
लेखक -विपुल
भद्दर गर्मी की एक चिलचिलाती दोपहर!
खाली सड़क !
सत्त्या भाई अपनी मोटर साइकिल घसीट के लिये जा रहे थे।
कोई देख नहीं रहा था!
पेट्रोल बचा सकते थे!
जेब मे पड़े रुपये पानी की बोतल खरीदने के काम आ सकते थे।
रास्ते में एक पीपल का पेड़ दिखा, वहाँ खड़े होकर सुस्ताने लगे।
तभी
पायल की आवाज
“छम छम”
सत्त्या भाई ने चौंक के देखा!
एक अत्यंत सुंदर स्त्री साड़ी में गहनों से लदी फन्दी खड़ी है और बड़ी आशापूर्ण नज़रों से देख रही है उन्हें।
“सर!”
कोयल सी मधुर आवाज में वो बोली।
“मेन रोड तक छोड़ देंगे ?”
सत्त्या भाई का दिल जोरों से धड़का।
गले के नीचे थूंक गटका।
“आ आ आ आप कौन ?”
“मैं सुवर्णा!
पास के ही गांव की हूँ ,झमैया पुरवा पोस्ट टेंटें नगर!”
“यहाँ कैसे ?”
सत्या भाई ने आंखों से नाप लेते हुए पूंछा।
(32 34 36
नही नहीं
34 32 38)!
“अरे पापा लेकर जा रहे थे।बाइक खराब हो गई।पापा बाइक सही करवाने गए हैं मेन रोड पर।उनका फोन आया उधर ही आ जाओ!
इसलिए कहा।”
सत्त्या भाई का दिल राजस्थान रॉयल्स की टीम और सुंदर युवतियों के लिये हमेशा खुला रहता है।
पूरा हिसाब लगाया।
मेन रोड 3 किलोमीटर है।रुपये 20 25 बचेंगे बाइक घसीटने पर!लेकिन रोड में ब्रेकर बहुत हैं ।
(32 नहीं नहीं 34)!🤐
खैर अगले ही पल सत्त्या भाई की बाइक सुवर्णा को लेकर उड़ चली!सत्त्या भाई के दिल मे धुकधुकी मची थी, इतनी सुंदर कन्या पीछे बैठी थी।वो गुनगुना रहे थे ।
“हवा के साथ साथ,
घटा के संग संग संग।”
तभी कुछ घटा,
भाई के साथ।
अपनी पीठ पर उन्हें कुछ चुभा।
315 बोर देसी छिपकली छाप कट्टा की नाल।
“चुपचाप चलते रहो ग्रोसरी वाले।”
“सत्त्या भाई शोकड ,सुवर्णा रोकड”
मेन रोड के एक किलोमीटर पहले ही सुवर्णा के तीन भाई हाथों में हथियार लिये सत्त्या भाई का ही इंतज़ार कर रहे थे।
चुपचाप सत्त्या भाई ने सरेंडर किया।बाइक ,अंगूठी ,चेन ,पर्स, घड़ी तो चलो ठीक ,उनका हक बनता था।
सालों ने पैंट कमीज तक ले ली ,बनियान इसलिए कि पोंछा रहेगा बाइक का।
केवल पटरे वाली नेकर में सत्त्या भाई पैदल चल के मेन रोड आये।वहाँ से बस में गाना गाकर सवारियों का मनोरंजन करते जयपुर ,वहाँ से घर।
और उन्हें एक सीख मिली -आप भी लीजिए।
किसी भी अनजान को लिफ्ट मत दें।
किसी सुंदर अकेली कन्या को किसी निर्जन जगह पर तो कतई नहीं !
समाप्त
लेखक -विपुल
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