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आज का दिन खराब है (थ्रिलर कहानी)
विपुल मिश्रा

आईआईटी की स्टेट बैंक की ए टी एम से 10 हजार रुपए लेकर बाहर निकला ही था और अपनी बाइक की ओर जाने की बजाय उसके विपरीत बनी कॉफी की दुकान की तरफ जाने की इच्छा जागृत हो गई।
अचानक से काफी पीने की उठी इच्छा के पीछे इस बात से कोई संबंध नहीं था कि उस काफी शॉप के बाहर ब्लैक जींस व्हाइट टॉप में काले गॉगल्स लगाए एक चौबीस पच्चीस साल की बेहद गोरी , अंडाकार चेहरे और सुनहरे बालों वाली एक कमसिन नवयौवना खड़ी काफी पी रही थी। उसका कद करीब साढ़े पांच फुट होगा। फिगर 36 24 36 ही होगी शायद, ब्लैक कलर की नेलपॉलिश और चैरी रेड लिपिस्टिक लगाए थी।


मुझे वैसे लड़कियों में ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी और किसी लड़की को चाहे कितनी भी सुंदर हो, कभी ज्यादा भाव नहीं देता, न ही उनके ऊपर ज्यादा नजर ही डालता। पर उसके उदास चेहरे को देख रुका नहीं गया।
ज्यादा कुछ नहीं कर सकते किसी के लिए, पर उसके बगल में खड़े होकर काफी पीकर उसका गम तो दूर ही कर सकते हैं।
ऐसा सोच कर मैं उस काफी की दुकान पर पहुंचा और एक काफी मांगी।
“एक लार्ज कॉफी!”
“नहीं मिलेगी!
“क्यों?”
“तुम काले हो जाओगे!”
“तो ब्रोकली के! हो जाने दे । तेरे बाप का क्या जाता है?
“मेरे बाप के दोस्त के बेटे का रंग दब जायेगा! ये जायेगा मेरे बाप का!”
मैने घूर के रमेश को देखा और उसने मुस्कुरा के प्लास्टिक के छोटे वाले गिलास में कॉफी दी।
“500 बाकी हैं तेरे पिछ्ले! ये बची वाली कॉफी है, इसलिये दे रहा, वरना फेंकनी पड़ती।!”
“साले! तू..”
मेरी आधी बात पूरी नहीं हो पाई क्योंकि वो सुंदरी हमारे पास आ चुकी थी।
“आप दोनों लड़ना बंद करके प्लीज ये बतायेंगे क्या कि यहां से डायरेक्ट कानपुर सेंट्रल के लिये कोई सवारी मिल जायेगी क्या?”
“नहीं!” ये रमेश बोला था।
“हां!” ये मैं बोला था।
“यहां से डायरेक्ट क्या मिलेगा?” रमेश ने अजीब सा मुंह बनाया।
“मेरी बाइक!”
मैं मुस्कुराया,”मैं सेंट्रल स्टेशन ही तो जा रहा हूं सीधे।आप चाहे तो साथ में चल सकती हैं।”
“पर तुझे तो मंधना जाना था?”
रमेश बोला।”भाभी की चाची के यहां।”
“हां! पर चाची की हरिद्वार की टिकट भी तो लेनी है ट्रैवल एजेंट से। वही तो देना है चाची को!”
“तेरा ट्रैवल एजेंट पूरा कल्याणपुर रावतपुर छोड़ घंटाघर में है?”
“तेरी तो ससुराल ही पूरी कानपुर कमिश्नरी छोड़ बांगरमऊ में है। मैं कुछ बोला?” मैंने रमेश से घूर के बोला।
“निकल साले लौंडियाबाज!”
रमेश अपने होंठों से कुछ नहीं बोला, पर उसकी आंखें यही बोल रही थीं।
उधर उस सुंदर कन्या ने मुस्कुरा कर पूंछा।
“आपकी बाइक कहां है? चलिये।”
मेरे जैसे कम दिमाग और कम किस्मत वाले लोगों के साथ जो होता है, वो इस बार भी हुआ।
पहले तो बाइक एक बार में स्टार्ट नहीं हुई। दस बारह किक मारनी पड़ीं। फिर बाइक में पेट्रोल खत्म हो गया, ये कहो कि लखनपुर वाले पेट्रोल पंप के ठीक सामने पेट्रोल खत्म हुआ तो ज्यादा दिक्कत नहीं हुई। यहां शेखी बघारने को पेटीएम से पेमेंट करने चला तो पता चला इस पेटीएम वाले अकाउंट में पैसे ही नहीं थे। मेरे पास कैश पैसे थे तो इज्ज़त बच गई। यहां तक मैंने उस सुंदरी से कोई बात भी नहीं की थी। सीरियस दिखने का प्रयास कर रहा था। पर गोल चौराहा होते हुये कोकाकोला चौराहे पर पहुंचते ही जब एक पुलिस वाले ने चेकिंग के नाम पर मेरी बाइक रोक ली तो वो खुद ही बोल पड़ी।
“शायद आपका आज का दिन खराब है”


उसकी बात सत्य ही थी क्योंकि जिस हवलदार ने मेरी गाड़ी रोकी थी उसे मैं अच्छी तरह से जानता था। ये दीपक यादव था। बहुत ईमानदार था। इतना ईमानदार कि अपनी ईमानदारी से इसने रतन अपार्टमेंट में दो फ्लैट कानपुर की एक ही साल की पोस्टिंग में बना लिए थे।
“कागज़?”उसने मुझसे मांग की।
“नहीं हैं!”
“क्यों नहीं हैं?”
“गाड़ी ही चोरी की है।”
“तब ठीक है! खुद की गाड़ी के कागज न होते तो ज्यादा दिक्कत होती।1000 रुपये दो और आगे कोई पुलिस वाला रोके तो बोल देना मंदिर वहीं बनायेंगे।”
“मेरे पास 500 हैं।”
“अंबेडकरपुरम के गौकशी वाले मामले में एक फरार है।ऐसी ही बाइक और ऐसे ही आदमी की डिमांड कर रहे थे सी ओ साहब।”
उसने बस इतना ही बोला और मैंने चुपचाप 500 के दो नोट उसे थमा दिये।
आगे जरीब चौकी पर एक बार मंदिर वहीं बनायेंगे बोलना पड़ा चेकिंग पर लगे सिपाहियों से। बाकी बाइक सुरक्षित सेंट्रल पहुंच गई मेरी। एक हजार रूपये का नुकसान ज़रूर हुआ था मेरा, पर कानपुर की सड़कों पर गड्ढे भी बहुत थे। पैसे तो वसूल हो ही गये थे।
पर शायद अभी और भी कुछ बाकी था।
उस सुंदरी ने बाइक से उतरते ही मुझे थैंक्यू बोला।बताया कि उसका नाम सपना साहनी है और बोली कि वो मुझे थैंक्यू बोलने के लिये कुछ देना चाहती है। मैं हंस दिया।उसने अपने बैग से कच्चा आम की दो टॉफी निकाल के मुझे दीं। एक उसने खाई।एक मैंने। उसने मेरे साथ स्टेशन आने का आग्रह भी किया। उसकी ट्रेन में शायद टाइम था और वो मेरे साथ कुछ वक्त बिताने की इच्छुक दिखी मुझे। अपनी बाइक को बाइक स्टैंड पर टिका कर मैं उसके साथ स्टेशन में घुसा। उसके पास दो टिकटें पहले से थीं तो मुझे प्लेटफार्म टिकट खरीदने की जरूरत नहीं थी। उसने मुझसे पूंछा कि “क्या मुझे अपने ट्रैवल एजेंट के यह जाने में देर तो नहीं हो रही?”
मैंने मुस्कुरा के मना कर दिया। हम दोनों प्लेटफार्म नंबर 4 की एक बेंच पर बैठे। उसकी ट्रेन इसी प्लेटफार्म पर आनी थी। उसने अपने बारे में बतावा कि वो राजस्थान के चुरू जिले की निवासी है। वो एक वनस्पति वैज्ञानिक है और आईआईटी कानपुर में एक रिसर्च के चक्कर में आई थी।अब उसे लखनऊ के विष अनुसंधान संस्थान में भी जाना है। उसका नाम सपना साहनी है और कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से पढ़ी है।
आपस में बातें करते करते उसने मुझे दो तीन टॉफी और दीं।
मेरा सर कुछ भारी हो रहा था और नींद सी आ रही थी।मैंने बेंच पर सर पीछे रखा और आँखें बंद कर लीं ।
मेरी आँखें खुलीं तब मैंने ख़ुद को एक बोरे में बंद पाया।जूट के उस बोरे में से मैं झीना झीना देख पा रहा था कि मेरे अगल बगल और भी बोरे थे , जिनमें कोई न कोई जिंदा चीज तो थी ही।
ये शायद कोई चलता हुआ लोडर या ट्रक था जिसमें मैं बोरे में बंद पड़ा था। मेरे हाथ पीछे बंधे थे और मुंह पर टेप चिपका था।मेरे होश में आने के पंद्रह मिनट बाद वो ट्रक रुका और कुछ देर बाद उसका पीछे का शटर खुला। धम्म धम्म की आवाज़ के साथ कई लोग ऊपर चढ़े और ट्रक में चढ़े बोरे उतारे जाने लगे। मैं जिस बोरे में बंद था, वो काफी पीछे था। मैं चिल्लाना चाहता था, पर मेरे मुंह में टेप चिपका था। मेरे बोरे की बारी आई और एक आदमी खुशी से चिल्लाया!
“अबकी बिट्टी बहुत मोटा आदमी लाई है। सारे गांव की दावत अच्छे से हो जायेगी।”
अब ये क्या था यार??


घसीट कर उस बोरे को नीचे उतारा गया जिसमें मैं बंद था। बोरा खुला और मैंने मिचमिचा कर आँखें खोलीं।
ये एक खुला मैदान था और कई अजीब सी शक्लों वाले आदमी औरत वहां खड़े थे। मैदान में कई बोरे खुले और बंद पड़े थे, जिनमें विभिन्न जानवर लाये गये। इन जानवरों में कुत्ते,बिल्ली , बंदर, चिम्पांजी, ऊदबिलाव, बकरी, सियार, सेही, कछुआ बहुत कुछ था, पर आदमी इकलौता मैं ही था। वो सारे पुरुष सामान्य पैंट शर्ट जैकेट ही पहने थे। कुछ औरतें कुछ अजीब सी स्कर्ट ब्लाउज पहने थीं। कुछ साड़ी और सूट में भी थीं।
विशेष बात ये थी कि सारे स्त्री पुरुष बहुत सुंदर और स्मार्ट थे, फिर भी चेहरे पर अजीब से रंग लगा कर डरावना मेकअप करे थे। इनमें से कुछ ही पक्के भारतीय लग रहे थे, बाकी पक्के मंगोल नस्ल के थे।
सपना उन्हीं लोगों के बीच खड़ी थी। उसी ब्लैक जींस व्हाइट टॉप और ब्लैक सन गॉगल्स में। उसके चेहरे पर कोई अजीब मेकअप नहीं था। इस समय वो सुंदर नहीं, खतरनाक भी नहीं, खूंखार लग रही थी। उसके हाथ में एक बड़ा चाकू था और आंखों में गुस्सा।
अजीब सी भाषा में वो कुछ चिल्लाई और आपस में बात करते सारे लोग शांत हो गये।
“इस आदमी को कोई हाथ नहीं लगायेगा।”
वो तेज आवाज में चीखी।
मैं बहुत खुश हुआ।
“केवल लात लगायेंगे, और लातों लातों से धकिया कर इसे चूल्हे तक ले जायेंगे।”
“लोमड़ी वाली! सुनार!”
मैंने मन ही मन उसे गाली दी। फिर चूल्हा शब्द पर ध्यान दिया।
“चूल्हा?” मैंने चौंक के देखा।
एक बड़े से चूल्हे पर बहुत बड़ा पतीला चढ़ा हुआ था। बगल में बहुत सारा तेल मिर्च मसाला, कटी सब्जियां रखी थीं और बड़े बड़े चमचे करछुली लिये सात आठ पुरुष खानसामे तैयार खड़े दिख रहे थे।
“क्या हो रहा है गहनखोद?”
मेरी मासूम आंखों ने सपना से सवाल पूंछा।
वो उस सवाल को भांप के आगे बढ़ी। उसके इशारे पर एक आदमी ने मेरे होंठों से टेप हटा दिया और हाथ खोल दिये मेरे।
“ये क्या है यार?”
मैंने रूंधे गले और नम आंखों से पूंछा। मुझे मौत सामने दिख रही थी
उसने मुस्कुराकर कहा,
“ये मेरी ताजपोशी की दावत है। हमारे यहां की रस्म है कि रानी बनने के बाद रानी को एक जिंदा आदमी को भून कर उसके मांस की दावत सारे कबीले वालों को करवानी पड़ती है। अगर ये रस्म पूरी न हो, तो हमारे कबीले पर विपदा टूट पड़ती है।”
“पर मैं ही क्यों?”
“क्योंकि आपका दिन खराब है।”
“मुझे तुम्हें लिफ्ट ही नहीं देनी चाहिये थी।”
“तुमने मुझे लिफट दी भी नहीं थी।”
“आएं?”


मुझे कुछ समझ नहीं आया था कि मैं यहां कैसे पहुंचा? ये जगह कौन थी और ये लोग कौन थे?
बस मुझे इतना समझ आ रहा था कि मुझे लातों से मार मार के उस चूल्हे तक पहुंचा दिया गया था, जो धधक के जल रहा था।
मुझे फिर किसी ने रस्सियों के एक जाल में लपेट के उठाया और पतीले में डाल दिया। पतीले में भरा पानी अभी बिलकुल गर्म नहीं था, इसलिये अभी ज्यादा दिक्कत नहीं हुई मुझे।


मैं आंखें बंद करके भगवान को याद करने लगा था कि तभी एक चमत्कार हुआ।
पों पों चिऊं चिऊं की आवाज करती काफी गाडियां अचानक उधर आईं और दनादन फायरिंग करती हुईं।
चुटकियों में वो सारे मॉडर्न आदिवासी फरार हो गये थे, जो अभी मुझे जिंदा भून कर मेरी सब्जी बनाने वाले थे।
इन गाड़ियों में आती जो पुलिस या सेना मुझे दिखाई पड़ी थी, वो निश्चित तौर पर भारतीय नहीं थी।
शायद म्यांमार की थी। उन फरिश्तों ने आकर मुझे पतीले से निकाला।
उनमें से एक ने प्यार से इंग्लिश में कहा।
“आपका आज का दिन खराब है!”
“ज्यादा नहीं! आप तो मुझे बचाने आ ही गये! भारतीय कभी नहीं घबराते।” मैं मुस्कुराया।
वो ठठा के हंसा मेरी बात पर।
आर यू इंडियन?”
“यस ! थैंक्यू!”
मैं मुस्कुरा के बोला
वो मेरे थैंक्यू के यू खत्म होने के पहले ही चिल्लाया।
“हिंदुस्तानी बंदर है ये।डाल दो साले को दोबारा पतीले में!”
वो चीनी शक्ल वाला ये घनघोर हिंदी में चिल्लाया था।
मेरे कुछ समझने के पहले ही मैं दोबारा पतीले में था और अबकी बार पानी थोड़ा गर्म भी था।
मैं खुद की किस्मत को खुद ही कोस रहा था। मुझे ये भी याद आ रहा था कि अबकी मंगल को शायद मैं प्रसाद चढ़ाना भूल गया था। मेरा दिमाग सुन्न पड़ रहा था और तभी मुझे फिर सपना सामने दिखी उसी ब्लैक जींस व्हाइट टॉप ब्लैक सन गॉगल्स में।
उसके साथ कुछ आदमी थे। उसकी आंखो में मेरे लिये करुणा के भाव थे।
उसने मुझे हाथों से इशारा किया और मुंह से बोली ,
“शांत रहना मैं तुम्हें बचाने आई हूं।”
उसके साथ आये दो आदमियों ने मुझे पतीले से निकाला। वहां तीन बाइक खड़ी थीं। एक बाइक पर सपना बैठी और मुझे पीछे बैठने को कहा। बाकी दो बाइक पर तीन तीन आदमी हमारे साथ चले। मैदान के बाहर बने एक जंगल से गुजरते हुये हम एक पहाड़ी के सिरे पर पहुंचे।
सपना ने वहां मुझे एक प्लास्टिक कार्ड दिया जिस पर कुछ भी नहीं लिखा था।और 500 के बीस नोट। फिर उसने कहा।
“यहां से पैदल पैदल चल के तुम 3 किलोमीटर जाओगे तो एक गांव मिलेगा।गांव के किनारे ही एक बस खड़ी मिलेगी।बस ड्राइवर को ये कार्ड दिखाना, तुम्हें वो बस सीधे गौहाटी पहुंचा देगी। वहां से जो गाड़ी मिले सीधे पकड़ के कानपुर चले जाना। बीच में न कहीं रुकना,न किसी से बात करना न यहां जो हुआ,किसी से बताना। वर्ना तुम्हारी जान बचाने की गारंटी कोई नहीं ले सकता।”
“ओके?”
“ओके!”
मैं नीचे दौड़ पड़ा।रात होने को थी अब।
वाकई जिस गांव का जिक्र सपना ने किया था, उसके पहले वाले छोर पर ही एक बस खड़ी थी। मैंने बस ड्राइवर को वो कार्ड दिखाया जो सपना ने दिखाया था।उसने न सिर्फ मुझे गौहाटी तक पहुंचाया, बल्कि कानपुर की एक ट्रेन टिकट भी दी। मैं उस ट्रेन से कानपुर वापस आया।
ये 3 4 दिन मैं कहां गायब था। अब इसकी सफाई घर पर और ऑफिस में क्या दूं?
ये सोचता सोचता घर पहुंचा। अपने घर का दरवाजा खटखटाया। श्रीमती जी ने दरवाजा खोला। और मुझे हार्ट अटैक आते आते रह गया।
मेरी पत्नी के ठीक पीछे सपना खड़ी थी।
ब्लैक जींस , व्हाइट टॉप, ब्लैक सन गॉगल्स।
“हे भगवान!”


“ये सपना जी हैं। पुलिस से हैं। कल पुलिस वाले इन्हें घर पर भेज गए थे। हमारी सुरक्षा के लिये। आपकी मिसिंग की रिपोर्ट दर्ज कराई थी हमने और पता चला था कि आपका किडनैप हो गया है।”. श्रीमती जी मुझे चौंकते देख के बोलीं।
“और इन्होंने ही बताया था कि आपको छुड़वा लिया गया है, आप आज 5 बजे तक आ जायेंगे।”
सपना आंखों से गॉगल्स हटा के मुस्कुराई।
मुझे सपना ने घर आकर बस एक कप चाय पीने भर का समय दिया था, फिर मेरी बीवी से ये कह कर मुझे अपने साथ बाहर ले आई कि पुलिस स्टेशन पर कुछ बयान वगैरा बाकी हैं।
हमने बाहर आकर एक रमैया होटल पर चाय पी, जहां उसने बताया कि सपना दरअसल दो जुड़वां बहने हैं।सपना चिंग और सपना मिंग।
वो सपना मिंग है। वो म्यांमार और मणिपुर के बीच बसे एक कबीले के सरदार ही चिंगमिंग की लड़की है। ही चिंगमिंग कई दिनों से गायब है और उसका कबीला बगैर सरदार के नहीं रह सकता। उसकी बहन सपना चिंग बहुत क्रूर है और कबीले की सरदार यानी रानी बनना चाहती है। कई लोग उसकी क्रूरता की वजह से उसे रानी बनते नहीं देखना चाहते। वोही लोग चाहते हैं कि वो यानी सपना मिंग रानी बने। इस चिंगमिंग कबीले के उनके इन दो गुटों में गृहयुद्ध सा चल रहा है। बहुत झगड़े के बाद कबीले के तीनों गणमान्य मुखियाओं ने एक शर्त रखी थी कि सपना चिंग या सपना मिंग में से जो भी एक जिंदा भारतीय ब्राह्मण की सब्जी बना कर दावत करेगी, वो रानी मान ली जायेगी। और एक खास बात उसने ये बताई कि उसके कबीले के सारे लोग हिंदी और बरमीस दोनों भाषा बहुत अच्छी बोलते और समझते हैं।
हिंदी अच्छा बोलने वालों की बहुत कद्र होती है उधर!
“ऐसा क्यों?”
मैंने पूंछा।
“दरअसल हमारा कबीला परंपरागत रूप से जानवरों और आदमियों की तस्करी करता है, खासकर उत्तर भारत में।और यहां नशीली दवाओं की स्मग्लिंग करते हैं हमारे लोग और खुद इधर आकर बेचते भी हैं।इसलिये हिंदी जरूरी। इधर पुलिस में भी हमारे कबीले लोग।”
“मैं कानपुर सेंट्रल से तुम्हारे कबीले कैसे पहुंचा?”
“मुझे भी नहीं पता।” सपना मिंग का जवाब था।”उन टॉफियों में पता नहीं क्या था? मेरी नींद खुली। तब मेरे कबीले के मेरे विश्वासपत्र लोग मुझे लेकर डॉक्टर के यहां पहुंचे थे कानपुर में। उन्होंने ही मुझे बताया कि सेंट्रल स्टेशन पर मेरी जुड़वां बहन सपना चिंग तुम्हें अपने साथ ले गई थी और मुझे उनके हवाले। चाहती तो मुझे मार भी सकती थी, पर छोड़ कैसे दिया? मैं खुद हैरान थी।”
“शायद बहन का प्यार जाग गया हो।”
“शायद “वो हंसी।”फिर मैं वहां पहुंची तो तुम्हारी चिंता हुई।मैंने म्यांमार की पुलिस को खबर कर दी। मेरी बहन के समर्थक भाग गये और फिर मैंने तुम्हें बचा लिया।”
“और तुम्हारी बहन भी रानी नहीं बन पाई!”
मैं हौले से मुस्कुराया।
“पर तुम यहां क्यों आईं?”
दरअसल एक तो मेरे ही कबीले के लोग मेरे पीछे पड़ गए हैं उस दिन के बाद से जिस दिन मैंने तुम्हें बचाया, दूसरा मुझे अब उस कबीले की रानी बनने की इच्छा नहीं जिसमें रानी बनने के लिये एक जिंदा आदमी भून के खाना खिलाना पड़ता हो,तीसरा तुम्हारी चिंता भी थी कि वो लोग तुम्हें फिर न ले जाएं।”
“अब क्या करोगी? कहां रहोगी?”
मैंने पूंछा।
“ये तुम तय करो!”वो मुस्कुराई।
उस रात सपना एक होटल में रही।मैंने उसकी इतनी मदद की कि जिस कॉलेज में मैं गणित पढ़ाता था,उस कॉलेज में उसे ट्रस्टी से गुजारिश कर टेंपरेरी बॉटनी टीचर लगवा दिया। इत्तेफाक ये था कि हमारे इंटर कॉलेज की इकलौती बॉटनी टीचर 6 महीने की छुट्टी पर गई हुई थी। आवास विकास कल्याणपुर में उसे एक मकान भी किराए पर दिलवा दिया। सपना साहनी की आईडी उसके पास थी ही।
इधर मैं थोड़ा फुरसत से हुआ ही था कि मेरे पास अजीब से धमकी भरे फोन आने लगे कि मैं अपने परिवार की हिफाजत चाहता हूं तो पहली फुरसत में गोहाटी पहुंचूं। सपना मिंग की सलाह पर मैंने पुलिस को खबर नहीं की और फोन नंबर बदल दिये। इस दरम्यान सपना मिंग से मेरा काफी जुड़ाव हो गया था और हम लोग एक सहकर्मी से कुछ ज्यादा हो चुके थे। मुझे उसके लिये फीलिंग थीं और शायद उसे मेरे लिये भी। हालांकि हमने कभी लाइन क्रॉस नहीं की थी।
एक दिन अचानक मेरे सामने से ही कुछ लोग सपना को जबरदस्ती कार में डाल कर उठा ले गये ,जब हम दोनों कॉलेज से पैदल लौट रहे थे।
मैं हड़बड़ा उठा। कुछ सोच पाऊं उसके पहले ही सपना का फोन मुझे आया।
“तुम मेरी चिंता मत करना! चाहे कुछ भी हो! गौहाटी मत जाना!”
वो सहमी आवाज में बोली थी। पर उसके पीछे एक मरदाना आवाज आई।
“अगर इसकी जिन्दगी चाहते हो तो रात नौ बजे गौहाटी वाली गाड़ी में बैठ जाना। टिकट वहीं मिल जायेगी तुम्हें।”
मैं सन्नाटे में था। बहुत सोच विचार के मैंने फैसला किया कि मैं गौहाटी नहीं जाऊंगा और पुलिस स्टेशन ज़रूर जाऊंगा। लेकिन कल जाऊंगा पुलिस स्टेशन, आज नहीं।
मैं यही सोच के घर पहुंचा और श्रीमती जी ने गेट खोला। मैं फिर चौंका।
सपना उसके पीछे थी। ब्लैक जींस व्हाइट टॉप काले सन गॉगल्स।


“ये सपना साहनी की जुड़वां बहन हैं। अपना”श्रीमती जी बोलीं।”इनकी बहन घर नहीं पहुंची तो पूंछने आई हैं”
मैं सिहर उठा।
“ये कानपुर से गोहाटी की ट्रेन टिकट है आज रात की।”सपना की जुड़वां बहन मुझे वो टिकट देकर घूर कर बोली जो शायद मुझे एक संकेत भी था।”सपना आज गुवाहाटी जाने के प्लान में थी मेरे साथ।एक फोन भी आया था कि सपना अगर रात 9 बजे इस ट्रेन में नहीं बैठी तो उसके परिवार के साथ कुछ गलत हो सकता है। मुझे बहुत डर लग रहा है।”
उसने मेरी बीवी को देखते हुए कहा।”आप इनसे कहिये ना कि कुछ करें वरना उनकी बात न मानने वाले के परिवार के साथ पता नहीं क्या कर डालें वो लोग ?”
सपना चिंग के हाथ मेरी बीवी की पीठ पर थे और वो मुझे घूर रही थी। मैं सिहर उठा।
“मैं सेंट्रल पहुंचता हूं आज रात 9 बजे।”
“गुड ” वो हौले से मुस्कुराई।”अभी चलती हूं! “
मैं रात 9 बजे वाली ट्रेन में अपनी रिजर्व कराई सीट पर बैठा। और 24 घंटे का सफर तय करके गुवाहाटी में उतरा। वहां मुझे लेने एक कार आई थी। तीन घंटे का सफर तय करके मैं उस कबीले पहुंचा जो सपना का चिंगमिंग कबीला था।
मुझे एक कमरे में पहुंचाया गया जहां सपना मिंग बंधी पड़ी थी।
मुझे देखते ही वो फूट फूट के रोई।
“तुम्हें यहां नहीं आना चाहिये था।”वो रो रही थी।”हम दोनों नहीं बचेंगे अब।”.
“तुम दोनों ही बच जाओगे।”
वहां कमरे में मौजूद एक बूढ़ा बोला जो कमरे में मौजूद तीसरा शख्स था मेरे और सपना मिंग के अलावा।
“कबीले के मुखियाओं का निर्णय है कि अगर कबीले की धरती पर तुम दोनों शारीरिक संबंध बना लो तो तुम कबीले के बाहर के आदमी से संबंध बनाने के कारण हमारी मान्यताओं में अशुद्ध हो जाओगी और इस के कारण रानी बनने की दौड़ से बाहर ही हो जाओगी। और जब सपना चिंग ही इकलौती दावेदार बचेगी तो तुम्हें मारने का कोई औचित्य नहीं और इसको जिंदा भूनने की भी जरूरत नहीं।”
“सच?” सपना खुशी से बोली।
“शर्तों वाले आदेश में ये भी जारी हो चुका है। सपना चिंग को मानना ही पड़ेगा।”
सपना मिंग ने मुझे प्यार से देखा और चिपका लिया खुद से।


बूढ़ा बाहर चला गया।
जान बचाने के लिये मैंने सपना के साथ मजबूरी में वो सब किया जो नहीं करना चाहता था, जिसे करने में मुझे शर्म आती थी।
तीन बार किया रात में। जान बचाने के लिये।
सुबह नींद खुली तो सपना मिंग वहां नहीं थी।
बूढ़ा मुझे वहां से सपना चिंग के महल ले गया। जो रानी की तरह सजी बैठी थी
“चूंकि तुम्हारे और मेरी बहन के इस कबीले की धरती पर संबंध बनाने के कारण वो वैसे ही रानी बनने के अयोग्य हो गई तो उसे बख्श दिया, वो कानपुर निकल रही है।तुम भी चले जाना।बस एक एक कप कॉफी तो हो ही जाये साथ में।”
मैंने सहमति में सर हिलाया।
एक नौकरानी कॉफी लेकर आ गई।
“मेरी बहन का ध्यान रखना।”
सपना चिंग कॉफी पीते हुये बस इतना ही बोली।
“बहुत भोली और मासूम है वो पगली।”
“हां!”मैं भी सपना मिंग के बारे में सोच के मुस्कुराया।
सपना चिंग के आग्रह पर मैंने एक कप कॉफी और पी। मुझे कुछ अजीब सा लग रहा था।सर भारी भारी हो रहा था। अचानक मेरा सर चकराया और मैं बेहोश हो गया।
जब मुझे होश आया तब मैं उसी चूल्हे पर चढ़े उसी पतीले में चढ़ा था, जिसमें से पिछली बार मैं जिंदा बच के जाने कैसे आया था।


सामने सपना चिंग रानी की वेशभूषा में थी और कबीले के काफी लोग नाच गा रहे थे।
“ये क्या धोखा है? मैं चिल्लाया!
सपना चिंग हंस दी।
“और मेरी सपना मिंग कहां है? तुमने उसे मार दिया क्या?”
मेरे इतना बोलते ही सपना चिंग ने हंसते हंसते अपना पेट पकड़ लिया और वहां खड़े सारे लोग भी बेइंतहा हंसने लगे।
मैं भौचक्का था।
“बेवकूफ! तूने कभी सपना चिंग और सपना मिंग को इकट्ठे देखा क्या?”
उसके इतना कहने पर मैंने विचार किया, मैंने वाकई सपना मिंग और सपना चिंग को कभी एक साथ न देखा था, न फोन पर ही मेरे सामने दोनों में कभी बात हुई थी।
“सपना चिंग और सपना मिंग, दोनों मैं ही हूं बेवकूफ! ही चिंग मिंग की इकलौती औलाद सपना चिंगमिंग।”
“तो ये सारा तमाशा क्या था? क्यों था? किसलिये था?”
रानी बनने के लिये मुझे उस आदमी को भून के सारे कबीले को खिलाना था जो मुझे प्यार करता हो,जो उसके भूने जाने के ठीक पहले मेरे साथ शारीरिक संबंध बनाये। पिछली बार अगर म्यांमार पुलिस हमारे कबीले पर छापा मारने न आती तो मैं खुद ही तुम्हें बचाती, एक रात संबंध बनाती, अगले रोज भून के खाती। पर म्यांमार पुलिस के छापे से सब गड़बड़ हो गया।
हम दोबारा इतना सारा प्रोग्राम अगले दिन अरेंज नहीं कर सकते थे और मुखिया लोगों ने इस काम के लिए अगला मुहूर्त आज का ही चुना था, तो तुम्हें छोड़ना पड़ा। पर तुम पर नजर बनाये रखने को मैं प्लेन से कानपुर तुमसे पहले ही पहुंच गई। तुम्हारे कॉलेज में टीचर तुम्हारी सिफारिश से नहीं तुम्हारे ट्रस्टी की मेरे आदमियों द्वारा ब्लैकमेलिंग से लगी थी मैं और तुम्हारे स्कूल की बॉटनी टीचर भी हमसे डर कर छुट्टी पर भाग गई थी।”

मेरा दिमाग सन्न था। मेरी जरा सी मौज मस्ती ने मुझे कहां से कहां पहुंचा दिया था ।
“और तुम तो खुद ही मेरी झोली में गिरे थे!”
सपना बोली।
“मैं तो आईआईटी कानपुर में अजगर पकड़ने गई थी।तुम खुद ही गिर पड़े। फिर मेरे दिमाग में भी आ गया कि पापा के मरने के पहले ही अपनी ताजपोशी भी करवा लूं, वरना मेरे चाचा लोग दावा ठोंक देंगे गद्दी पर!मैने बस फ़ायदा उठा लिया। मेरे पापा गायब नहीं, मर चुके हैं, ये कई लोग जान चुके थे और मुझे रानी बनने की अपने कबीले की कार्यवाही पूरी ही करनी थी।”
मैं आंख मूंद के अपने मरने का इंतजार करने लगा। पतीले का पानी गर्म हो चुका था। तेल मसाले प्याज टमाटर पतीले में डालने की तैयारी ही थी कि तभी
पों पों चिऊं चिऊं की आवाज आईं।
इस बार म्यांमार पुलिस नहीं थी ये।
ये इंडियन आर्मी थी।


दस मिनट में पचास लाशें वहां बिछ चुकी थीं।
उन लाशों में से एक लाश सपना चिंग मिंग की भी थी।
इंडियन आर्मी ने मुझे बचाया। उन्होंने ही बताया कि ये कबीला चीनी लोगों के भारत में जासूसी नेटवर्क का मुख्य अंग था। भारत में नशीली दवाओं और मानव तस्करी के ये बड़े व्यापारी थे। पिछ्ले दिनों इस कबीले ने घात लगा कर 5 भारतीय सैनिकों को मार डाला था और तब से इंडियन आर्मी इस कबीले के सारे अपराधियों के एक जगह एकत्रित होने की फिराक में थी। आज उन्हें सूचना मिली थी कि इस कबीले के सारे अपराधी एक जगह एकत्रित हैं और उन्होंने धावा बोल दिया था।
सेना वाले मुझे अपने साथ अपने कैंप ले गये और उनके कमांडर ने अपनी एक जीप भेजकर मुझे गुवाहाटी रेलवे स्टेशन तक पहुंचा दिया।
पर मेरी कानपुर जाने वाली ट्रेन मेरे स्टेशन आते ही छूट गई।
“शायद आज का आपका दिन खराब है।”
मुझे छोड़ने आया सैनिक हंसकर बोला।
मैं मुस्कुरा के रह गया।
समाप्त।
विपुल मिश्रा
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