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विजयंत खत्री

रूस यूक्रेन युद्ध और भारत

विजयंत खत्री

विश्वयुद्ध संभव है


पिछले वर्ष प्रारम्भ हुए रूस यूक्रेन युद्ध को लगभग एक वर्ष होने को आया है। रूस इस युद्घ में यूक्रेन को जल्दी ही परास्त कर सकता था अगर युद्ध में केवल रूस और यूक्रेन ही होते। ये युद्ध कोई सामान्य युद्ध नहीं है बल्कि विश्व के आने वाले समय को बदल देने की ताकत रखने वाला युद्घ है। जिस प्रकार से पश्चिमी देश अप्रत्यक्ष रूप से रूस से युद्ध लड़ रहे हैं जल्दी ही प्रत्यक्ष रूप से पश्चिमी देश और रूस आमने सामने होंगे।
अभी तक भारत ने इस युद्ध के बाद की स्थिति को अच्छे से सम्भाला है। जहा भारत इस युद्ध को बंद करने और बातचीत के द्वारा युद्ध को रोकने का पक्षधर है वहीं साथ ही पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों के बाद भी भारत बड़ी मात्रा में रूस से व्यापार कर रहा है ।खासकर पेट्रोलियम पदार्थों का। भारत द्वारा पश्चिमी देशों से मिल रही आलोचना के बाद भी रूस भारत के पुराने और प्रगाढ़ संबधों पर अभी तक कोई असर नहीं पड़ा है। लेकिन अगर ये युद्ध लंबा चलता है और विश्व के अन्य भागों मे भी फैलता है तो भारत के लिए बड़ी कठिन और असमंजस वाली स्थिति होगी। तब भारत को युद्ध में एक पक्ष चुनना पड़ेगा।
भारत किसके साथ होगा उसके लिए कुछ बातों का आंकलन जरूरी होगा।

रुस का साथ देने के फायदे


भारत के रूस के साथ खुलकर आने के पक्ष में कुछ विचार हैं।
1- भारत रूस संबंध काफी पुराने और अच्छे हैं। साथ ही भारत रूसी हथियारों का सबसे बड़ा आयातक देश है। अपने इन हथियारों को चालू रखने के लिए भारत को रूस की आवश्यकता है।
2- भारत के पश्चिमी देशों से अच्छे संबंध रूस की तुलना में कम ही रहे हैं। और जिस प्रकार से भारत आर्थिक रूप से मजबूत होकर विश्व पटल पर आगे बढ़ रहा है उससे पश्चिमी देश खुश नहीं हैं। साथ ही पश्चिमी देश अब अच्छी तरह से समझ गए हैं कि भारत को ज्यादा समय तक आप आर्थिक सहायता के नाम पर अपने पीछे नहीं खड़ा कर सकते।
3- पश्चिमी देशों खासकर अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को लगातार की जा रही हथियार आपूर्ति और आर्थिक सहायता जोकि कहीं ना कहीं भारत के खिलाफ प्रयोग होती है, से भारत पश्चिम को हमेशा संदेह की नज़रों से देखता आया है।
4- अमेरिका और पश्चिमी देशों का इतिहास भी रहा है और कहावत सी भी बन गई है कि अमेरिका की दोस्ती से अमेरिका की दुश्मनी भली। इसका सबसे अच्छा उदाहरण मध्य एशिया के हालात हैं।
जिन जिन देशों में अमेरिकी सेना गई है वो देश किस स्थिति में हैं ये हम सब अच्छी तरह से जानते ही हैं।

रुस के खिलाफ़ रहने के फायदे


रूस के विरुद्ध जाने के लिये भी भारत के पास काफी मजबूत कारण हैं।
1- रूस अब सोवियत संघ जैसी महाशक्ति नहीं है। रूस की जीडीपी भारत से भी कम है। तो विपरीत परिस्थितियों में रूस भारत की उस प्रकार से सहायता नहीं कर पाएगा जैसे 1971 के भारत – पाकिस्तान युद्घ में सोवियत संघ ने की थी।
2- भारत अब रूस से ज्यादा हथियार खरीदने के इच्छुक नहीं है ।वजह ये कि भारत लंबे समय तक सोवियत युग की हथियार इंडस्ट्री से खरीदे हथियारों के बल पर भविष्य के युद्ध नहीं जीत सकता है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण भारत द्वारा फ्रांस से राफेल विमान खरीद कर दिया गया है।
3- सबसे मुख्य कारण भारत चीन संबंध है। रूस यूक्रेन युद्ध के बाद जब रूस पर पश्चिमी देशों ने रूस पर कड़े आर्थिक प्रतिबन्ध लगाए थे तो भारत से भी ज्यादा व्यापारिक तरीके से आर्थिक सहयोग रुस को चीन ने ही दिया था। चीन एक बड़ी आर्थिक शक्ति भी है। साथ ही चीन की मुख्य छवि पश्चिम विरोधी ही है। ताईवान प्रकरण तो चीन का सीधे सीधे पश्चिमी देशों से टकराव भी करा सकता है ।और तो और रूस भी भारत से ज्यादा चीन को ज्यादा आशा की नज़रों से देख रहा है,क्यूंकि भारत का पश्चिमी देशों से कोई सीधा टकराव तो है नहीं ।
4- भारत के अधिकतर व्यावसायिक हित पश्चिमी देशों से सीधे जुड़े हैं तो भारत पश्चिमी देशों के सीधे खिलाफ नहीं जा सकता है।रूस के साथ ना जाकर भारत पश्चिम की और देख सकता है।
ये एक कटु सत्य है कि अगले 10 वर्ष भारत के लिए अत्यधिक कठिन होने वाले हैं क्यूंकि विश्व युद्ध की आशंका लगातार बनी हुई है। अगर विश्व युद्ध होता है तो भारत भी इसका भाग होगा। तब भारत किस खेमे मे शामिल होगा वो रूस और यूक्रेन का युद्ध ही निर्धारित करेगा।

विजयंत खत्री
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