आपका -विपुल
दादागिरी
सौरव गांगुली 90s के क्रिकेट प्रेमियों में क्यों इतना ज़्यादा लोकप्रिय हैं ? दरअसल पूर्व कप्तानों सचिन और अज़हर के नम्र स्वभाव के विपरीत अक्खड़ और जैसे को तैसा स्वभाव वाले कप्तान को देखना लोगों को भाया था।ऊपर से दिनेश मोंगिया ,बदानी और सोढ़ी तक को कई चान्स दिए, टीम बनाई।
फिक्सिंग के कलंक से निकली टीम को फिर मजबूती और सम्मान दिया ।साथी खिलाड़ियों को सम्मान दिया।द्रविड़ की वनडे में जगह बनाने को कीपिंग करवा दी।सहवाग को ओपनिंग में लाने के लिये खुद का ओपनिंग स्लॉट छोड़ा ।हरभजन ज़हीर, नेहरा, युवराज ,कैफ को तराशा।भरोसा दिया गांगुली दादा ऐसे ही नहीं बने|
2001 की ऐतिहासिक भारत ऑस्ट्रेलिया सीरीज के लिये हरभजन को जबरदस्ती चयनकर्ताओं से लड़कर टीम में लाना दादा की दादागिरी का प्रथम चरण नहीं था।2000 चैंपियन्स ट्रॉफी में नवोदित ज़हीर खान को पहला ओवर देना था।
युवराज ,ज़हीर और विजय दहिया जैसे नवोदित खिलाड़ियों के साथ पहली आईसीसी चैंपियन्स ट्रॉफी 2000 के फाइनल तक पहुंचना दादा की प्रथम बड़ी उपलब्धि थी । 1999 विश्वकप की हताशा छोड़ टीम इंडिया दादा के नेतृत्व में नए मुकाम छूने निकल पड़ी थी।
2001 की प्रसिद्ध भारत ऑस्ट्रेलिया सीरीज में जीत सौरव गांगुली के ताज का सबसे बेशकीमती नगीना है।मध्ययुगीन खूँख्वार मंगोल आक्रांताओं जैसी मानसिकता की स्टीव वॉग की टीम का विजय रथ रोकना, ये उपलब्धि केवल दादा के भाग्य में लिखी थी।
2002 की नेटवेस्ट ट्रॉफी इंग्लैंड के लॉर्ड्स मैदान में दादा के भरोसेमंद चेलों कैफ और युवराज ने दादा को गिफ्ट की।
और जीतने के बाद दादा ने लॉर्ड्स की बालकनी में टीशर्ट उतार के अंग्रेजों को बताया, कायदे से रहोगे तो फायदे में रहोगे।
इसी साल 2002 में दादा को वर्षा से प्रभावित फाइनल मैच के कारण श्रीलंका के साथ आईसीसी चैंपियंस ट्रोफी 2002 का खिताब श्रीलंका के साथ बांटना पड़ा | सह विजेता रहे |एक और उपलब्धि|अजहर और सचिन की कप्तानी में लगातार हार देखते रहे क्रिकेट प्रेमियों के लिए ख़ास पल |
2003 का एकदिवसीय विश्वकप |किसी को उम्मीद नहीं थी कि लक्ष्मण की जगह दिनेश मोंगिया और द्रविड़ को कीपर के तौर पर खिलने वाली वो भारतीय टीम उपविजेता रहेगी जो केन्या के खिलाफ पहले ही मैच में काँप सी रही थी |काश कि उस रोज टॉस जीत कर दादा पहले बल्लेबाजी लेते | खैर
भारतीय टीम 2002 में इंग्लैंड गयी और टेस्ट सीरिज ड्रा करा कर लौटी थी |लीड्स टेस्ट भारतीय टीम जीती थी और सचिन ,द्रविड़ ,दादा तीनों ने शतक बनाया था | याद है ?गांगुली का एक और कारनामा जब भारतीय टीम विदेशों में केवल हारने ही जाती थी |
भारत के दक्षिण अफ्रीका दौरे 2001 पर वीरेन्द्र सहवाग को मौका और वीरू का शतक ,इससे ज्यादा ये सीरिज सचिन सहित 6 खिलाडियों पर बोल टेम्परिंग के आरोपों के लिए जानी जाती है |तब भी दादा सचिन और बाकी खिलाडियों के पक्ष में खुल कर खड़े हुए |नौबत तो आईसीसी के टूटने तक ला दी गई थी |
2004 में दादा की टीम ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट सीरिज जीतते जीतते रह गयी |पर ऑस्ट्रेलिया जाकर टेस्ट सीरिज ड्रा करवाना भी टीम इण्डिया के लिए वो उपलब्धि थी| जो गुजरे 15 से 20 सालों में किसी भारतीय टीम को नहीं मिली थी |इरफ़ान पठान दादा की ही खोज थे जो 2007 टी 20 विश्वकप फाइनल के हीरो रहे आगे जाकर |
2004 में भारतीय टीम कई साल बाद टीम इण्डिया दादा की कप्तानी में पाकिस्तान गई और वनडे और टेस्ट दोनों सीरिज जीत कर लौटी |वीरू के 309 रन और लक्ष्मीपति बालाजी की मुस्कान ,धोनी के लम्बे बाल और, इरफान पठान की हैटट्रिक | ये सब दादा की कप्तानी में था |
कप्तानी करने के पहले अगर दादा के पास 1997 और 98 के सहारा कप टोरंटो के शानदार प्रदर्शन और ढाका इंडिपेंडेंस कप फाइनल 98 के बेहतरीन प्रदर्शन थे तो कप्तानी छोड़ने के बाद इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रीका टेस्ट सीरिज में बढ़िया प्रदर्शन भी दादा के नाम रहे |
मध्यम वर्ग के साधारण पर अत्यंत होनहार बच्चे की छवि अगर हम सब सचिन में देखते थे ,आज्ञाकारी और अनुशासित बच्चा अगर द्रविड़ था तो सौरव गांगुली हमारी क्लास के मोनिटर थे जो दूसरी क्लास के बच्चों से भिड़ता रहता था और अपनी क्लास के बच्चों का ध्यान भी रखता था |
लेखक -विपुल
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