पर।

“हैलो मिस्टर सत्या चौधरी!”

“आ गया होश?”

सविता रानी ने बम जैसा फोड़ा।

“सत्या चौधरी?”

मेरा सर पता नहीं क्यों भन्ना रहा था और उसका मजाक मुझे पसंद नहीं आया उठते उठते।

“मैं सत्या चौधरी नहीं विपुल हूं। और तुम असली पुलिस नहीं गैंगस्टर हो मुझे पता है।”

“मेरे इतना कहते ही होटल का वो रूम ठहाकों से गूंज उठा।

“इसको भी चूना लगा गई!”

ये शब्द पता नहीं किसने बोले थे पर पूरा कमरा फिर ठहाकों से गूंज उठा पुलिस वालों के।

भाग 12

सपना का सपना 

भाग 12

“मेरे पास सरकारी आई कार्ड है। सरकारी फोन है और मेरे सीनियर और जूनियर यहीं तस्दीक कर देगें कि मैं क्राइम ब्रांच इंस्पेक्टर सविता रानी हूं।

अपने पास मौजूद सारे आईकार्ड जरा फिर से तो चेक करो कि उनमें तुम्हारा नाम विपुल मिश्रा है या सत्या चौधरी?”.

बाकी बातें बाद में होती रहेंगी।

सविता ने अपना आई कार्ड मेरे आगे रखा।

वाकई वो असली इंस्पेक्टर थी।

मैं उठा और अपने कपड़ों में से आई कार्ड निकाले और मैं भौंचक्का रह गया।

उन सारे आईकार्ड आधार पैन पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस पर फोटो मेरी थी और नाम सत्या चौधरी का।

मैं हैरत से उसे देख रहा था।

तब वो मुस्कुराई और बोली।

“और इन चार सूटकेस में जो ड्रग्स है, उनकी कीमत जानते हो?”

“चार अरब रुपए!”

मेरे कानों में सीटियां गूंज रही थीं।

“पूरे पुलिसिया अमले के पास खबर 1 हफ्ते पहले से थी कि इस होटल के इस रूम नंबर में भारत का एक बहुत बड़ा ड्रग डीलर सत्या माल की डिलिवरी करने आयेगा।”

वो थोड़ा थमी 

“तुम्हारा रूम किसने बुक किया था? “

“किसी ने नहीं।”

मैं बोला।

“मैं जब भी दिल्ली आता हूं, यहीं रुकता हूं। ये लोग तो अब मुझसे आई कार्ड भी नहीं मांगते। ये लड़के मालिक को रूम खाली दिखा देते हैं। मेरा नाम रजिस्टर में चढ़ाते ही नहीं। और आधे पैसों में मुझे रूम दे देते हैं जो पूरे इन लड़कों की जेब में जाते हैं।”

वो दोनों लड़के जो रिसेप्शन में रहते थे। सर झुकाए वहीं खड़े थे।

“इसी का फ़ायदा उठाया गया। तुम पर बहुत पहले से वर्क कर रहा था ये नेटवर्क।!”

सविता गंभीरता से बोली।

“अगर मैं चाहूं तो तुम्हें शूट करके चार अरब की ड्रग्स की बरामदगी दिखा सकती हूं।

डिपार्टमेंट की हीरोइन बन सकती हूं।”

मेडल भी मिलेगा और जनता की तारीफ भी।”

मैं चुप था।

अब सच बताओ उसने क्या पट्टी पढ़ाई थी?

मैंने शुरू से आखिरी तक की पूरी कहानी इंस्पेक्टर सविता को सुनाई। सत्या चौधरी मीणा गांव, छछुंदर की टट्टी, छिपकली की पूंछ और सीप के मूत्र से बनी नकली कोकीन की बात सुन कर वो बहुत हंसी 

“क्या तुम्हें लगता है 2023 में कोई गांव वाकई ऐसा होगा जहां के सारे लोग बंधुआ मजदूर हों और छिपकली की पूंछ, छछुंदर की टट्टी और सीप के मूत्र से कोई नशा बन। सकता है?”

“वो फिर हंसी और बोली।

उस लड़की ने एक पूरी फर्जी कहानी सुनाई और तुम बेवकूफ बन गए।

अगर मुझे तुम्हारी असलियत न पता होती तो तुम्हारी फोटो अब तक दीवार पर टंग चुकी होती। टूंडला में मुझे नहीं पता था कि ये लड़की सपना नहीं बल्कि कुख्यात गैंगस्टर सत्या चौधरी है तो छोड़ती थोड़े न!. तब मुझे लगा था ये मजबूर लड़की है।”

मेरा सर घूम चुका था।

सपना ने जो कहानी सुनाई थी सत्या चौधरी और मीणा गांव की , वो सिरे से फर्जी थी।

ये नकली नहीं असली कोकीन थी 

और सबसे बड़ी बात सपना सपना नहीं थी।

सपना ही सत्या चौधरी थी।

असली सत्या चौधरी।

खूंखवार महिला गैंगस्टर।

भाग 13

सपना का सपना

भाग 13

मैं बेहोश सा ही हो रहा था कि हवलदार दीपक यादव ने मुझे सहारा दिया, जिसे मैंने अभी देखा था।

“भाई! होटल रजिस्टर के मुताबिक आज सत्या चौधरी इस होटल के इस रूम में ठहरा है। तुम्हारी फोटो और तुम्हारी सत्या चौधरी नाम की फोटो वाली आधार कार्ड आई डी होटल रिकॉर्ड में मौजूद है। तुम्हारे कमरे में अरबों रुपए की ड्रग्स है और पुलिस मौजूद!

इसका मतलब समझे?”

वो बोला।

“क्या मतलब?”

“इसका मतलब ये हुआ कि सत्या चौधरी के खत्म होने और भारी मात्रा में ड्रग पकड़े जाने के कारण सत्या चौधरी गैंग की फाइल खत्म हो जाएगी पुलिस रिकॉर्ड में। गैंग समाप्त मान लिया जायेगा और वो लोग खुल के अपना काम करने लगेंगे फिर से। हम दूसरे सत्या चौधरी को कैसे पकड़ेंगे वो भी महिला, जबकि एक मर्द सत्या चौधरी को हम पहले ही पकड़ या मार चुके हैं?”

ये वेल प्लांड है सबकुछ।।”

सविता बोली।

“प्रेस मीडिया बाहर ही मौजूद है जिसे हमने नहीं बुलाया। तुम तो गए।”

मैं कांप रहा था।

“बचना चाहते हो?”

“हां!”

“मुझे भी असली सत्या को पकड़ना है और मेरे मुखबिर को पता है, वो कहां है।”.

सविता बोली।”तुम निकल जाओ, हम कह देंगे, माल मिला, मुजरिम फरार हो गया।”

“क्या करूं?” मैंने पूंछा।

“वाशरूम में जाओ।

“एक पुलिस की वर्दी मिलेगी। उसे पहन के बाहर निकलो और मेरी गाड़ी में बैठ जाओ। इनोवा, सफेद रंग। नंबर बी 7777 ।” सविता बोली।

उसके कहे मुताबिक मैंने वही किया।

हवलदार दीपक यादव मेरे साथ निकला था।

उस इनोवा की चाबी उसी के पास थी।

मैं चुपचाप सविता की इनोवा में बैठ गया।

करीब दो घंटे बाद वो होटल से निकली।

उसके सीनियर ने मोर्चा संभाल लिया था।

उसने गाड़ी स्टार्ट की और मुझसे पूछा।

“मेरा एहसान कितना मानोगे? मैं न होती तो न सिर्फ निपट गए होते बल्कि अपराधी भी घोषित होते। कोई जलाने दफनाने भी न आता तुम्हें।”

“बहुत एहसान मानता हूं। जो बोलोगी करूंगा।”

मैं बोला।

उसने अपना फोन दिया।

“एसटी नाम से सेव नंबर मिलाओ, सत्या का है।

उसे बताओ तुम्हें सविता ने बचा लिया है। और बोलो निजामुद्दीन के पास वाले कब्रिस्तान में अभी पहुंचे आधे घंटे में।”

मैं चौंक के रह गया।

अब ये क्या नया तमाशा है यार?

यहां तो प्याज की तरह छिलकों की परतें खुल रही थीं।

भाग 14

सपना का सपना

भाग 14

“मैंने जो बोला वो करो।”

ठंडे स्वर में सविता बोली।

“मैं ही तुम्हें बचाने वाली हूं समझे। जो कहूं बिना हिचक करते रहना।”

मैंने उसकी बात मानी । फोन डायल किया। उधर से सपना की आवाज में ही हैलो आई।

मैंने इतना ही कहा कि मैं बोल रहा हूं। सविता ने मुझे बचा लिया है निजामुद्दीन वाले कब्रिस्तान के पास आधे घंटे में पहुंचो।

“थैंक गॉड!”. उधर से सपना की रुंधी हुई आवाज आई।”तुम सुरक्षित हो। अब हम नेपाल निकल लेंगे।”

मुझे जब तक कुछ समझ आये, सविता ने फोन ले लिया।

आधे घंटे में हम कब्रिस्तान तक पहुंचे। उन आधे घंटे में सविता ने सपना उर्फ सत्या के बारे में इतना जहर भर दिया था कि शायद मैं उसको सही में गोली मार देता।

इनोवा में ही सविता ने मुझे एक छोटी सी पिस्टल दी।

“घबराओ मत”

 वो बोली।”

 “गोलियां नहीं हैं इसमें ट्रांकुलाइजर है। इंजेक्शन सी सुई निकलेगी जिसमें बेहोशी की दवा है। जिंदा पकड़ना है न उसे।सेफ्टी लॉक खोल दिया है मैंने। तुम्हें बस उसके पास जाकर उसके पेट या छाती में लगा के चला देना।”

“बांह में भी तो लगा सकते “मैं बोला

सविता हंसी।

“ह्यूमन साइकोलोजी ।तुम्हें संतुष्टि भी हो जाएगी कि तुमने खुद को जाल में फंसाने वाली को मार दिया और वो बेहोश ही होगी बस।”

उसकी बात सही थी।

ब्लैक कलर की जींस और क्रीम कलर के हाई नेक टॉप में कब्रिस्तान के बाहर अकेली खड़ी सपना के कंधे में एक बैग टंगा था साइड से।

इनोवा उसके सामने रुकी।

मैं उतर के उसके पास पहुंचा।

मेरे हाथ में पिस्टल थी छोटी सी जो सविता ने दी थी।

“ओह डियर!”उसने बहुत खुशी से मुझे गले लगाया।

“थैंक गॉड कि तुम सेफ हो। सत्या ने अपना वादा निभाया।”

उसकी बात आधी खत्म होने के पहले ही मैंने उसके पेट से सटा के पिस्टल का ट्रिगर दबा दिया था।

धाएं की आवाज हुई।

ये असली पिस्टल थी यार और असली गोली 

 हड़बड़ी में शायद मुझसे एक गोली और चली और तभी सविता ने मेरे हाथ से पिस्टल लेकर  3 गोलियां और भी सपना उर्फ सत्या के दाग दीं।

मैंने ध्यान दिया, उसके हाथों में व्हाइट दस्ताने थे, वो दस्ताने वो होटल में भी पहने थी।

सविता ने फिर पिस्टल मेरे हाथ में थमा दी।

मैं स्तब्ध था।

मेरे साथ धोखा हुआ था।

सविता ने धोखे से मेरे हाथों सपना का खून करवा दिया था।

मैं सन्नाटे में खड़ा था कि दर्जनों पुलिस वाले वहां आ चुके थे दो मिनिट में।

सपना के बैग से उसकी कई आईडी  निकल रही थीं जो सपना सरस के नाम से थीं। मिनटों में वो आईडी सत्या चौधरी नाम की आईडी से बदल दी गई थीं जिनपर सपना की तस्वीर थी और सत्या चौधरी का नाम था।

पंद्रह मिनट में वहीं प्रेस वाले मौजूद थे जिन्हें इंस्पेक्टर सविता रानी बता रही थी कि उसने इंटरनेशनल गैंगस्टर सत्या चौधरी के गैंग का खात्मा कर दिया था और अरबों रुपयों की कोकीन बरामद की थी।

उसने बताया कि ये गिरोह मैं और सपना मिल कर चलाते थे और दोनों ही अपना नाम सत्या चौधरी रखे थे जिससे पुलिस गुमराह हो कि सत्या चौधरी महिला है या पुरूष।

मुझे गिरफ्तार किया गया। केस लदे।

मैं यही समझा कि इंस्पेक्टर सविता रानी ने सिर्फ अपना फर्ज निभाया और मेडलऔर नाम के लिये किया पर कहानी का सनसनीखेज खुलासा अभी बाकी ही था।

अंतिम भाग इसके बाद 

भाग 15

सपना का सपना 

भाग 15

सविता ने खुद अपनी गाड़ी में मुझे हेडक्वार्टर ले जाने की इजाजत मांगी थी।

मेरे हाथों में हथकड़ी और मुंह पर मास्क लगा दिया गया था।

 गाड़ी स्टार्ट करते ही सविता बोली।

“चलो तुम्हें असली गैंगस्टर सत्या के बारे में कुछ बताते हैं।वो एक 35 साल की औरत है। उसके पापा भूटानी और मां नेपाली है ।उसके पिता भूटानी और मां नेपाली थीं जो पहले म्यांमार में रहते थे और कुछ सालों पहले उसकी फैमिली भारत के मणिपुर में शिफ्ट हुई थी।”

मैं भौचक्का सा उसे देख रहा था।

“उसका नेपाल भूटान, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, फिजी, म्यांमार में बहुत बड़ा ड्रग नेटवर्क है। वो हमेशा हर देश में अपने नाम और पहचान के कई आदमी औरत खड़े करती है और मरवा देती है थोड़ा सा ड्रग्स पकड़वा के, कि सत्या गैंग खत्म हो गया।”

मेरे पसीने छूट रहे थे।

“और!”

वो  थोड़ा रुक के बोली।

“मैं अब सत्या चौधरी नहीं हूं। सत्या चौधरी तुम हो।”

“मैं इंस्पेक्टर सविता कुमारी हूं। ईमानदार पुलिस वाली।”

मैं सदमे में था।

मुझे पुलिस हेडक्वार्टर में पटक दिया गया।

परेड हुई।

सजा हुई 

अब तक सदमे में हूं।

बस जिंदा हूं।

हर बार हीरो नहीं जीत पाता भाई।

🙏🙏

 विपुल मिश्रा 

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