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कल होली है।धुलेंडी ।साल में एक बार आने वाला रंगों और उल्लास का त्योहार ,हर आदमी अपने घर पर अपने परिवार में मनाना चाहता है ये त्यौहार।पर कुछ लोग नहीं पहुंच पाते अपने घर ।कोई नौकरी के चक्कर मे, कोई यात्रा का साधन न मिल पाने से, कोई अस्पताल में होने से या किसी भी अन्य कारण से

बहुत खराब लगता है ,जब आप घर नहीं पहुँच पाते, या पिछली होली पर आप अपने पैतृक घर मे सब लोगों के साथ थे और अबकी बार वहाँ से बहुत दूर शहर में आपके नए मकान में अकेले।
या पिछली होली में जीवित माता पिता या भाई इस बार प्रभु चरणों में हों
आप रो नहीं सकते क्योंकि बच्चे आपको देख रहे हैं।

किसी भी तरह के ग्लैमर ,धूम धड़ाके या पार्टी में आपका मन नहीं लगता, ज़िम्मेदारी पूरी करने के हिसाब से बच्चों के कपड़े ,रंग ,पिचकारी लानी पड़ती हैं ।मन बहुत उदास हो रहा होता है, तभी दो गौरेया के जोड़े आते हैं औरआपके सर के ऊपर लड़ने लगते हैं।
दरअसल ,उन्हें अपना घोंसला बनाना है।

दोनों जोड़ों की पसन्द एक टूटा हुआ मिट्टी के मटके का टुकड़ा है ,जिसे आपके बच्चे ने पता नहीं कब हैंगिंग गमले के शौक में आपकी खिड़की के पास लटका दिया था ऐसे ही।
बहुत देर लड़ाई होती है।एक जोड़ा हार मान के चला जाता है
दूसरे जोड़े का नर ,बड़ी बेशर्मी से आपके टेबल पर आकर आपको घूरता है।
उसे घर बनाना है अपनी अगली पीढ़ी के लिये, तभी चिड़िया उसके साथ रहेगी।घोंसला बनाने का काम नर का बाकी सब चिड़िया का।वो आपकी आंखों में देख देख उड़ जाता है ,फिर कुछ तिनके लेकर वापस आता है वो इधर उधर से सामान जुटा के घोंसले का निर्माण करने लगता है।चिड़िया भी हाथ बंटा रही है उसका।

आपको कुछ अच्छा लगता है, लेकिन हंसी तब आती है जब चिड़ियों का वो जोड़ा जो हार मानकर चला गया था, वापस लौटता है, उन्होंने अपना अड्डा चुन लिया है ,जो आपके पुराने ज़रूरी , गैर ज़रूरी कागजों के बीच है ।
नरम ,मुलायम।श्रीमती जी को उनका ये विचार पसन्द नहीं आता और आपको हिदायत दे जाती हैं कि
कागज़ साफ करो अपने ,यहाँ घोंसला लग गया तो तुम्हारी ***।
आप उन चिड़ियों को भगाने का पूरा प्रयास करते हैं।
(झाड़ू लेकर हश हश करने को अगर पूरा प्रयास माना जाए तो )लेकिन वो बला की बेशर्म चिड़ियां आपको तनिक भी भाव नहीं देतीं ।थोड़ी देर बाद आप थक जाते हैं ,चिड़ियां जीत जाती हैं।

अब आपको अपनी डांट पड़ने का इंतज़ार है।आप चुपचाप कुछ लिख रहे होते हैं शाम की चाय का इंतज़ार करते हुए ,तब पडोसनों से अपनी सास की भरपूर बुराई करने और आप जैसे चिलगोजे की झूठी तारीफ करके लौटी घर की मालकिन आपको घूरती हैं ,घोंसला बना तो नही ?आप फिर झाड़ू लेकर जाते हैं।
लेकिन तभी पीछे से आवाज आती है ,रुको।


बना लेने दो
हमारी तरह
👪
आप देखते हैं ,आपकी श्रीमती जी की आंखों में कहे अनकहे अनेकों भाव हैं ,जिन्हें आप और केवल आप महसूस कर सकते हैं।
अचानक आप भी खुद को नही रोक पाते ।आप की आंखों में आँसू हैं।
वो बच्चों की परवाह न करके आपसे लिपट जाती हैं।

आप दोनों फूट फूटकर रोने लगते हैं ।बच्चे परेशान हैं।
बड़ी बेटी चुपचाप पानी दो गिलास लाती है और रख देती है ।और दूसरी बेटी को जब कुछ समझ नहीं आता तो वो अचानक नीले रंग का गुलाल का पैकेट खोलने का प्रयास करती है।अजीब सी आवाज़ के साथ पॉलिथीन फट जाती है और उसका चेहरा नीला हो जाता है।

बड़ी बेटी की हंसी छूट जाती है और छोटी वाली चिढ़कर उसके ऊपर पूरी पॉलिथीन गुलाल की उड़ेल देती है।दोनों में युद्ध शुरू और ये देख आप दोनों भी मुस्कुरा उठते हैं।
अब डैडी हमेशा तो नहीं रहने वाले थे ,होली बाद घर चलेंगे।
आपके कानो में आवाज गिरती है और आपके कॉलर के अंदर गुलाल गिरता है।
आपको अब महसूस होता है ,त्यौहार क्या होता है अपनों के साथ ,अपने घर मे ,जो घर आपका
है ,आपने बनाया है ।ये उमंग ये तरंग वाली यादें जो आपके पुश्तैनी घर मे कई लोगों ने सहेजी थीं ,अब आपके इस मकान में बनेंगी ।तब ये मकान से घर बनेगा।
एक सत्यकथा

होली की शुभकामनाएं
दिल से
🙏🙏🙏🙏🙏

विपुल मिश्रा

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