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आपका -विपुल

शुगर लेस चाय के साथ माइंडलेस बीबी के बेसलेस तानों को केयरलेस अंदाज में पीने के बाद जब ऑटो स्टैंड पर पहुंचा तो वहां खड़ा इकलौता ऑटो चालक सेंस लेस था।

“मेट्रो स्टेशन जाना है”
उसे झकझोर कर जगाने का प्रयास किया।
लेकिन वो ऑटो चालक शायद पन्नी वाली सिगरेट के दो डोज चढ़ा कर अपने ड्रीम में तापसी पन्नू और स्वरा भास्कर जैसी क्रीम के साथ तीन पत्ती खेल रहा था।
आंखे खोल कर जितनी बेइज्जती से मुझे घूर सकता था, उतनी बेइज्जती से घूर कर और आवाज में जितनी तल्खी ला सकता था, उतनी तल्खी लाकर बोला।
“तो जा ना बे। नींद मत खराब कर।”

ऑप्शन नहीं था। कोई दूसरा ऑटो नहीं था।
पैदल चल दिया।
कुछ दूर तक चला फिर थक गया। पीछे से एक स्कूटी आ रही थी। हाथ दिया , रुक गई।
“आईआईटी गेट तक छोड़ दो यार।”
इतना कहने के बाद मैने स्कूटी चालक पर ध्यान दिया जिसने हेलमेट अब उतारी थी।

ये पुरुष नुमा स्त्री जैसी ऋचा चड्ढा या बार्बी डालिंग जैसी कोई चीज़ थी, जिसकी बॉडी देखकर टाटा के लोकप्रिय मालवाहक वाहन छोटा हाथी का ध्यान आया और शक्ल देख कर पामोलिव दा जवाब नहीं विज्ञापन वाले कपिल देव ।
और जब उसने अपनी अमरीश पुरी सी दमदार आवाज़ में मुझसे कहा

“बैठो”
तो मुझे उतनी ही सुख की अनुभूति हुई जितनी स्वरा भास्कर को वो पाथ ब्रेकिंग सीन करके हुई थी।

अरे वो वाला नहीं कमीनों , जो तुम अपनी मर्ज़ी से सोच लिए।
प्रेम रतन धन पायो में सलमान को राखी बांधने वाला।

तो उस चंडोल सी दिखती चिड़िया ने जब मुझे आईआईटी मेट्रो स्टेशन छोड़ा तो मैंने उसे बड़ा वाला थैंक यू किया।
“नहीं सर!”
वो शरमाई
या शरमाया
या
अबे छोड़ो यार!
उसने कहा
“सर आपकी बहुत बड़ी फैन हूं।”
“किस चीज़ की फैन?”
मैं बड़ा खुश हुआ।मैं फेमस हो रहा था शायद। अच्छा लिखता हूं।”
ऐसे विचार मन में आने ही पाए थे कि उस जिराफकंठी के रौबीले बोल निकले।
“अरे , आप आपनी पत्नी के कितने जुल्म सहते हैं, तब भी उफ नहीं करते।”
“आपको कैसे पता?”
“आपसे चार कॉलोनी आगे ही तो रहती हूं। रोज आपको छत पर कपड़े धोते, सुखाते देखती हूं।”
“सुबह 6 बजे झाड़ू पोंछा, बर्तन करते देखती हूं।”

मैं थैंक्यू वापस नहीं ले सकता था सो बिना कुछ बोले पलट कर स्टेशन की सीढ़ियां चढ़ गया।

मेट्रो स्टेशन के टिकट काउंटर पर अब उतनी ही भीड़ रहती है जितनी थप्पड़ और दोबारा जैसी ब्लॉक बूस्टर फिल्मों के टिकट काउंटर पर हुआ करती थी।
टिकट काउंटर पर बैठा लड़का शायद कल ही मामा के लडके के यहां से शादी से लौटा था। उसका मुड़ा तुड़ा नीला कोट और उनींदी आंखें गवाही दे रही थीं।
पहले उसने मोदी के कैश लेस इंडिया के सपने पर ये कहते हुये कुल्हाड़ी चलाई कि पेटीएम , गूगल पे स्कैन करे फ़ायदा नहीं , काम नहीं करते यहां।
उसके बाद उसने मेरे द्वारा उसकी तरफ बढ़ाए ,मोदी के चलाए 200 के नोट की तौहीन करते हुये बताया कि फुटकर पैसे देना!200 का नोट तोड़ नहीं पाएगा वो।
10 रूपये के 3 सिक्के उसकी तरफ बढ़ा कर मोती झील तक का टिकट लेकर मैंने चलते चलते पूंछ ही लिया।
“बेटा! आपका नाम क्या है?”
“रवीश कुमार!”

“लेकिन , तेरे तो मूंछें हैं !”
मेरे मुंह से बेसाख्ता निकल गया।

“तो क्या यूपी में रवीश कुमार नामके लोगों का मूंछें रखना भी मना हो गया अब ?”
वो चिड़चिड़ा उठा।

बड़ी विडंबना थी। मुझे हर जगह लिबरल ही मिल रहे थे।

मेट्रो में बैठते ही मुझे अफसोस हुआ, ये मेट्रो मेरी जवानी में क्यों नहीं चलती थी।
पूरी मेट्रो में सब जोड़े से थे।
मुझे छोड़कर

करीब 10 युवा और 5 अधेड़ प्रेमी युगल जितना एक सार्वजनिक जगह में जितना प्रेम प्रदर्शन हो सकता था, उतना भरपूर कर रहे थे ।
गुरुदेव पर एक लम्बा, स्मार्ट और सांवला सा आदमी ठीक मेरे बगल में आकर बैठा। मेरे कंधे पर हाथ रखा
“पहचाना नहीं बे?”
“नहीं!”
“मैं राम सेतु चौरसिया “

“अच्छा!”
मुझे याद आया। ये मेरे साथ इंटर में पढ़ता रहा है। कई बार पर्चियां ली थीं इससे एग्जाम में। शिखण्डी नाम से मशहूर था ये पूरे कॉलेज में । पता नहीं क्यों !
“क्या कर रहे हो आजकल ?”
पहले उसने पूछा।
“गन्ना विकास विभाग में जूनियर क्लर्क।तुम?”
“विदेश मंत्रालय में हूं।”
“अच्छा!”
आत्मा गदगद हो गई।
मेरा कोई साथी तो सम्मानजनक जॉब में है।
“कहां हो , किस पोस्ट पर?”

“मैं ऑफिशियल क्लास वन ऑफिस बॉय हूं!”
उसने गर्व से बताया जैसे मुझे पता न हो कि ऑफिस बॉय मतलब चपरासी होता है।
“अभी अंगोला में पोस्टेड हूं, पहले नाइजर में था।”
“कभी बढ़िया जगह नहीं रहे bsdk ? “
मेरे मुंह से निकल ही गया।
“क्यों नहीं? “

वो मुस्कुराया!

“घाना, तंजानिया और ग्वाटेमाला में भी रहा हूं और बोलीविया में भी।”


मेरा मन तो उसे मेट्रो की खिड़की का शीशा तोड़ कर नीचे फेंक देने का हुआ ।

“साले !कितने बीपीएल श्रेणी के दोस्त हैं मेरे ?”

पर तभी उसने अपनी जेब से दो मूवी टिकट निकाल दीं।

“भेड़िया देखोगे ?”
“साथ में बैठा है!”

हम दोनों ही खिलखिला उठे।

मोतीझील पर मेट्रो से उतर कर , हम ऑटो से बड़े चौराहे पहुंचे। जेड स्क्वायर ।
रास्ते में रामसेतु चौरसिया ने बताया कि वो अभी छुट्टी पर भारत में है। जल्द ही वापस चला जाएगा। उसे अपनी एक आइटम के साथ मूवी देखने जाना था, पर वो आइटम आई नहीं तो मुझसे कह दिया।
मैं फिल्म देखने तो घर से नहीं निकला था, बस मूड फ्रेश करने निकला था। लेकिन रामसेतु चौरसिया एक तो बहुत दिनों बाद मिला था। दूसरे जेड स्क्वायर पर काफी आई टॉनिक भी मिलता है तो भेड़िया देखने चल दिया अपने पुराने दोस्त रामसेतु चौरसिया के साथ।

जेड स्क्वायर पर टिकट काउंटर पर पिस्टल पांडे के मिलने का , रेव एट मोती के हमेशा मुझे चिढ़ाने वाली बात करने वाले लिफ्ट मैन का, मेरे मोहल्ले वाले टिकट चेकर के मिलने का सवाल ही नहीं था।
आराम से स्क्रीन 1 में घुसा ।
मन भर सोया।
इंटरवल में उठा जब कैंटीन वाले लडके ने झकझोर कर उठाया।
“क्या लेंगे सर?”
“जो लेंगे , वो चीज़ तेरे पास है नहीं bsdk !”
ये बोलकर फिर सो गया।।
फिल्म खत्म होने पर रामसेतु चौरसिया ने मुझे जगाया।
बोला “यार ! कुछ दोस्त और यहां आए हैं मेरे उनके साथ कैफिटेरिया में कुछ पार्टी करते हैं चल के।”
मैंने सहमति में सिर हिलाया।
मैं पार्टी में पहुंचा तो सर पकड़ लिया।
ये शायद अतरंगी लोगों की पार्टी थी जो एलजीबीटीक्यू अधिकारों की बातें करने वाले लोगों के लिए रखी गई थी।
और रामसेतु चौरसिया इनका लीडर था।

अब मैं फंस गया था। कोई पहचान वाला देख लेता तो बेइज्जती हो जाती।
पार्टी में पंद्रह मिनट बिताने के बाद ही जरूरी फोन आने का बहाना बना कर वहां से भागा।
रावतपुर पहुंचा ही था कि बॉस का फोन आया।
“लखनऊ पहुंचो तुरंत! पेशी है सचिवालय में!”
3 बजे थे
तुरंत झकरकटी बस स्टॉप पहुंचे। गोल चौराहे से टैंपो पकड़ के। ऐसी बस पकड़ कर लखनऊ पहुंचे।
पत्नी को फोन करके बताए कि जरूरी काम से लखनऊ आना पड़ा है।

रात हो गई । वहीं रुके।
सुबह पहली ट्रेन पकड़ कर घर पहुंचे और पिस्टल पांडे को अपने घर में चाय के साथ पकौड़े खाते देख आंतें सुलग गईं। मतलब कांड हो चुका था अब तक।।
“अरे ये शोभन वाले सोमनाथ चाचा का लड़का है मिंटू! “

श्रीमती जी ने परिचय करवाया , जैसे हम पहली बार मिले हों।

“अपनी शादी का कार्ड देने आया था और आपकी करतूत बताने। आजकल जेड स्क्वायर कैफिटेरिया में मैनेजर है ये।”

श्रीमती जी की बस आखिरी बात सुनी और शर्मिंदा से भी ज्यादा शर्मिंदा हो गया मैं।
“मुझे पता नहीं था, ये शौक भी हैं तुम्हारे । कितना और गिरोगे यार? ऑफिस के बहाने रात भर रंगरेली ,वो भी लड़कों के साथ ?”
“छी।”
मेरी बीवी मुझे जलील करने का मौका छोड़ने वालों में से नहीं थी।
“अरे यार! ऐसा कुछ नहीं है।”
लेकिन मेरी आवाज़ सुनने समझने वाला कौन था यहां ?

“अच्छा दीदी ! चलता हूं !”
बड़ी घृणास्पद नज़रों से मुझे देखता हुआ पिस्टल पांडे रवाना हुआ। आज कुर्ते पैजामे में तिलक लगाए कट्टर संघी दिख रहा था और शायद मेरे खिलाफ़ हेट स्पीच भी कर गया था मेरे ही घर में ।

दोनों टाइम दलिया और नींबू वाली चाय।
एक हफ्ते फर्श पर सोने की सजा मिली।
बदनामी अलग।

और हां,
भेड़िया मूवी खतरनाक है।
कैरियर इज्जत सम्मान सब खा जाएगी।

आपका -विपुल
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