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हमास का इजरायल पर हमला।

आपका -विपुल 

कितना भी ताकतवर देश हो, ऐसे अकस्मात और सुनियोजित हमले से हतप्रभ रह ही जाता है, जैसा हमास ने इजरायल पर किया है।

भारत का 26/11अमेरिका का 9/11 उदाहरण है।

मुंबई में 2008 में हम दो दिन कुछ करने की स्थिति में थे ही नहीं।

कंधार में आतंकवादी छोड़ने पड़े थे।

अमेरिका ने अभी ईरान के जब्त पैसे लौटा दिए थे कुछ बंधकों के लिए।

तो इजरायल बहुत ताकतवर है, पर यहां वो हड़बड़ा ही गया। ये हमला उसके लिए अप्रत्याशित था। बहुत अप्रत्याशित ।

जरा सोचिए, कुछ सशस्त्र लड़ाके आपके शहरों में घुस के औरतों बच्चों को ले जाएं, बदसलूकी करें, कुछ कमांडर पकड़ लें और आपके इंटेलिजेंस को पता ही न चले।

यही नहीं समुद्र, आकाश और जमीन हर तरफ से एक साथ आक्रमण हो, तो इजरायल इस अप्रत्याशित वार से फंस तो गया ही।

जो थ्योरी ये बता रहे हैं कि अमेरिका को जानकारी थी, अमेरिका ने करवाया, गलत लगता है मुझे।

इजरायल अमेरिका का दत्तक पुत्र है।

मेरा स्पष्ट मानना है।

वो नहीं करेगा।

इजरायल अमेरिका का अघोषित 51वां राज्य है जो तेल से संपन्न पश्चिम एशिया को नियंत्रित करने का औजार है। दूसरी थ्योरी ये कि इजरायल ने खुद हमला करवाया कि फिलिस्तीन पूरा फिर कब्जा कर ले।

ये थ्योरी फिलिस्तीन वाले चालू करे हैं और इतनी बकवास है कि बात करने के काबिल नहीं।

सऊदी पर आएं।

अभी हाल में सऊदी और इजरायल की कुछ डील हुई अमेरिका की मध्यस्थता में।

इसके पहले चीन की मध्यस्थता में ईरान और सऊदी अरब की डील हुई थी।

दोनों देश मुस्लिमों के खलीफा बनना चाहते हैं , जो टर्की के एरगोडेन भी खुद ही बनना चाहते हैं।

यूक्रेन युद्ध के दौरान ईरान का रुस को ड्रोन देना मुझे आज तक गले नहीं उतरा।

रुस सबसे बड़े सैन्य उपकरणों के निर्माताओं में से एक महाशक्ति है।

ये निश्चित तौर पर धोखा था।

ड्रोन और टेक्नोलॉजी रुस की ही थी।

रुस ने इरान में अपने सैन्य उपकरण और सैनिक स्थापित कर दिए।

सीरिया में पहले से थे।

यूक्रेन युद्ध के दौरान नाटो से खार खाए बैठे पुतिन का काम लग रहा मुझे ।

ये तो सब जानते हैं कि हमास के लड़ाकों को ईरान में प्रशिक्षण दिया गया। हिजबुल्लाह भी ईरान का है।

अमेरिका को औकात बताने की चालें चली गईं।

इजरायल को टारगेट कर के।

सऊदी को नीचा भी दिखाना था ईरान के आगे।

पाकिस्तान से रुस के संबंध खराब नहीं हैं अभी और बड़ी बात नहीं कि कुछ पाकिस्तानी सेना की संलिप्तता भी निकले इसमें।

फ्रांस के दंगे और पश्चिम अफ्रीका में फ्रांस के सैन्य अड्डे वाले देशों में सत्ता परिर्वतन भी शायद प्लान का हिस्सा था।

फ्रांस अमेरिका और ब्रिटेन के बाद सबसे बड़ा सहयोगी माना जाता था इजरायल का।

उसके सैन्य अड्डे इजरायल के भी काम आते थे

ब्रिटेन के सैन्य अड्डे उधर शायद नहीं हैं।

इजरायल में भितरघात के अलावा और कोई कारण नहीं समझ आता कि उनके सारे सुरक्षा उपायों को नष्ट करके कोई उनके देश में घुस जाए ऐसे।

इधर इजरायली थोड़े मगरूर भी हो रखे थे।

ये केवल इंटेलिजेंस फेलियर नहीं था।

इजरायल के कुछ गद्दारों की मिलीभगत से सफल हुआ एक वर्षों पुराना और पुख्ता प्लान था।

इजरायल और हमास हिजबुल्ला की लड़ाई में कोई देश राज्य शायद ही सामने आए।

अमेरिका चुप नहीं बैठेगा।

वैसे रुस चाहता यही है कि कुछ चिंगारी बढ़े और अमेरिका इंवॉल्व हो।

अफ्रीकी देश तुरंत इंवॉल्व होंगे।

रूसी गेंहू फ्री में मिल रहा है उन्हें।

और अंत में एक खास बात

लड़े कोई भी

जीते कोई भी

हारे कोई भी

वास्तविक विजेता  चीन ही रहेगा।

कैसे?

सोचिए

🙏🙏🙏🙏🙏

आपका -विपुल

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