आपका -विपुल
कुछ कहूंगा जो ज्यादातर को अच्छा नहीं लगेगा।
भारतीय खिलाड़ी इस साल wtc और एकदिवसीय विश्वकप जीत जायें तो इस लेख के लिए मैं माफी मांगूंगा और जीत की खुशी में पटाखे भी छुड़ाऊंगा।क्योंकि मेरे लिए ये दोनों खिताब महत्वपूर्ण हैं।
पर मुझे लगता है कि बीसीसीआई और भारतीय खिलाड़ियों के लिएये दोनों ही खिताब महत्वपूर्ण नहीं हैं।
बीसीसीआई और भारतीय खिलाड़ियों के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण आईपीएल है । यहां मैं साफ कर दूं कि मैं आईपीएल के खिलाफ बिलकुल नहीं हूं। पिछ्ले 15 सालों में आईपीएल ने भारतीय क्रिकेट के लिए बहुत किया है कई घरेलू खिलाड़ियों की जिन्दगी बनाई है। बीसीसीआई को वैश्विक स्तर पर मजबूत किया है।
पर जैसा कि हर समाज, हर घर, हर जगह होता है सबसे कमाऊ पूत होने के बाद भी आपको अपने घर के समाज के कुछ नियम मानने ही पड़ते हैं।
पर यहां कुछ अजीब सा देख रहे हैं हम।
इंपैक्ट प्लेयर का नियम क्या आईसीसी के अंतर्राष्ट्रीय मैचों में है?
नहीं है।
दो दो स्ट्रेटेजिक टाइम आउट ?
क्या आईसीसी के अंतरराष्ट्रीय टी 20 मैचों में होते हैं?
हर विकेट गिरने के बाद हर टीम के चार चिलनटू बोतलों की क्रेट लिए मैदान में घुसते चले जाते हैं।भले ही ओवर में चार बार विकेट गिरे।हर बार ये तमाशा देखेंगे आप ।
मैदान में सीनियर खिलाड़ियों को तनाव भरे माहौल में मीटिंग करते देखे अरसा हो गया।
सारे निर्णय ड्रेसिंग रूम से आते हैं।
खिलाड़ियों को आईपीएल में हर चौके हर छक्के पर इनाम।
कल 9 रन बनाने वाले पूरन और 3 चौके मारने वाले विराट भी इनाम ले गए।
मतलब खिलाड़ियों को इस सीमा तक आराम तलबी मिली हुई है।
फिर इतनी अय्याशी के बाद जब ये इंटरनेशनल मैचों में शाहीन अफरीदी को खेलते हैं तो मुंहभरा गिरते हैं।
और बीसीसीआई को भी मतलब नहीं कि अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ियों के लिये क्या मानदंड हैं।
ज्यादा दिन नहीं हुए रबाडा को केवल इसलिए आईसीसी ने एक मैच से बैन कर दिया था कि जश्न मनाते हुए वो स्मिथ से टकरा गया था।
धोखे से।
यहां आपस में गुत्थमगुत्था होने की नौबत है और बीसीसीआई खिलाड़ियों से केवल अर्थदंड भरवा कर छोड़ रही है।
और क्या ये पहला प्रकरण है?
राजस्थान के खिलाफ मैच में कप्तान कूल का तमगा लिए घूम रहे धोनी बीच मैदान में आकर अंपायर्स से लड़ गए थे और कुछ नहीं हुआ था उनका।
ये तो मापदंड हैं हमारे।
इंग्लैंड की अपने यहां की टेस्ट सीरीज याद करो, विराट कोहली नितिन मेनन को शब्दशः धमका ही रहे थे।
आईपीएल में भी चेन्नई, मुंबई, बेंगलुरु टीमों के लिए अलग मानदंड होते हैं, राजस्थान, पंजाब के लिए अलग।
धोनी की डिमांड पर दो बार गेंद बदलने वाले अंपायरों ने संजू की डिमांड पर एक बार भी गेंद नहीं बदली थी, वो मैच भी याद है मुझे।
लेकिन बात यहां इससे बड़ी है।
एकदिवसीय क्रिकेट मृतप्राय है और कोई चमन ही होगा जो इससे असहमत होगा।
विश्वकप को छोड़ कर द्विपक्षीय एकदिवसीय श्रृंखलाओं की अहमियत नहीं रही थोड़ी बहुत वकत चैंपियंस ट्रॉफी की है बस।
चेस मास्टर का तमगा लिए बैठे कोहली ने 2017 में केवल अपने तमगे को बरकरार रखने के लिए पहले गेंदबाजी ली फाइनल में और मुंह की खाए।
2019 विश्वकप तो भारतीय खिलाड़ियों के आपसी विवादों की भेंट में ही चढ़ गया।2023 विश्वकप में आपको वही उबाऊ चेहरे दिखेंगे जो 2008 से खेल रहे हैं, बॉलिंग करते नहीं और स्ट्राइक रेट जिनके लिए ओवररेटेड है।
मुझे जीतते नहीं दिख रहे।
टी 20 विश्वकप तो भूल ही जाओ।
152/0 ,173/0 का मजाक अभी चल ही रहा है।
टेस्ट की बात करोगे?
न्यूजीलैंड में आखिरी बार कब जीते थे? याद नहीं
इंग्लैंड में आखिरी सीरीज विन 2006 में थी शायद।अभी 2-2 थी।पहले 1-4 से हारे थे
कोहली के नेतृत्व में।दक्षिण अफ्रीका में दो बार 1- 2 से हारे थे कोहली के नेतृत्व में।
ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ ज़रूर हम जीते हैं दो बार उनके घर में, क्रेडिट है।पर इसके अलावा?
वेस्टइंडीज कुछ खास है नहीं । बांग्लादेश के खिलाफ वनडे सीरीज हार आए, टेस्ट गिरते पड़ते जीते।
मुझे भी अच्छा लगता अगर इशांत, पुजारा, अश्विन, रहाणे wtc खिताब जीतते, पर संभव न हो पाया।
और जिस साल दो दो महत्वपूर्ण विश्वकप हैं उस साल बीसीसीआई के खिलाड़ियों को चोट आईपीएल में लग रही है, ये बीसीसीआई का मैनेजमेंट है।
दीपक चाहर एनसीए में पड़े रहते हैं बुमराह आईपीएल वंडर हैं। राहुल कल चोट खा गए,वो विकेटकीपर है भाई आपका wtc में, ये मजाक नहीं है।
क्या बोलें?
बहुतों को खराब लगेगा, पर मेरा स्पष्ट मानना है कि टेस्ट टीम में तो रोहित विराट की बहुत जरूरत है और राहुल की जगह भी है।
पर एकदिवसीय और टी 20 विश्वकप आप तब तक नहीं जीत सकते जब तक रोहित विराट और राहुल टीम में रहेंगे।
ये केवल गुटबंदी करेंगे और अपने लाभ के लिए दूसरे की जड़ काटेंगे।
आपका -विपुल
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