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राहुल दुबे

पीड़ा, वेदना का पर्यायवाची यदि आप किसी हिंदी के अध्यापक से पूँछे तो वो हजारों पर्यायवाची शब्द बता तो सकते है, लेकिन पाकिस्तान की हार को उसमें नही बताएंगे ।
ये तो समाज बना रखा है हमने, अब आप कहेंगे कि रवीश जी !पाकिस्तान की हार को आप पीड़ा, वेदना का पर्यायवाची शब्द क्यों बनाना चाहते हैं ?
इस सवाल पर मैं एकदम हड़बड़ा जाता हूँ ।
अरे भाई यदि अपना प्रिय पड़ोसी हार जाए तो पीड़ा तो होगी ही ।लेकिन 2014 के बाद भारतीय समाज ने ऐसी करवट बदली है कि सामाजिक मूल्यों का मटियामेट हो गया है।

कल फिर नकली Mr Bean देने से चिढ़े फासीवादी, साम्प्रदायिक जिम्बाब्वे के खिलाड़ियों ने प्रिय पाकिस्तान को बेवजह हरा दिया। जानते वे भी हैं कि इस जीत से उन्हें कोई लाभ नही होने वाला है, फिर भी मजे के लिए हरा दिया ।

क्या फायदा होगा ज़िम्बाब्वे को? इससे क्या रोबर्ट मुगाबे ईमानदार नेता घोषित हो जाएगा या फिर उनका नया वाला राष्ट्रपति फासीवादी, संघी नरेंद्र मोदी से भी बड़ा नेता कहलाया जाने लगेगा ?
इनमें से कुछ भी इस जीत के बाद न होगा लेकिन फिर भी एक नकली Mr Bean के नाम पर उन्होंने प्रिय पाक को हरा दिया।

समाज में 2014 के बाद कैसा परिवर्तन आया है कि लोग प्रतिभा की कद्र करना ही भूल गए हैं।अरे नकली ही था तो क्या हुआ?
इन ज़िम्बाब्वे के संघियों को हमसे सीखना चाहिए हम खुद ही नकली कागजात तैयार करके सत्ता में बैठी पार्टी को ठिकाने लगा देते हैं और शान से घूमते भी है, लेकिन क्या प्रिय पाक mr bean के फोटोकॉपी को भेजने के कारण ऐसी सजा का हकदार था जिससे हिंदूवादी भेड़िए खूब खुश हों ?
क्या ये ठीक लगा सिकन्दर रजा तुम्हें ?


तुम तो पाकिस्तानी हो यार ।
ऐसी क्या कुंठा थी तुम्हारे अंदर , अब तो बहुत आंनद आ रहा होगा तुम्हें जब तुम्हारे ही मजहब की हार पर हिंदूवादी, संघी जश्न मना रहे हैं।

क्या PKMKB का नारा तुम्हें नही चुभता है?
अब तुम कहोगे कि तुम्हें इसका मतलब नहीं पता।
लेकिन जरा सोचो !
तुम्हारी जीत पर हिंदूवादी जश्न क्यों मना रहे हैं ?
वो जो एक ही अमनपसंद
मजहब की बहिष्कार का नारा बुलंद करते हैं । आज तुम्हें हीरो क्यों मान रहे है ?
तुमने अपने ही मजहब का गला घोंट दिया है प्रिय सिकन्दर रजा !

लेकिन तुम खुश हो।
शायद तुमने विशेष तरल पदार्थ का सेवन भी किया होगा, लेकिन जब 6 को हिंदुस्तानी तुम्हे पटकेंगे तब याद आयेंगी तुम्हें मेरी ये बातें।

और प्रिय भारत के लोगों ऐसा क्या कर दिया है प्रिय पाकिस्तान ने ?
इतनी नफरत आखिर क्यों?
हमें समझना चाहिए फासिस्ट मोदी कभी न कभी तो चला ही जायेगा ।


लेकिन तब भी ये क्रिकेट, ये पाकिस्तान सब रहेंगे।
इसलिए एक व्यक्ति की बातों में आकर चलकर इतनी नफरत मत करो।
अरे हम तो पाकिस्तान को भाई मानने वाले लोग हैं। सिद्धू पाजी इमरान को अपना यार बताते हैं। हमने उनको भी अपने परिवार की तरह माना है।उनका पाकिस्तान की हार पर दुःखी चेहरा याद करके तो उदास हो लेते ।
लेकिन हम 2014 के बाद एक अलग ही विघटन की तरफ जा रहे हैं।
नफरत ने हमें इतना अंधा कर दिया है ।
हमें तो नफरत ने वाकई अंधा कर दिया है।
अब प्रिय पाक वर्ल्ड कप से बाहर हो चुका है,
जल्द ही फासीवादी सनातनी सूर्यकुमार यादव रिजवान को पछाड़कर नंबर एक बन जायेगा ।

सोचो जरा नोयडा के रहमान को इससे कितना बुरा लगेगा ।उसके अंदर क्या भावना आयेगी कि हम संख्या में कम हैं तो हमारे मजहबी शेर को एक सनातनी, हनुमान भक्त यादव पछाड़ रहा है।
लोग कोहली को किंग कह रहे हैं


जरा सोचिए इससे उन मुग़ल पुत्रों की क्या मानसिक स्थिति होगी जिन्हें सिर्फ इसलिए गरियाया जाता है क्योंकि औरंगजेब भी किंग था।क्या किंग कोहली कहना न्यायोचित है ?
क्या बादशाह बाबर को एक सफेद खिलाड़ी का आउट करना उचित था ? क्या जिम्बाब्वे क्रिकेटर रयान बर्ल का विशेष तरल पदार्थ की तस्वीर के साथ ट्वीट करके मौलाना रिजवान की भावनाओं का अपमान करना ठीक था ?


लेकिन इन ज्वलंत सवालों का उत्तर किससे मांगू मैं ?
सब नफरत में अंधे हैं।
लोग हमारा उपहास कर रहे हैं,
इन ज्वलंत मुद्दों को जनता के सामने लाने पर ।
ख़ैर, आज खबर आई है कि प्रिय पराग और विजया को जुआरी एलन मस्क ने ट्विटर से निकाल दिया है
दुनिया सच में बहुत बुरी हो गयी है।

मैं जा रहा ……. 72 हूरों के पास।

तबतक के लिए नमस्कार।।

लाल सलाम

आपका रवीश कुमार।

राहुल दुबे
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