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आपका -विपुल


मेरा रिव्यू – तू झूठी मैं मक्कार
आपका -विपुल

एडी
एबडॉमिनल गार्ड
क्रिकेट खेलने वाले जानते हैं ये स्माल रोल ह्यूज इंपैक्ट वाली चीज आपके मध्य प्रदेश के मध्य की सुरक्षा के लिये कितनी जरूरी है।
लेकिन ये कुछ नई टाइप की थी और इसकी एक बैल्ट कुछ टूटी सी थी।

बिना बेल्ट वाली सब एडी गायब थीं, सही एडी सब गायब थीं, यही बची थी।
“एजबेस्टस वाली है भाई, फायर प्रूफ।”
बगल में बैठा प्लेयर बोला।
“मुझे कौन सा आग के कुएं में जाना है bsdk?”
मैंने तेज आवाज में कहा।
एक बैल्ट की क्लिप थोड़ी टूटी सी दिख रही थी,एक भाई ने फेविक्विक से चिपका दी।
अब मैं ओपनिंग में जाने के लिये तैयार था।
इसके पहले बॉलिंग भी पूरे 4 ओवर की थी।
मैं टीम का बहुत जिम्मेदार खिलाड़ी था।
जो विपक्षी टीम के 144 रन बने थे, उनमें 54 रनों का जिम्मेदार मैं ही था।उनके 50 रन बनाने वाले खिलाड़ी के दो दो कैच छोड़ने का जिम्मेदार मैं ही था। और ओपनिंग में जाने की जिम्मेदारी भी मैंने ही ली थी।

किसी में मुझे रोकने की हिम्मत नहीं थी क्योंकि टीम के लिये सारे बैट मैंने ही खरीदे थे।
मैं एक बेहतरीन बल्लेबाज था।
पहली गेंद पर मैं आउट नहीं हुआ, मेरा डिफेंस अच्छा था।
दूसरी गेंद अच्छी थी, पर मेरा भाग्य ज्यादा अच्छा था कि बीट होने के बावजूद बोल्ड नहीं हुआ।
तीसरी चौथी गेंद मुझे दिखी नहीं। पांचवीं पर फील्डिंग अच्छी थी। छठी पर सिंगल ले लिया।
विकेट नहीं फेंक सकता था, मैं जिम्मेदार बल्लेबाज था।
अगले ओवर की 5 गेंदें खाली निकालने के बाद छठी गेंद पर मैंने एक लंबा शॉट खेलने की जिम्मेदारी ली, कैच आऊट हुआ। और एक ओपनिंग बल्लेबाज के तौर पर 12 गेंदों पर 1 रन बनाकर अपनी जिम्मेदारी पूरी तरह से निभा कर पवेलियन लौटा।
अब हमारी टीम को 18 ओवर में 144 रन बनाने थे।

मेरी टीम का कोई भी प्लेयर मुझे खुलेआम गाली नहीं दे सकता था क्योंकि ग्रीन पार्क के इस स्टेडियम के कोने में बनी इस खुथरी पिच पर और इस परित्यक्त ड्रेसिंग रूम को इस्तेमाल करने की इजाजत मैंने ही अपने दोस्तों को दिलवाई थी।
ज्यादा कुछ नहीं लगा था, बस राजीव शुक्ला ने एक फोन कर दिया था, मेरे कहने पर,यहां के केयर टेकर को।
मैंने बस इतना ही सुना था शुक्ला जी के मुंह से –
“थोड़ा देख लेना भाई, मानसिक रोगी पागल और दीवालिया लोगों के लिये किसी काम को मना करना पाप होता है।”

तो ये मैच हम पुराने दोस्त डीएवी कॉलेज और एसडी कॉलेज की टीम बना के खेल रहे थे। मैं डीएवी टीम में था।
बल्ला फेंककर मैं अभी आराम से बैठा ही था कि फोन की घंटी बजी।
स्वीटू!
ये स्वीटू का फोन था।
स्वीटू मतलब स्वेतलाना सोहराब जी सालुंके।

जब फेसबुक की मालती मेहरूनिसा मेंडिस ने अपना असली फेस दिखा दिया था तो मैं इंस्टेंटली इंस्टाग्राम पर आ गया था।फेसबुक की बुक ही मैंने अपने जिन्दगी के बैग से निकाल के फेंक दी थी।
आजकल के क्लासी लोगों की तरह मैं केवल इंस्टाग्राम पर था अब,
मेरी आईडी थी क्लासी विपुल।

और इंस्टाग्राम पर मैं केवल क्लासी लोगों को ही फॉलो करता था, इन्हीं में से एक थी स्वेतलाना सोहराब जी सालुंके, जो अरुणाचल प्रदेश में रहने वाली एक पुणे की लड़की थी।
इसकी इंस्टा आईडी थी खूबसूरत डाकू।

स्वेतलाना की पोस्ट स्टोरी और रील अक्सर इंगलिश और चाइनीज में होती थीं और हमेशा ही हरे भरे जंगलों, जड़ी बूटियों और पूर्वोत्तर भारत और म्यांमार चीन की सीमा पर पाये जाते जानवरों पर होती थीं।


मैंने गौर किया था,उसके फॉलोअर्स बहुत नहीं थे ।पर जितने भी थे बड़ी हस्तियां थीं ,ब्लू टिक वाली ।और ज्यादातर वैज्ञानिक और डॉक्टर टाइप लोग, ब्लू टिक वाले।
वाकई क्लासी थी वो और ये क्लास तब भी दिखा जब उसने मुझसे इनबॉक्स में गणित भौतिकी और रसायन विज्ञान के सूत्रों के अलावा कोई बात नहीं की।
बस एक दिन उसने इनबॉक्स मैसेज किया कि अगर दिक्कत न हो तो अपना व्हाट्सएप नंबर और ईमेल दो। कुछ व्यक्तिगत बात है।

ईमेल के बाद व्हाट्सएप कॉल और मुझे पता चला कि वो दरअसल तकरीबन 35 साल की एक विधवा थी जिसका एक 11 साल का बेटा भी था।
उसके मृतक पति सोहराब जी इंडियन तिब्बत बॉर्डर पुलिस में थे और चाइना बॉर्डर पर ही शहीद हुए थे।उन्हीं की पेंशन और ग्रेच्युटी से मिले पैसों से स्वेतलाना ने ईटानगर में एक मकान खरीद लिया था और ईटानगर में इत्र का व्यवसाय करने लगी थी।
ये प्राकृतिक इत्र कुछ फूल पत्तियों से और कीड़े मकोड़ों से बनता था।उसे अपना व्यापार फैलाने के लिए कन्नौज के इत्र की भी जरूरत थी।
कन्नौज इत्र के लिये विश्व विख्यात है। मैं कन्नौज का था, मेरा इत्र का साइड बिजनेस है।
ऐसा मैंने उसे बताया था और उसकी मुस्कुराहट मैंने कानों से सुनी थी।
उसकी आवाज कुछ अजीब सी थी।
यही नहीं किसी के मर्सिडीज के आगे खींची गई मेरी फ़ोटो और किसी के फार्म हाउस के बाहर खींची गई मेरी फ़ोटो माय लाइफ माय रूल्स कैप्शन के साथ मैंने इंस्टाग्राम पर पोस्ट कर दी थीं । और उसको स्वीटू ने लाइक भी किया था।
अपने व्यवसाय के उत्तर प्रदेश में प्रचार प्रसार लिये स्वीटू को एक इत्र व्यवसायी की जरूरत थी और उसने अपनी वो जरूरत पूरा करने के लिये मुझे काबिल समझा था।
उसने कहा था वो मार्च में अगर कानपुर आयेगी तो मुझसे ज़रूर मिलेगी। और ये मार्च ही था,19 मार्च।
क्या वो आ गई थी?
हां वो आ गई थी।
फोन उठाते ही उसने आदेश सा दिया।
” कानपुर के स्टॉक मार्केट चौराहे पर पहुंचो, मैं पंद्रह मिनट में वहीं पहुंच रही।”
इतना ही सुना मैंने और बाहर भागा।तब याद आया कि मैं पैड पहने हूं।
पैड खोले।और बाहर भागा।
सफेद कपड़ों और लाल जूतों में। लेकिन ये साले
एसडी कॉलेज के साथियों को इस वक्त ये गाने की क्या जरूरत थी ?
“हारा है तो भागा है, नेकर में हग मारा है।”


अभी हमारी टीम हारी नहीं थी।
17 ओवर में 144 रन बना सकती थी,3 ही आउट हुये थे 3 ओवर में।

स्टॉक मार्केट चौराहे तक मैं किसी की स्टाकिंग किए बगैर पहुंचा। और महबूब टेलर के बूब के नीचे जाकर खड़ा हो गया।

साइनबोर्ड था bsdk।

हमेशा गलत मतलब मत निकाला करो।

पंद्रह मिनट तक कई लोगों के ताने सुनने के बाद कि ये बूढ़े रोज लड़कियां ताकने यहां आते हैं मैं पक गया, मैंने स्वीटू को दोबारा फोन मिलाया।
और उसका जवाब आया
“सॉरी! मैं जेड स्क्वायर पहुंच गई हूं। यहीं आ जाओ।टिकट भेज रही हूं। व्हाट्सएप चेक करो, थियेटर में मिलते हैं।”

तू झूठी मैं मक्कार फिल्म का शो था 1 बज कर 10 मिनट का। उसी की टिकट की मैसेज आई।
प्लेटिनम क्लास।
अरे वही, जिसमें सोफे होते हैं, बेड जैसे।
मन में गुदगुदी सी होने लगी।
रिक्शा वाले ने बीस ही मांगे थे, मैंने तुरंत दिये।
जेड स्क्वायर पहुंचा।

सीधे मूवी फ्लोर, स्क्रीन वन।
आज ऑनलाइन फ्रेंड से पहली बार ऑफलाइन मिलने वाला था।
हालांकि सफेद क्रिकेट किट, लाल जूतों और भूरे बालों में मैं शायद सुपर कमांडो ध्रुव टाइप कार्टून सुपर हीरो लग रहा था, तभी किसी ने पीछे से कहा था, कैसे कैसे कार्टून चले आते हैं आजकल यहां।

350 रुपए वाले पॉपकॉर्न के दो पैकेट लेकर मैं प्लेटिनम वाली लाइन में पहुंचा, सीट नंबर 9 10 पर।
कॉर्नर वाली।
वहां एक कुछ लंबी सी स्मार्ट सी लड़की जींस टॉप पहने मुंह को सफेद कैप से ढांपे अधलेटी सी थी।
यही स्वीटू थी।

“हाय !मैं विपुल “
मैंने हाथ बढ़ाया।
“हाय हाय”
और फिर वही एक जानी पहचानी हंसी।
“बड़े दिनों बाद मिले।”
खतरा।
मालती मेहरुन्निसा मेंडिस ।

इस शीमेल ने ईमेल पर फीमेल बनकर मुझे फिर ठग लिया था।

मैं कुछ समझ पाता कि उसके पहले ही पीछे से आके किसी ने मुझे जकड़ा।
कई लोग थे।
मेरी बांह में एक इंजेक्शन लगा। सर घूमा। मैं बेहोश और उसके बाद जब होश आया तो मैं किसी लकड़ी के कॉटेज जैसी जगह पर था।
मेरे हाथ ऊपर लकड़ी की छत में लगे एक लोहे के कड़े से निकले रस्से से बंधे थे।
सामने मालती मेहरुन्निसा मेंडिस और उसका गैंग सोना मोना टोना और भगौना।
वही भगौना जिसे लोगों के प्राइवेट पार्ट अपने प्राइवेट भगौने में उबाल कर खाने का शौक था।
बाहर आती वाहनों की आवाज बता रही थी, हम कानपुर में ही किसी रोड के किनारे बने किसी कॉटेज में हैं।

आंखें खुलते ही सामने भगौना को हंसते देख मैं दहल उठा।
“भाई लोग! कैश ले लो, ऑनलाइन ले लो, पर इसे सामने से हटवाओं।”

“ही ही ही “
मेरी गुहार पर मालती मेहरुन्निसा मेंडिस फिर हंसी।
बहुत हंसती थी यार ये।

“चिंता मत करो।इसके पुराने शौक छूट चुके हैं”
“अब हमारा गैंग केवल अंगों की तस्करी करता है।”

“ओह।”
मैंने राहत की सांस ली और अगली ही सांस में फिर पूंछा-
“मतलब अब गरीबों के गुर्दे निकालते हो?”

“नहीं! बनमानुसों के वृषण निकाल के बेचते हैं।”

मैंने फिर राहत की सांस ली।
वैसे भी मेरे पास कोष के नाम पार अंडकोष ही हैं।

“तो मुझे क्यों पकड़ा? किसी बनमानुष को पकड़ते”

“ही ही ही ही ही ही “
अबकी हंसी कुछ लंबी थी मालती मेहरुन्निसा मेंडिस की।
” मतलब तुम अब भी खुद को आदमी समझते हो ?”

“ही ही ही ही ही ही”


Bsdk फंस गया था मैं।
मेरी आंखों में आंसू थे।
मेरी पैंट उतार दी गई और मेरी टांगों के बीच एक बड़े से थाली में एक बहुत बड़ी सी मोमबत्ती जला के रख दी गई।

“ये क्या है?”

“थोड़ा गरम कर लें। तब आसानी रहेगी।”

“क्यों करते हो तुम लोग ऐसा?”
मेरी आंखों में आंसू ही आ गये थे।
“चीन में बड़ा डिमांड है बनमानुसों के वृषण से बनी चूरन वाली दवाइयों की,1 ग्राम के 1 लाख तक मिल जाते हैं।”

“मुझे क्यों पकड़ा?”

“क्योंकि तुम चूतिया हो।”


बड़े इत्मीनान से बोली मालती मेहरुन्निसा मेंडिस।
“फेसबुक के बाद इंस्टाग्राम पर भी अपने आप ही मुझसे टकरा गये।आवाज भी नहीं पहचानी।”

फिर नीचे एक और मोमबत्ती लगाई गई। और मेरे होठों पर टैप भी चिपका दिया गया जिससे मैं न चीखूं।
“अभी दो घंटे लगेंगे।”मालती अपने सहयोगियों से बोली,”तब तक मैं बॉस से मिल आऊं।”
उसने भगौना को छोड़ बाकी सबको अपने साथ लिया और वहां से निकल गई।

भगौना मुस्कुराते हुये पाशविक दृष्टि से मुझे घूर रहा था।
और मैं मन ही मन भगवान को याद कर रहा था।
एजबेस्ट्स की एडी कब तक साथ दे सकती थी भाई?


तभी जीवन में पहली बार यूपी सरकार काम आई।

अचानक ही दरवाजे पर कुछ शोरगुल हुआ।दरवाजे कस कर थपथपाये गये।
“ओये पुल्स आ गई पुल्स।”

भगौना ने बस एक पल मुझे देखा और फिर अचानक मेरे पीछे भागा, कोई दरवाजा था। खुलने की आवाज आई और इधर सामने वाले दरवाजे पर फिर आवाज आई।
“ओये दरवाजा खोल ओये, पुल्स आ गई पुल्स।”

तीसरी बार आवाज नहीं आई , दरवाजा ही टूटा,
और एक सरदार जी इंस्पेक्टर के पीछे मुझे जो दिखा वो पिस्टल पांडे था।
स्माल रोल ह्यूज इंपैक्ट।
पिस्टल पांडे सफेद पायजामे, भगवा मोदी कट कुरता के साथ भगवा गमछे में था, मस्तक पर तिलक, गले में स्फटिक की माला और हाथ में दंड।

ईश्वर है भाई। आज मुझे पिस्टल पांडे में दिखा था।
उसने हैरत से मुझे देखा।मेरे मुंह से टेप निकाला।
और मेरे कुछ कहने के पहले ही उस सरदार इंस्पेक्टर के साथ आये दो कांस्टेबलों के भारी पुलिस बल को संबोधित करते हुये बोला।
“मैं कह रहा था ना,ये कॉटेज अवैध धर्मांतरण का अड्डा है,जो इनकी बात नहीं मानते, उन्हें विकलांग बना के भीख मंगवाते हैं।”
मैं हक्का बक्का रह गया।
ट्रुथ इज स्ट्रैंजर दैन फिक्शन। सत्य हमेशा कहानियों से ज्यादा विचित्र होता है। ये कहावत मैंने सत्य होते देखी।
ऐसा बहाना तो मैं सोच भी नहीं सकता था।

मैंने आंखों में आंसू भर के कहा,
“जय जीसस! मुझे अजीब सा इंजेक्शन लगाया है। मुझे घर ले चलो, हनुमान चालीसा पढ़नी है और बेहोश होने का नाटक सा करने लगा।
मैंने गौर किया। कमरे में ईसा मसीह की एक तस्वीर लगी थी।
भगौना शायद पीछे के रास्ते से भाग गया था।
पिस्टल पांडे की गाड़ी में पीछे लेटे घर जाते हुये उसके साथियों की बातों से पता चल रहा था कि पिस्टल पांडे धर्मांतरण निषेध कार्यक्रम का मुख्य संयोजक था और उसके गैंग को इस कॉटेज पर पहले से संदेह था क्योंकि यहां अक्सर मसीही समाज कार्यक्रम आयोजित करता था।
कॉटेज किसका था पता नहीं, पर अबकी बार मुझ पर किसी ने गुस्सा नहीं किया था, न पिस्टल पांडे ने, न पत्नी ने।उन्हें केवल इतना बताया कि मेरा इंजेक्शन लगा कर अपहरण किया गया था।जब मैंने धर्मांतरण से मना किया था कुछ लोगों से जो मुझसे मिलने आये थे।

फेसबुक के बाद इंस्टाग्राम पर से भी विश्वास उठ गया था।
अब सोच रहा हूं केवल ट्विटर चलाऊं।

और हां!
तू झूठी मैं मक्कार फिल्म बढ़िया है। हल्की फुल्की है। एक बार देख सकते हैं।

विशेष टिप्पणी -क्रिकेट खेलते हैं तो एबडॉमिनल गार्ड का इस्तेमाल ज़रूर करें। स्माल रोल ह्यूज इंपैक्ट।

आपका -विपुल
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