भाग 3- सुराग
पूर्व भाग
भाग 1 – गिलहरियों के दुश्मन
भाग 2 – तहकीकात
भाग 3 सुराग
आपका -विपुल
भोंपू से भों निकाल कर ,सरोद से स निकाल कर बीड़ी से ड़ी निकाल कर और केटली से के निकाल कर और इन चारों को एक साथ एक ही लाईन में लिखने पर जो वाक्यांश बनता है , ठीक वही निकला था सत्या भाई के मुंह से । और वो एकदम बदहवास से होकर बाहर भागे और बेख्याली में उनका हाथ राजबाला से टकराया और राजबाला का शरीर अनियंत्रित सा हुआ अस्थिर सा हुआ और राजबाला आगे की ओर गिरी और उसका पैर सब इन्सपेक्टर सत्या चौधरी के पैरों से टकराया और फिर दोनों ही भूमि पर गिरे ।एक के ऊपर एक ।
ठीक यही वो समय था जब गोलियों की आवाज सुन कर सब इन्सपेक्टर सत्या चौधरी का वफादार और जांनिसार हवलदार डीएसपी पण्डित उस कमरे में घुसा जिसमें सत्या चौधरी और राजबाला चौधरी एक के एक के ऊपर एक भूमि पर गिरे पड़े थे।
’मतलब संजू सैमसन को एक भी चांस न मिले और ऋषभ पंत को हर मैच में मौका मिलता जाये ?’
हवलदार डीएसपी पण्डित इस माहौल में भी अपनी नाराजगी जताने से नहीं चूका।
’बकवास बंद कर!’
सब इन्सपेक्टर सत्या चौधरी राजबाला चौधरी को जहां है ,जैसा है आधार पर छोड़ कर उठ खड़े हुये ।
राजबाला चौधरी भी उठी और हवलदार डीएसपी पण्डित को खा जाने वाली नजरों से देखा।
सत्या चौधरी बाहर भागे ।पीछे पीछे हवलदार डीएसपी पण्डित और राजबाला चौधरी ।
राजबाला के आंगन में उसके चार पाण्डव स्तब्ध खड़े थे और एक बुजुर्गवार को आंखें फाड़े देख रहे थे,जिसके हाथ में एक राइफल थी और उसकी नाल से निकलता धुंआ तस्दीक कर रहा था कि राजबाला चौधरी की दराज खोलने का प्रयास करते वक्त सत्या चौधरी को जो धांय धांय की आवाज सुनाई पड़ी थी ,वो इसी राइफल से निकली गोलियों की थी ।
’कौन हो भाई ?’
सब इन्सपेक्टर सत्या चौधरी ने कर्कश आवाज में पूंछा ।
’ये किसी दूसरे के आंगन में दिन दहाड़े आकर फायरिंग करने का क्या मतलब ?’
’बलवंत !’
’मेजर बलवंत !’
नीले रंग का पैण्ट और स्लेटी रंग का चारखाने का कोट पहने वो आदमी अपना परिचय देता हुआ मुस्कुराया।उसका कद लगभग पौने छह फिट का था।सांवला रंग और सफेद मूंछें।
’और दरोगा जी ! मुझे मजबूरी में अंदर आना पड़ा। अभी अभी दो लोग राजबाला के घर में दीवार फांद कर घुस रहे थे।दूर से देखा ,ललकारा।उन्होंने मुझ पर कट्टे से फायर कर दिया।और फिर मैने लगातार फायर कर दिये।’
उस बूढ़े मेजर बलवंत की बात सच लग रही थी। राजबाला के आंगन में एक कोई काले रंग की मरदाना चप्पल दिख रही थी जो तब नहीं थी जब सत्या चौधरी राजबाला चौधरी के आंगन में पहली बार आये थे।
और तभी सत्या भाई का माथा ठनका ।
राजबाला के आंगन में एक मरणासन्न गिलहरी भी दिखाई दी उन्हें ।
ऐसा लग रहा था कि इस गिलहरी की गरदन पर किसी ने किसी नुकीली चीज से वार किया था क्योंकि गिलहरी की गरदन पर किसी नुकीली चीज के भोंके जाने के निशान थे और कुछ खून की बूंदें भी उस गिलहरी की गरदन पर दिख रही थीं।
सब इन्सपेक्टर सत्या चौधरी बुदबुदा उठे।
’कुछ तो गड़बड़ है पण्डित जी ! कुछ तो गड़बड़ है!’
’तो दरवाजा तोड़ दूं क्या ?’
’तू दया है क्या बे ? ऐसी ओवर एक्टिंग क्यों कर रहा है?’
सब इन्सपेक्टर सत्या चौधरी दांत पीस कर बोले हवलदार डीएसपी पण्डित से, जो अभी भी राजबाला चौधरी के उभरते छलकते यौवन को गिद्ध दृष्टि से देख रहा था जबकि मामले संगीन होते जा रहे थे।
’तो आप कौन से एसीपी प्रद्युम्न हैं ?’
हवलदार डीएसपी पण्डित पूरी तरह से ढीठपन पर उतर आया था।
उसके चेहरे पर साफ झलक रहा था कि वो सत्या चौधरी के अकेले अकेले दराज खोलने की मंशा से बेहद नाराज था।
सत्या चौधरी अपने मुंहफट हवलदार पर आता गुस्सा पीकर आगे बढे़े ।गौर से घटना स्थल का और पीड़ित का मुआयना किया ।दो जोड़ी इन्सानी पैरों के निशान मेजर बलवंत की बातों के सही होने की पुष्टि कर रहे थे। और उस गिलहरी के बगल में कुछ और खून की बूंदें भी थीं जो पुष्टि कर रही थीं कि ये गिलहरी इकलौती शिकार नहीं थी उन लोगों की जो राजबाला के आंगन में पता नहीं किस इरादे से उतरे थे।
राजबाला के घर के आंगन की दीवारें दस फुट से ज्यादा ऊंची नहीं थीं और चूंकि घर के पीछे की तरफ खेत थे जहां उसकी दीवार से लगकर कूड़ा पड़ता था तो ये दीवार आठ फुट से ज्यादा ऊंची नहीं रह जाती थी जिसे सामान्य कद काठी का कोई भी बड़ी आसानी से फांद सकता था।
सब इंस्पेक्टर सत्या चौधरी ने राजबाला चौधरी के चार पाण्डवों से पूंछतांछ की कोशिश की लेकिन असफल रहे।
क्योंकि युधिष्ठिर हकला था, भीम तुम्हें नाईं बतइयैं पर अटक गया था,
अर्जुन के नासिका छिद्र से निकलता गाढ़े पीले रंग का द्रव्य देखकर सत्या चौधरी की उससे बात करने की इच्छा मर गई थी और दो साल के नकुल ने आबा साबा छाबा छोड़ कर कुछ बोलना ही नहीं सीखा था शायद ।
आखिरी सुराग मेजर बलवंत बचे थे जिनसे सब इन्सपेक्टर सत्या चौधरी को गिलहरियों के दुश्मनों के बारे में कुछ बातें पता चल सकती थीं।
जब तक सब इन्सपेक्टर सत्या चौधरी चार पाण्डवों के साथ महाभारत खेल रहे थे तब तक उस मासूम गिलहरी का इंतकाल हो चुका था।राजबाला चौधरी घबराई हुयी थी।उसने बताया कि पहली बार ऐसा कुछ उसके घर में हुआ है कि किसी ने दीवार फांदने की हिम्मत की हो।
उसे वहीं छोड़ कर सत्या चौधरी राजबाला चौधरी के घर से बाहर निकले ।और घर के पिछवाड़े के खेत में पहुंचे ।दूर दूर तक उन्हें कोई दिखायी नहीं दिया।
हवलदार डीएसपी पण्डित और मेजर बलवंत उनके पीछे थे।
सत्या चौधरी ने राजबाला को जाने को कहा और खेतों में आगे बढे।
सत्या चौधरी को ये खटक रहा था कि दिन दहाड़े राजबाला चौधरी के घर में घुसने की हिमाकत कोई कैसे कर सकता है ,वो भी जब राजबाला चौधरी कोई बहुत अमीर महिला नहीं दिखी थी उनको।
और सत्या चौधरी को एक और बात खटक रही थी ।इतनी गोलियां चलने के बावजूद गांव की आम जिन्दगी में किसी पर कोई प्रभाव नहीं दिख रहा था और सबसे बड़ी बात दो बावर्दी पुलिस वालों के गांव में होने न होने का कोई असर नहीं दिख रहा था गांव वालों में।
ये सब बातें जब उन्होंने साथ चलते मेजर बलवंत को बताईं तो वो हंस कर बोले और एक ही वनलाईनर से उन्होंने सत्या चौधरी के सारे सवालों के सटीक जवाब दे दिये।
’ये बिकरू का एरिया है सब इन्सपेक्टर साहब ।’
कुछ दूर खेतों में चलने के बाद सब इन्सपेक्टर सत्या चौधरी समझ गये कि अब परेड करना फिजूल है।कोई मिलने वाला नहीं है।वो बाबा कुंआ गांव छोड़ कर बिकरू जाने के इच्छुक थे पर मेजर बलवंत ने उनसे आग्रह किया कि वो उनके यहां एक कप चाय जरूर पी कर जायें ।सत्या चौधरी ने मेजर बलवंत के आग्रह का मान रखा और दस मिनट बाद ही सत्या चौधरी और हवलदार डीएसपी पण्डित मेजर बलवंत के घर के बाहर बने टीनशेड में बैठे थे।
और उनका वहां बैठना ही हुआ था कि एक बूढ़ी महिला स्लीवलेस ब्लाउज में प्राइसलेस स्माईल के साथ एक स्टेनलेस स्टील की प्लेट में शुगरलेस बिस्कुट और चाय लेकर हाजिर हो गयी ।
’मुझे पता था आप इन लोगों को लेकर यहां जरूर आयेंगे मेजर साहब’
उसने अपने दांत चमकाये जो पता नहीं असली थे कि नकली ।
’आपके भीतर का जासूस अभी भी जिंदा है।’
सत्या भाई कुछ बोलते , उसके पहले ही मेजर बलवंत ने उस महिला का परिचय करवाया ।
’मीट माई वाईफ सोनिया।’
’हैलो मेम ’
सब इन्सपेक्टर सत्या चौधरी ने अभिवादन किया और हवलदार डीएसपी पण्डित ने तानसेन तमाखू का अगला डोज चबाते हुये मन में अनुमान लगाया |
“राजबाला और दरोगा जी के बीच उतनी देर में क्या क्या हो गया होगा ?”
’आप जासूस रहे हैं क्या मेजर साहब ? आप तो मेजर हैं।सेना में रहे होंगें।’
सत्या भाई प्रभावित हुये थे लेकिन सवाल पूंछने से खुद को रोक न पाये ।
’हां!कह भी सकते हैं।’ मेजर बलवंत ने चाय की सिप ली ।
’दरअसल मैं सेना में कभी नहीं रहा।मेरा नाम ही मेरे पिता ने मेजर बलवंत रखा था।थाने में चौकीदार और होमगार्ड रहा हूं ।और अपने क्षेत्र की सारी मुखबिरी करता था। थाना चौबेपुर हल्के का सबसे बड़ा जासूस माना जाता था मुझे।’
सत्या भाई को झटका सा लगा ।
’फिर ये ठाठबाट ? ये राइफल? ’
’अरे ये राईफल तो किसी पुलिस वाले की है । ’मेजर बलवंत हंसे ।
“पिछली सर्दियों में जब पण्डित जी को पकड़ने कुछ पुलिस वाले आये थे ,तब बन्दूकें छोड़ कर भागे थे अपनी ।तब जिसको जो मिली ,उसने वो बन्दूक रख ली ।मैंने ये वाली रख ली।”
’लेकिन गोलियां ?वो कैसे मिलती होंगीं ?’
’आप नये हैं अभी !सब समझ जायेंगे ।मेजर बलवंत हंसा।
“और ये सब ठाटबाट तो मेरे बच्चों की देन है।”
मेजर बलवंत फिर हंसे |
“बेटा सुधीर कुत्ते के बिस्कुट बनाने वाली कम्पनी में रहा है। मिजोरम में पोस्टेड रहने के दौरान वहां की एक तीरंदाज खिलाड़ी डोरा से शादी कर ली ।दोनों फिर यहीं आ गये ।आर्गेनिक खेती करने लगे।”
“छोटा बेटा सुनील नालायक था इंजीनियर निकल गया।लेकिन बहू प्राईमरी टीचर है ।मालती ।तो इन सब ने प्रापर्टी बना दी है|”
’सब यहीं रहते हैं?’
सत्या चौधरी का इतनी पूंछना था कि सोनिया,सुधीर, डोरा,सुनील ,मालती एक साथ उसके सामने हंसते मुस्कुराते खड़े थे।
मेजर बलवंत की बातें सुनकर और इस अखिल भारतीय परिवार को देख कर सब इंस्पेक्टर सत्या चौधरी को दो चीजें तत्काल प्रभाव से याद आईं।
राजश्री प्रोडकशन की फिल्म हम साथ साथ हैं और क्रोकोडायल।
’क्रोकोडायल रह गया।’
सत्या चौधरी के मुंह से निकल गया।
’हां है न!’
मेजर बलवंत खुशी से चहके ।
’दरअसल तो हमारी उन्नति और प्रगति का मार्ग तो उसी ने प्रशस्त किया है।आईये मिलवाता हूं।’
मेजर बलवंत सत्या चौधरी और डीएसपी पण्डित को लेकर अपने घर के पिछवाड़े पहुंचा।
क्रोकोडायल कुत्ता नहीं था।
क्रोकोडायल एक भैंसा था ।और मेजर बलवंत भैंस प्रजनन केन्द्र का सुपर स्टार था।
मेजर बलवंत ने गर्व से बताया कि उनके आसपास के बीस ग्रामों की भैंसें उनके क्रोकोडायल के पास ही गर्भधारण कराने के लिये भेजी जाती थीं।
एक मेटिंग का पांच हजार रूपये रेट था क्रोकाडायल का।
जब सत्या चौधरी की आंखें क्रोकोडायल से टकराईं तो उन्हें लगा कि क्रोकोडायल उनका आंखों ही आंखों में मजाक उड़ा रहा है।
वो हड़बड़ा कर वहां से निकले ।मेजर बलवंत का फोन नंबर लिया ।अपनी फोन नंबर दिया।और राजबाला के घर तक पैदल पहुंचे अपनी मोटरसाईकिल उठाने।
वहां ग्राम प्रधान साजन सिंह उनका इंतजार कर रहा था।बिकरू जाने के लिये।
आगे साजन सिंह की पैशन प्रो।पीछे सत्या भाई की प्लैटिना।
बिकरू से 200 मीटर पहले अचानक दोनों मोटर साईकिलें रोकनी पड़ी।
बीच सड़क पर एक चमड़े का काले रंग का बैग पड़ा था।
ढोलक नुमा बैग।
और उस पर एक कागज चिपका था।
’बैग खोलो सब इन्सपेक्टर सत्या चौधरी ,तुम्हारे लिये तोहफा है।’
डरते डरते सत्या भाई ने उस बैग को खोला
उस बैग में कुछ अखबार की कतरनें थी जिसमें सबमें किसी न किसी दरोगा की शहादत की खबर थी।और एक सफेद कागज पर काले पेन से लिखा संदेश
’जान की सलामती चाहते हो तो आगे की तहकीकात बंद करो।’
भाग 3 समाप्त
भाग 4 टकराव का इन्तजार करें।
आपका -विपुल
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