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यात्रा वृत्तांत -तीसरा दिन

सत्यव्रत त्रिपाठी

आवारगी के 68दिन
दिन 3
18/05/2022

झुमरी तिलैया का पहला दिन

रात समय सोने से 5 बजे सुबह मैं बिस्तर छोड़ चुका था। सबसे पहले मैं चला तिलैया डैम और झील के इलाके में।करीब 25 मिनट बाद मैं झील में था। सूर्योदय समुद्र जैसा दिख रहा था। सूरज की लालिमा झील में बिखरी थी।

तिलैया झील

एक नाव मिल गई घण्टे भर यहां घूमने के बाद मैंने वापसी की। 1200 फ़ीट लम्बे और 99 फ़ीट ऊँचे इस डैम से आपको झारखण्ड के जंगलों की सुन्दरता और साफ़ आसमान दोनों दिखाई देते हैं। लेकिन इसका निर्माण दर्शन के लिए नहीं, बल्कि बाढ़ को रोकने के लिए किया गया था। लेकिन हमको क्या, हमारे लिए टूरिस्ट स्पॉट है।बरकर नदी पर बना झारखण्ड का यह पहला हाइड्रो-इलेक्ट्रिक पावर स्टेशन डैम है। इसे 1953 में आम लोगों के घूमने फिरने के लिए शुरू किया गया था। तब से यह लोगों का पसन्दीदा टूरिस्ट स्पॉट बन गया है।

तिलैया झील का नाव मिलने का स्थान


नहाने के बाद करीब 7 बजे मैं सर्किट हाउस के बाहर था रात ड्यूटी का स्टाफ जाने वाला था उसने मेरी गाड़ी गन्दी देखी तो खुद ही साफ करने के लिए बोला। करीब 20 मिनट में गाड़ी साफ थी। यहाँ सुबह 8 बजे प्रशासनिक सेवा के अधिकारी के घर नाश्ता था लेकिन मैनें उनसे कहा कि लंच या डिनर पर मिला जाए। उन्होंने बोला ठीक है हम लोग 12 बजे बात करते हैं इसबारे में। मुझे चंचला देवी दर्शन को जाना था तो मैं वहां चल दिया।
यहाँ के लोगों की आस्था माँ चंचला देवी के नाम पर बना है यह मंदिर। माँ चंचला देवी को दुर्गा जी का ही रूप माना जाता है। उनकी एक गुफ़ा भी है यहाँ पर। भक्त यहाँ से आसानी से गुज़र जाते हैं। मंगलवार और शनिवार को यहाँ पर भक्त बड़ी संख्या में जुटते हैं।चंचला माँ का यह प्रसिद्ध मंदिर समुद्र तल से 400 फ़ीट ऊपर बना है।

चंचला देवी मंदिर

और यहाँ पर पहुँचने के लिए आपको ज़िले से गिरिडीह-कोडरमा हाइवे पर 33 किमी0 का लम्बा सफ़र तय करना होगा। इस मंदिर में माँ को मिश्री और चावल का भोग लगाया जाता है और कई मौक़ों पर बड़ी संख्या में शादी की रस्में भी होती हैं। कहते हैं जो भी यहाँ के नियमों का ठीक से पालन नहीं करता, उसको कोई विषैला जीव आकर काटता ज़रूर है।
करीब 12 बजे तक मैं दर्शन भ्रमण के बाद कुछ खाने के लिए इधर उधर भटक रहा था| मेरे मेजबान का फोन आया उन्होंने पूछा क्या कार्यक्रम मैंने कहा शाम को मिलते हैं। अब एक और समस्या थी शाम को भोजन करना है तो मतलब अभी कुछ हल्का फुल्का या फल खा कर रहना होगा। मुझे कायदे से भोजन किये हुए आज तीसरा दिन था। मैंने गाड़ी में रखे कुछ मेवे और फल से काम चलाया। निकल आया झुमरी तिलैया टाउन घूमने ।
50 का दशक था। लोगों के घरों में टीवी तो बिल्कुल भी नहीं था। बिजली नहीं थी, टीवी की बात तो छोड़ ही दीजिए। मन बहलाने का अकेला एकमात्र सहारा था रेडियो। कभी कभी फ़िल्म लग गई, तो वहाँ हो लिए। झुमरी तलैया के लोग रेडियो को बहुत पसन्द करने वाले लोग थे।अपने घरों, गाँवों से लोग रेडियो को अपनी फ़रमाइशें भेजते।
झुमरी तिलैया के एक खदान मालिक, रामेश्वर प्रसाद ने रेडियो सीलोन पर अमीन सयानी के बिनाका गीतमाला कार्यक्रम के लिए फरमाइशों के साथ पोस्टकार्ड भेजना शुरू किया, जिससे शहर के अन्य लोग भी पोस्टकार्ड भेजने को लेकर प्रेरित हुए. जल्द ही झुमरी तिलैया में रेडियो प्रेमियों ने एक छोटा रेडियो श्रोताओं का क्लब बना लिया. रेडियो सीलोन पर अमीन सयानी और विविध भारती पर अन्य उद्घोषकों को अक्सर यह घोषणा करते सुना जाता था-अगली फरमाइश है झुमरी तिलैया से. जब रेडियो लोकप्रिय हो गए, तो इस कस्बे में पोस्टकार्ड पर गाने के लिए अनुरोध भेजना लोगों का एक प्रमुख शौक बन गया.
एक ऐसा समय भी आया, जब एक नए क़िस्म के पोस्टकार्ड तक आने लगे थे, जिसमें आप आसानी से अपना नाम और फ़रमाइश लिख सकते थे। लोग बाक़ायदा अपना नाम सुनने के लिए डाकिए को ज़्यादा पैसा भी देते थे, ताकि किसी दूसरे शख़्स का पोस्टकार्ड फ़रमाइश तक न पहुँच पाए।बाद में आने वाली फ़िल्मों के गानों तक में इसको जगह मिली। मसलन हसीना मान जाएगी का गाना, ‘मैं झुमरी तलैया जाऊँगी सैंया तेरे कारण’। या फिर जग्गा जासूस का गाना, ‘मेरा गाँव झुमरी तलैया है’।
यह कहानी खोजते खोजते मैं रामेश्वर प्रसाद के पोते राहुल मोदी से मिलने चला गया। उन्होंने तमाम यादगार दिखाई और साथ ही पुराना Osmond का रेडियो भी।

रामेश्वर मोदी का रेडियो

राहुल मोदी कोडरमा के बड़े उद्योगपति हैं।
यह सब करते करते मुझे 5 बजे चुके । मैं रात को भोजन बहुत विशेष परिस्थितियों में करता हूँ। अन्यथा सूरज ढलने से पहले भोजन हो चुका होता है। थोड़ी देर आराम और कुछ फलाहार के बाद 8 बजे हम अपने मेजबान के घर पहुँचे। वहाँ बाकायदा उत्सव सरीखा माहौल था । उस कालोनी में रहने वाले दर्जन भर विभिन्न विभागों के अफसर और उनका परिवार मौजूद था । आदत के विपरीत मैंने कुर्ता पायजामा पहन लिया था। मेरे मेजबान ने माहौल ऐसा बनाया कि जिस तरह कभी राहुल सांकृत्यायन हिमाचल और तिब्बत में भ्रमण कर रहे थे कुछ उसी तरह मैं भी यहाँ आया हूँ। मुझे खुद पर औऱ माहौल पर हंसी आ रही थी। उसी समय तय किया कि अब किसी पूर्व परिचित के घर नहीं जाना। करीब 3 घण्टे वहां हम रहे। सभी सरकारी अफसरों ने अपनी क्षमता का भरपूर उपयोग कर दिव्य इंतज़ाम किया था। 11 बजे मैंने सबसे विदाई ली। उस आयोजन की बातें इसलिए नहीं बताएंगे क्योंकि अफसरों का जीवन बिन मतलब का लबादा ओढ़े चलता है।
आज हमारा ठिकाना अरण्य फारेस्ट हाउस में था जो कि शहर से लगे जंगल नुमा जगह में था। दो गलत मोड़ लेने के बाद मैं अपने ठिकाने पर पहुँचा। फ़टाफ़ट सोने चला गया।
कल सुबह उठने की कोई जल्दी नहीं है। इसलिए नींद भर सोया जाएगा। कल दिनभर पंचायत चुनाव देखना है और यहाँ के वोटरों को समझना है।

चित्रों में पहले दो तिलैया डैम के हैं। तीसरा कोलाज चंचलादेवी धाम का है।

सत्यव्रत त्रिपाठी

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