गिरी सुमेल का युद्ध
प्रस्तुति – अर्पित भार्गव
राजस्थान !
विधाता ने राजस्थान के हिस्से में सैकड़ों युद्ध लिखे, सैंकड़ों वीरगति लिखीं और सैकड़ों गाथायें भी लिखीं।
राजस्थान के लोग ऐसे कि अपनी बात पे जान तक दाँव पर लगा दें।
आज एक ऐसे ही युद्ध की बात ,जहाँ पर कुँए पे बात कर रही 2 पनिहारिन एक दूसरे से कहती हैं कि जब तक इस युद्ध में जैता और कुंपा हमारी ओर से लड़ रहे हैं हैं तब तक अफ़ग़ानी सैनिक हमारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते।
मैं बात कर रहा हूँ गिरी सुमेल के युद्ध की ।
उस वक़्त मारवाड़ पर महाराज मालदेव राठौड़ का शासन था ।
महज़ 8 हज़ार राजस्थानी योद्धाओं के आगे (कुछ जगह 10 हज़ार की सेनाका वर्णन भी मिलता है) 80 हज़ार की सेना शेरशाह सूरी की थी इस युद्ध में।
मारवाड़ का क़िला ऊँची पहाड़ी पर था।शेरशाह सूरी को ये पता था कि क़िले पर चढ़ाई करना मुश्किल है,इसलिये उसने क़िले में नीचे से आ रही दैनिक उपभोग की चीज़ों की आपूर्ति छल से बंद करवा दी।
मारवाड़ के महाराज मालदेव अपनी सेना के साथ नीचे उतरे और एक खुले मैदान गिरी सुमेल नाम के स्थान पर आ गये।गिरी सुमेल आज के पाली ज़िले में स्थित एक छोटा सा कस्बा है।
महाराज स्वयं चल के युद्ध आरंभ नहीं करना चाहते थे ।महाराज की सेना और सूरी की अफगानी सेना,दोनों सेनायें तब तक सामने सामने आ चुकी थीं।
काफ़ी समय बीत गया। युद्ध जब दोनों तरफ़ से शुरू न हुआ तो महाराज मालदेव को जोधपुर की चिंता सताने लगी।शेरशाह सूरी तब इस अकड़ में घूमता था कि दिल्ली की सत्ता उसने अपने बलबूते पाई है।
शेरशाह सूरी की सेना 80 हजार घुड़सवारों और 40 तोपों के साथ गिरी सुमेल आ धमकी थी।
जब काफ़ी समय बीत गया ,युद्ध शुरू ही नहीं हुआ ,तब मारवाड़ के एक कुएं पर दो पनिहारिनें आपस में बात कर रही थीं..इसमें से एक महिला ने चिंता जताते हुए दूसरी से कहा कि “अफगान सैनिक बहुत खूंखार हैं…अगर वो यहां आ गये तो हमारा क्या होगा?” जवाब में दूसरी महिला ने कहा कि “जब तक जेता और कुम्पा मौजूद हैं तब तक डरने की कोई बात नहीं।”
जेता और कुम्पा उस वक्त वहीं मौजूद थे।उन्होंने उन दोनों पनहारिनों की आपस में हो रही ये बात सुन ली थी।
उसके बाद 4 जनवरी 1544 के दिन कुम्पा और जेता ने महाराज मालदेव को जोधपुर जाने का कहकर शेरशाह की सेना पर हमला कर दिया….शेरशाह को उम्मीद थी उसकी 80 हज़ार की सेना एक दिन में ये युद्ध समाप्त कर देगी ..लेकिन हुआ इसका उलटा .. कुम्पा और जेता के नेतृत्व में राजस्थानी योद्धाओं ने मुकाबले की शक्ल ही बदल कर रख दी…कुछ ही घंटों में बादशाह शेरशाह सूरी की आधी सेना का सर कलम हो चुका था ।
रणभूमि में कुम्पा और जेता के इस तांडव को देख कर शेरशाह सूरी डर गया ..और सामने आने से उसने मना कर दिया ।
हालत यहां तक पहुंच गई कि शेरशाह ने मैदान छोड़ने की तैयारी कर ली….उसने वापस दिल्ली जाने का आदेश दे दिया था लेकिन इस बीच उसके सेनापति खवास खान ने आकर खबर दी कि कुम्पा और जेता मारे गए हैं।।
लगभग 50 हज़ार के करीब सूरी सेना को पीटकर दो योद्धा वीरगति को प्राप्त हुए ।
युद्ध के बाद जेता और कुम्पा की बहादुरी देख शेरशाह ने अपने सेनापति से कहा –
“बोल्यो सूरी बैन यूँ, गिरी घाट घमसाण,
मुठी खातर बाजरी, खो देतो हिंदवाण।।”
अर्थात् – शेरशाह ने खवास ख़ान ( उसके सेनापति) से कहा, “मैं मुट्ठीभर बाजरे के लिए दिल्ली की सल्तनत गवां देता।।”
आप यक़ीन कीजिये,ये इतिहास है हमारा! इतिहास में ऐसे युद्ध आपको विरले ही सुनने को मिलेंगे जहां मात्र दो महिलाओं की आपस की बात पर कैसे दो सैनिक युद्ध के लिये मैदान में उतर गये ।
आप कल्पना करके देखिये मारवाड़ में उस काल में महिला सम्मान कितना था कि उनकी आँच की रक्षा के लिए युद्ध हुये,प्राणों की आहुतियां दी गईं ।
आज की पीढ़ी कितना ही जानती होगी राव जेता , राव कुम्पा और महाराज मालदेव राठौड़ के बारे में? जिन्होंने बाद में अपनी सारी युद्ध चौकियाँ वापस हासिल कर इस युद्ध का बदला भी लिया था।
महाराज मालदेव के बारे में फिर कभी विस्तार से।
जय जय । 🙏
अर्पित भार्गव
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🙏