भाग 2 – तहकीकात
भाग 1 गिलहरियों के दुश्मन से आगे
आपका-विपुल
’’तो’’! ताडी कैसी लगी दरोगा जी ?’’
ग्राम प्रधान सााजन सिंह मुंह में भरा राजश्री पान मसाला थूक कर बोला ।
अब तक ताडी के दो पूरे गिलास चढा चुके सब इंसपेक्टर सत्या चौधरी को केवल ताडी ही नहीं अच्छी लगी थी बल्कि ग्राम प्रधान बाबा कुंआ साजन सिंह की खातिरदारी भी बहुत अच्छी लगी थी।स्पेशल तानसेन तमाखू और रजनीगंधा के पाउच , लौकी की बरफी और मीठा पान । सत्या भाई बिलकुल गदगद थे।सुमेधा सातसर की शिकायत पर गिलहरियों की कम होती जनसंख्या की जांच के लिये पहुंचे थे गांव में और परंपरा के अनुसार ग्राम प्रधान को फोन करके पहुंचे थे।
हवलदार देवी शंकर प्रसाद पण्डित उर्फ डीएसपी पण्डित हमेशा की तरह साथ थे ।पुराने बर्ड वाचर रहे डीएसपी पण्डित इस समय भी एक चिडिया को ही ताक रहे थे ,बस वो चिडिया इनसानी शक्ल में थी और उसी खेत में काम कर रही थीं जिस खेत में ताड का वो पेड लगा था जिस से निकली ताडी सब इन्सपेक्टर सत्या चौधरी को ग्राम प्रधान साजन सिंह द्वारा सर्व की गयी थी।
’आपको बिलीव नहीं होगा ।’ साजन सिंह ने दोबारा पान मसाला थूंका।
’यहां पुलिस चौकी की बनने की जितनी खुशी मुझे हुई है ,उतनी शायद ही किसी को हुयी हो।’
’क्यों प्रधान जी ऐसा क्यों ? ’ सत्या भाई ने उत्सुकता से पूंछा ।
’बहुत क्राइम बढ गया था इधर साहेब ।’बहुत गम्भीरता से बोला साजन सिंह ।
’उधर पण्डित जी का काण्ड हुआ और इधर हम और हमारे सभी भाई दस साल पुराने दस लोगों के हत्याकाण्ड में उठा लिये गये ।फिर उन सालों ने हमारे पुराने किडनैपिंग केस भी खोल दिये ।गुस्सा आने पर एक के हाथ काट दिये थे।वो केस भी खोल दिये भाई लोग।एक साल जेल में रहे तब इधर चोरी चकारी और पाकेटमारी बहुत बढ गई।हमको पसंद नहीं कि हमारे इधर इतना क्राइम हो।पुलिस चौकी बन गई।अब क्राइम कंट्रोल रहेगा इधर।’
जाहिर था , इतना सुनने के बाद सत्या भाई को तीसरा ताडी का गिलास पीने की इच्छा तो नहीं ही बची थी ।लेकिन उनको डीएसपी पण्डित को लेकर ही वहां से निकलना था जो इस समय पेशेवर बर्ड वाचर की तरह अपनी पैनी नजरें उस इन्सानी नुमा चिडिया पर टिकाये थे जो मुस्कुराते हुये उन दोनों की तरफ ही आ रही थी।
’नमस्ते सर !’ वो लगभग पैंतीस छत्तीस वर्ष की गेंहुयें कलर की एक औरत थी । धानी कलर की साडी पहने ।दरमियानी कद काठी की ।सत्या भाई को वो कुछ कुछ करनजीत कौर वोहरा जैसी लगी।
अब ये करनजीत कौर वोहरा कौन है? अगर आप जानते हैं तो निसंदेह आप हमारी फर्टिनिटी के मेंबर हैं।
’नमस्ते !’ सत्या भाई ने मुंह से जवाब दिया और डीएसपी पण्डित ने आंखों से ।
’सर ! मैं आंगनबाडी कार्यकत्री हूं बाबा कुंआ की ।राजबाला चौधरी ।आपसे एक रिक्वेस्ट थी।’
’बोलो’।
सत्या भाई हमेंशा सुंदर महिलाओं की मदद को आतुर रहते थे |
भले ही उस महिला को मदद की जरूरत हो , न हो ।
और यहां तो उनसे मदद मांगी जा रही थी। पर ये डीएसपी पण्डित इतना क्यों शरमा रहा था ?
खैर!
तो राजबाला ने अपनी समस्या बताई। उसने अपने घर में ही अपना आंफिस बना रखा था और उस आफिस में एक दराज थी जो साल भर से बंद हो गई थी ,जाम हो गई थी ,किसी भी तरह से खुल नहीं रही थी ।कई लोग प्रयास कर चुके थे।उसमें कई महत्वपूर्ण कागज थे , और सत्या भाई की स्मार्ट और हैण्डसम पर्सनालिटी को देख कर उसे विश्वास हुआ था कि वो दराज खोलने के लिये सत्या भाई बिलकुल उपयुक्त थे।सत्याा भाई को साजन सिंह ने ये भी बताया कि राजबाला के पति पिछले लगभग एक साल से केरल में ही थे ,किसी फैक्टरी में सुपरवाजइजर थे राजबाला के पति।
अन्तरवासना की आठों वेबसाईट के नियमित पाठक सत्या चौधरी को ये परिस्थिति कुछ जानी पहचानी सी लगी ।
उन्होंने ठान ली कि इस अबला की मदद किये बिना जाना उनके पुरूषत्व को शोभा नहीं देगा।
वो तत्काल बोले |
“आप आफिस पहुंचिये , मैं पीछे से आकर दराज खोलता हूं।”
राजबाला मुस्कुराते हुये गांव की ओर चली लेकिन साजन सिंह ने बडी अजीब नजरों से सब इन्सपेक्टर सत्या चौधरी को घूरा।
’बच के रहना , पिछली बार दराज खोलने गये दो आदमी तीन दिन बाद चार लोगों को सुबह के पांच बजे चौबेपुर में मिले थे। बाकी सब ठीक था बस उपर से छह इंच छोटे हो गये थे।’
’छह इंच छोटे ! मतलब ?’
’मतलब सिर कटा शव मिला था।’
सत्या भाई ने चौंक कर कर साजन सिंह को देखा जो ठहरी हुई सी आवाज में बोल रहा था।
’अच्छे आदमी थे बेचारे ।सी आई डी में थे शायद ।आपके ही जैसी कद काठी और आपके जैसी ही उम्र कें थे ।नाम भी मिलता जुलता था। एक का नाम सत्य नारायण पाण्डे था दूसरे का देवीगुलाम ।दरोगा सप्तमलाल ने बताया था कि सी आई डी में थे दोनों और पिछले आठ महीने से इधर किसी केस पर काम कर रहे थे।नौ तारीख थी मुझे ध्यान है अब तक ।
’दस रह गया तुम्हारी कहानी में ।’
सत्या भाई को लगा कि शायद ग्राम प्रधान को गांव का मुखिया होने के नाते राजबाला का उनको बुलाना अच्छा नहीं लगा इसलिये उनको डरा रहा है।
’झूठ नहीं बोल रहा ।’
साजन सिंह ने सत्या भाई को घूरा ।’
’बाकी आपकी मर्जी ।मुझे लगा आप और तहकीकात के लिये और दूसरे गांवों में भी जाना चाहेंगे ।गांव क्षेत्र है ,सुबह सुबह आदमी मिलता है फिर कोई नहीं मिलता। बिकरू के प्रधान जी भी इंतजार कर रहे होंगें आपका।’
’वहां कल चले जायेेंगे’ सत्या भाई बोले और अपनी प्लैटिना मोटरसाईकिल पर डीएसपी पण्डित को पीछे बैठा कर उस दिशा में चल दिये जिस दिशा में राजबाला चौधरी गई थी।साजन सिंह भी अपनी पैशन प्रो लेकर उनके पीछे चला।
आंगनबाडी कार्यकत्री राजबाला चौधरी के आंगन में चार फूल खेल रहे थे।
’चार लडके हैं।’
डीएसपी पण्डित ने बिलकुल लहराती सी आवाज में पूछा।
’हां!राजबाला ने जवाब दिया।
’युधिष्ठिर ,भीम ,अर्जुन ,नकुल ।
’बस एक और हो जाये तो पांच पाण्डव पूरे हो जायें ।’
राजबाला ने बडी बडी आंखों से सत्या भाई को देखते हुये अजीब सी आवाज में कहा।
सत्या चैधरी को अंतर्वासना की नई कहानी भाभी बडी कजरारी की याद आ गई ।उस कहानी में भी भाभी का नाम राजबाला ही था।
पूरा आंगन पार करके एक कमरा था और उसके अंदर एक और कमरा ।
हालांकि हवलदार डीएसपी पण्डित की भी उस कमरे में अंदर आने की इच्छा थी पर सब इन्सपेक्टर सत्या चौधरी ने उसे बाहर ही रोक दिया ।
अब इस कमरे में केवल सब इन्सपेक्टर सत्या चौधरी और राजबाला चौधरी ही थी।
’तो कहां है आपकी दराज ?’
सत्या भाई ने मुस्कुराते हुये पूंछा।
’ये रही ’।
कह कर राजबाला चौधरी ने दीवार में लगी एक अलमारी की तरफ सत्या भाई का ध्यान दिलाया।
ये अलमारी कुछ अजीब सी थी ।लोहे की थी दीवार में लगी थी और लोहे की ही दराजें थीं।जो लगता था पिछले सौ साल से बंद पडी थीं।
’धत तेरे की ।’ सत्या भाई के मुंह से निकला
’ये तो वाकई की दराज है।’
और तुम लोग !
तुम्ही से कह रहा हूं भाई !
दिमाग में कैसा ठरकपन भरा रहता है तुम्हारे ?
सत्या भाई ने थोडा झुक कर उस अलमारी की दराजें देखना शुरू कीं
और तभी
धांय
धांय
धांय धांय
धांय धांय धांय धांय
भाग 2 समाप्त
भाग 3 सुराग का इंतजार करें।
आपका -विपुल
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