आपका -विपुल
मेरा रिव्यू – गदर 2
“क्या करेंगे इतना मंहगा कमोड ले जाकर?”
“हगेंगे!”
जिस बेइज्जती वाले अंदाज में मिश्रा हार्डवेयर के मालिक मुन्नू मिश्रा ने मुझसे सवाल किया था, उतनी ही बेइज्जती वाले अंदाज में मैंने जवाब दिया।
मिश्रा जी मुंह सिकोड़ के रह गए लेकिन मुझसे कुछ कह न पाए क्योंकि मुझे अभी लम्बे वाले स्टाइलिश वाश बेसिन, कुछ टोंटियां और कुछ हार्डवेयर का सामान और ख़रीदना था। मिश्रा जी ऐसे ग्राहक को नाराज नहीं करना चाहते थे जो सुबह सुबह उनकी दस हजार रुपयों की बोहनी करवा रहा हो।
ज्यादातर दुकानदारों की तरह मुन्नू मिश्रा भी ग्राहक को अपना देवता मानते थे और इसी बात को एक स्टीकर के रूप में अपनी दुकान पर लगा रखा था।
“ग्राहक हमारा देवता है।”
लेकिन मुन्नू मिश्रा ने ध्यान नहीं दिया था,किसी कनपुरिया क्रोकोडाइल ने देवता की जगह पर देवता काट कर नीले पेन से नेवला लिख दिया था।
मिश्रा जी के काउंटर पर मुझे साफ़ लिखा दिख रहा था
“ग्राहक हमारा नेवला है।”
जब सारा सौदा तय हो गया, भुगतान हो गया तब बात आई कि ये सामान मेरे घर तक कैसे पहुंचेगा?
मिश्रा जी ने मेरी समस्या का तत्काल समाधान किया।
मिश्रा जी ने एक फोन किया और दस मिनट तब बीते जब एक लोडर वाला हाजिर था दुकान पर।
और ये लोडर किसका था?
कल्लन तिवारी का था।
वोही कल्लन तिवारी ऑटो ड्राइवर जो केरला स्टोरी फिल्म देखने जा रहा था मैं, तब मिला था।
ईश्वर ने बनाया तो उसे पुरूष ही था, पर जवानी में उसने चंद्रचूड़ का कबीला ज्वॉइन कर लिया था शायद।
मैं तो उसे देख कर चौंक गया। मेरा चौंकना घबराहट से भरा था, पर वो मुझे देख कर जो चौंका तो उसके चौंकने में भी एक खुशी सी साफ दिख रही थी मुझे।
उसने पहले मुझे देखा मेरे खरीदे सामान को।
कमोड वाशबेसिन टोंटी पाइप और उनकी फिटिंग का सामान था।
“अरे सर आप! उसकी तो बांछें ही खिल गई थीं।”कैसे हैं सर? बड़ा अच्छा मिला दोबारा आपसे मिलकर। उस दिन तो बात अधूरी ही रह गई थी अपनी।”
इतना कह कर वो ऐसे अदा से शरमाया कि मुन्नू मिश्रा भी चौंक उठे। पूंछ ही बैठे मुझसे
“भाभी जी की तबियत ठीक है न? अस्पताल से आ गईं क्या?”
“गई ही कब थीं अस्पताल?”
मैंने हैरत से पूंछा।
मुन्नू मिश्रा चुप रह गये। लेकिन मुझे अजीब नज़रों से घूरते रहे।
इधर मैं हैरत में था और दहशत में भी और मन में सोच रहा था कि
“ये साला मेरे पीछे क्यों पड़ा है?”
“तुम तो ऑटो चलाते थे। ये लोडर कब से चलाने लगे?”
मैंने उससे पूंछा तो वो ऐसे शरमाया कि मुझे भी एक पल वहम हो गया कि इसका मेरा वाकई चक्कर है।
“लंबी कहानी है। फुर्सत में सुनना।”
दांतों से अपने होंठों को काटता सेक्सी अंदाज में मुझे देखता वो मेरी तरफ आगे बढ़ता एकदम रोमांटिक आवाज़ में बोला।
मैं थोड़ा अपने बाएं कटा और कल्लन तिवारी सीधे उस मंहगे बड़े से वाशबेसिन से टकराया जो मैंने खरीदा था। काले रंग का।
“उफ्फ! इतना काला, इतना लंबा और मोटा भी तो मजे का है। मजा ही आ जायेगा।
कमाल का है आपका
…..
वाशबेसिन !”
“वाशबेसिन?”
मुन्नू मिश्रा हैरत से बोले।
शायद उन्हें कुछ और सुनने की उम्मीद थी।
“फिलहाल तो वाशबेसिन की ही बात हो रही है।”
वाशबेसिन को दोनों हाथों से पकड़ कर कल्लन तिवारी इतने मादक अंदाज में बोला कि मुन्नू मिश्रा के हाथों से कैलकुलेटर छूट के नीचे गिर गया और शायद मैं भी उनकी नज़रों में गिर गया था।
गजब कमीना था कल्लन।
“दूसरा कोई लोडर नहीं है क्या?”
मैंने मुन्नू मिश्रा से पूंछा और उन्होंने मना कर दिया।
मेरे पास समय नहीं था और मुन्नू मिश्रा के पास दूसरा लोडर नहीं था। मजबूरी थी कि कल्लन तिवारी के लोडर में सामान रखवाना पड़ा। मेरे पास आज बाइक नहीं थी सो कल्लन तिवारी के लोडर में ही आगे की सीट पर बैठ के जाना पड़ा।
रास्ते भर मुझे आदमी हूं आदमी से प्यार करता हूं गाना सुनवाया उसने। रह रह कर उसके हाथ इधर उधर भी छू जाते थे मेरे। जैसे तैसे इज्ज़त बचाते हुये घर पहुंचा। सामान रखवाया। घर की दूसरी मंजिल बनवा रहा था। कल्लन तिवारी को विदा किया। आज लेबर नहीं आये थे। सन्डे था
सुबह के अब 11 बज ही पाये थे। नहा कर तैयार हुआ और खाना लग गया।
“इतनी जल्दी?”
मैंने हैरत से पूंछा।
जवाब में मुझे दो श्रीमती जी ने अपने मोबाइल पर दो मूवी टिकटें दिखा दीं। और बताया –
“दो बजे का शो है। मम्मी से मिलने जाना है तो कुछ शॉपिंग भी करनी है। जल्दी खाओ और चलो।”
“मम्मी से मिलने जाने के लिये शॉपिंग कौन करता है यार?”
“धड़ाक “
मेरा इतना कहना था कि श्रीमती जी ने पानी का गिलास गिरा दिया टेबल पर रखा।
माफ करें उनका हाथ लगा तो गिर गया और फिर उनकी गुर्राहट भरी आवाज़ निकली
“बिट्टो! बिट्टो!”
बिटियारानी दौड़ती हुई आई और उसकी मम्मी ने उसे कूट दिया।
“क्यों मार रही हो?”
मैंने खिसिया के पूंछा।
“आदत बनी रहनी चाहिये। खौफ बना रहना चाहिये। वर्ना बच्चे हाथ से निकल जाते हैं ।”
वो बिट्टटो को पीटते हुये मुझे एकटक घूर के बोल रही थीं।
आज सब इनडायरेक्ट फ्री किक ले रहे थे मेरे खिलाफ।
बिट्टो को इतना कूट दिया गया था कि उसने अपनी मम्मी के साथ फिल्म देखने जाने की अपेक्षा घर पर रहना उचित समझा। आज हम ओला टैक्सी से जेड स्क्वायर पहुंचे और मजे की बात ये थी कि ओला की बुकिंग और पैसों का भुगतान भी श्रीमती जी ने किया था। कुछ तो खास था आज यार।
जेड स्क्वायर के कैफिटेरिया में पिस्टल पांडे ने हमारा स्वागत किया।
काला ठिगना और लौकी के बीज के जैसे दांतों वाला पिस्टल पाण्डे गौरक्षक गुंडा होने के अलावा मेरी पत्नी का चचेरा भाई भी था। वैसे वो मुझे हमेशा अकेले ही मिलता था पर आज उसके साथ उसका छोटा भाई और था।
उसका छोटा भाई देखने सुनने में अच्छा ही था।
उसका नाम सुमित था और होटल मैनेजमेंट का कोर्स करने के बाद कहीं छोटी मोटी जॉब कर रहा था।
दरअसल पिस्टल पांडे ने उसके लिये एक लड़की देख रखी थी और उसकी शादी की बात करने उस लड़की के माता पिता को यहीं बुलवा रखा था।
मूवी शो खत्म होने के बाद हम दोनों परिवारों की मीटिंग सी थी। पिस्टल पांडे का मेन मकसद उस लड़की के माता पिता को अपना भौकाल दिखाकर अपने भाई का रिश्ता सेट करना था।
खैर। मैं आज पिस्टल पांडे से लड़ने के मूड में नहीं था और शायद वो भी मुझे जलील करने के मूड में नहीं था।
मैं श्रीमती जी के साथ फिल्म देखने बैठ गया।
लेकिन यहां भी एक तमाशा हो गया।
मेरी बाएं तरफ श्रीमती जी बैठी थीं और ठीक दाएं तरफ की सीट खाली थी और फिल्म के चालू होने के ठीक 5 मिनट बाद जो आदमी उस खाली सीट को भरने आया,
वो और कोई नहीं कल्लन तिवारी था।
“हाय सर!”
मेरे कान के पास अपने होंठ लाकर वो ऐसे सेक्सी अंदाज में बोला कि क्या ही कहें?
मैं सांस साध के बैठ गया। श्रीमती जी टाइम काट रही थीं, उन्हें मूवी में इंट्रेस्ट नहीं था। वो सोने लगीं और कल्लन तिवारी मुझसे चिपके ही जा रहा था। फिल्म कौन देखता यार, यहां मेरी ही फिल्म बन रही थी।
इंटरवल में लाइट जली , मैं उठा तो दूसरी चीज ये देखी कि मुन्नू मिश्रा ठीक मेरे ऊपर वाली सीट पर बैठे थे।
“जुगल जोड़ी सलामत रहे।”
उन्होंने कटाक्ष भरे स्वर में कहा। श्रीमती जी ने थैंक्यू बोला और कल्लन तिवारी ने शर्मा के दिखाया।
“ये क्या हो रहा था यार?”
मैंने श्रीमती जी से कहा कुछ खाने को लाता हूं।
मैं हॉल से बाहर आया। कल्लन तिवारी मेरे पीछे था।साला लसूड़े की तरह चिपका था आज।
मैंने 550 रुपए का कोल्ड ड्रिंक ऑर्डर किया और कल्लन तिवारी फिर वहीं था।
“मुझे पता है आप मुझसे परेशान हैं।” वो बोला,” पर मैं आपका पीछा छोड़ दूंगा।”
“दरअसल हमारे रेनबो क्लब का एक खेल है ऑपरेशन स्ट्रेंजर किस और उसका एक टास्क है कि किसी अनजान शरीफ सुंदर स्ट्रेट आदमी को लगातार टीज करना है और उससे पब्लिक प्लेस एक किस लेना होता है। ये टास्क मैं पूरा कर पाऊंगा तो 1 लाख जीतूंगा। क्या आप मदद करेंगे?
वादा है इसके बाद फिर नहीं दिखूंगा आपको।”
“ये कैसा खेल है?”
मैंने हैरत से पूंछा।
“ब्लू व्हेल भी एक खेल ही था सर!”
वो अभी गंभीर था।
“फिर दिखना नहीं मेरे आसपास!”
मैं गुस्से से बोला।
“ठीक है!”
मैंने गौर किया कि वहां कई सतरंगी थे और सब शायद हमें ही देख रहे थे।
मैंने उसको किस किया, वहां तालियां सी बजीं।
और वो चला गया।ये आधे मिनट से भी कम समय में हो गया।
बस एक चीज जो मुझे अखर गई कि मुन्नू मिश्रा वहीं थे।
खैर।
मैं कोल्ड ड्रिंक वगैरा लेकर वापस लौटा।श्रीमती जी का मूड ठीक था अभी और मेरा भी।
फिल्म ज़बरदस्त थी।5 बजे थे हम कैफिटेरिया में पहुंचे। सुमित के होने वाले ससुर का इंतजार
था, उसकी होने वाली सास नहीं आ रही थीं, वो रिश्ता तय होने पर ही आतीं।
बड़ी शिद्दत से हम सुमित के होने वाले ससुर का इंतजार कर रहे थे वो आये भी और जब आये तब दोबारा गदर 2 मचना लाज़िमी था।
ये मुन्नू मिश्रा ही थे, जो पिस्टल पांडे के छोटे भाई सुमित को अपनी लड़की के लिये देखने आये थे।
उन्होंने मुझे वहां देखा और सीधे बोल दिया कि वो ऐसे घर में लड़की नहीं देना चाहते जहां के मर्द लड़कियों से ज्यादा लड़कों में रुचि रखते हों।
पिस्टल पांडे ने जब इन आरोपों को निराधार बताया तो मुन्नू मिश्रा ने कल्लन तिवारी को किस करते हुये मेरी फ़ोटो उन्हें दिखा दी जो उन्होंने खुद खींच ली थी थियेटर के बाहर लगी पॉपकॉर्न शॉप पे।
आगे कुछ बताने की ज़रूरत नहीं है।
सर की चोट गंभीर नहीं थी।
बाएं हाथ का कच्चा प्लास्टर खुल चुका है।
पक्का प्लास्टर 45 दिनों बाद खुलेगा।
और हां गदर 2 अच्छी फिल्म है।
गदर मचा रखी है।
आपका – विपुल
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