नियति में नियत था
विपुल मिश्रा
रोमांटिक तो हम तब भी न हो पाए जब होने की उमर थी।
कड़वे अनुभव, नकली लोग और कठिन परिस्थितियां शायद सबको मिलती हैं या मुझे ही मिली, पता नहीं
पर 20 साल की उमर के बाद कभी नॉर्मल नहीं रह पाया।
रोना आसान होता है और जिन्दगी से भागना भी, पर मिडल क्लास लड़कों की मजबूरी होती है, ये दोनों चीजें कर ही नहीं सकते।
मेरी जिन्दगी के सबसे ज्यादा और वाकई सबसे ज्यादा महत्व की घटनाओं में शायद वो एक दिन था जिसने मेरी पूरी जिन्दगी ही बदल के रख दी और आज तक उसी घटना के परिणाम , दुष्परिणाम, प्रभावों और प्रकोपों से मेरी जिन्दगी सनी हुई है।
मैं अगर थोड़ा कठोर हो जाता, उन आंखों में न देखता, खुद में अपराध बोध न लाता कि मेरी वजह से उसकी ये हालत है और चुपचाप निकल लेता तो शायद मैं कहीं और होता, मेरी जिन्दगी कहीं और होती और निश्चित तौर पर मैं वो तो नहीं होता जो मैं अभी हूं।
एक दोस्त ने दूसरे दोस्त से मेरी तारीफ करते हुये कहा था। “विपुल के साथ तुम बोर नहीं हो सकते। क्योंकि या तो ये तुम्हारी टांग खींचता रहेगा या तुम्हें हंसाता रहेगा।”
मैं मानता हूं कि ये मेरी जिन्दगी में मुझे मिला सबसे बेस्ट कॉम्प्लीमेंट था।
पर मात्र उस एक घटना के बाद वो मनमौजीपन और वो खुशी खो ही गई मेरी।
एक आवश्यकता से अधिक कड़वा और यथार्थवादी आदमी जिसने जिंदगी के वो सबसे कड़वे पल जी रखे हों जो बहुत से लोग सोच भी न सकें, जो पैसों की असली अहमियत जानता हो और जिसने नकाब पे नकाब डाले लोगों से डील किया हो, उसके लिये हंसमुख होने का नाटक करना बहुत कठिन होता है।
पर करना पड़ता है।
क्योंकि मेरे थोड़ी ज्यादा देर उदास होने का मतलब फिर से मेरा बहुत ज्यादा बीमार होना भी हो सकता है, ये मेरी बीवी को मेरे मां बाप बता गये हैं और वो घबराती है।
समय घूम के नहीं आता और एक पहुंचे हुये स्वामीजी ने मुझसे ये भी कहा था कि “अगर तुम दोबारा भूतकाल के फिर उसी समय पहुंच जाओ, जहां तुमने गलतियां की थीं तो यकीन मानो उन परिस्थितियों में तुम वही निर्णय दोबारा लोगे, वही गलतियां दोबारा करोगे। क्योंकि ये होना नियति ने नियत कर रखा है।”
पर फिर भी!
काश 1 दिसंबर 2002 का वो दिन मेरी जिन्दगी में न आया होता, उस कंजी आंखों वाली ब्रिलियंट सी लड़की ने आंखों ही आंखों से मुझे जलील न किया होता, मैं उस अपराध बोध में घिर उससे फिर बात न शुरू किया होता तो शायद मेरी जिन्दगी में इतने झंझावात न आये होते।
मैं तब भी समझदार था और प्रैक्टिकल भी। पर ईश्वर को मेरे जैसे मगरुर आदमी को सबक सिखाना था शायद।
एक गलती।
मैं मन में पछताता हूं।
आधी रात को कई बार उठ के बैठा।
सड़क पर चलते चलते खुद के सर पे हाथ मारा, खुद को गाली दी। लोगों ने पागल समझा।
अगर मुझे पता होता कि उस एक गलती की कीमत अगर मेरी पूरी जिन्दगी की बेचैनी और अफ़सोस है तो शायद तब नहीं करता वो गलती।
अब तो माता पिता भी नहीं हैं जिनके कंधों पर सिर टिका के रो लूं। भाई बहन अलग अलग हैं
बीवी बच्चे जानते हैं कि ये तो खुशदिल आदमी हैं। मेरी एक नकली उदासी भी घर में दहशत फैला देती तो क्यों रो के दिखाऊं।
पर एक कसक है, एक चुभन है।
मेरी गलती नहीं थी।
मैं उन सब चक्करों में पड़ने वाला नहीं था।
पर अगर उन सब चक्करों में पड़ा कि सब अस्त व्यस्त हो गया मेरा।
कि मेरे माता पिता का विश्वास और मेरा आत्म विश्वास समाप्त हो गया तो गलती मेरी ही थी।
उन आंखों को देखना ही नहीं था मुझे।
अब मैं एक टूटा हुआ,हारा हुआ, दूसरों की दया और अहसानों से बची जान लेकर दूसरा जीवन जीने वाला एक दूसरा ही आदमी हूं।
और ये मेरी नियति में नियत था।
विपुल मिश्रा
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