एक देश, एक चुनाव: लोकतंत्र की नई दिशा या चुनौतीपूर्ण कदम?
प्रस्तुति – सत्या चौधरी
भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है, जहां चुनावी प्रक्रिया का महत्व केवल शासन के चयन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जनभागीदारी और लोकतांत्रिक मूल्यों की अभिव्यक्ति का प्रतीक है। लेकिन यह भी सच है कि बार-बार होने वाले चुनाव देश के आर्थिक और प्रशासनिक तंत्र पर भारी बोझ डालते हैं।
भारत में हर साल किसी न किसी राज्य में विधानसभा चुनाव, और साथ ही शहरी और ग्रामीण निकायों के चुनाव होते रहते हैं। यह चुनावी चक्र न केवल सरकार और राजनीतिक दलों को लगातार चुनावी मोड में बनाए रखता है, बल्कि विकास कार्यों को भी बाधित करता है। चुनाव की घोषणा होते ही आचार संहिता लागू हो जाती है, जिससे सरकारी योजनाओं और निर्णयों पर रोक लग जाती है।
इसके अलावा, चुनाव एक खर्चीली प्रक्रिया है। प्रत्येक चुनाव में अरबों रुपये खर्च होते हैं, जो देश के आर्थिक संसाधनों पर भार डालते हैं। राजनीतिक दलों को चुनाव प्रचार के लिए धन जुटाने की जरूरत होती है, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही पर सवाल उठते हैं।
देश में लंबे समय से यह मांग उठती रही है कि लोकसभा और राज्य विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए जाएं। इस दिशा में एक समिति का गठन भी किया गया था, जिसने इस विचार की व्यवहार्यता पर अध्ययन किया। हाल ही में, केंद्र सरकार ने “एक देश, एक चुनाव” के प्रस्ताव को आगे बढ़ाने की मंजूरी दी है।
इसका उद्देश्य सरकार को पूरे पांच साल तक स्थिरता के साथ कार्य करने का अवसर देना है, जिससे वह चुनावी दबाव से मुक्त होकर दीर्घकालिक और कठोर फैसले ले सके। साथ ही, इससे चुनावी खर्चों में भी भारी कमी आएगी।
संवैधानिक और कानूनी चुनौतियां
हालांकि, इस विचार को लागू करना आसान नहीं है। कई संवैधानिक और व्यावहारिक सवाल हैं जिनका उत्तर खोजना आवश्यक है:
1. अगर किसी राज्य में समय से पहले सरकार गिर जाए तो क्या होगा?
क्या राज्य बिना निर्वाचित सरकार के पांच साल तक कार्य करेगा, या फिर चुनाव कराए जाएंगे?
2. अगर केंद्र में सरकार गिर जाए तो क्या स्थिति होगी?
क्या ऐसे हालात में केवल केंद्र के चुनाव कराए जाएंगे, या फिर बाकी राज्यों को भी चुनावी प्रक्रिया में शामिल किया जाएगा?
3. जिन राज्यों में पहले ही चुनाव हो चुके हैं, उनका कार्यकाल कैसे संतुलित किया जाएगा?
क्या कुछ राज्यों में सरकारों का कार्यकाल छोटा किया जाएगा, या फिर अन्य राज्यों के चुनाव स्थगित किए जाएंगे?
फायदे:
• आर्थिक बचत: बार-बार चुनाव कराने की जरूरत खत्म होने से सरकारी खजाने पर बोझ कम होगा।
• राजनीतिक स्थिरता: सरकार को पूरे पांच साल बिना चुनावी दबाव के काम करने का अवसर मिलेगा।
• प्रशासनिक कार्यों की निरंतरता: चुनावी आचार संहिता के कारण रुकने वाले कार्यों की समस्या खत्म होगी।
नुकसान:
• विविधताओं वाला देश: भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में उत्तर, दक्षिण, पूर्व, और पश्चिम के राजनीतिक मुद्दे और प्राथमिकताएं अलग होती हैं। एक साथ चुनाव से क्षेत्रीय आवाजें दब सकती हैं।
• केंद्र और राज्य के अलग मुद्दे: अभी तक देखा गया है कि लोग केंद्र और राज्य के चुनावों में अलग-अलग निर्णय लेते हैं। एक साथ चुनाव से यह भिन्नता खत्म हो सकती है।
• सत्ता का केंद्रीकरण: यदि एक साथ चुनाव में किसी एक पार्टी को बहुमत मिल गया, तो सत्ता का अत्यधिक केंद्रीकरण लोकतंत्र के लिए खतरा बन सकता है।
आगे की राह
“एक देश, एक चुनाव” एक दूरगामी विचार है, लेकिन इसे लागू करने से पहले व्यापक विचार-विमर्श और संवैधानिक समाधान आवश्यक है। सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि इस प्रक्रिया से न केवल लोकतंत्र की जड़ें मजबूत हों, बल्कि देश की विविधता और जनभावनाओं का सम्मान भी बना रहे।
इसके अलावा, स्थानीय निकायों के चुनाव को विधानसभा और लोकसभा के चुनावों से अलग रखना बेहतर हो सकता है। इससे जनता को अपनी राय व्यक्त करने और सरकार के प्रदर्शन का आकलन करने के अवसर मिलते रहेंगे।
उपसंहार
“एक देश, एक चुनाव” एक क्रांतिकारी कदम हो सकता है, लेकिन इसके प्रभावों को समझे बिना इसे लागू करना जोखिम भरा हो सकता है। सरकार को चाहिए कि इस मुद्दे पर सभी पक्षों, राजनीतिक दलों और विशेषज्ञों के साथ संवाद करे और सर्वोच्च न्यायालय की मंजूरी भी सुनिश्चित करे। लोकतंत्र की सफलता न केवल चुनावों की संख्या में, बल्कि उनकी गुणवत्ता में है।
प्रस्तुति -सत्या चौधरी
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