आपका -विपुल
देखो सबसे पहले तो ये मानना बंद करो कि आज के समय में किसी व्यक्ति, वस्तु,कला, साहित्य, फिल्म, विचार , समाचार , राजनेता का निष्पक्ष मूल्यांकन होता है। इसलिए किसी से वैलिडेशन लेने की कोई आवश्यकता है नहीं अब
ये बात जान लो, मान लो, खोपड़ी में घुसा लो।
सबसे पहली गलती तो यहीं होती है।
जब नोबेल पुरस्कार ओबामा को मिल सकता है और मलाला के साथ कैलाश सत्यार्थी को , जो क्या है,तुम्हे पता ही होगा , तो बाकी पुरस्कारों की हैसियत क्या?
ऑस्कर हो या बुकर ,
मैग्सेसे हो या रामनाथ गोयनका,
यहां तक कि साहित्यपीठ और कला एकेडमी पुरस्कार भी वामपंथी विचारधारा के अनुसार
मिलते हैं ।
इसलिए अगर एक वैचारिक सनातनी, दक्षिणपंथी होते हुऐ ऐसे पुरस्कारों की या इन पुरस्कार विजेताओं की कदर करते हो , तो अपने माथे पर चू*ति!या लिखवा कर भी घूमने लगो।
दुनिया इस समय सीधी सीधी दो धड़ों में बंट चुकी है
वामपंथ, इस्लामिक कट्टर, नक्सली विचारधारा और अराजकतावादी एक तरफ हैं।
अपने देश ,धर्म (इसलाम से अलग) और संस्कृति के लिए जागरूक लोग दूसरी तरफ
पहले खेमे के लोगों के लिए वामपंथी, नक्सली, इस्लामिक जेहादी लोगों के लिए देश नहीं विचारधारा महत्व रखती है। इसलिए दूसरे खेमे के उन लोगों से इनका विरोध हमेशा रहेगा
जो अपने देश और अपने गैर इस्लामी धर्म को ज्यादा महत्व देंगे।
पहले खेमे के लोग हर देश में होंगे और उनका संगठन मजबूत होगा। सत्ता के गलियारे के हर कोने में होंगे। और उनका इकोसिस्टम अपने हर प्यादे के पीछे पूरी मजबूती से खड़ा होगा। देश विदेश में उन्हे रिकमंडेशन दिलवाएगा।
पुरस्कार रूप में।
अरुंधती रॉय को बुकर कैलाश सत्यार्थी को नोबेल रविश कुमार को मैग्सेसे और अभिसार शर्मा को रामनाथ गोयनका प्रत्यक्ष उदाहरण ।
फिर ये वामपंथी जेहादी खुद को स्वयंभू मसीहा भी घोषित कर देते हैं और इनकी देश विदेश की लॉबी इसे सच करने में लग जाती है
गोएबल्स को जानते ही होगे।
हिटलर का प्रचार मंत्री जिसने कहा था, सौ बार बोलो तो झूठ भी सच लगने लगता है।और चूंकि मीडिया संस्थानों, पुरस्कार मंडलियों , प्रकाशन संस्थाओं पर इनके चेले चिलंटू हावी होते हैं तो दक्षिणपंथ खेमे को नीचा दिखाने का कोरस शुरू होता है।
सुधीर चौधरी तिहाड़ी हो जाते हैं और अमीश देवगन भड़वा और दलाल ,
ये शब्द कांग्रेस पार्टी के आधिकारिक प्रवक्ता के टीवी चैनल पर थे।
इसके बाद रवीश के दांत चियारने और वामपंथी लोगों से भरी प्रेस गिल्ड की चुप्पी के अलावा कुछ हुआ नहीं था।यही शब्द भाजपा का कोई प्रवक्ता रवीश कुमार को भड़वा और दलाल टीवी पर बोल देता तो वाशिंगटन से कतर तक रण्डी रोना मच जाता कि हाय देखो भारत की राष्ट्रवादी पार्टी एक न्यूज़ एंकर की इज्जत नहीं करती
अल जजीरा का रवीश कुमार के एनडीटीवी से इस्तीफे के बाद उसके समर्थन में आया ब्लॉग तो पढ़ ही लिया होगा न आपने ?
कश्मीर फाइल्स को प्रोपोगेंडा मूवी कहने वाले आपको गर्म हवा जैसी वाहियात प्रोपोगेंडा मूवी को क्लासिक बोलने के लिए कहते हैं, आप में से कुछ मानते भी होंगे। और दो मूवी
जय भीम और आर्टिकल 56 थी शायद , आयुष्मान वाली प्रोपोगेंडा मूवी , जिसमें जातियां ही बदल दी थीं अपराधियों की ।
क्या थीं वो सब मूवी?
प्रोपोगेंडा नहीं थीं क्या ?
जहां ईसाई अपराधी था, वो भी ब्राह्मण, जहां ओबीसी अपराधी थे, वो भी ब्राह्मण दिखाया उन फिल्मों में ।
ऐसी प्रोपोगंडा भरी फिल्मों को ये लोग बढ़िया फिल्म बोलकर अवार्ड भी ले जाते हैं।
क्यों ?
क्योंकि चोर चोर मौसेरे भाई।
यही मेरा प्वाइंट है मेरा कहना है । चोरों ,मक्कारों, झूठों और बिना रीढ़ के लोगों से भरी इस वामपंथी लॉबी से वैलिडेशन लेने की जरूरत नहीं है ।
तो कोई अगर बोले कि रवीश सर्वश्रेष्ठ
पत्रकार , वॉशिंगटन पोस्ट अल जजीरा,टाइम सर्वश्रेष्ठ न्युज एजेन्सी, अरुंधती रॉय बेस्ट लेखिका और पैरासाइट बेस्ट फिल्म है , उसके विचारों के प्रभाव में मत आओ ।
अगर तुमको लगता है कि मेरे लिए अमिताभ अग्निहोत्री बेस्ट पत्रकार है , दूरदर्शन बेस्ट चैनल है और जागरण बेस्ट अखबार। उसे सीधा जवाब दो ।एक लाइन का।
बहुत हो गया तेरा,
अब निकल लो बे ।
आपका -विपुल।
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