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विजेता कभी साधारण नहीं होते

आपका -विपुल 

एक हार केवल एक हार ही होती है और एक जीत केवल एक जीत ही होती है।

हार और जीत अपने आप में विशुद्ध होती हैं।

हार को जीत का रूप देने के बहाने बनाए जाते हैं लेकिन वो केवल बहाने ही होते हैं।

जीत के कारण गिनाए जाते हैं जो हमेशा सही ही नहीं होते।

कई बार कोई हार, दरअसल प्रतिद्वंदी की जीत ज्यादा होती है और कई बार कोई जीत, जीत से ज्यादा प्रतिद्वंदी की हार होती है।

पर फिर भी हार और जीत अपने आप में अद्वितीय होती हैं।

बात मैं 19 नवंबर 2023 दिन रविवार को गुजरात के मोटेरा के नरेंद्र मोदी स्टेडियम में हुए आईसीसी एकदिवसीय विश्वकप क्रिकेट 2023 के उस फाइनल मैच के बारे में करना चाहता हूं जो भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच हुआ।

पहली बात जो अपने दिमाग से आप निकाल दो कि भारत इस टूर्नामेंट की सर्वश्रेष्ठ टीम थी। बिलकुल नहीं थी।

सर्वश्रेष्ठ टीम वो थी जो दस टीमों के इस टूर्नामेंट में फाइनल मैच जीत कर 2023 का एकदिवसीय विश्वकप खिताब अपने नाम कर चुकी है।

पैट कमिंस की ऑस्ट्रेलिया।

अगर रोहित शर्मा की भारतीय क्रिकेट टीम को आप इस टूर्नामेंट की सर्वश्रेष्ठ टीम मानते हैं तो जरा गौर करें!

पैट कमिंस की ऑस्ट्रेलिया टीम ने रविवार को हुए विश्वकप फाइनल में केवल हराया ही नहीं!

बेइज्जत किया है।

टूर्नामेंट के सबसे ज्यादा रन बनाने वाले खिलाड़ी जब 16 ओवर तक 1 भी बाउंड्री न बना पाएं, नए मिस्टर 360 डिग्री को जब कमिंस के गेंदबाज बच्चों की तरह क्रिकेट खिलाएं,जब आपके नंबर 1 आल राउंडर न बैटिंग में, न गेंदबाजी में कुछ उखाड़ पाएं और जब आपका विशुद्ध स्पिनर एकदम फीका दिखने लगे तब ये बेइज्जती से हराना ही हुआ।

भारत इस टूर्नामेंट की दूसरे नंबर की सर्वश्रेष्ठ टीम थी। सर्वश्रेष्ठ टीम तो खिताब ले उड़ी।

विराट कोहली ने आईसीसी एकदिवसीय विश्वकप 2023 टूर्नामेंट में सबसे ज्यादा रन बनाए और मोहम्मद शमी ने टूर्नामेंट में सबसे ज्यादा विकेट लिए, इसके बावजूद अगर भारत खिताब नहीं जीत पाया तो फिर से साबित हो गया कि व्यक्तिगत प्रदर्शन कभी भी गारंटी नहीं देते कि आपकी टीम खिताब जीतेगी। एक अच्छी टीम और 11 व्यक्तिगत प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ी दो अलग अलग बातें हैं।

और अच्छे से समझने के लिए आपको थोड़ा पीछे जाना होगा।

अगर कोई ऑस्ट्रेलियन भी ऑस्ट्रेलिया के वनडे खिलाड़ियों की आल टाइम ग्रेट की लिस्ट बनायेगा तो पॉल रिफिल,डेमियन फ्लेमिंग  टॉम मूडी  , ब्रैंडन जूलियन, शेन ली, डारेन लेहमन, और जेम्स फॉकनर जैसे खिलाड़ी शायद ही उस लिस्ट में हों। पर ये सब विश्व कप विजेता खिलाड़ी हैं।

फ्लेमिंग ने लगातार दो विश्वकप सेमीफाइनल 1996 और 1999 में अंतिम ओवर फेंके थे और ये दोनों सेमीफाइनल शायद सारे विश्व कप नॉक आउट मैचों के टॉप रोमांचक मैचों में होंगे।

दोनों में ऑस्ट्रेलिया सफल रहा 

टॉम मूडी जैसे क्रिकेटर एक टीम में आप हमेशा चाहेंगे।

ये तो ऑस्ट्रेलिया की बात रही।

भारत की विश्वकप विजेता टीम में मुनाफ पटेल और सुरेश रैना जैसे टीम मैन खिलाड़ी थे जो शायद भारत की आल टाइम एकादश में न आ पाएं पर अपनी टीम के लिए अपरिहार्य थे।

1996 के श्रीलंका के सफल विश्वकप अभियान में शायद प्रमोद विक्रमसिंहे, कुमार धर्मसेना और  आसंका गुरुसिन्हे हर मैच खेले थे , विश्वकप अभियान में अच्छी भूमिका निभाई थी।आज भी इनमें से कोई बहुत व्यक्तिगत प्रदर्शन के लिए नहीं जाने जाते, पर मौके पर काम आते थे अपनी  टीम के लिए।

केवल कुछ खिलाड़ियों के अच्छे प्रदर्शन ही आपको विश्वकप जिता देते तो 1999 के लांस क्लूजनर जैसा प्रदर्शन तो शायद किसी खिलाड़ी ने किसी विश्वकप में नहीं किया।

8 मैचों में 20.58 के औसत से 17 विकेट और 140 के औसत 122 के स्ट्राइक रेट से 282 रन।

फिर भी दक्षिण अफ्रीका विश्वकप नहीं जीत पाई। खिलाड़ियों के व्यक्तिगत प्रदर्शन से ज्यादा एक टीम के रूप में आप कैसा खेलते हैं, ये विश्वकप जैसे सबसे बड़े टूर्नामेंट में मायने रखता है।एडम जांपा शेन वॉर्न नहीं है, पर अपनी टीम के लिए कुलदीप यादव से तो ज्यादा ही काम आया।

और आपकी टीम में श्रीसंथ, रैना, मुनाफ पटेल, जोगिंदर शर्मा, आर पी सिंह जैसे खिलाड़ियों का होना भी मायने रखता हो, जो भले सर्वश्रेष्ठ न हों, पर टीम हित के लिए खुद को झोंक देने की मंशा रखते हों।।

2007 में तो मुझे याद है, दिनेश कार्तिक तक एक मैच में धोनी को सलाह देने आ रहा था। रोहित को सलाह देते कोहली के अलावा कौन देखा कल?

और बात जब कल के मैच की करें तो पूरी ही कर लें।

कल के मैच में भारत की रणनीति समझ में नहीं आई। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बेटे 

जय शाह बीसीसीआई के सचिव हैं और शायद उनकी ही मंशा थी कि विश्वकप का फाइनल गुजरात में नरेंद्र मोदी के नाम पर बने स्टेडियम में हो और फिर भाजपा आई टी सेल वाले गा पाएं कि भारत नरेंद्र मोदी के नाम पर बने स्टेडियम में विश्वकप जीता। आप विश्वास करें इस स्टेडियम में जिसमें फाइनल हो रहा था, एक तरफ की बाउंड्री मात्र 64 मीटर थी, सबसे ज्यादा 73 मीटर थी शायद। समझ नहीं आ रहा था कि ये आईपीएल मैच की बाउंड्री की दूरी थी या विश्वकप मैच की।

शायद स्टेडियम की दर्शक क्षमता बनाने को ग्राउंड की चौड़ाई कम कर दी गई थी। क्रिकेट से ज्यादा वैसे भी व्यापार महत्वपूर्ण है।

भारत में मुंबई का वानखेड़े और कोलकाता का इडेन गार्डन मैदान अब तक भारत में हुए विश्वकप फाइनल करवाता आया है।

2011 में वानखेड़े में ही गंभीर के जज्बे और धोनी के छक्के से भारत विश्वकप जीता था।

अगर क्रिकेटिया अंधविश्वास भी मानते तो भी  वानखेड़े सही था भारत के लिए।

इसके अलावा जब टीम इंडिया में मुंबई और मुंबई इंडियंस के खिलाड़ी भरे पड़े थे तो शायद होम ग्राउंड का फ़ायदा भी मिलता।

और अब मैच पर आते हैं।

भारतीय टीम के थिंक टैंक ने ने पिच को लेकर वही गलती की जो एक खूबसूरत लड़की अपने को और सुंदर दिखवाने के लिए अपने होंठों या नाक की कॉस्मेटिक सर्जरी करवाने जाती है और एक बेढब नमूना सी दिखने लगती है।

इंग्लैंड के खिलाफ मैच को छोड़ दें तो भारत के गेंदबाजों ने अच्छी बल्लेबाजी पिचों पर भी विपक्षी बल्लेबाजों को तिगनी का नाच नचा दिया था।

क्या जरूरत थी ऐसी पिच की कि आप ही परेशान हो गए?

शुभमन गिल दो बार विश्व टेस्ट चैंपियनशिप फाइनल खेल चुके हैं और कभी काम नहीं आये।

कल पहली बार एकदिवसीय विश्वकप फाइनल खेले और जिम्मेदारी फिर से अपने कंधों पर लेना उचित नहीं समझा। एडम गिलक्रिस्ट ने लगातार 3 विश्वकप फाइनल ओपनर के तौर पर खेले और तीनों में 50 से ज्यादा रन बनाए। दो विश्व टेस्ट चैंपियनशिप फाइनल को मिला लें तो गिल भी तीन विश्वकप फाइनल खेल चुके हैं और सारे फाइनल मिला कर इनके 50 रन होते भी हैं या पता नहीं।

तुलना इसलिए क्योंकि गिल भी गिलक्रिस्ट की तरह ओपनर हैं और गिलक्रिस्ट की तरह जेनरेशन टैलेंट कहे जाते हैं।

रोहित शर्मा शायद भूल गए थे कि वो आईपीएल फाइनल नहीं, एकदिवसीय विश्वकप फाइनल खेल रहे हैं , जो चार साल में एक बार आता है , आईपीएल की तरह हर साल नहीं होता और सामने वो ऑस्ट्रेलिया है जो 91 रनों पर 7 विकेट गिरने के बाद भी 291 रन बना ले गई थी।

ग्लेन मैक्सवेल के  एक ओवर में 10 रन लेने के बाद भी छक्के के लिए गए और ट्रेविस हेड ने एक शानदार कैच पकड़ के कहानी खत्म कर दी।

मैक्सवेल को भी भारतीय बल्लेबाज मोइन अली की तरह हल्के में लेते हैं और मैक्सवेल के वर्तमान गेंदबाजी के शायद सबसे अच्छे आंकड़े भारत के खिलाफ ही हैं। जरूरी नहीं था वो शॉट। पर रोहित हमेशा की तरह आदत से मजबूर थे। रोहित के इसी गंदे शॉट ने दिखा दिया कि उन्हें कभी भी कोहली के जैसा भरोसेमंद क्यों नहीं माना गया था। भारत रोहित के इसी शॉट से इस दोपहर में धीमी होती पिच पर आधा मैच हार गया था। रोहित से अच्छा धीमी पिचों का खिलाड़ी भारत के पास कोई और है नहीं।

और कोहली।

ठीक है कि आपको एंकरिंग का जिम्मा दिया गया, पर क्या एक दो शॉट ऐसे मार के बाउंड्री नहीं ले सकते थे जिन्हें नपा तुला जोखिम कहते हैं

कैलकुलेटिव रिस्क?

हालांकि कोहली गलत समय आउट हुए और उनकी ज्यादा गलती भी नहीं थी पर उनकी और राहुल की साझेदारी शायद भारत की हार की नींव डाल चुकी थी। राहुल भी इतने ज्यादा रक्षात्मक थे कि भारत की 300 रन बनाने की उम्मीदें ही ये पारी समाप्त कर गई।

हालांकि एक कटु सत्य ये भी है कि अगर कोहली और राहुल के अर्धशतक न होते तो भारत शायद 200 पर भी न पहुंचता।

अय्यर को ऑस्ट्रेलियाई बॉलर हमेशा की तरह कच्चा खा गए और जडेजा और सूर्य कुमार यादव कितने बड़े बल्लेबाज हैं, ये स्टार्क एंड कम्पनी ने दिखा ही दिया था।

तो एक तरह से राहुल और कोहली का विकेट बचा कर धीमा खेलना भी तर्कसंगत था क्योंकि उनके बाद नीचे कोई और भरोसेमंद था नहीं।

वो भी जानते थे।

रवींद्र जडेजा एक बल्लेबाज के रूप में लिमिटेड ओवर मैचों में कम ही प्रभावी रहे हैं। यहां इस टूर्नामेंट में न्यूजीलैंड और दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ दो अच्छी पारियां खेले थे, पर फाइनल में कुछ कर न पाए।

सूर्य कुमार यादव को समझ आ गया होगा कि आईपीएल और वनडे इंटरनेशनल क्रिकेट का फर्क होता क्या है?

शॉट लगाना आसान नहीं था, ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाज रंग में थे यहां और फिर भी सूर्या शमी और बुमराह को स्ट्राइक दिए जा रहे थे। कल साबित हो गया कि सूर्या एक जिम्मेदार खिलाड़ी तो बिलकुल नहीं हैं।शमी को स्ट्राइक दे रहे थे लगातार।

240 रनों का स्कोर फिर भी लड़ने लायक था।

पता नहीं किसका आइडिया था कि अब तक टूर्नामेंट के हर मैच में फर्स्ट चेंज गेंदबाज के तौर पर आते रहे मोहम्मद शमी नई गेंद संभालें।

शमी ने एक विकेट ज़रूर लिया पर नई गेंद संभालने में नाकाम दिखे और राहुल की खराब विकेटकीपिंग ने काम और बिगाड़ा।

240 का टारगेट पीछा करने वाली टीम को पहले 2 ओवर में ही बिना विकेट खोए 25 से ज्यादा रन मिल जाएं तो उसके लिए अच्छा ही था।

बुमराह के दो विकेटों के बाद ऑस्ट्रेलिया 10 ओवरों में 3 विकेट पर 61 था।

भारत के सीमर ही विकेट ले रहे थे, पर ग्यारहवां ओवर रोहित ने सिराज को नहीं दिया। स्पिनर्स के बाद सिराज पांचवें गेंदबाज के रूप में आये।

वोही सिराज जो पूरे टूर्नामेंट में नई गेंद संभालते आये थे।

मतलब ये ऐसा था जैसे डिफेंस के लिए मशहूर चेतेश्वर पुजारा को आप नंबर 7 पर बल्लेबाजी के लिए ये कह कर भेजें कि 150 के स्ट्राइक रेट से रन बना के आओ।

कुलदीप असरदार नहीं दिखे।

शायद भारत को एक दाएं हाथ के स्पिनर की कमी खली।

अगर हार्दिक सूर्या की जगह खेलते तो शायद अश्विन टीम में आ जाते सिराज की जगह। तीन स्पिनर और तीन पेसर भारत के पास हो जाते। हार्दिक पांड्या के लिए आईपीएल विश्वकप से ज्यादा महत्वपूर्ण था इस वजह से वो खुद को चोटिल होने से बचा नहीं पाए।

मुझे पांड्या से कोई हमदर्दी नहीं, अपनी फिटनेस की जिम्मेदारी खुद खिलाड़ी की होती है और किसी की नहीं। दुर्भाग्य है कि भारत अब तक हार्दिक पांड्या का विकल्प नहीं ढूंढ़ पाया।

कुल मिलाकर बात ये कि ऑस्ट्रेलिया ने भारत को बल्लेबाजी गेंदबाजी और फील्डिंग सबमें हरा दिया!

बुरी तरह।

गेंदबाजी और बल्लेबाजी की तरह फाइनल में ऑस्ट्रेलिया की फील्डिंग भी बहुत अच्छी थी, भारत की बहुत खराब।

2023 विश्वकप फाइनल की हार भारतीय क्रिकेट प्रशंसकों  को 2003 विश्वकप  फाइनल की हार से ज्यादा चुभ रही है।

उस समय लगभग हर क्रिकेट प्रशंसक मानता था कि रिकी पॉन्टिंग की कप्तानी में जो गिलक्रिस्ट हेडन, साइमंड्स, मार्टिन, मैकग्राथ, ब्रेट ली, एंडी बिशेल जैसे खिलाड़ी खेलते थे वो लगभग अपराजेय थे।

पैट कमिंस की टीम अच्छी है पर उतनी अच्छी नहीं जितनी पॉन्टिंग की टीम थी। इसलिए दुख ज्यादा है।

पर फिर भी एक ही साल में विश्व टेस्ट चैंपियनशिप फाइनल और एकदिवसीय विश्वकप जीतने वाली टीम और कप्तान साधारण भी नहीं हो सकता।

टीम इंडिया ज़रूर साधारण दिखी।

बातें बहुत हैं।

अभी इतना ही

आपका -विपुल

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