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आपका -विपुल
कुछ भोजन और इलाज का झांसा देकर धर्म परिर्वतन करवाने वाली मदर टेरेसा ने बताशे खिला कर कैंसर दूर करने का दावा भी किया लेकिन तब, जब वो व्यक्ति ईसाई बन गया । कलकत्ता या पश्चिम बंगाल आजादी के बाद से कभी विकसित प्रांत या शहर की श्रेणी में नहीं रहा। और पूर्वोत्तर भारत का प्रवेश द्वार भी यहीं से है।
पूर्वोत्तर भारत तक पहुंचने के लिए कलकत्ता एक प्रमुख शहर था। ब्रिटिश भारत में बर्मा या म्यांमार भी था। वहां जाने के लिए भी जगह ठीक थी और आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र था ये जहां ईसाई मिशनरियां आसानी से अपना कार्य चला सकती थीं।
मदर टेरेसा की जिन्दगी की कुछ बातें गौर करने लायक़ हैं।
ये शायद युगोस्लाविया की थीं।
बहुत कम उम्र में मिशनरी धर्मांतरण कार्यक्रम से जुड़ गई थीं। इन्हें इंगलिश सिखाई गई और ब्रिटिश भारत में भेजा गया।1929 में
कहां ?
पूर्वात्तर भारत में।
इन्होंने उस दरमियान अंग्रेजी शासन और मिशनरी के लिए भारत में कार्य किया ।
आदिवासी क्षेत्रों को टारगेट करके वहां के गरीब लोगों को ईसाई धर्म में परिवर्तित करने का।
ब्रिटिश इण्डिया में इन्हें काफी सुविधा और सहायता मिली।1940 तक तो मदर टेरेसा जाना माना नाम बन चुकी थीं पूर्वोत्तर भारत का। नागालैंड, मणिपुर जैसे इलाके कलकत्ता से ही कवर कर रही थीं। इधर की गरीब आदिवासी जनता को ईसाई बनाने में महत्वपूर्ण योगदान रहा इनका।
1947 में भारत आजाद हो गया और चर्च को लगा कि अगर टेरेसा वापस आ गईं तो उनका भारत पर सांस्कृतिक विजय का कार्य अधूरा रह जाएगा । इसलिए मदर टेरेसा को भारत में रोकने का निर्णय हुआ। वित्तीय मामले भी काफी थे। टैरेसा वापस आती तो चर्च का बेस खत्म हो जाता उस साइड।
1948 में भारतीय नागरिकता ले ली मदर टेरेसा ने।
आपको जानकर आश्चर्य नहीं होगा कि चैरिटेबल संस्थाओं और एनजीओ को विदेशों से फंडिंग आसानी से मिले , इसलिए जो कई नए पुराने कानून, बने, बिगड़े,इस्तेमाल हुए, लगभग सभी के मूल मे टेरेसा के धर्म परिर्वतन कार्यक्रम को आसानी से आर्थिक फ़ायदा पहुंचाना ही था।
मिशनरी ऑफ़ चैरिटीज 1950 में बनी।
और आपको पता है इसने पहला काम क्या किया?
एक प्राचीन हिंदू मंदिर को निर्मल हृदय नाम देकर एक अस्पताल सह धर्मशाला बनवा दी, जहां ईसा मसीह और मरियम मेरी स्थापित हो गए, शंकरजी या देवी जी की जगह।
मंदिर की जगह अस्पताल की बकवास यहीं से शुरू हुई।
जैसा पी आर मैनेजमेंट आज है,वैसा हमेशा से रहा है। बस साधन बदल जाते हैं। टेरेसा का पी आर भी गजब ही था।चर्च ने भरपूरप्रचार किया और आर्थिक सहायता भी दी।
आजादी के ठीक बाद इतने बड़े कुष्ठ रोग अस्पताल और इतने स्कूल चलाने के पैसे कहां से आए, कौन पूछता जब भारत का प्रथम प्रधानमंत्री ही चरणों में पड़ा रहा हो चर्च के।
आजाद भारत के पूर्वात्तर क्षेत्र ऐसे ही कटे नहीं रहे पूरे भारत से। अगर जुड़े रहते तो नागालैंड, मणिपुर, मेघालय के इतने लोग ईसाई कैसे बनते?
आज आपको मिशनरी की कारगुजारी दिख रही हैं , आप बता सकते हैं सोशल मीडिया पर।
पहले जाने कितने दो गज जमीन के नीचे चले गए, इन मिशनरियों की कारस्तानी बताने पर।
आप गौर करें। जहां भी मिशनरी अपना काम करते हैं, क्षेत्र वाद को बढ़ावा देते हैं। एक आम हिन्दू के लिए रामेश्वरम और बद्रीनाथ एक समान होते हैं, जाने कितने दक्षिण भारतीय काशी आते हैं, कितने उत्तर भारतीय पद्मनाभन या श्रीसैलम या रामेश्वरम जाते हैं ,कोई भेदभाव नहीं करता सनातनी हिंदू ।
लेकिन
मिशनरी के खेल में आते ही विशेष तौर पर कमल हसन जैसे कन्वर्टेड लोग आपको क्षेत्रवाद को बढ़ावा देते, उत्तर भारतीयों को नीचा दिखाते मिलेंगे । यही केस पूर्वोत्तर भारत में है, जहां नागा मिजो लोग जो कन्वर्टेड हो चुके हैं, उत्तर भारतीयों के लिए घृणा रखने लगे हैं। यही हाल झारखंड और छत्तीसगढ़ या उड़ीसा के आदिवासी इलाकों में है। जहां नक्सली प्रभावी हैं वो सारे क्षैत्र ईसाई कैसे हो जाते हैं?
और अभी हाल में एक ईसाई नक्सली का विडियो देखा था जो पहाड़ियों को हनुमान जी के खिलाफ़ भड़का रहा था कि ये पहाड़ पर किसी स्वामी ड्वामी का क्या काम।
मूल बात ये कि मिशनरी का टारगेट ही हिंदुत्व पर आक्रमण करना है।
मदर टेरेसा इसकी भीष्म पितामही कही जा सकती हैं ।
और हां पी आर की बात !
मदर टेरेसा ने इतने फर्जी चमत्कार किए कि आज सोशल मीडिया के युग में तो उनकी बहुत हंसी उड़ती, लेकिन उनका पी आर गजब था।
बागेश्वर धाम के पीछे पड़े न्यूज़ चैनलों के समाचार संस्थान तब भी थे, जो पैसे लेकर प्रचार करते थे।
अभी भी हैं , पैसे ही ले रहे हैं।
लेकिन ये सब मिशनरियों से अनुग्रहीत होते रहते हैं इसलिए चर्च के कार्यकलापों पर चुप ही रहते हैं।
पालघर के साधुओं को याद करिए। वो भी धर्म परिर्वतन रुकवाने गए थे।
अबकी मिशनरियों ने धीरेंद्र शास्त्री को टपकाने का ठेका दिया है।
मिशनरियों के लगुये भगुये काम पर लगे हैं।
राधे राधे रहेगा
आपका -विपुल
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