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आज सुबह जब सोकर उठा और घर के बाहर आया तो देखा सामने रहने वाले अंकल जी जो कि हमारे कस्बा के नल कूप विभाग के कर्मचारी हैं, फोन पर किसी से बात कर थे। थोड़ा ध्यान से सुना तो पता चला कि कल उनकी नौकरी चली गई और 10 महीने का वेतन भी नहीं दिया गया।

सुनकर एकदम भौचक्का रह गया कि हमारे देश को विश्व गुरु बनाने का जो सपना देखा जा रहा वो इस प्रकार पूरा होगा कि हमारे पास अपने ठेका कर्मचारियों को तनख्वाह देने के पैसे भी नहीं है।

1- 2 महीने की बात हो तो कर्मचारी कहीं से मैनेज भी कर सकता है जिस व्यक्ति को पिछले 10 महीने से तनख्वाह न मिली हो उसकी आर्थिक स्थिति क्या होगी? क्या इस प्रकार हम अपने देश को विश्व गुरु बनाएंगे?

और ये हाल उस कस्बे का है जो कि भारत के भूतपूर्व रक्षा मंत्री, उत्तर प्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय मुलायम सिंह जी का गढ़ रहा और अब श्री मती डिंपल यादव जी के संसदीय क्षेत्र में आता है। यह हाल उस कस्बे के कर्मचारियों का है जिसकी विधानसभा भोगांव है और पिछली 2 बार से विधायक भाजपा के है। यह हाल उस कस्बे का है जहां के चेयरमैन पिछले 2 कार्यकाल से भाजपा के थे।

ई ओ साहब ने बड़ी आसानी से आदेश जारी कर दिया कि आप सभी को नौकरी से निकाला जाता है बिना ये सोचे कि जिन कर्मचारियों को 10 माह से वेतन नहीं दिया गया उनका क्या होगा? जब कर्मचारियों को देने के लिए पैसे नहीं हैं तो उनको काम पर क्यों रखा गया? उनसे काम क्यों लिया गया? कर्मचारी इस उम्मीद में थे कि आज नहीं तो कल तनख्वाह मिल ही जायेगी लेकिन मिला क्या? निराशा ।


अगर ऐसा ही आदेश अधिशासी अधिकारी के खिलाफ आया होता तो साहब सीधा कोर्ट का रुख करते। इन बेचारे कर्मचारियों की तो कोई सुनने वाला भी नहीं है। जो व्यक्ति किराए के मकान में रहता हो, छोटे – छोटे बच्चे हों उसको कितनी तनख्वाह देती होगी सरकार बमुश्किल 10- 12 हजार रुपया। क्या इतने में मासिक गुजारा होना संभव है?

ऊपर से एक आदेश देकर नौकरी छीन ली और कह दिया गया जब चुनाव बाद नया चेयरमैन आएगा तब ही कुछ होगा। इस बात की क्या गारंटी है कि नया चेयरमैन इन्हीं कर्मचारियों को बहाल करेगा ? और इस बात की क्या गारंटी है कि इनका पुराना वेतन भी दिया जाएगा?

कहीं सत्य ही लिखा गया था कि सबसे ज्यादा शोषण संविदा कर्मचारियों का होता है लेकिन उससे भी ज्यादा ठेका कर्मचारियों का होता है। देश को विश्व गुरु बाद में बनाइए पहले अपने कर्मचारियों को तनख्वाह दीजिए।

एक नवयुवक ने ये लिख कर भेजा था। नाम लिखने को मना किया है।

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