अर्शदीप महाजन
यह लेख हर उस इंसान के लिये है जिसका यह मानना है कि भारतीयों को पाकिस्तान के साथ क्रिकेट सम्बन्धों को राजनीति और धर्म से अलग रख कर देखना चाहिये।और क्रिकेट को लेकर आपसी खेल के निर्णय में भारत और पाकिस्तान दोनों एक ही नैतिक धरातल पर खड़े हैं।
आपको बेहद बुरा और बेहद कड़वा भी लग सकता है लेकिन मैं ये कहूंगा कि आपका उपरोक्त दोनों बातों को मानना बिल्कुल वैसा ही है जैसा अंग्रेज़ी कमोड को घरेलू कुआँ मान कर,उसमें से पानी निकाल कर,चाय बनाकर, उसी कमोड पर बैठकर पीना।
क्यूँकि यहाँ भी आपका फ़ोकस शेष हर संदर्भ को भूल कर केवल पानी और बैठने वाली सीट पर है जैसे वहाँ केवल खेल और उसके रोमांच पर है।
आस्ट्रेलिया,इंग्लैंड,श्रीलंका इत्यादि से क्रिकेट खेलने में खेल के अतिरिक्त कोई और संदर्भ नहीं होता।थोड़ी बहुत हल्की तीखी बयानबाज़ी श्रृंखला आरम्भ होने से पहले सारी टीमें करती ही करती हैं ,लेकिन वह खेल का एक हिस्सा ही गिना जाता है।
लेकिन पाकिस्तान के साथ ऐसा नहीं है।
पाकिस्तान के खिलाड़ी हमेशा से ही खेल भावना को ठोकर मार कर धर्म और राजनीति को खेल के पहले, बीच में भी और बाद में भी सर्वोपरि रखते आये हैं।
बीसीसीआई और भारत सरकार का कुछ भी निर्णय रहा हो, लेकिन पिछले 30 वर्षों से जो कुछ भी पाकिस्तान के खिलाड़ियों ने खेल के नाम पर खेल और खेल के इर्द गिर्द किया है और आज भी कर रहे हैं उसे देखकर कोई भी स्वाभिमानी भारतीय व्यक्ति अपने आत्मसम्मान को गिरवी रखकर इन दुष्ट और नीच लोगों से कोई सम्बंध नहीं रखना चाहेगा।
अगर हम खेल भावना की बात करें तो जावेद मियाँदाद की किरण मोरे का मज़ाक़ बनाती उछल कूद हो, कुम्बले के दस विकेट रोकने के लिए वकार यूनिस का खुद आउट हो जाने की बात करना हो या शोएब अख़्तर की गेंदबाज़ी से सचिन और भारत के बाक़ी खिलाड़ियों की टाँगे काँपने इत्यादि की बात करके मज़ाक़ उड़ाते और धोनी के विदेश में शतक ना होने का मज़ाक़ उड़ाते टीवी स्टूडियो में बैठे इनके खिलाड़ी हों ,
खेल भावना का मुर्दा जलाते यह पाकिस्तानी खिलाड़ी आपको आये दिन सड़क पर हल्ला मचाने वाले सड़कछाप टपोरियों से कहीं अधिक दिखाई पड़ेंगे।
1999 के भारत पाक टेस्ट मैच में रन लेते हुए सचिन का बल्ला क्रीज़ के पार पहुँच चुका था और उसके बाद शोएब अख़्तर के उसकी लाइन आफ़ रनिंग के बीच में आकर टकरा जाने से बल्ला फिर से हवा में हुआ और इन धूर्तों ने रन आउट की अपील की।तकनीकी रूप से सचिन रन पूरा कर चुके थे लेकिन क्रिकेट नियम इस बारे में स्पष्ट रुप से कुछ नहीं कहता तो बल्ला गिल्लियाँ उड़ते समय हवा में होने के कारण आउट दे दिया गया। प्रेस कॉन्फ़्रेन्स में बहुत ही बेशर्मी के साथ वसीम अकरम ने मीडिया और दर्शकों पर इसका दोष देकर अपनी खेल भावना का परिपक्व परिचय दिया था।
रन बचाने के लिये सीमा रेखा की रस्सी को आगे करना हो या ज़रा ज़रा सी बात पर रनर लेकर नाजायज़ फ़ायदा उठाना हो, खेल भावना के नाम पर बेईमानी करने की पाकिस्तानी खिलाड़ियों की मंशा हमेशा चरम पर रहती है। शारजाह में भारत से इनके जीतने का इतिहास हर वह खेल प्रेमी जानता है जो उस दौर में अजहरूद्दीन और सचिन के बलबूते पर भारतीय टीम को अच्छा करते देख रहा था।और आज उसी शारजाह में हराने का दम भरते मियाँदाद कह रहे हैं कि भारत इनसे हारने से डरता है, इसलिए इनसे खेलना नहीं चाहता।और वहीं, कुछ 8-10 टेस्ट मैच खेले हुए इनके खिलाड़ी कहते हैं कि उमरान मालिक जैसे गेंदबाज़ उनकी गली गली में होते हैं।
इनके तेज गेंदबाज़ों को भारत से भी बहुत ही सम्मान मिला है, लेकिन पाकिस्तान के इन्हीं खिलाड़ियों के बड़बोले वचन हर दूसरे दिन इनकी खेल भावना का जनाज़ा निकालते पढ़ने सुनने को आपको मिल ही जाते हैं।
और तो और जिस देश का प्रधानमंत्री तक भारत के विश्वकप से बाहर होने पर मज़ाक़ उड़ाते हुए ट्वीट करे, वह देश खेल भावना की बात ना ही करे तो बेहतर है।
यह लोग राजनीति के लिए कश्मीर में अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट लीग करवाते हैं।पहले खेल की बात करते हैं, जब दोनों देशों में शांति के लिए खेलने के लिए बुलाया जाता है और अटल विहारी वाजपेयी जैसे सम्माननीय प्रधानमंत्री इनके खिलाड़ियों का सम्मान करने के लिए मिलने जाते हैं तो अफ़रीदी जैसा घटिया आदमी उनका उस वृद्ध अवस्था में ज़ोर से हाथ दबा देता है और आज भी वसीम अकरम और वकार यूनिस जैसे घटिया लोग टेलीविज़न स्टूडिओ में बैठकर इसको याद करते हैं और खुल कर मज़ाक़ उड़ाते हैं।दुर्भाग्य की बात तो यह है कि हम लोगों में से अधिकतर इस बारे में जानते भी नहीं हैं।
सोचिए आपने अपने घर की छत पर अपने कुछ दोस्तों को खेलने के लिए बुलाया हो।आपके पिता जी उन सब से मिलने आएँ और उनमें से एक आपके पिता जी का अपमान करे और स्कूल में भी इसका मज़ाक़ बनाए। क्या आप दोबारा उसे खेलने बुलाते अपने घर?लड़ नहीं जाते उससे?
मियाँदाद कहता है कि भारत अगर पाकिस्तान से हार गया तो इनके खिलाड़ियों के घर जल जाएँगे और नरेंद्र मोदी की सत्ता चली जाएगी।भारत के साथ हर मैच को एक जिहाद की तरह देखने वाले ये कूढ़मगज लोग, जिसकी पुष्टि इनके पूर्व क्रिकेट कप्तान और पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान भी ट्वीट करके करते हैं, ऐसे लोग हमें राजनीति और खेल को अलग रखने पर ज्ञान बाँटते हुए शोभा नहीं देते।
और धर्म की तो बात ही क्या करूँ।इनका खेल शुरू होने से पहले से लेकर पुरस्कार वितरण समारोह तक हर बात अल्लाह और इस्लाम से शुरू होती है और वहीं ख़त्म।भारत को हराकर इनका कुफ़्र टूटता है।
वकार यूनिस, मोहम्मद रिज़वान को हिंदुओं के सामने मैदान पर नमाज़ पढ़ते देखकर ख़ुश हो जाता है और मुहम्मद रिज़वान कश्मीर कश्मीर चिल्लाता ही रहता है। इंज़माम और सईद अनवर के अनुसार सबको मुस्लिम बनाना उनका फ़र्ज़ है और जो नहीं बनेंगे वह नर्क में जलेंगे।सकलैन मुश्ताक़ की मानें तो मुस्लिम बन जाने के बाद आपकी बल्लेबाज़ी औसत दुगुनी हो जाएगी।ड्रेसिंग रूम में यह लोग तबलीग देते हैं तो सन्यास लेने के बाद मौलाना बन जाते हैं।
इनकी टीम का इकलौता ईसाई खिलाड़ी कुछ ही वर्षों में मुस्लिम हो जाता है और एक अकेले हिंदू खिलाड़ी को टीम से अलग खाना खाना पड़ता है।शाहिद अफ़रीदी टेलीविज़न में हिन्दी धारावाहिक में पूजा का दृश्य देखकर अपना टेलीविज़न सेट तोड़ देता है और बहुत गर्व से अपने देश के टेलीविज़न स्टूडिओ में ये बताता भी है।शोएब अख़्तर खून की नहरें भरते हुए ग़जवा ए हिंद की बात करता है।कहता है कश्मीर जीतने के बाद आगे भारत भी जीतेंगे इंशाअल्लाह।
ये लेख लिखते हुए ही पाकिस्तान सुपर लीग के क्वेटा वाले मैच में स्टेडियम के बाहर ग्रेनेड अटैक होता है और कुछ दिन पहले ही एक हाई सिक्यरिटी मस्जिद में कोई इस्लाम का दीवाना बम लगाकर फट जाता है ।
कोई मुझे यह बताए कि अगर इस बात की आधा प्रतिशत भी सम्भावना है कि इनका कोई खिलाड़ी इन सब से प्रेरणा लेकर मैदान में आकर फट जाए ,ग़जवा ए हिंद की शुरुआत हमारी टीम से करते हुए ,(लिखते हुये भी हाथ काँपते हैं) तो क्या हमें अपने एक भी खिलाड़ी की जान ख़तरे में डालनी चाहिए?
जो देश राजनीति अस्थिरता और धार्मिक कट्टरता के साथ ही विश्व में आतंकवाद का पर्याय भी बन चुका हो।जिस देश के वर्तमान और पूर्व दोनों ही दौर के खिलाड़ी खेल भावना से कोसों दूर होकर राजनीति और धार्मिक कट्टरता को ढोते चले आये हों और आज भी ढो रहे हों, उन के साथ खेलना तो दूर,काफिर भेद और आतंकवाद की वजह से उनके देश के खेलने पर भी प्रतिबंध होना चाहिये।
अगर दक्षिण अफ़्रीका पर केवल रंगभेद के चलते प्रतिबंध लग सकता है तो क्रिकेट के नाम पर इस्लामिक आतंकवाद का प्रचार करने वाले पाकिस्तान पर प्रतिबन्ध क्यों नहीं लग सकता ?
मेरे लेख में मैंने सीमा पर होने वाले घुसपैठ, लगातार होती फायरिंग और शेलिंग, हमारे भारत देश पर हुए आतंकी हमलों और हम पर थोपे गये युद्धों की बात ही नहीं की।
पूरे लेख में मैंने उनके राजनेताओं के भारत विरोधी बयानों, कश्मीर के आलाप, पूरे विश्व में भारत को बदनाम करने की कोशिशें, इनकी सुरक्षा एजेंसियों की भारतीय सुरक्षा को भेदने के छद्म युद्ध के बारे में भी बात नहीं की।
आम लोग की क्रिया प्रतिक्रिया भी सोशल मीडिया पर बहुत तरह की हो सकती है, इस पूरे लेख में मुद्दा वह लोग भी नहीं हैं।
इस पूरे लेख का लक्ष्य केवल यह दिखाना है कि पाकिस्तान के लिये क्रिकेट हमेशा से ही खेल भावना से बहुत दूर राजनीति और धार्मिक उन्माद का एक ज़रिया भर ही रहा है और रहेगा।
नैतिक तौर पर अगर हम धरातल पर हैं तो पाकिस्तान पाताल में है।
केवल पानी और बैठने की जगह मत देखिए, पूरा कमोड देखिए।
बाक़ी मैं स्वतंत्र पाठकों की बुद्धि और विवेक पर छोड़ता हूँ।
अर्शदीप महाजन
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बहुत सुंदर लिखा है।