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मेरा रिव्यू – बैड न्यूज
आपका विपुल

भावनाओं की बारिश के साथ छत की नाली भी बह रही थी और छज्जे पर अकेले में बैठा मैं 2007 का वो सावन याद कर रहा था जब मैं और श्वेता साथ साथ बनारस के घाट पर भीगे थे।कुछ रात ठीक से सोया नहीं था दिल के दर्द के मारे और कुछ जुकाम सा भी था।
आंखों से आंसू टपकने ही वाले थे कि पीछे से मेरी बीबी की आवाज आई।
“बहुत दिन हो गये!आज ले के ही जाओ!मेरा भी मन है!”
आंखों में आंसू दिल में उमंग और हाथ में प्लास्टिक का डंडा लिये मैं पलटा तो मूड ही खराब हो गया।
उनके हाथ में छाता और रेनकोट था।इस छाते और रेनकोट को ले कर जाने की बात कर रही थीं।उनका मन इसलिये था कि दोनों चीजें वही खरीद के लाई थीं।
“इसकी तो ###!” पूरी बात समझ कर गुस्से में भर कर गाली देते हुये मैंने हाथ में पकड़ा प्लास्टिक का डंडा छज्जे के नीचे खड़े सांड़ पर फेंका।
“क्या हुआ ?”उन्होंने हैरत से पूंछा।
“इतनी गुस्सा किस बात की?बेचारे को खड़ा रहने देते!”
“तुम ही खड़ा नहीं रहने देती !”
मैंने गुस्से से भुनभुनाते हुए छाता और रेनकोट उनसे लगभग छीना और जीने से नीचे उतरा।
उन्हें कुछ समझ आया था या नहीं ये पता नहीं पर मुझे समझ आ रहा था कि पत्नी कभी प्रेमिका की जगह नहीं ले सकती।

आज ऑफिस के काम से लखनऊ जाना था।बाइक स्टार्ट नहीं हुई और मजबूरी में पड़ोस वाले डॉक्टर साहब की स्कूटी से लिफ्ट ले कर मुझे रावतपुर तक आना पड़ा।
डॉक्टर साहब का असली नाम मुझे आजतक नहीं पता था बस इतना पता था कि वो डॉक्टर साहब हैं और डॉक्टरी करते हैं। पचासेक साल के डॉक्टर साहब अकेले रहते थे और हर तीसरे महीने उनके घर एक नया लड़का घर के काम करने को आता था।आजतक कोई भी लड़का जो उनके यहां काम करने आया था,दाढ़ी मूंछ वाला नहीं हुआ करता था,बीस बाइस से ज्यादा का नहीं हुआ करता था।


मोहल्ले में वो लौंडेबाज डॉक्टर के नाम से बदनाम थे और शायद ही उनसे कोई मतलब रखता था
डॉक्टर साहब ने मुझे रावतपुर रेलवे स्टेशन तक छोड़ा और लखनऊ जाने को मैं ट्रेन पकड़ने ही वाला था कि ऑफिस से काल आई कि मुझे आज लखनऊ जाने की जरूरत नहीं,जिन अधिकारी से मिलने जाना था, वो मिलेंगे नहीं,उनके पिताजी खत्म हो गये हैं।
पूरा दिन पड़ा था अभी।वापस ऑफिस जाने का तुक नहीं था।
वापस घर जाने का तुक भी नहीं था।
मौसम अच्छा था।सोचा चलो बिग बाजार घूम लें।बैड न्यूज फिल्म की तारीफ सुनी थीं तो सोचा आज देख लेंगे।
मैं रेव एट मोती में पहुंचा।ऑनलाइन ऑनलाइन बहुत खेल चुके थे।आज सोचा लाइन में लग कर टिकट लेंगे।
बगल में कैमिस्ट्री को किताब दबाये गोरे बदन और विकसित पृष्ठ भाग पर काली हाफ पैंट सफेद टी शर्ट पहने लंबे बालों वाली एक लड़की जैसी चीज लाइन में मुझसे आगे थी और जैसे ही मैं धोखे से उससे टकराया वो टिकट लेकर पलटी मेरी ख़ुशी काफूर हो गई।
लड़का था वो।


“आपको भी बैड न्यूज देखनी है?”उसने पूंछा।
“हां!”मैं बोला
ओर आगे उसने जो कहा,उसे सुनकर चारों तरफ के लोग मुझे घूरने लगे।
“आपको लेना ही है तो मेरी ही ले लें!”
“क्या?”
मैं थोडा असहज हुआ।
“टिकट!”वो थोड़ा सा इठला के बोला।
“नहीं लेना।”
“पर मेरे पास एक्स्ट्रा है और मेरा बॉयफ्रेंड आज नहीं आयेगा।”
“अबे नहीं लेना तेरी टिकट।क्यों पीछे पड़ा है?”
मैं चिल्ला के बोला और मुझे लगा कि अगल बगल के लोगों ने मेरी पूरी बात सुनी बस टिकट शब्द छोड़ के।
पूरे मॉल के सारे लोगों की नजरें हम दोनों पर ही थीं।
अगर मेरे साथ कोई लड़की होती तो इतना न अखरता पर यार ये तो लौंडा था,चिकना लौंडा।
“तौबा तौबा!अब इन लोगों में शर्म भी नहीं बची।भरे बाजार में लवर बन के लड़ रहे हैं। “
ये आवाज़ शायद एक बुर्कानशीन की थी जो अपने बच्चे को लकड़ी वाली घोड़ागाड़ी की सवारी करवा रही थी।
“तुम मेरी क्यों नहीं लोगे?”
वो लौंडा कमर पे लड़कियों जैसे हाथ रखे लड़कियों जैसे लड़ते मुझसे बोला।
“क्योंकि मैं इसकी लूंगा जो टिकट बेचने अंदर बैठा है।”
मैंने टिकट खिड़की में हाथ बढ़ाया।
“मैं तो तुम्हें बिलकुल नहीं दे सकता।”
अंदर बैठा दुबला पतला सिंगल हड्डी लौंडा धीमे से बोला।
“क्यों?”
“क्योंकि आज बैड न्यूज के किसी भी शो की कोई भी टिकट बची ही नहीं।”
“अबे इतनी भी हाउसफुल नहीं है।”मैं चीखा।
“है भाई! विश्वास करो।”वो सिंगल हड्डी मुस्कुराया ब्रह्मास्त्र जवान और पठान भी तो हाउसफुल हुईं थीं,वही केस है।”
मैं मन मसोस के रह गया।


अब आज यहां फिल्म देखने का कोई मतलब भी नहीं बनता था।मैं रेव मोती से बाहर निकला ही था कि मेरे मोहल्ले के डॉक्टर साहब फिर से मिल गये।
वो जेड स्क्वायर जा रहे थे अपने किसी क्लाइंट से मिलने।
हालांकि मुझे ये अजीब लगा कि ये कैसे डॉक्टर हैं जो अपने पेशेंट को क्लाइंट बोल रहे पर चुप रहा।
लिफ्ट लेनी थी।
आज बैड न्यूज देखनी ही देखनी थी।
बैड न्यूज फिल्म।
तो जेड स्क्वायर ही सही।वहीं देख लेंगे।
डॉक्टर साहब को जेड स्क्वायर के कैफेटेरिया में ही काम था,मूवी हाल भी उसी फ्लोर पर था और पिस्टल पांडे भी उसी फ्लोर पर कैफेटेरिया मैनेजर था तो उससे मिले बगैर गुजारा भी नहीं था।
जैसे ही डॉक्टर को एक खाली टेबल पर बैठा कर मैं पिस्टल पांडे को हैलो कहने गया तो मुझे गहरी नजरों से देख के वो गंभीर आवाज में बोला।
“ये शौक कब से पाल लिया जीजा?”
“क्या मतलब?कौन सा शौक?”
“ये डॉक्टर के साथ कैसे?ये तो बदनाम है यहां चिकने लौड़ों को लाकर अय्याशी करने को।!”
“मैं चिकना हूं?”
“खुरदुरे भी नहीं हो!”
ठिगने कद और काले रंग का पिस्टल पांडे गुलाबी पैंट लाल शर्ट और लौकी के बीजे जैसे दांतों के कारण मुझे वैसे भी नहीं पसंद था,ऊपर से ऐसी बातें?
कट के रह गया मैं।
“दो काफी भिजवा दे टेबल पर!”
मैंने गुस्से से कहा।
“क्या दिन आ गये हैं!मेरी दीदी जैसी सुंदर लड़की से कॉफी पीने वाला किसी आदमी को कॉफी पिला रहा।”
उसका बुदबुदाना मैंने सुन लिया और घूर के उसे देखा। कॉफी पीने पिलाने का असली मतलब मैं अच्छी तरह से जानता था।


डॉक्टर साहब और मैंने अपनी अपनी कॉफी खत्म की तब तक डॉक्टर साहब का क्लाइंट नहीं आया था।डॉक्टर साहब को कुछ दवायें देनी थीं उस क्लाइंट को।उन्होंने अपने क्लाइंट को फोन किया तो उसने बताया कि वो यहीं हाल में फिल्म देख रहा है, फिल्म के बाद उनसे दवायें ले लेगा।
मेरा भी फिल्म का समय हो गया था।मैंने उनसे अनुमति मांगी।उन्होंने मुझे एक प्लास्टिक बैग में कुछ दवायें पकड़ाते हुये कहा कि मैं ये दवाई उनके क्लाइंट को दे दूं जो इसी कैफेटेरिया में फिल्म देखने के बाद आयेगा और उस क्लाइंट को उन्होंने मेरा नंबर मैसेज कर दिया है।
मैंने डॉक्टर साहब की बात मान ली और पैकेट पिस्टल पांडे के पास रखवा दिया।
“हेरोइन है क्या?”
पिस्टल पांडे ने मुझे घूर के पूंछा।
“कोकीन है,खाना नहीं।”
मैंने उसी टोन में जवाब दिया।
“कोकीन खाई नहीं जाती।”
“इतना पता है तुम्हें?लेते हो क्या?”
मेरे तंज पर पिस्टल पांडे घूर के रह गया मुझे।
मैं हाल 3 में फिल्म देखने घुसा।
बैड न्यूज।
एक तो कल्याणपुर के गर्म माहौल में रहने वाले मेरे जैसे आदमी को एसी की हवा मिल जाये और रात भर की बाकी नींद।
मैं कास्टिंग के पहले ही सो गया। इंटरवल में उठा और बगल वाले से पूंछा।
“बेडरूम सीन निकल गया?”
“जाने कब का?”
“फिर क्या फायदा?”
मैंने फिर फिल्म से ज्यादा अपनी नींद को प्राथमिकता दी।


दोबारा नींद फिल्म खत्म होने पर खुली।
मैं आंखें मलते कैफेटेरिया में आया और पिस्टल पांडे से अपने मोहल्ले के डॉक्टर साहब द्वारा उनके क्लाइंट को देने वाली दवा का पैकेट लिया और इंतजार करने लगा क्लाइंट का।
कुछ देर बाद मेरा फोन घनघनाया।
“हैलो!”
“जी मुझे डॉक्टर साहब ने आपसे दवायें लेने को बोला था,आप कैफेटेरिया में हैं?”
“हां!”मैंने बोला “मेन काउंटर के पास सफेद शर्ट में।”
थोड़ी ही देर में लगभग पचास साल का एक तगड़ा आदमी मेरे सामने था और उसके साथ एक कमसिन लड़का।
” दवा ?”
“ये लें !”
मैंने उसे डॉक्टर साहब द्वारा दिया दवाओं का पैकेट पकड़ाया ही था कि एक चीख गूंजी कैफेटेरिया में।
“यही है!पकड़ो इसे!”


मैं कुछ समझता उसके पहले ही मुझे कुछ लोगों ने दबोच लिया जो सादी वर्दी में पुलिस वाले जैसे लग रहे थे।
उस अधेड़ को भी पकड़ा गया था।थाने तक पहुंचते पहुंचते मुझे पता चला कि मेरे मोहल्ले का डॉक्टर ऐसी दवाओं का थोक व्यापारी था जो लड़कों में लड़कों के हार्मोन कम कर लड़कियों के हार्मोन बढ़ा देती थीं।
एलजीबीटी ठरकी बुड्ढों का एक गैंग था जो कम उम्र के लड़कों को अपने जाल में फांस कर उन्हें ऐसी दवाओं को खिलाकर उनका यौन शौषण करते थे।
कई ऐसे मामलों की शिकायत पीड़ित लड़कों के मां बाप से मिलने के बाद स्पेशल टास्क फोर्स ने इस गैंग पर कार्यवाही शुरू की थी।मेरे मोहल्ले वाले डॉक्टर साहब हिट लिस्ट में थे पुलिस की।
पिस्टल पांडे मेरे साथ था।उसने मुझे न घबराने का आश्वासन दिया और साथ ही मेरी पत्नी को फोन करके थाने भी बुला लिया।
गजब हरामी था ये पिस्टल पांडे।

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मैं गिरफ्तार नहीं हुआ था पर छोड़ा भी नहीं जा रहा था। मेरी बीवी मुझे निर्दोष मानकर केवल इसलिये कोस रही थी कि लखनऊ जाने का मामला कैंसिल हो जाने पर मैं घर क्यों नहीं लौटा।
पर मामला फिर पिस्टल पांडे द्वारा ही खराब हुआ।पुलिस वालों ने मुझे एक भले आदमी की जमानत पर थाने से ही छोड़ने को कहा था और उसने जिस भले आदमी को बुलाया था वो दिनकर रॉय थे।बिजली के सामान के बड़े व्यापारी होने के साथ वो पुस्तक प्रकाशक भी थे और उनका बिजनेस उल्लू और आल्ट बालाजी से भी जुड़ा था।
दिनकर रॉय ने आते ही मेरी बड़ी तारीफ की और मुझे छुड़ाया। पिस्टल पांडे और श्रीमती जी पुलिस वालों से बात कर रहे थे।
मैं और दिनकर राय थाने के गेट पर आ गये।हमने चाय पी और इधर उधर की बातें कीं।
थोड़ी देर बाद दिनकर रॉय मुझसे बोले –
“आपको मैंने भुगतान भी पूरा कर दिया पर आपने इस किताब का दूसरा पार्ट पूरा नहीं किया जो आप कह रहे थे आपकी सच्ची कहानी है,आत्मकथा है?”
“कौन सी कहानी ? “
मैंने पूंछा।
“ये! लौंडेबाजी!”
उन्होंने अपने मोबाइल में मेरी किताब का कवर दिखाया।


तभी श्रीमती जी दनदनाती हुईं मेरे पीछे से अचानक आगे आ गई थीं और शायद उन्होंने हमारी बातें सुन ली थीं।पिस्टल पांडे उनके साथ था और अपने लौकी के बीजों जैसे दाँतों को दिखाता मेरा उपहास उड़ाता सा बोला।
“आत्मकथा,सच्ची कहानी ,सुना दीदी!”
और फिर उसकी दीदी ने जिन नजरों से मुझे देखा, रूह तक कांप उठी।
घर पहुंचने तक हम दोनों के बीच कोई बात नहीं हुई।
घर पहुंचने के बाद चिमटा गरम हुए।
आगे बताया नहीं जा सकता।
बैड न्यूज बकवास फिल्म है।
अपने जोखिम पर देखें।
प्रस्तुति -विपुल मिश्रा
सर्वाधिकार सुरक्षित -Exxcricketer.com


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