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वेंकटपति राजू

आपका – विपुल

परिचय

वेंकटपति राजू बायें हाथ के उंगलियों के स्पिनर थे जो लेग स्पिनर अनिल कुंबले और ऑफ़ स्पिनर राजेश चौहान के साथ 1990 के दशक में एक बेहतरीन भारतीय स्पिन तिकड़ी का निर्माण करते थे। इस स्पिन तिकड़ी के होते हुये टीम इण्डिया 1990 में घरेलू धरती पर एक भी टेस्ट सीरीज नहीं हारी थी।

वेंकटपति राजू का रणजी डेब्यू 1985 -86 के सत्र में हैदराबाद की टीम से हुआ। लगातार अच्छे प्रदर्शन का इन्हें ईनाम मिला और जब भारतीय टीम मोहम्मद अजहरुद्दीन की कप्तानी में न्यूजीलैंड पहुंची तो वेंकटपति राजू एक स्पिनर के तौर पर टीम में शामिल थे।

डेब्यू

02 फरवरी 1990 को न्यूजीलैंड के क्राइस्ट चर्च के मैदान पर न्यूजीलैंड के खिलाफ़ वेंकटपति राजू का टेस्ट डेब्यू हुआ।
न्यूजीलैंड ने पहली पारी में बैटिंग की और 459 रन बनाए।
कपिल देव, मनोज प्रभाकर, अतुल वासन जैसे तेज गेंदबाजों के साथ वेंकटपति राजू और नरेंद्र हिरवानी स्पिनर थे भारत के लिए। राजू ने 35 ओवर में 86 रन देकर 3 विकेट लिए और यही नहीं , राजू को 3 विकेट गिरने पर नाइट वाचमैन के तौर पर भी भेजा गया, भारत की पहली पारी में।
राजू ने अच्छे से ज़िमेदारी निभाई। राजू 83 गेंदों पर 31 रन बनाकर सबसे अन्त में आउट हुये। जहां कुल 164 रन बने थे।
फॉलो ऑन के बाद दूसरी पारी में भी भारत मात्र 296 बना पाया जहां राजू ने 58 गेंदों पर 21 रन बनाए थे। भारत मैच हारा लेकिन वेंकटपति राजू भारतीय क्रिकेट फैन्स को प्रभावित कर गए थे ।

नेपियर में 9 फरवरी 1990 से शुरू हुए दूसरे टेस्ट में राजू को ज्यादा मौके नहीं मिले, मैच ड्रॉ रहा ।
वेंकटपति राजू का एकदिवसीय डेब्यू भी न्यूजीलैंड में ही हुआ ।
1 मार्च 1990 को न्यूजीलैंड के खिलाफ़ अपने पहले एकदिवसीय मैच में राजू ने 9 ओवर में बिना कोई विकेट लिये 38 रन दिये।
और रन आऊट होने के पूर्व 4 रन बनाए । भारत मैच हारा।

टेस्ट रिकॉर्ड

1990 में वेंकटपति राजू भारतीय टीम के इंग्लैंड दौरे पर भी साथ गये थे, लेकिन एक काउंटी टीम ग्लोसेस्टर शायर से प्रथम श्रेणी मैच के दौरान कोर्टनी वाल्श की गेंद पर राजू चोटिल हो गए थे, इसलिए खेल नहीं पाए।

23 नवंबर 1990 को चंडीगढ़ में श्रीलंका के खिलाफ़ राजू को अपना तीसरा टेस्ट मैच खेलने को मिला जिसमें राजू ने पहली इनिंग में 12 रन देकर 6 विकेट लिए और दूसरी इनिंग में 25 रन देकर 2 विकेट लिए। भारत पारी से मैच जीता और राजू ने जीवन का एकमात्र मैन ऑफ़ द मैच खिताब जीता।
1991 -92 के भारत के आस्ट्रेलिया दौरे पर वेंकटपति राजू चारों टेस्ट खेले और कुल 9 विकेट लिए।
1993 के इंग्लैंड के भारत दौरे पर राजू की तिकड़ी कुंबले और राजेश चौहान के साथ बनी और इसी तिकड़ी की वजह से इंग्लैंड 3 -0 से टेस्ट सीरीज हारी।

1994 में वेस्टइंडीज टीम भारत दौरे पर आई थी और वेंकटपति राजू ने 3 टेस्ट मैचों में 20 विकेट लिये थे। यही राजू के टेस्ट क्रिकेट जीवन का चरम था। इसके बाद इनका प्रदर्शन इतना अच्छा नहीं रहा, जिस कारण ये टीम से अंदर बाहर होते रहे।

वेंकटपति राजू ने अपना अंतिम टेस्ट मैच आस्ट्रेलिया के खिलाफ़ ईडेन गार्डन में मार्च 2001 में खेला था , जिसमें मात्र एक विकेट मार्क वॉग का लिया था ।
ये वही ऐतिहासिक मैच था जिसमें लक्ष्मण ने 281 रन बनाए थे।
इस मैच के बाद राजू फिर कभी टीम इण्डिया के लिए किसी प्रारूप में नहीं खेले।

वेंकटपति राजू ने 28 टेस्ट मैचों में 30.72 के औसत और 81.70 के स्ट्राइक रेट से 93 विकेट लिये हैं ।5 बार पारी में 5 विकेट, एक बार मैच में 10 विकेट।
सर्वश्रेष्ठ 6/12।

एकदिवसीय रिकॉर्ड

डुनेडिन में 1मार्च 1990 को न्यूजीलैंड के खिलाफ़ एकदिवसीय डेब्यू करने के बाद वेंकटपति राजू भारतीय टीम का अविभाज्य अंग हो गये थे ।26 मई 1996 को मैनचेस्टर में इंग्लैंड के खिलाफ़ अपना अंतिम एकदिवसीय मैच खेलने तक वेंकटपति राजू ने कुल 53 वन डे मैच खेले और 31.96 के औसत और 4.36 की इकोनामी से 63 विकेट लिये।
सर्वश्रेष्ठ 4/46।
1992 और 1996 के एकदिवसीय विश्वकप में वेंकटपति राजू टीम इण्डिया में थे।
1996 में श्रीलंका के खिलाफ़ विश्वकप सेमीफाइनल में स्पिन ट्रैक के बावजूद राजू को न खिलाना और टॉस जीत कर पहले गेंदबाजी करने के कारण मोहम्मद अजहरुद्दीन आज तक शक के घेरे में है।
भारत ये मैच हारा था।

सन्यास के बाद

वेंकटपति राजू ने 177 प्रथम श्रेणी मैचों में 27 .72 औसत से 589 विकेट लिए हैं और 124 लिस्ट ए मैचों में 29.98 औसत से 152 विकेट लिये हैं।2004 में अधिकृत तौर पर सन्यास लेने के बाद वेंकटपति राजू हैदराबाद क्रिकेट एसोसिएशन के उपाध्यक्ष रहे हैं और उस चयन समिति के चयनकर्ता भी रहे हैं जिस चयन समिति ने 2007 टी 20 विश्वकप के लिए टीम इण्डिया का चयन किया था और महेन्द्र सिंह धोनी को कप्तान बनाया था ।

आपका – विपुल
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One thought on “भूले बिसरे खिलाड़ी भाग -27 वेंकटपति राजू

  1. Sir, mere khyal se V Raju ko bhoola-bisra bolna shayad puri trah sahee nhin hai..test matches mein toa ye 4-5 Saal khele hai..record bhi bura nhin tha…test matches mein 100 ke kreeb wicket Lena aasan nhin hota…baki aapka analysis achcha lgta hai..purane khiladiyo ki yaade taja ho jati hai..

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