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आपका -विपुल

एक बात
प्रेम पर भी

इस विषय से लोग बच के निकल जाना चाहते हैं ,लेकिन मैं नहीं बच के निकल रहा।
मेरे विचार बिल्कुल स्पष्ट हैं ,प्यार पर भी और सेक्स पर भी
लिखता ज़रूर हूँ ,लेकिन ज़मीन से जुड़ा हूँ ,इसलिये खालिस रोमानी बातों की उम्मीद रखे हों तो आगे न पढें
मैं असली बातें करता हूँ।

तो मेरा स्पष्ट मानना है कि सच्चा प्यार बगैर सेक्स के सम्भव ही नहीं।
यही हकीकत है उन बॉलीवुड फिल्मों और कुंठित कवियों की रूहानी प्रेम की बातों में आकर ज़िंदगी बर्बाद न करें।
रूहानी प्रेम ,सूफियाना प्रेम ऐसी कोई चीज़ नहीं होती।
प्रेम केवल प्रेम होता है,
विशुद्ध प्रेम।

और सेक्स इसी प्रेम का अटूट अविभाजित हिस्सा है।
आप में से बहुत उछल जाएंगे,मेरा मुंह नोचने का प्रयास करेंगे,
लेकिन मैं अपनी बात पर अडिग हूँ।
यहाँ वात्सल्य या स्नेह की बात नहीं कर रहा जो मां बेटे या मित्रों के बीच होता है।
उस प्रेम की बात नहीं कर रहा।
स्त्री पुरूष के प्रेम की बात कर रहा हूं।

रूहानी प्रेम की परिकल्पना इस्लामिक देन है।भारतीय संस्कृति की नहीं।
यहां पति पत्नी के प्रेम का प्राधान्य है।
गृहस्थ धर्म का प्रावधान है।
बगैर पत्नी के साथ के तो देवता भी आपकी पूजा से संतुष्ट नहीं होते ।
राधा कृष्ण का उदाहरण मत देना ,
आगे बताऊंगा।

वशिष्ठ से विश्वामित्र तक,
अत्रि से अगस्त्य तक
किस बड़े ऋषि की पत्नी या पुत्र नहीं थे?
माता पार्वती और शिव में प्रेम नहीं है ?
राम जानकी ?
किसके पुत्र नहीं हैं ?
हमारे यहाँ तो विवाह के भी 8 प्रकार माने गए।
मतलब गन्धर्व विवाह से आसुर विवाह तक
प्रेमी प्रेमिका का उल्लेख कम ही है।

जो अभी राधा कृष्ण की बात करेंगे ,
उन्हें बता दूं कि श्रीमद्भागवत पुराण और महाभारत ,
जोकि कृष्ण के बारे में प्रामाणिक ऐतिहासिक ग्रंथ माने जा सकते हैं,उनके मूलरूप में राधा का जिक्र कहीं नहीं है।
हाँ ,कृष्ण की रानियों का उल्लेख ज़रूर है और संतानों का भी उल्लेख है।

राम एक प्रबल प्रतापी योद्धा थे और कृष्ण एक क्रूर कूटनीतिज्ञ ,दोनों का ही भारतीय संस्कृति पर बड़ा प्रभाव है, चरित्र का सम्मान है।ज़्यादा कुछ नहीं कहूंगा।लोगों की भावनाएं आहत हो सकती हैं।
लेकिन राधे कृष्ण और गोपी रास को ज्यादा महत्व इस्लामिक शासन के बाद ही मिला।

राम के कठोर चरित्र के कारण उनको प्रेमी पुरूष की तरह चित्रित नहीं किया जा सकता था।


दरबारियों और धर्मांतरित लोगो की नज़र भगवान कृष्ण पर गई ।
और उनके प्रेमी स्वरूप पर काव्य और नाटक और ज्यादा लिखे गए ,खेले गए।
यहाँ एक बात बता दूं।

कृष्ण की असली ख्याति दरअसल महाभारत युद्ध में पांडवों को विजय दिलाने और अपनी नीतियों से मगध सम्राट जरासन्ध का वध करवाने , द्वारिकाधीश होने के कारण थी।
रास रचैया होने के कारण नहीं।


कुछ पुराने काव्यों में कहीं कहीं दिखने वाली देवी राधा को कृष्ण की प्रेयसी के तौर पर दिखाया गया।

अब चूंकि अपने धर्म की बात है इसलिये इस प्रकरण को छोड़ता हूँ।
दरअसल एक सवाल के जवाब में ही पूरा सत्य छुपा है।
राजा के लिए सबसे जरूरी क्या है ?जिसके बगैर शासन सम्भव नहीं।

उत्तर -प्रजा ,जीवित और स्वस्थ प्रजा।


उसी प्रकार सृष्टि या प्रकृति या सृष्टिकर्ता के लिए सबसे ज़रूरी क्या है?

उत्तर ये है कि सृष्टि बनाये रखने के लिये सबसे ज़रूरी चीज़ प्रजनन है।
तभी सृष्टि आगे बढ़ेगी।
नर मादा का एक दूसरे की तरफ आकर्षित होना स्वाभाविक है ,वो संबंध बनाएंगे ,प्रजनन करेंगे ,तभी सृष्टि आगे बढ़ेगी।
सुहागिन स्त्री व कृषिभूमि का ऐसे ही हमारी संस्कृति में इतना सम्मान नहीं।

चीते कम हो गये,एक शोधपत्र पढ़ रहा था।

अब चीते सम्बन्ध बनाने में रुचि नहीं लेते।
उनका प्रजनन कम है वैसे भी।
कई पशु पक्षियों की प्रजाति इसी वजह से नष्ट हो गई क्योंकि उनके गिने चुने बचे हुये में संबंध बनाने की रुचि ही ईश्वर ने खत्म कर दी थी।

और ये जो रूहानी प्रेम वाले मिथक आये हैं भारतीय संस्कृति और साहित्य में,
ये सूफियों के द्वारा ही आये।
ये सूफी समलैंगिक प्रेम को भी बढ़ावा देते थे।
वो ईश्वर को प्रेमिका खुद को प्रेमी मानते थे।
ये हमारी सनातन संस्कृति नहीं।
हम तो केवल दास्य भाव या सख्य भाव से भक्ति कर सकते हैं।

तो इस रूहानी ,सूफियाना, या समलैंगिक प्रेम से संतानोत्पत्ति तो नहीं ही हो सकती और जैसा कि आप जानते ही हैं कि अगर आप हिन्दू हैं तो वैदिक धर्म के अनुसार बगैर संतान उत्पन्न किये आपकी मुक्ति सम्भव नहीं ।
स्त्री हो या पुरूष।
मुक्ति नहीं बगैर संतान उत्पन्न किये।

हिंदू या वैदिक या सनातन ,जो भी कहना चाहें, इस धर्म को खत्म करने के प्रयास तो 544 ईसापूर्व से चल रहे हैं ,जब बुद्ध धर्म ने इस पर आक्रमण शुरू किया था।
संतानोत्पत्ति और आर्थिक उत्पादन के योग्य युवाओं को जीवन भर के ब्रह्मचर्य का पाठ पढा कर।
ब्रह्मचर्य सबके लिये नहीं होता भाई।

उन्होंने तब आपके युवाओं को मठ की ओर धकेल के आपकी जनशक्ति कम करनी चाही।

सूफियों ने रूहानी प्रेम का पाठ पढ़ा कर यही काम करना चाहा।
दर्द भरी शायरियों में पड़े रहने वाले लोग कभी ये क्यों नहीं सोचते कि प्राचीन संस्कृत साहित्य में ऐसा दर्द क्यों नहीं है।
वहां विप्रलम्भ श्रृंगार में भी मादकता है।

बहुत संस्कृत साहित्य पढ़ा ,लेकिन रूहानी प्रेम का कॉन्सेप्ट कहीं नहीं दिखा,न ही किसी के प्रेम में पड़ कर जान देने या पागल होने के किस्से दिखे।
लोक साहित्य से लेकर दरबार साहित्य तक ,ऐसे प्रकरण नहीं दिखे ।
हां यौन संबंधों के प्रकरणों की भरमार है।

शायद बात लम्बी हो गई, लेकिन दो तीन बातें तो कह के जाऊंगा ।
आप किसी से रूहानी प्रेम करते है, वो मिल जाये तो क्या करोगे ?
दोस्तों की भाषा मे पूंछू ?
अगरबत्ती दिखाओगे?
प्रेम की अंतिम परिणीति कहाँ होगी ?

इश्क खुदा से बड़ा ?

इससे बड़ी बेवकूफी की बात मैंने आज तक नहीं सुनी।

फिर आपको किसी से असली प्रेम है या नहीं?
ये तब ही जान पाओगे न ,जब उसके साथ मन भर के सेक्स कर लोगे और फिर भी उसके साथ की ज़रूरत तुम्हें महसूस होगी।

वरना नकली प्रेम तो एक बार यौन क्रीड़ा के बाद ही समाप्त हो जाता है न?

अंत में एक बात याद रखना।
शाहजहां ने ताजमहल भी अपनी बीवी के लिये बनवाया था,रूहानी प्रेमिका के लिये नहीं।
लैला मजनू ,हीर रांझा को क्यों देखते हो ?

राम जानकी,
शिव पार्वती
इनका प्रेम ज़्यादा सच्चा है ,ज़्यादा पवित्र ।

इनके अनुयायी बनो
🙏🙏

समाप्त
आपका -विपुल

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