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अपूर्व आरती (प्रेम कहानी)

प्रस्तुति -विपुल मिश्रा

आरती एक लगभग 24 25 साल की सामान्य शक्ल सूरत की मध्यवर्गीय लड़की है, जिसके माता पिता खत्म हो चुके हैं और वो एक पुरानी लाइब्रेरी में असिस्टेंट लाइब्रेरियन के रूप में नौकरी करती है।

उस लाइब्रेरी में एक  खुशमिजाज बुजुर्ग मिस्टर ईश्वर अक्सर आता रहता है जो आरती को काफी पहले से जानता है।वो अकेला रहता है।आरती उसके छोटे मोटे काम कर देती है और वो आरती को अपनी बेटी की तरह ट्रीट करता है, क्योंकि उसकी आरती जितनी बड़ी बेटी एक बीमारी से मर गई थी जो आरती की क्लासमेट हुआ करती थी। मिस्टर ईश्वर का उसी शहर में मकान है जिसमें उसने एक शौकिया लाइब्रेरी उसने खोल ली है।आरती को वो अपनी लाइब्रेरी की देखभाल के लिये बुलाता है और भुगतान भी करता है। एक तरह से ये आरती का पार्ट टाइम जॉब है।

आरती का एक ब्वॉयफ्रेंड सतीश है जो स्मार्ट और हैंडसम है और सिविल सेवा की तैयारी कर रहा है, और उसके मां बाप आईएएस अफसर हैं।

आरती को खुद नहीं पता कि सतीश और वो दोनों एक साथ कब आये। सतीश के माता पिता आरती को बहुत पसंद नहीं करते। सतीश में सब क्वालिटी हैं, पर वो अपने मां बाप के आगे दब्बू है।जल्दी कोई निर्णय नहीं ले पाता।

एक दिन वो मिस्टर ईश्वर मर जाते हैं जिनकी लाइब्रेरी में आरती पार्ट टाइम जॉब करती थी।

और आरती को मिस्टर ईश्वर की वसीयत उनके वकील से पता चलती है कि मिस्टर ईश्वर अपने दो खंड के मकान का नीचे का हिस्सा लाइब्रेरी सहित आरती के नाम कर गए हैं और कुछ रुपये भी आरती को वसीयत में दिये।

शेष मकान और अपने बाकी सारे पैसे वो अपने एक भांजे अपूर्व के नाम कर गए हैं जो उनकी सगी बहन का लड़का है जो उनकी एकमात्र जीवित रिश्तेदार थीं और दूसरे शहर में रहती हैं।

आरती को ईश्वर के मकान की चाबी मिल जाती है और वो अब उसमें रहने लगती है क्योंकि पहले वो किराये पर रहती है। साथ ही लाइब्रेरी चलाने लगती है। क्योंकि वसीयत में आरती के लिये ईश्वर ऐसा करने को कह जाते हैं।

काफी दिनों तक अपूर्व नामका ईश्वर का भांजा अपने मामा के मकान में कब्जा लेने नहीं आता है और आरती निश्चिंत हो जाती है कि अब वही पूरे मकान की मालकिन है जो बहुत पॉश लोकेशन में है।

आरती सतीश को पसंद करती है और सोचती है कि अब उसके मां बाप आरती को पसंद कर लेंगे क्योंकि प्राइम लोकेशन के मकान से उसकी हैसियत बढ़ गई है।

सतीश के मां बाप आरती को एक फैमिली फंक्शन में बुलाते हैं। आरती को सतीश बताता है कि शायद उनकी शादी भी तय हो जाये यहां।।

पर आरती से  यहां पर सतीश के मां बाप अच्छे से पेश नहीं आते। आरती बहुत अपमानित महसूस करती है।

सतीश उसे बचाता भी नहीं।

आरती बहुत व्यथित होकर उस अपने घर लौटती है और उसे तब वहां अपूर्व मिलता है जो लगभग सतीश की ही उम्र का एक साधारण सा लड़का है। जो सतीश जितना हैंडसम तो नहीं पर,फिर भी बहुतों से स्मार्ट है

 अपूर्व बताता है कि उसे अभी अभी नौकरी से निकाला गया है और तब वो अपने मामा के मकान और बैंक के पैसों पर क्लेम करने आया है।

अपूर्व उसे बताता है कि वो आर्थिक तंगी में है।उसे पता चल चुका है कि उसके मामा के पास बैंक में  बहुत कैश भी नहीं था।

वो अब अपने मामा से वसीयत में मिले इस प्राइम लोकेशन के मकान को बेचने की फिराक में है, पर उसके पास केवल ऊपरी खंड का मालिकाना हक है।

कोई भी केवल ऊपरी खंड खरीदने का इच्छुक खरीददार उसे मिला नहीं था।

वो आरती से पहली मुलाकात में ही सीधे बात करता है कि या तो वो ही उसका मकान का हिस्सा खरीद ले, या पूरा मकान बिक जाये तो आरती अपना हिस्सा ले ले।

आरती के पास न पूरा मकान खरीदने के पैसे होते हैं, न ही वो अब ये अपना मकान का हिस्सा बेचना चाहती है तो उसे पहली नजर में ही अपूर्व से नफरत सी हो जाती है।

लेकिन आरती अपूर्व को उस मकान के ऊपरी खंड में रहने से नहीं रोक सकती थी जो वसीयत से अपूर्व को मिला था।

अपूर्व कुछ दिनों के लिये ही वहां आया था, पर अचानक उसे पता चलता है कि उसके एक दोस्त विशाल ने इसी शहर में एक बड़ी कंपनी के अफसर के तौर पर ज्वॉइन किया है और विशाल अपने ऑफिस में अपूर्व की एक छोटी सी नौकरी लगवा देता है।

अपूर्व यहीं रहने लगता है।आरती को मिस्टर ईश्वर द्वारा मिले  मकान के ऊपरी खंड में।

अपूर्व, आरती की लाइब्रेरी में भी देखभाल करने पहुंचता है जो उसके मामा की है क्योंकि वसीयत में उसके लिये भी उस लाइब्रेरी का ध्यान रखने को कहा गया है।

हालांकि दोनों के लिये इस लाइब्रेरी को चलाना जरूरी नहीं होता है।ये केवल वसीयत में मिस्टर ईश्वर की इच्छा लिखी होती है कि दोनों मिल कर उसकी लाइब्रेरी चलाते रहें।

पर आरती इसे मिस्टर ईश्वर के अहसान चुकाने को और अपूर्व अपनी मां के कहने पर उनके भाई की यादगार बनाये रखने को चलाते हैं, अपनी असली नौकरियों के अलावा।

अपूर्व को आरती की स्थिति पता चलती है। सतीश और उसके मां बाप का आरती के प्रति व्यवहार देखने को मिलता है और उसे आरती से सहानुभूति होती है।

आरती अपूर्व के प्रति न्यूट्रल ही होती है।

आरती को सतीश से शादी करवाने के नाम पर सतीश के अफसर मां बाप बार बार जलील करते हैं और एक रात जब नशे में सतीश आरती के साथ दुर्व्यवहार करके उसे सुनसान बीच सड़क पर  उतार देता है तो पीछे से अपनी स्कूटर पर आता अपूर्व उसे संभाल कर घर पहुंचा देता है।

अपूर्व इस घटना के बारे में अगले दिन आरती से कुछ बात भी नहीं करता, पर आरती स्वयं में लज्जित होती है।

अपूर्व को पता लगता है कि आरती के मां बाप खत्म हो चुके हैं और मरने के पहले घर बार बेच गए थे कर्ज के कारण। आरती इसके पहले किराए के मकान में रहती थी। आरती की भी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। इस मकान के अलावा उसके पास कोई जगह रहने को नहीं है और उसका कोई है भी नहीं।

आरती ये मकान बेच के कहीं जाना नहीं चाहती।उसकी असली लाइब्रेरी जहां वो नौकरी करती है वहां भी उसकी सेलरी कोई खास नहीं है। और यहां तो वो खुद जैसे तैसे लाइब्रेरी मेंटेन करे है।

वहीं आरती को अपूर्व के बारे में पता चलता है कि वो भी सतीश की तरह अपने मां बाप का इकलौता बेटा है। उसके मां बाप न बहुत अमीर न बहुत गरीब बस,साधारण से लोग हैं।पढ़ाई में बहुत खास नहीं रहा पर नौकरी में मेहनत करने की पहचान रही है। इस मकान को बेचने से उसके दिन बहुर जायेंगे।

अपनी होने वाली बहू के रूप में एक रोज एक फंक्शन में सतीश और उसके मां बाप आरती को ले जाते हैं जहां अपूर्व भी होता है।

वहां सतीश के परिवार वाले आरती को जलील करते हैं तब अपूर्व आरती के लिये खड़ा हो जाता है और सतीश को उसकी बेरोजगारी और मां बाप के पैसों पर पलने पर जलील करता है और खुल के कहता है कि मां बाप के बाद वो आरती के टुकड़ों पर पलेगा जो नौकरी करती है और इतने आलीशान मकान की मालकिन है।

सतीश और उसके घर वाले आरती से संबंध विच्छेद करके चले जाते हैं।

आरती अपूर्व से नाराज़ होती है कि उसने आरती का जीवन खराब कर दिया और उसे थप्पड़ मार देती है।

अपूर्व उसी रोज वो शहर छोड़ के चला जाता है और सुबह आरती को पता चलता है कि अपूर्व अपने हिस्से का पूरा मकान उसके नाम कर गया है और अपने मामा से मिले सारे पैसे उसके अलमारी में रख के गया है।

आरती सतीश और अपूर्व दोनों से ही खुद को बेइज्जत सी महसूस करती है।

थोड़ा खुद को कुछ दिन संभालने के बाद आरती को लगता है कि वो अपूर्व को चाहने लगी थी पर कभी उसने खुद न स्वीकारा , सतीश के कारण।

आरती अपूर्व से संपर्क करने का प्रयास करती है और विशाल से अपूर्व का पता लेकर अपूर्व के घर पहुंचती है तो उसे पता चलता है कि अपूर्व इतना साधारण आर्थिक स्थिति का भी नहीं है।

उसके पिता रिटायर्ड पीसीएस अफसर हैं और अपूर्व शतरंज का एक अच्छा खिलाड़ी है पर अपने पिता से झगड़े के कारण अलग रहता है। उसकी एक गर्लफ्रेंड भी है जो आरती से देखने में अच्छी है और बैंक में काम करती है।

ये बातें उसे अपूर्व की मां बताती है जब वो अपूर्व के घर पहुंचती है।अपूर्व की मां आरती को बताती है कि उसके भाई ईश्वर ने आरती को अपूर्व के लिए बहुत पहले से पसंद कर रखा था और इसीलिए उन्होंने आरती और अपूर्व दोनों के नाम एकसाथ मकान और लाइब्रेरी की थी और लाइब्रेरी दोनों के साथ मिलकर चलाने की बात वसीयत में की थी।

अपूर्व अपने मामा का बहुत सम्मान करता था, पर उसे आरती वाली बात मंजूर नहीं थी।

अपनी गर्लफ्रेंड के कारण वो आरती के साथ रहने नहीं जा रहा था।

पर उसकी मां को अपूर्व की गर्लफ्रेंड पसंद नहीं थी और इसलिए उसने अपूर्व से एक बार खुद आरती के शहर जाकर एक बार रहने को दबाव डाला था।

अपूर्व अपने मामा की लाइब्रेरी बंद भी नहीं होने देना चाहता था।अपनी मां को नाराज नहीं करना चाहता था और अपनी मामा से आरती की इतनी तारीफ सुन चुका था कि आरती को आजमाना चाहता था,इसलिए मकान बेचने की बात की थी।

आरती को उस क्षण लगा कि मिस्टर ईश्वर वाकई उसके लिए ईश्वर ही थे, उसे सब कुछ दे के जा रहे रहे थे और वो सतीश एंड फैमिली के पीछे पागल थी।

अपूर्व की मां कहती है कि आरती उन्हें अपनी बहू के रूप में स्वीकार है क्योंकि उनके भाई की पसंद आज तक गलत नहीं हुई, पर अपूर्व का प्यार उसे ही जीतना है।

उधर अपूर्व खुद मन ही मन आरती को चाहने लगा था, पर उसे आरती द्वारा सबके सामने अपना अपमान खराब लगा था।

आरती अपूर्व को ढूंढते ढूंढते एक रेस्टोरेंट में पहुंचती है जहां अपूर्व अपनी गर्लफ्रेंड ज्योति के साथ बैठा होता है।

आरती बेहिचक उससे वहीं पर माफी मांगती है और कहती है कि उसे न तो अपूर्व के पैसे चाहिए, न घर।।

बस वो उसे माफ कर दे।

अपूर्व की गर्लफ्रेंड के लिए ये भौचक्का कर देने वाली बात होती है।

अपूर्व सीधे शब्दों में आरती को कह देता है कि वो अब दोबारा आरती के शहर नहीं जायेगा। आरती उस मकान और उस लाइब्रेरी का कुछ भी कर सकती है। पैसे अगर वापस करना चाहे तो करे, नहीं करना चाहे तो भी कोई बात नहीं पर वो ऐसी लड़की को अपनी आंखों के आगे बर्दाश्त नहीं कर पा रहा जो खुद को उन लोगों से रोज जलील करवाती है जो उसका फ़ायदा उठाते हैं और उन लोगों को सरेआम जलील करती है जो उसका भला चाहते हैं।

अपूर्व आरती से उसके शहर वापस जाने को कहता है।

अपूर्व और उसके मां बाप अलग घरों में रहते हैं। आरती अपूर्व की मां को पूरी बात बताती है। और अपने शहर लौट आती है।

कुछ दिनों में अपूर्व के मां बाप किसी काम से कुछ दिनों के लिए आरती के शहर पहुंचते हैं और आरती के कहने पर मकान के अपूर्व वाले खंड में रहने लगते हैं।

आरती उनका बहुत ध्यान रखती है।और अपूर्व के मां बाप को भी वो अच्छी लगती है।

उन्हें आसपास से भी आरती की तारीफें ही सुनने को मिलती हैं।

एक रोज बाजार में सतीश की मां आरती और अपूर्व की मां से टकराते हैं।। सतीश की मां आरती को जलील करने की कोशिश करती है, पर अपूर्व की मां उल्टा उन्हें बेइज्जत कर देती है।

अपूर्व एक रोज अपनी गर्लफ्रेंड और दोस्तों के साथ पार्टी करने जाता है रास्ते में एक एक्सीडेंट के कारण सबसे बिछड़ जाता है।

वो अस्पताल में भर्ती होता है और उसका कोई दोस्त या गर्लफ्रेंड साथ नहीं होते तब उसे अपने मां बाप और आरती की याद आती है।

उसको पता चलता है कि उसके मां बाप आरती के पास ही हैं। वो आरती के घर पहुंचता है, जहां शादी का माहौल सा होता है।

आरती उसे बहुत ज्यादा सजी धजी तैयार दिखती है।

उसे लगता है कि आज आरती की  सगाई है।

वो आरती को बीच में रोक कर माफी मांगता है और कहता है कि वो पहले दिन से आरती को पसंद करता था , वो बस रेस्टोरेंट में थोड़ा गुस्सा था, लेकिन आरती को कम से कम उसे मनाने की कोशिश तो करनी चाहिए थी।

वो मान जाता।

तब आरती हंसती है और अपूर्व के माता पिता पीछे से आकर बताते हैं कि आज उनकी शादी की तीसवीं सालगिरह है जिसे वो मना रहे थे।

और लगे हाथों वो अपूर्व और आरती की सगाई भी कर सकते हैं।

समाप्त।

विपुल मिश्रा।

सर्वाधिकार सुरक्षित- Exxcricketer.com


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