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विजयंत खत्री

भारतीय राजनीति में शब्दों का खेल

प्रत्येक शब्द का अपना अर्थ होता है। कुछ शब्द अपने वास्तविक अर्थ के साथ साथ एक पूरी कहानी जोड़े हुए होते हैं। राजनैतिक परिदृश्य मे शब्दों का बड़ा महत्व होता है। यहां पर एक कुशल राजनैतिक वक्ता के शब्दों के अर्थ का भी अनर्थ कर दिया जाता है, जोकि राजनैतिक लोगों के लिए सामान्य बात है। परंतु पिछले कुछ वर्षों या कह लीजिए कि सन 2010 ईस्वी के दशक के बाद विश्व राजनीति मे लिबरल और वोक राजनीति ने अपना चरम प्राप्त कर लिया है। यहां पर आज हम बात करेंगे कैसे इन वामपंथी विचार धारा के राजनेतओं, एनजीओ, लोगों ने कुछ भारी शब्दों को इतना हल्का कर दिया है कि ये शब्द अपना वास्तविक अर्थ और उनके अंदर समाहित कहानी और इतिहास को ही खोते जा रहे हैं। आज भारत के अंदर कैसे इस पश्चिम के तरीके को आज़माया जा रहा है उस पर आपको थोड़ा बताते हैं। तो आइए बाते करते हैं कुछ शब्दों के बारे में।

नाज़ीवादी, फासीवादी


1- नाज़ीवादी, फासीवादी – आज कल का हर वो व्यक्ति जो सरकार को या अपने देश के राष्ट्राध्यक्ष को पसंद नहीं करता है, वो अपने देश को सरकार के प्रति इन दो शब्दों का प्रयोग ज़रूर करता है।जैसे आप देखेंगे कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जो लोग पसंद नहीं करते हैं वो इस प्रकार के शब्दों का प्रयोग करते हैं। इन शब्दों का ऐसा प्रयोग अमेरिका मे वोक लोगों ने शुरू किया था। पर जरा रुकिए क्य़ा आपको कोई फ़र्क पड़ा ये दोनों शब्द सुन कर! यदि नहीं तो उसके जिम्मेदार ये वामपंथी लोग है क्योंकि इन्होंने इन शब्दों का इतनी बार प्रयोग ऐसे व्यक्तियों के लिए किया जो इन शब्दों की परिभाषा मे फिट नहीं बैठते हैं। क्य़ा ये लोग जानते भी है नाज़ीवाद और फासीवाद क्य़ा होता है? इन दो शब्दों ने यूरोप को 6 साल युद्ध की आग मे झोंके रखा 6-8 करोड़ लोग मारे गए। 60 लाख यहूदियों का नरसंहार हुआ। फ्री प्रेस, विपक्ष नाम की कोई चीज ही नहीं थी। करोड़ो लोग प्रताड़ित हुए। गैस चैम्बर मे डाले गए, जिंदा जला दिए गए। जो बचे वो पूरे जीवन इन दो शब्दों से घृणा और भय दोनों भावों का प्रदर्शन करते रहे। परंतु जिस प्रकार वामपंथी और विपक्ष ने इन शब्दों को मोदी सरकार के विरोध में गढ़ा है, उससे इन शब्दों का वास्तविक इतिहास दहाड़ें मार कर रोता होगा।

नरसंहार (Genocide)

2- नरसंहार (Genocide)- जिस प्रकार हमारे देश के लोगों के द्वारा अल्पसंख्यक समुदाय विशेषकर मुस्लिम समुदाय के प्रति इस तरह की बात चलाई गई कि वर्तमान सरकार मुस्लिमों का नरसंहार कर रही है उससे पता चलता है कि वामपंथी और इस्लामिक संगठन को इस शब्द की परिभाषा का भी ज्ञान नहीं है। बड़े पैमाने पर किसी समुदाय की खुलेआम हत्या करना और उन्हें अपने घर, आजीविका से दूर करना जिसमें कम से कम आधा समुदाय जिसके खिलाफ नरसंहार हो रहा है वो प्रत्यक्ष प्रभावित हो और अप्रत्यक्ष रूप से 100%समुदाय प्रभावित हो उसे नरसंहार कहा जाता है। क्य़ा भारत के मुस्लिमों के साथ इस प्रकार की कोई समस्या है? नरसंहार कहलाता है – नाजियों द्वारा यहूदियों का नरसंहार, तुर्कों द्वारा आर्मेनियन लोगों का नरसंहार, इस्लामिक स्टेट द्वारा यजीदी लोगों का नरसंहार, कश्मीर में इस्लामिक आतंकियों द्वारा कश्मीरी पंडितों का नरसंहार। इन वामपंथियों द्वारा भारत मे एक सामान्य कानून व्यवस्था के मामले को नरसंहार शब्द से जोड़कर शब्द को हल्का ही किया जाता रहा है।

इस्लामोफोबिक या इस्लामोफोबिया


3- इस्लामोफोबिक या इस्लामोफोबिया – इस शब्द का भी इतना भयानक दुरुपयोग किया गया है कि क्य़ा ही कहा जाए! भारत मे एक मुस्लिम समुदाय के व्यक्ति द्वारा किए गए किसी गलत कार्य या अपराध को उजागर करना भी इस्लामोफोबिया या इस्लामोफोबिक हो जाता है। लेकिन ऐसे लोगों को शायद चीन मे जाकर रहना चाहिए क्योंकि असल मे इस्लामोफोबिक अगर कोई सबसे बड़ा देश है तो वो चीन है। उन्हें अमेरिका और यूरोप का वो 2001-2009 तक का वो समय याद नहीं है जब 9/11 के बाद हर मुस्लिम को आतंकवादी कहा जाता था। हज़ारों मुस्लिम लोगों को केवल शक के आधर पर जेल मे डाल दिया गया। उनकी नौकरियां गई। उन्हें पश्चिम से जबरन निकाला गया। ढूँढ ढूँढ कर हत्या की गई। लेकिन भारत में इन्हें एक सामान्य सी बात में भी इस्लामोफोबिया दिखाई देता है।

तानाशाह


4- तानाशाह – तानाशाह शब्द का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए इतना प्रयोग किया गया है कि ये शब्द भी अपनी अंतिम साँस गिन रहा है। तानाशाह शब्द सुनते ही सबके दिमाग मे हिटलर, पोल पोत, ईदी अमीन, स्टालिन मुसोलिनी जैसे व्यक्ति और उनके द्वारा किए गए वीभत्स कार्य याद आते हैं। क्य़ा नरेंद्र मोदी की सरकार मे ऐसा हो रहा है। मुझे तो यहां सब कुछ होता दिख रहा है जो एक प्रजातंत्र मे होता है। बल्कि यहां पर देश विरोधी ताकतें ज्यादा हावी दिखाई देती है।
ये शब्द तो उदाहरण मात्र हैं।ना जाने कितने कितने ऐसे शब्द हैं जिनके वास्तविक अर्थ और भाव को समाप्त कर दिया गया है या कर दिया जाएगा। क्य़ा आने वाली पीढ़ी नरेंद्र मोदी ज़ी जैसे व्यक्ति को नाज़ी, और एक सामान्य व्यक्ति जो कुछ गलत होते देख रहा है उसे इस्लामोफोबिक मान कर इन शब्दों को हल्के में लेगी ?अपने राजनैतिक स्वार्थ के लिए इतिहास और राजनीति में प्रयोग होने वाले शब्द जो स्वयं मे एक इतिहास हैं,उन्हें एक सामान्य सी गाली के रूप मे प्रदर्शित किया जाएगा ?

उपसंहार


तो कुछ ज्वलंत प्रश्न आपसे –
–क्य़ा इस्लामिक कट्टरपंथियों से या उनके हिमायतियों से सोशल मीडिया पर तर्क संगत वाद करना मुस्लिमों का नरसंहार या इस्लामोफोबिया कहलाया जाएगा?
–क्य़ा आने आने वाली पीढ़ी इन शब्दों के वास्तविक इतिहास से वंचित रह जायगी?
–क्य़ा जो लोग आपको पसंद नहीं है उनको आप उन सबको इन शब्दों से बस इसीलिए नवाजोगे कि वो लोग आपको पसंद नहीं हैं?
–क्य़ा ये भेड़िया आया, भेड़िया आया वाला वामपंथी विलाप विश्व को ऐसा उदासीन कर देगा कि जब कहीं वास्तव मे भेड़िया आएगा तो इन्हें कोई गंभीरता से नहीं लेगा?
विचार कीजिए।

विजयंत खत्री
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