भविष्य क्या है इस टीम का ?
राहुल दुबे
2011-12 का समय मेरे लिए क्रिकेट में बिल्कुल नया नया था ।2011 का एकदिवसीय विश्व कप फाइनल देखने के अलावा जब मैंने पहली बार क्रिकेट को ढंग से देखना समझना शुरू किया था वह था बॉर्डर गावस्कर ट्रॉफी।उसके शुरू होने के पहले भारत की त्रिमूर्ति जिसमें सचिन द्रविड़ और लक्ष्मण थे उनकी खबरें खूब छप रही थीं,खैर उस BGT में क्या हुआ पूरी दुनिया जानती है।भारत 4-0 से हारा था ,हिंदुस्तान या दैनिक जागरण में अंतिम टेस्ट में हार के बाद छपा था “बदल दो पूरी टीम” जिसका मुख्य निशाना द्रविड़ लक्ष्मण आदि ही थे।उस दौरे पर भारत को एक ही खुशी थी कि उन्हें विराट कोहली के रूप में भविष्य दिखने लगा था।आज हम 2024 में है उस समय मैं भी नया नया था और बदल दो पूरी टीम के नारे ने मुझे आकर्षित किया था।आज हम 12 वर्षों बाद किसी देश से अपने घर में श्रृंखला हार गये और मैं वो नया नया क्रिकेट फैन नहीं हूँ ।
आज यदि कहीं छपे “बदल दो पूरी टीम” तो वो मुझे डरायेगा। मुझे अपने पसंदीदा खिलाड़ी को खेलते देखना पसंद है।मैं उसे और सारे रिकॉर्ड बनाते – तोड़ते देखना चाहता हूँ।लेकिन क्रिकेट ऐसे नहीं चलता , ये मुझे भी पता है और दूसरों को भी।यदि हम 12 साल लगातार घर में जीतते रहें तो उसमें भी इन्ही खिलाड़ियों का योगदान था।मुरली,विराट,अश्विन,जडेजा,पुजारा,रहाणे,शमी उमेश,इशांत।
खैर इन खिलाड़ियों में से मुरली,उमेश,इशांत,रहाणे और पुजारा कबके बाहर जा चुके।अब बस विराट,जडेजा और अश्विन बचे हैं।और उसमें भी विराट का व्यक्तिगत प्रदर्शन कहीं से भी संतोषजनक नहीं है।अश्विन का भी अंत नजदीक ही है।जडेजा तो कहो फिर भी कुछ दिनों तक खेल जाये।
इन महान खिलाड़ियों की दुर्दशा विशेषकर विराट की दुर्दशा मुझे परेशान कर रही है।विराट जैसे झुझारू और महान खिलाड़ी का अंत ऐसे तो नहीं होना चाहिए।कुतर्क करने को तो कुछ भी कहा जा सकता लेकिन सत्य छिपाये नहीं छिपता।यदि आज भारत बुरा कर रहा तो उसके एक कारण कोहली भी हैं।
भारत को 22 नवंबर से ऑस्ट्रेलिया से उसी के घर में खेलना है और पिछले 10 सालों में हमने जिन जिन परिस्थितियों में उन्हें पछाड़ा है वे बहुत दिनों से उतावले है हमें हराने के लिए।आज जब हम अपनी टीम की तरफ़ देखते है तो तेज गेंदबाज बुमराह और विकेटकीपर बल्लेबाज ऋषभ पंत के अलावा सब कुछ अधर में ही दिखता है।साल 2024 में करीब 1100 रन बना चुके जायसवाल पहली बार ऑस्ट्रेलिया में अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में शिरकत करेंगे इसलिए उनसे उम्मीदें तो हैं लेकिन उतनी नहीं ।दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ हमने उनका संघर्ष देखा था।शुभमन गिल अभी भी अपने आप को नम्बर 3 पर स्थापित नहीं कर पाये हैं और उन्हें चेतेश्वर पुजारा की जगह को भरना है जो अपने आप में ही पहाड़ तोड़ने के समान है।
भारत के दूसरे प्रारंभिक बल्लेबाज और कप्तान रोहित शर्मा किन परिस्थितियों में टेस्ट में ओपनर और कप्तान बने वो जगजाहिर है।रोहित शर्मा 2019-2021 के एक छोटे से समय में कुछ प्रासंगिक करते दिख रहे थे लेकिन वो समय इतना छोटा था कि उनसे ऑस्ट्रेलिया में कुछ बेहतरीन करने की उम्मीद बेईमानी ही होगी।आज भारतीय टीम उस मुहाने पर है जहां टीम में परिवर्तन भी जरूरी है और उस परिवर्तन में अनुभवी खिलाड़ियों के समर्थन की भी आवश्यकता है ।लेकिन हमने जैसे न्यूज़ीलैंड के खिलाफ समर्पण किया है वो मुश्किल ही दिखता है।आगे की राह हमारे लिए मुश्किल है।
ऐसा नहीं है कि हमारे पास इन स्थापित खिलाड़ियों के स्थान पर दूसरे प्रतिभाशाली खिलाड़ी नहीं है। लेकिन उन्हें उचित समय पर मौका भी तो देना होगा।साई सुदर्शन, अभिमन्यु ईश्वरन,देवदत्त पदिक्कल जैसे खिलाड़ियों ने उम्दा प्रदर्शन तो किया है लेकिन सवाल वही है कि क्या ये सब अंतर्राष्ट्रीय खेलो के लिए तैयार है।
मेरा ऐसा भी कहना है कि इन खिलाड़ियों को इस संदेह पर मौका ना देना कि वे क्या खेल पाएंगे या नहीं ये इन खिलाड़ियों के साथ बेईमानी ही होगी।हमें कभी तो इन्हें मौका ही देना होगा और शायद वो समय बॉर्डर गावस्कर ट्रॉफी के बीच में ही आ जाये।क्योंकि जिस प्रकार का प्रदर्शन रोहित – कोहली ने किया है और यदि वे ऐसा खेलते रहे तो उन्हें जारी रखना महापाप की श्रेणी में आएगा।ऐसा नही है कि विराट कोहली को ड्राप करना दुःखदाई नहीं होगा लेकिन भारतीय क्रिकेट टीम का हित एक खिलाड़ी के हित से तो बड़ा ही है। न्यूज़ीलैंड से घर में बुरी तरह से हारने और ऑस्ट्रेलिया में संभावित बेइज्जती के बाद BCCI को कठोर फैसले लेने होंगे।मैं ऐसा बिल्कुल नहीं चाहूंगा कि विराट कोहली या कोई और निराश और हताश होकर टेस्ट क्रिकेट छोड़े लेकिन अभी की स्थिति तो वहीं दर्शाती है।
यदि सिर्फ विराट की ही बात करें तो उनका पिछला प्रदर्शन एकदम बेकार रहा है।और भारतीय टीम और विराट को उसका हल निकालना होगा ।ऐसा नही है कि विराट का क्रिकेट खत्म हो गया है लेकिन जबतक प्रदर्शन ना हो तब तक पिछले रिकार्ड्स के आधार पर ढोते रहना बेईमानी और क्रिकेट का अपमान है।
हमारी टीम का कप्तान भुलक्कड़ है और उसने अपने आप को सब चलता है वाली मानसिकता वाला साबित करके स्वयं को सुरक्षित करने का भरसक प्रयास किया है लेकिन न्यूज़ीलैंड से घर में 3-0 हारने के बाद ऐसा चोला पहनकर आप ज्यादा दिन तक चल नहीं सकते।
महा बड़बोले और कट्टर क्रिकेट फैंस की नजर में सबसे बड़ी तोप,भारतीय टीम के हेड कोच गंभीर की नियुक्ति के समय खूब हवाबाजी हुई थी।दावा था सबकुछ बदल देने का।
सितंबर में बंग्लादेश को हराने के बाद मीडिया में इस बात पर विवाद था कि इस महान परिवर्तन का क्रेडिट किसको दे – एक कामचलाऊ कप्तान या उस खिलाड़ी को जिसने क्रिकेट छोड़ने के बाद क्रिकेट कमेंट्री में भी राजनीति ही की है।उसके एक महीने बाद हमारी टीम आज शून्य है।हम जब ऑस्ट्रेलिया जा रहे होंगे तब हमारे पास सिर्फ 3 खिलाड़ी होंगे – बुमराह ,पंत और जायसवाल।इस भारतीय टीम का भविष्य अभी तो अंधकार में है और जैसी होता है चलता है की मानसिकता के साथ हम खेल रहें हैं ,हमारी वापसी मुश्किल ही दिखती है।मेरे अंदर का भारतीय फैन तो यह भी कहता है कि यही विराट कोहली जो एजाज पटेल और सेंटनर के सामने विकलांग दिख रहे हैं,वो हेजलवुड स्टार्क,बोलैंड और कमिंस की चौकडी पर अपना प्रभाव छोड़ने में सफल होंगे।मुझे नहीं पता कि आने वाले 20 दिन में ऐसा क्या बदलेगा जिससे हमारे कप्तान और कोच के रवैये में बदलाव आ जायेगा।हमारी टीम एकबार फिर इकट्ठी बेहतरीन खेलने लगेगी।आने वाला समय बहुत ही कठोर होने वाला है।मैं डर रहा हूँ क्या होगा यदि सबकुछ और बिगड़ता चला गया तो कैसे संभलेगा और कौन संभालेगा? आज जब ये टीम और उसके खिलाड़ी ट्रोल हो रहे होंगे तो उन्हें गाली देने वाले तो सब होंगे – मैं भी उसी कतार में हूँ लेकिन इसमें बदलाव कैसे होगा इसका जवाब शायद ही कोई दे पाये।समय के गर्भ में ही इसका जवाब छिपा है, और मुझे पूरी उम्मीद है कि समय बदलेगा और फिर हम विजय रथ पर सवार होंगे।
राहुल दुबे
सर्वाधिकार सुरक्षित -Exxcricketer.com