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आपका -विपुल

हमने जब पढ़ना सीखा था तो दो यादें हैं सबसे पहली।

एक तो दैनिक जागरण का अखबार थोड़े पीले पन्ने में आता था और भोपाल गैस काण्ड की खबर कहीं देखी थी।

रविवार, दिनमान माया, कादम्बिनी, नवनीत, सरिता, मुक्ता, साप्ताहिक हिंदुस्तान, धर्मयुग और ब्लिट्ज जैसी पत्रिकाएं भी थीं मेरे घर पर

हिंद पॉकेट बुक्स की किताबें मेरे माता पिता पहले से मंगवाते थे। डायमंड पॉकेट बुक्स से 18 रुपए के 3 उपन्यास हर महीने का ध्यान है हमें।

हिंदी उपन्यास में दो सीधे वर्गीकरण थे। सामाजिक और जासूसी ।

मेरठ के प्रकाशन गृहों से लुगदी के पेपर पर छपते थे ये उपन्यास।

पुराने लेखकों में मुझे गुलशन नंदा, प्रेम बाजपेई और दत्त भारती की याद है। ये सामाजिक उपन्यास लिखते थे। एक राजहंस थे। एक राजवंश।

कुशवाहा कांत भी थे एक जो बेचारे जवानी में ही समाप्त हो गए थे शायद।

गुलशन नंदा तो बेहद लोकप्रिय थे। राजेश खन्ना की तमाम फिल्में इनके उपन्यासों पर बनीं।

संजीव कुमार की सुपरहिट फिल्म खिलौना गुलशन नंदा के ही उपन्यास पर आधारित है गुलशन नंदा ने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री से काफी पैसे बनाए और नाम कमाया।एक बार ये रामधारी सिंह दिनकर को अपना नया उपन्यास देने पहुंचे तो दिनकर ने इनकी बेइज्जती कर दी थी।

फिर नंदा ने भी कभी साहित्यकारों को भाव न दिया

लगभग उसी समय जासूसी उपन्यासों में जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा बड़ा नाम थे।

एक मिल वर्कर ओमप्रकाश शर्मा दिनभर नौकरी करते थे और शाम को लिखते थे।

इनके मुख्य पात्र राजेश, जगत, जयंत जगन बंदूक सिंह थे। जगत इंटरनेशनल ठग था बाकी केंद्रीय खुफिया विभाग के जासूस ।

जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा ने कुछ सामाजिक उपन्यास भी लिखे हैं। इनकी भाषा बहुत सरल थी।

इनकी लोकप्रियता का फ़ायदा उठा कर एक दूसरे ओमप्रकाश शर्मा तैयार कर दिए गए और उन्होंने अपने उपन्यासों में राजेश और जगत के साथ एक विक्रांत नाम का पात्र ले लिया जो बहुत लोकप्रिय हुआ।

इसके बाद कुमार कश्यप आए और विक्रांत के साथ अपना एक पात्र बटलर बढ़ा दिया।

उधर पाकिस्तान जा चुके इब्ने सफी की उर्दू किताबें हिंदी में जासूसी दुनिया नाम से भी आती थीं जिनके मुख्य पात्र इमरान, कर्नल विनोद, कैप्टन हमीद थे।

इमरान का नाम राजेश कर दिया गया था हिंदी में।

इन्हीं इब्ने सफी के इमरान सीरीज को नकल करके वेद प्रकाश कांबोज ने विजय और अलफांसे सीरीज की किताबें लिखीं।

आगे वेद प्रकाश शर्मा आए और वेद प्रकाश कांबोज के विजय और अलफांसे के साथ एक विकास पात्र बढ़ा दिया और अपने उपन्यास लिखने लगे।

वेदप्रकाश शर्मा की लेखन शैली, कहानी कहने की कला और रहस्य की परतें बांधने की कला इतनी जबर्दस्त थी कि उनको सफ़ल होना ही था।

लुगदी पॉकेट बुक्स के इतिहास में इतना लोकप्रिय लेखक अभी तक नहीं हुआ था।

केशव पंडित, वतन जैसे इनके नए पात्र गजब थे।

इनकी किताबें बीबी का नशा, जुर्म की मां, कुबड़ा, नसीब मेरा दुश्मन जैसे उपन्यास आपको मिलें तो पढ़िएगा ।मजा आ जायेगा।

वर्दी वाला गुंडा की पब्लिसिटी बहुत हुई पर इनकी शुरू की किताबें ज्यादा बढ़िया थीं इससे।

फिर वेदप्रकाश शर्मा ने केशव पंडित, और अपने लड़के शगुन शर्मा के नाम से भी लिखा।

वेदप्रकाश शर्मा ने तुलसी पॉकेट बुक्स भी खोला था। इनकी सीधी टक्कर लेखक के तौर पर सुरेंद्र मोहन पाठक से होती थी।

सुरेंद्र मोहन पाठक टेलीफोन विभाग के कर्मचारी थे जिन्होंने लेखन का काम जेम्स हेडली चेइज के इंगलिश उपन्यासों के हिंदी अनुवाद से शुरू किया था।

फिर इन्होंने अपने उपन्यास लिखे

सुरेंद्र मोहन पाठक ने सरदार सुरेंद्र सिंह सोहेल उर्फ विमल नामक पात्र की रचना की और इस सीरीज के उपन्यास बेहद लोकप्रिय हुए। वैसे इनका मुख्य पात्र सुनील चक्रवर्ती था, इसके उपन्यास इन्होंने ज्यादा लिखे।एक पात्र सुधीर कोहली का भी निर्मित किया।

दस लाख,तीस लाख,पचास लाख जीत सिंह सीरीज थी

इनकी वहशी किताब बहुत बढ़िया है। दहशतगर्दी भी एक है।ये दोनों थ्रिलर हैं किसी सीरीज में नहीं हैं।मुझे अच्छी लगीं।दस लाख भी अच्छी है।

सुरेंद्र मोहन पाठक के कुछ उपन्यासों को हार्पर कोलिंस प्रकाशन ने इंगलिश अनुवाद के साथ प्रकाशित भी किया है।पाठक आज भी हिंदी जासूसी उपन्यासों को जिंदा रखे हैं।

इसी समय टाइगर के छद्म नाम से कुछ जासूसी उपन्यास और मनोज के नाम छद्म नाम से कुछ सामाजिक उपन्यास भी छपे। मनोज के नाम से ज्यादातर घोस्ट राइटिंग शायद वेद प्रकाश शर्मा ने ही की थी।विनय प्रभाकर थे।

उसके पहले कर्नल रंजीत और चंदर का जिक्र रह ही गया।

कर्नल रंजीत नाम से कोई मुस्लिम लेखक उपन्यास लिखते थे और उनके मुख्य पात्र मेजर बलवंत थे जो होंठ गोल कर सीटी बजाते थे। उनका कुत्ता क्रोकोडायल था,सेक्रेटरी सोनिया और सहयोगी सुनील, मालती ,डोरा ,सुधीर थे।

चंदर नाम से आनंद प्रकाश जैन लिखते थे। इनके मुख्य पात्र भोलाशंकर थे। जासूस।

ये भोलाशंकर पात्र उन गोपाल शंकर का बेटा बनाया गया था जो चंद्रकांता संतति रचने वाले देवकी नंदन खत्री के सुपुत्र दुर्गा प्रसाद खत्री के उपन्यासों के नायक थे।

इब्ने सफी, कर्नल रंजीत और चंदर जासूसी उपन्यासों के लिखने वाले पहले लोगों में थे।

फिर बाद में ओमप्रकाश शर्मा, वगैरह आए।

1995 आते आते केबल टीवी घर घर पहुंचने लगी थी और उपन्यासों का काम कम हो रहा था। दिन भर टीवी पर प्रोग्राम आते थे। किताबें कौन पढ़ता?

अनिल मोहन की देवराज चौहान सीरीज ठीक थी पर मोना चौधरी सीरीज और दिनेश ठाकुर की रीमा भारती सीरीज ने बात और बिगाड़ी।

इनमें हद से ज्यादा ही अश्लीलता थी ।

फिर मोबाइल के प्रचलन के साथ ही लुगदी पॉकेट बुक्स का काम लगभग खत्म ही हो गया।

इसकी एक वजह और थी कि शायद पहले सरकार लुगदी वाले कागज़ पर कुछ छूट देती थी, वो छूट ही खत्म हो गई।

कॉमिक्स के बारे में फिर कभी बात करेंगे।

मैंने वेताल और बहादुर की कॉमिक्स पढ़ी हैं और टिंकल का जंत्री मंत्री

टिंकल का शंभू शिकारी, कालिया कौआ, मेंड्रेक, लोथार, फ्लैश गार्डन, चंदामामा, चीकू खरगोश और सबसे ऊपर चाचा चौधरी।

इनके बारे में फिर कभी।

🙏🙏

आपका -विपुल

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