Spread the love

लेखक-राहुल दुबे

राहुल दुबे

 

यदि कोई लोकप्रिय हिन्दू कथावाचक एक मुस्लिम फ़क़ीर की दन्त कथाएं व्यासपीठ से सुनाए, एक दरगाह को देश का बुद्धिजीवी वर्ग धर्मनिरपेक्षता के प्रमोशन के लिए प्रयोग करे तो इन सब प्रसारित बातों को जानने वाले इंसान से आप कहे कि आप जिनको अपना समझ रहे है वे मिशन पर थे आपके पहचान को खत्म करने की तो वो आपसे न सहमत होगा और सम्भावना भी है कि वह आपसे नाराज हो जाये।। 

मैं बात कर रहा हु देश मे धर्मनिपेक्षता के सबसे बड़े शोरूम हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया और बाकी सूफियों की, आज के भारत मे शायद ही कोई हिन्दू परिवार होगा जो अजमेर शरीफ की दरगाह, या हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया की दरबार से होकर न आया हो, हिन्दुओ को लगता है कि उनके 33 कोटि हिन्दू देवी-देवताओं के बजाय ये चंद कट्टर मुसलमान की कब्र के दर्शन मात्र से इनके दुःख दूर हो जाएंगे, 

हाल में अजमेर शरीफ से खबर आई कि उनके चिश्तीयो के कट्टरपंथी बयान के बाद वहां लोगो के पहुचने में गिरावट आई है, लेकिन ये ऐसा पहला मामला नही था जिससे दरगाह एक्सपोज़ हो गए है,यदि हिन्दू अजमेर शरीफ जाना छोड़ भी दे तो निज़ामुद्दीन औलिया के दर पर जाएगा।।

भारत मे रह रहे हिन्दुओ का इतने बेहतर ढंग से ब्रेनवाश किया गया है कि आजतक उन्होंने इन सूफियों के बारे में जानने की कोशिश नही करी।।

भारत मे जितने भी सूफी आये वे अधिकतर इस्लामिक आक्रमणकारियों के साथ ही आये थे ये लोग इस्लामी तलवारों से लगे घावों पर मलहम लगाकर हिन्दुओ का भ्रमित कर मुसलमान बनाने का औजार थे, भारतीय किताबो में इनके बारे में इतने मधुर मधुर वाक्यों में इनकी तारीफ की गई है कि कोई भी इन्हें अच्छा मान ले लेकिन इनके बारे में वह हमें जानना होगा जो हमसे आजतक छुपाया गया है।

सबसे लोकप्रिय सूफियों में से एक हजरत निज़ामुद्दीन औलिया का यह मानना था कि यदि एक काफ़िर(हिन्दू) इस्लाम अपना भी ले तब भी उसे अल्लाह नही मिलेंगे उसे अल्लाह तभी मिलेंगे जब वो अल्लाह के बंदों के साथ समय व्यतीत करेंगे और इसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उसने अपने दरबार मे हिन्दुओ को भी शरण दी ताकि वह उन्हें मुसलमान बना सके।।

हज़रत निज़ामुद्दीन के विचार थे कि उलेमा जो भाषणों से पाना चाहता है हम उसे अपने व्यवहार से पा ले रहे है( हिन्दुओ का धर्म परिवर्तन)।

लेकिन हिन्दुओ को काफ़िर समझने वाले हज़रत निज़ामुद्दीन की नकली कहानियां मोरारी बापू जैसे लोग व्यासपीठ से सुनाते है।।

हज़रत निज़ामुद्दीन के सबसे प्रिय शिष्य और शिक्षा की प्रत्येक किताबो में सबसे अधिक छपे अमीर खुसरो जिसको भारत मे गायन को नई दिशा देने के लिए बताया जाता है उसके विचार थे कि – अगर कानून ने पोल-टैक्स (जजिया) के भुगतान से मृत्यु से छूट नहीं दी होती, तो हिंद, जड़ और शाखा का नाम ही समाप्त हो जाता। 

अमीर खुसरो सनातन को शैतान मानता था और कहता था और मन्दिरों को इस्लामी राजाओं द्वारा तोड़े जाने पर हर्ष व्यक्त करता था।। 

अमीर खुसरो हिन्दुओ को कुत्ता और मुसलमानों को शेर कहता था लेकिन हिन्दुओ से नफरत की इन दुकानों पर आज भी हिन्दू ही जाते है। 

आजतक किसी हिन्दू ने ये नही जानने की कोशिश की यदि ये सूफी हमारे हितैषी थे तो ये लोग उन इस्लामी राजाओं के खिलाफ क्यों नही लड़े जो हिन्दुओ के खिलाफ कत्लेआम मचा रहे थे।। 

हम यदि एक पल के लिए मान भी ले कि हम हिन्दुओ से इतिहास को छिपाया गया है, सूफियों के बारे में हमें सच नही बताया गया इसलिए हम भ्रमित थे लेकिन 1992 में अजमेर शरीफ के चिश्तीयो द्वारा 1000 से भी अधिक हिन्दू लड़कियों को ब्लैकमेल कर बलात्कार करना हो या फिर निज़ामुद्दीन मरकज के लोगो का सरकार के चेतावनी के बाद भी कोरोना स्प्रेडर बनना हो ये सब तो हाल फिलहाल के है इससे तो सभी वाकिफ है फिर भी लोग दरगाहों पर जाते रहे , आजकल गांवों में मजारों पर हो रहे झाड़-फूंक हिन्दुओ में ही सबसे अधिक प्रचलित है।।

हिन्दुओ को ये समझना होगा ये सूफी इस्लाम के गुप्त सैनिक थे जिनका मिशन था हिन्दू धर्मांतरण इसके लिए उन्होंने तलवार के बजाय फकीरी को उचित माध्यम समझा और हिन्दुओ को अपनी जाल में फँसाते चले गए, समय बदला तो ये धर्मनिरपेक्षता के झंडाबरदार बन गए , ये आज दरगाहों को दीवाली लर सजाकर हमे मूर्ख बना रहे है और हम इन्हें अपने खून पसीने की कमाई देकर इन्हें मजबूत कर रहे है, हिन्दुओ को ये समझना होगा कि जिस दिन भी इस्लाम की तलवार खिंचेगी उस दिन ये तुम्हारे दिए हुए पैसों की मदद से तुम्हारे खिलाफ होंगे।। 

अजमेर के चिश्तीयो का बयान कोई आश्चर्यजनक नही है, वे आजतक छुप-छुप के ऐसा करते आये है शायद आगे से खुलेआम करे।।

कुछ तथ्य- 

1. सभी सूफी इस्लामी आक्रमणकारियों के साथ ही आये। इनका प्रयोग इस्लाम को सच्चा-साफ दिखाकर हिन्दुओ को भ्रमित करने के लिए किया गया ताकि हिन्दू क्रूर इस्लामियों के द्वारा मिले पीड़ा को भूल जाये।

2. सभी सूफी पूरी तरह से सनातन के खिलाफ थे हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया हिन्दुओ को काफ़िर कहता था, अमीर खुसरो के वक्तव्य मैंने उपर लिखे ही है।

3. एक सूफी संत सिरहन्दी ने अकबर को भड़काया था 30,000 निहत्थे हिन्दुओ की कत्लेआम के लिए।

4. 1350 के करीब में जब बंगाल के जमींदार राजा गणेश बंगाल को इलयास डायनेस्टी से छीन लिया था तब एक सूफी संत मौलाना मुज़्ज़फ़र ने गुस्से में आकर ग़यासुद्दीन आजम शाह को लिखा था कि इस्लाम की जमीन पर एक हिन्दू का कब्जा उचित नही है।। (राजा गणेश की पूरी कहानी फिर कभी लिखी जाएगी) 

हिन्दुओ को मजारों दरगाहों में इतनी आस्था है कि यदि ओसामा बिन लादेन की मजार भी यहाँ होती तो हिन्दू वहां भी अपने रुके हुए कार्य को पूरा करने की मन्नत मांगने पहुंच जाते ।

लेखक-राहुल दुबे

राहुल दुबे

सर्वाधिकार सुरक्षित -Exxcricketer.com


Spread the love

One thought on “सूफियों का सच

  1. यथावत।। हमें सोच विचार करना होगा।। राम चौदह वर्ष वन में क्यों गये हमें संगठनों की क्या आवश्यकता है।।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *