प्रकृति और प्रजनन
आपका – विपुल
आप मुझसे सहमत या असहमत हो सकते हैं पर मेरा स्पष्ट तौर पर ये मानना है कि अगर आप एक स्वस्थ पुरुष या स्त्री हैं तो भगवान की बनाई इस सृष्टि को आगे चलाते रहने के लिये आपको अपनी संतान उत्पन्न करना बहुत जरूरी है।
ये स्वाभाविक है और प्राकृतिक भी।
पशु पक्षी पेड़ पौधे सब करते हैं।
प्रकृति ने मानव या अन्य सभी जीवित प्राणियों में यौनेच्छा इसीलिये सृजित की है कि इसका उपयोग करके अगली पीढ़ी का उत्पादन करें और इस सृष्टि को तब तक आगे बढ़ाते रहें जब तक ईश्वर चलाना चाहता है।
जब ईश्वर चाहेगा तब वो प्रजाति स्वयं विलुप्त हो जायेगी, चाहे मानव हो या कोई और प्रजाति।
तो अगर आप पूरी तरह स्वस्थ होने के बाद भी अपनी संतान उत्पन्न नहीं करते हैं तो आप प्रकृति और ईश्वर दोनों के खिलाफ जा रहे हैं।
जरा सोचिये कि अगर इस धरा पर मौजूद सारे स्त्री पुरुष एकमत हो जाएं कि उनको संतान उत्पन्न नहीं करनी तो आगे क्या होगा?
आगे ये होगा कि एक सीमा के बाद मानव प्रजाति धरती से विलुप्त हो जायेगी।क्योंकि जब कोई संतान करेगा ही नहीं तो आगे की पीढ़ी में बचेगा कौन?
मेरी ये बात सुनने में आपको हल्की लग रही होगी और शायद हंसे भी कोई।
पर जरा सोचें तो इस पर।
यौनेच्छा प्रकृति ने मात्र प्रजनन के लिये ही निर्मित की।
पर इस यौनेच्छा के वशीभूत होकर कुछ पुरुष और कुछ महिलायें समलैंगिक संबंधों की ओर अग्रसर होते हैं और ये नहीं मान पाते कि ये अप्राकृतिक और ईश इच्छा के विपरीत है।
प्रोडक्शन यानि उत्पादन हर व्यापार का एक सबसे महत्वपूर्ण पहलू होता है।
समलैंगिक लोग प्रकृति के व्यापार में बाधा डालते हैं।
यहां मैं प्रकृति और ईश्वर को अलग अलग रख रहा हूं।
द्वैत वाद, अद्वैत वाद या विशिष्टाद्वैत वाद की कोई बात नहीं कर रहा, बस सामान्य तौर पर ये समझें कि प्रकृति और ब्रह्म अलग अलग चीजें हैं । प्रकृति इस सृष्टि की सीईओ है।
हम भगवान से सीधे नहीं मिल सकते।
प्रकृति से रोज मिलते हैं।
और प्रकृति को चाहिये होता है कि ईश्वर निर्मित इस सृष्टि को निरंतर चलाने के लिये निरंतर जैविक उत्पादन।प्राणियों,पशु पक्षियों,पेड़ पौधों कीट पतंगों का निरंतर प्रजनन।वरना कुछ बचेगा क्या?
आप गौर करें और गलत अर्थों में न ले जायें तो एक बात पूछूं?
किसी के विवाह में लोग इतना खुश क्यों होते हैं?इसे इतना उल्लास का पर्व क्यों मनाया जाता है? अफ्रीका के घने जंगलों से लेकर भारत और चीन की पुरानी सभ्यता से लेकर अमेरिका और पश्चिम यूरोप के आधुनिक लोगों तक विवाह एक हर्ष उल्लास का उत्सव है जहां लोग गाते बजाते नाचते मस्ती करते हैं।
आप सभ्य तौर पर इसका जवाब दे सकते हैं पर मैं पूरी असभ्यता से बोलूंगा कि ये इसलिये होता है क्योंकि लोगों को इस बात की खुशी होती है कि अब ये जोड़ा सेक्स करके एक नया मानव शिशु पैदा करेगा और हमारा कबीला बढ़ेगा।
ये हमारी पुरानी आदिम जंगली सोच है जो हमारे उन पुरखों के द्वारा हमारे दिमाग में तब से अचेतन रूप से बैठी है जब हमारे मानव पूर्वजों को अत्यंत दुष्कर परिस्थितियों में जंगली जानवरों और दैवी आपदाओं से बच कर रहना पड़ता है और उनके आस पास की हर मानव जाति कीमती थी।उसके बाद कबीले बने।
और फिर अपने कबीले की ताकत को बढ़ाने को अपनी जनसंख्या को बढ़ाना महत्वपूर्ण समझा गया।
डार्विन का सिद्धांत योग्यतम की उत्तरजीविता यहां समझ सकते हैं।
आज भी जिन कबीलों की जिनकी जनसंख्या ज्यादा है वो ज्यादा महत्वपूर्ण हैं।पर मैं उनकी बात करके विषय से नहीं भटकूंगा।
बात प्रकृति और प्रजनन की हो रही है। उसी पर रहूंगा।
आप गंभीरता से पृथ्वी के ज्ञात वैज्ञानिक इतिहास को पढ़ें।
आपको पता ही होगा कि जाने कितनी पशु पक्षियों कीट पतंगों पेड़ पौधों की प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं।
कितने पर्वत नष्ट हो गए और कितनी नदियां अब खत्म हो गईं।
मैमथ, डायनासोर और जाने कितनी प्रजातियां जिनका नाम हम सहज जानते हैं उनके अलावा भी लाखों करोड़ों जैविक प्रजातियां ऐसी रही होंगी जो अपने समय पर इस धरा पर सर्वश्रेष्ठ थीं और उन्हें भी लगता होगा कि अब हमसे ज्यादा अच्छी कौन जैव प्रजाति आयेगी धरती पर?
मानव को भी यही लगता है।
पर अगर आप ईश्वर को मानते हैं और विज्ञान में विश्वास रखते हैं तो आप मानेंगे कि मानव वर्तमान में तो सृष्टि की सर्वोत्कृष्ट जैव प्रजाति है पर भविष्य में हो सकता है मानव से भी श्रेष्ठ कोई प्रजाति प्रकृति निर्मित कर दे।
आप हंसना चाहें तो हंस सकते हैं पर हंसने के बाद गंभीरता से सोचना।
और अगर आप तनिक भी गंभीरता से सोचते हैं तो आपको निश्चित लगेगा कि हो सकता है कि मानव के बाद जो मानव से भी श्रेष्ठ प्रजाति प्रकृति निर्मित करने वाली हो,कोई गारंटी नहीं ली जा सकती कि वो मानवों के लिये मित्र ही साबित हो।ऐसी कल्पना की दशा में भी मानव प्रजनन ज़रूरी है।
और अगर आप इस कल्पना को कपोल कल्पना भी मान लें तो भी ये जान लें कि प्रकृति की इच्छानुसार सृष्टि को चलाने के लिये भी प्रजनन ज़रूरी है।
फिर इस प्रजनन से उत्पन्न संतान को सामाजिक सुरक्षा के दायरे में रखने के लिये विवाह भी जरूरी है।
क्योंकि विवाहित जोड़े से उत्पन्न शिशु को सामाजिक मान्यता मिलती है।
इसके अलावा समाज में सहयोग करने की और जिम्मेदारी उठाने की भावना में भी विवाह संस्था सहायक सिद्ध होती है।
एक पुरुष जब अपनी पत्नी की और स्त्री अपने पति की जिम्मेदारी उठाती है तो समाज बनना शुरू होता है।
उसके बाद दोनों मिलकर अपने बच्चे की जिम्मेदारी उठाते हैं। और मानव शिशु बाकी प्राणियों की तरह तुरंत ही अपने पैरों पर नहीं खड़ा होता, तो उसकी जान की बचाव और सुरक्षा के लिये परिवार और समाज बहुत जरूरी है।
इसलिये विवाह भी प्रजनन जितना आवश्यक है।
अंत में
अंत में इतना कहूंगा कि अगर आप मानव संतति प्रजनन को गंभीरता से नहीं लेते तो आप न केवल अपने को धोखा दे रहे हैं बल्कि प्रकृति के व्यापार में बाधा डाल रहे हैं। सृष्टि के नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं और ईश्वर की इच्छा के विपरीत कर रहे हैं।
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आपका -विपुल
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