![](https://exxcricketer.com/wp-content/uploads/2024/02/png_20240221_160109_0000-1-1024x576.png)
किसान – अन्नदाता या व्यापारी ?
प्रस्तुति – विपुल मिश्रा
गंभीर।
अगर आप किसानों को गाली देने वालों में से हैं या किसान आंदोलन का समर्थन करने वालों में से हैं तो ये लेख आपके लिए नहीं है।
सबसे पहले एक सवाल!
शासन करने के लिये सबसे जरूरी चीज क्या है?
आप बहुत सी बातें सोच सकते हैं पर इसका केवल एक ही जवाब है।
शासन करने के लिये सबसे जरूरी चीज प्रजा है।
जिंदा,स्वस्थ और पेट भरी हुई प्रजा जो काम कर सके।
बाकी मैं आपको एक चीज कहना चाहता हूं कि भारत एक लोक कल्याणकारी राज्य हमेशा से रहा है।
प्राचीन राज्यतंत्र से लेकर नवीन गणतंत्र तक।
राजा चाहे चंद्रगुप्त मौर्य रहे हों हर्षवर्धन,
चाहे अकबर या फिर औरंगजेब।
राजा का काम अपनी प्रजा को जिंदा रखना सबसे पहले है जिस प्रजा पर वो शासन कर सके। बाकी सारी चीजें बाद में आती हैं। बगैर प्रजा के शासन किन पर करोगे?
बगैर प्रजा के राजा नहीं होते भाई।
कुएं खोदना, बावली बनाना, सड़क बनाना, सड़कों के किनारे छायादार वृक्ष लगाना, सरकारी सराय बनाना जिसमें लोग ठहर सकें,ये हमेशा से भारत में सरकारें करती रही हैं! हजारों सालों से।
और एक महत्वपूर्ण कार्य और विभाग भी हमेशा से शासन का रहा है।
दैवी आपदा विभाग!
दैवी आपदा मतलब भूकंप, बाढ़, ओले, ज्यादा बारिश,सुनामी, ज्वालामुखी फटना, तूफान।
ये सब दैवी आपदायें हैं, जिनको न कोई रोक सकता है, न इनसे होने वाले नुकसान को रोक सकता है।
और ये दैवी आपदायें जब आती हैं तो सरकार को अपने लोगों के बचाव और जान बचाने,जिंदा रखने के इंतजाम करने पड़ते हैं।
दैवी आपदा का विभाग तहसीलों में होता है और पुलिस विभाग मदद करता है।
अब एनडीआरएफ बन गया है।पर ये केवल दैवी आपदा नहीं सारी मानव जनित आपदा ज्यादा देखता है, जैसे ट्रेन दुर्घटना। एनडीआरएफ जान बचाते हैं पर गृहस्थी का इंतजाम नहीं करते हैं ये।दैवी आपदा को खुद देवताओं के अलावा कौन रोक सकता है भाई ?
![](https://exxcricketer.com/wp-content/uploads/2024/02/images-7-11.jpeg)
बाढ़ और भूकंप में अपने घरेलू सामानों का नुकसान झेले अपने लोगों को खाना पीना पहुंचाना,उनको जिंदा रखना सरकार का काम होता है।वो निशुल्क करती है और यहां सरकारी गोदामों में भरे अनाज काम आते हैं।
आप विश्वास रखिये भारत में किसी भी पार्टी की सरकार हो, कोई भी प्रधानमंत्री हो, अगर कोरोना जैसी कोई महामारी आ जाये और किसी को घर से निकलने न दिया जाये तो सरकार आप के घर तक गेंहू चावल छोड़ो, दालें तक भिजवायेगी निशुल्क।
ये मैं पूरी जिम्मेदारी से कह रहा हूं।
पुलिस प्रशासन को गाली देने वाले सुधीर चौधरी को भी ये निशुल्क सरकारी राशन पुलिस प्रशासन ही तब भी पहुंचाएगा जब वो स्टूडियो के बजाय घर से बकवास करेंगे।
अब मुद्दे की बात।
इन सब दैवी आपदाओं से निपटने को राशन तो चाहिए ही! खाद्यान्न!
कहां से आयेगा?
किसान ही पैदा करेगा।
![](https://exxcricketer.com/wp-content/uploads/2024/02/IMG_20240221_141817-1-771x1024.jpg)
किसान का धान गेंहूं जैसा अनाज ही सरकारी तंत्र की सुरक्षा का मूल है।
पुराने जमाने में मालगुजारी के रूप में सरकारी टैक्स किसानों से लिया ही जाता था फसलों के एक अंश के रूप में और ये सरकारी खजाने में जाता था।अकाल से निपटने के लिये सरकारी अनाज गोदाम हमेशा से रहे हैं जिनसे जनता को संकट के समय मुफ्त अन्न मिल सके।
अन्न बहुत जरूरी है।
ये बकवास मैंने बहुत सुनी है कि किसान अन्नदाता है या नहीं और इस पर मेरे अपने विचार हैं।
किसान को अन्नदाता आप मानो या न मानो,
अगर आपके क्षेत्र का किसान धान गेंहू दाल सरसों को छोड़ कर पिपरमेंट पैदा करके बेचने लगेगा तो मुंह बा के रह जाओगे।
बहुत से लोग कैश क्रॉप का लालच छोड़ कर भी गेंहू धान करते हैं, वो किसान वाकई सम्मान के पात्र हैं।
दूसरा असली फर्जी किसान के बारे में।
जोतदार मुख्य रूप से तीन तरह के होते हैं।
पहले वो जिनके नाम खेत है और वो ही उस खेत पर खुद ही खेती कर रहे हों।
दूसरे वो लोग जो बटाई पर खेती करवाते हैं।खाद बीज का पैसा अपने बटाईदार को देते हैं।बटाईदार उनकी फसल की देखभाल करता है और इस एवज में आधी फसल लेता है।
तीसरे वो लोग जो अपनी जमीन को दूसरे को बलकट पर उठा देते हैं।
बलकट मतलब किराये पर।
जैसे मैं अपनी एक बीघा जमीन किसी दूसरे किसान को एक साल के लिये दस हजार रूपये लेकर दे दूं और वो उस पर कुछ भी फसल करे और बेचे मुझे मतलब नहीं।
इसके अलावा चौथी प्राणी उन खेतिहर मजदूरों की भी होती है जिनके खुद खेत नहीं होते लेकिन जो खेतों पर काम करते हैं।
तो वो लोग तो किसान हैं ही, जो अपनी जमीन पर स्वयं खेती कर रहे हैं। बटाई पर उठाने वाले को भी किसान मान लो, पैसा तो लगा ही रहा है वो भी। बटाईदार तो किसान है ही।
खेतिहर मजदूर भी किसान ही है।
पर वो लोग किसान तो बिल्कुल नहीं हैं जो अपनी खेतिहर जमीन को दूसरे किसानों को खेती के लिये किराये पर देकर पैसा कमाते हैं।
किसान आंदोलन में चाहे पुराना हो या नया, इस किस्म के लोग ही दिखे मुझे जिन्हें खेती से कोई मतलब नहीं। बस खेत हैं इनके नाम।
ये सब उपद्रवी ही हैं।
असली खाद्यान्न किसान आज भी सम्मान का पात्र है क्योंकि वो जोखिम उठा कर अन्न की खेती कर रहा है।कल ही ओले पड़े हैं मेरी तरफ।
फसल तो नष्ट हुई ही, फसल बीमा कंपनी का हिसाब न पूंछे तो ही बेहतर।
आपके अपने तर्क हो सकते हैं कि किसान अपनी फसल के पैसे लेता है तो अन्नदाता कह के सम्मान क्यों करें?
पर मुझे ये कुतर्क ही लगता है।
ऐसे फिर हम किसी शिक्षक का सम्मान क्यों करें?
पैसे तो वो भी लेता ही है न?
सैनिक का सम्मान क्यों करें ? वो भी पैसे तो लेता ही है न?
ये सैनिकों की बात कोई लिख भी देगा तो लोग पीछे पड़ जायेंगे।।
किसानी निश्चित आमदनी का सौदा नहीं है। कल ही ओले पड़े हैं मेरे यहां।
![](https://exxcricketer.com/wp-content/uploads/2024/02/IMG-20240221-WA0003-1-1024x768.jpg)
किसानी कॉर्पोरेट क्षेत्र की नौकरी नहीं है कि किसी की नौकरी छूटने या लगने से समाज पर प्रभाव न पड़े। एक साल की भी फसल खराब होने से पूरे समाज पर फर्क पड़ता है।
और अंत में!
किसान अन्नदाता हैं या नहीं, मैं नहीं जानता पर अन्न उपजाने वाले किसान का सम्मान करना तो बनता ही है।क्यों? ये तब समझोगे जब तुम्हारे क्षेत्र में धान गेंहूं की जगह नील और पिपरमेंट की खेती होने लगेगी। खाद्यान्न उपजाने वाले किसान को अन्नदाता भले ही न कहो, उसका सम्मान तो कर ही लो।
विपुल मिश्रा
सर्वाधिकार सुरक्षित- Exxcricketer.com
बढ़िया, बहुत बढ़िया