मेरा असली रिव्यू -एनीमल
आपका -विपुल
“आपने मेरी शादी ऊदबिलाव की शक्ल वाले ऐसे आदमी से करवा दी जिसका दिमाग भी घोंघा जैसा है।”
घर के दरवाजे पर पहुंचा ही था कि श्रीमती जी की कर्कश आवाज कानों में पड़ी जो दरवाजे के पीछे से शायद अपनी माताजी से बात कर रही थीं गुस्से से।
मैने दरवाजा खटखटाया भर और बिट्टी हाजिर थी चूहेदानी पकड़े हुए।
“पापा! आप इधर दो दिनों से आये नहीं तो चूहा कौन फेंकता? पहले इसे फेंक आओ फिर घर में घुसना “
“लेकिन ये तो छछूंदर है ?”
मैने चूहेदानी पकड़ते हुये बोला।
“हे भगवान! इतना डाउन मार्केट आदमी है मम्मी! इसके घर पर चूहे तक आना पसंद नहीं करते!
छछूंदरों को भेज देते अपनी जगह।”
मुझे ऊंची आवाज़ सुनाई पड़ी अपनी पत्नी की।
“हे भगवान! मैने ये तीन दिनों की छुट्टी क्यों ली?”
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“टीवी नहीं चलेगी। तुम लैपटाप भी नहीं चलाओगे। बाहर वाले कमरे में बच्चे पढ़ रहे डिस्टर्ब करने उधर मत जाना किचन में मत घुसना और मेरे साथ इधर बेड पर लेटने का सोचना भी मत।”
श्रीमती जी ने खाना खिलाने के बाद हुक्म सुनाया।
“तो कहां बैठूं मैं और क्या करूं?”
मैं खीझ के बोला।
“छत पे वाइपर चला के झाड़ू लगा दो और वहां बैठो। सुबह टंकी ओवरफ्लो हो गई थी तो थोड़ा गीला होगा।”
श्रीमती जी आराम से रजाई ओढ़ के लेटती बोलीं।
मैं दांत पीस के रह गया।
“मैं फिल्म देखने जा रहा!”
गुस्से से बोला मैं।
“और क्या? तभी तो पैसे नहीं बचते। ये नहीं कि छुट्टी है तो घर पर आराम से रहें! नहीं भाई! मिस्टर को तो अय्याशी करने जाना है फिल्म देखने जाना है।”
रजाई के अंदर से भी उतनी ही कर्कश आवाज आई जितनी रजाई के बाहर से आती थी।
“वैसे कौन सी फिल्म देखने जा रहे?”
“एनीमल!”
“पता ही था! एक नंगे सीन को देखने के लिये ये 500 रुपए खर्च कर देंगे! गजब ठरकी आदमी मिला मुझे!”
मैं गुस्से से पैर पटकते हुए घर से निकला। साढ़े ग्यारह ही बजे थे तब।
बाइक लेकर निकला ही था कि सात्विक शुक्ला मिल गया। ये मेरे दोस्त संभव शुक्ला का छोटा भाई था।37 साल के इस गोरे चिट्टे नौजवान की मुझे हर बात पसंद थी सिवाय इन बातों के कि ये बीड़ी पीता था, जेबकतरों से दोस्ती थी और मोदी का भक्त था।
ये शादी बारातों में कैमरा मैन का काम करता था। अच्छा फोटोग्राफर था वैसे।
सात्विक ने रिक्वेस्ट की कि मैं उसको अपनी बाइक से आइआइटी गेट तक छोड़ दूं और इस निवेदन को मैं इसलिए भी मान गया कि उससे अपने उन दो हजार रुपयों का तगादा भी कर सकता था जो उसने मुझसे दो महीने पहले लिए थे और लौटाने का नाम भी नहीं ले रहा था।
“संभव कहां है आजकल?”
मैने बात शुरू की।
“केन्या में हैं। मसाईमारा में एक फ्लैट भी खरीद लिया और सौ गायें भी।”
सात्विक का जवाब था।
“मुझे नहीं लगता वो वापस आयेगा अब इंडिया। इंडिया की सारी जायदाद तुमको ही मिलेगी।”
मैंने उसे खुश करने को बोला।
वो खुश हुआ भी।
“मेरे दो हजार लौटा दो।”
मेरे इतना कहते ही उसकी खुशी चली भी गई।
“फिलहाल पैसे नहीं भैया।”
वो गंभीर स्वर में बोला। “22 जनवरी 2023 के बाद बात करना। मैं राम मंदिर उद्घाटन में व्यस्त हूं। मोदी जी हम सब का सपना पूरा कर रहे हैं।”
“चोर है साला। और तुम भी। वो राम मंदिर का चंदा खा गया, तुम मेरा पैसा खा गये।”
मैं झुंझला कर बोला।
“एक मिनट भाई साहब।”
सात्विक की आवाज बदल गई थी।”मुझे कुछ भी कहो बर्दाश्त कर लूंगा। मोदी जी के खिलाफ एक शब्द नहीं सुनूंगा।”
“तो पैसा दे मेरा अभी!”
मैं चिढ़ कर बोला।
“नहीं हैं अभी!”
“तो उतर ! उतर अभी!”
मैने बाइक रोकी।
“पैदल जा अभी साले चोर मोदी के चोर भक्त!”
“भैया ! मोदी को गाली नहीं!”
वो उतरते उतरते बोला।
“हट साले! फेंकू साला।”
मैंने चलते चलते मोदी को चार गाली और दीं।
उसे बीच रास्ते उतारने के बाद बाइक चलाते चलाते पलट के देखा तो सात्विक मुस्कुराता मिला।
चलते चलते श्रीमती जी का फोन भी आया।
“सुनो! तुम्हारी रेव एट मोती में टिकट बुक करवा दी है एबोनी लाउंज में। एक बजे का शो है। व्हाट्सएप पर देख लेना।”
मैं मुस्कुराया। प्यार तो करती है यार मेरी बीवी मुझे।
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बाइक मेट्रो स्टैंड पर खड़ी करके मेट्रो स्टेशन पहुंचा और टिकट काउंटर पर हरे रंग के कपड़े पहने बैठे एक काले कलूटे लड़के से रावतपुर का टिकट मांगा।
“एक रावतपुर की टिकट दो।”
मैंने 30 रुपये काउंटर पर रखे।
“नहीं दूंगा!”
“हैं??”
मैंने चौंक के उसे देखा।
“क्यों नहीं दोगे?”
“बस मूड नहीं!”
“अरे! इसका क्या मतलब?”
मैं झुंझला के बोला।
“इसका मतलब ये है कि मैं टिकट नहीं दूंगा।”
कह के उसने अपने कानों में हेड फोन लगाया।और काउंटर से उठा।
“ये साहब देंगे।” उसने अपने पीछे आते एक लड़के की तरफ इशारा किया।
“तो तुम क्यों बैठे थे?”
“ऐसे ही सेक्सी लग रहा था।”
कह के निकल गया वो।
गजब लोग हैं भाई कानपुर मेट्रो में भी।
दूसरा लड़के ने मुझसे माफ़ी मांग के टिकट दी।
“कौन था यार ये जो तुम्हारी सीट पर बैठा था?”
मैंने पूंछा।
“अरे सर! वो एक पागल है। बीवी छोड़ गई उसकी। सदमे से पागल हो गया। यहीं घूमता रहता है। जब कोई कुछ खाने पीने या टॉयलेट जाने के कारण सीट से हटता है तो सीट पर बैठ जाता है।”
“नाम क्या है उसका?”
“निर्मू!”
“ओह।”
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मेट्रो तो मेरे दिमाग से भी ज्यादा खाली थी आज।
मैं अकेले ही बैठा था आईआईटी से।
कल्याणपुर में कुछ लोग चढ़े और मेरी ठीक बगल में मेरे मोहल्ले की एक लड़की सिमरन शुक्ला थी।
मैं उससे बात नहीं करना चाहता था पर वो खुद ही बोल पड़ी।
“अंकल क्या वंदना दीदी आपकी दूसरी पत्नी हैं?”
“ब्रोकली की! नाव की कौड़ी!”
मैं गुस्से से मन ही मन बोला।
“अगर मेरी बीवी दीदी है तो मैं अंकल कैसे हो गया इसका?”
पर गुस्से को काबू कर मैं मुस्कुरा के बोला।
“नहीं! ऐसा तुम्हें किसने बताया?”
“दीदी ने ही!”
“आएं?”
मैं भौचक्का रह गया। मेरी बीवी ही मेरी इमेज खराब कर रही थी। “ये मेरी पहली बीवी मेरी दूसरी बीवी कब से हो गई भाई?”
“हां! पिछ्ले हफ्ते देवी जी के जागरण में बता रही थीं।”
“क्या बता रहीं थीं?”
मैंने उत्सुकता से पूंछा।
“यही कि आपकी पहली पत्नी जब मर गई थीं तो आप डिप्रेशन में चले गए थे। आपकी किसी से दूसरी शादी नहीं हो पा रही थी।तभी वंदना दीदी के पापा ने आपको देखा।अंकल जी को पता था कि वंदना दीदी को वनमानुस बहुत पसंद हैं। इसलिये उन्होंने दीदी को आपके बारे में बताया और उन्होंने आपसे शादी कर ली।”
“क्या स्टोरी थी यार?”
मैं खून का घूंट पीते हुये सोच रहा था।
“मैं दीदी को बहुत एडमायर करती हूं।”
“क्यों?”
“अपने सौतेले बच्चों को इतना प्यार देती हैं और आपसे उम्र में सोलह साल अंतर के बाद भी कितना प्यार करती हैं आपको।”
मतलब हद ही थी। क्या बता रखा था इसे मेरी बीवी ने?
“उसके खुद के बच्चे सौतेले हैं? हमारा उम्र में 16 साल का अंतर?”
हद ही हो गई थी।
बहुत लोग हो गये थे अब ट्रेन में और सब मुझे विचित्र नज़रों से घूर रहे थे।
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जैसे तैसे रावतपुर आया और मैं रेव एट मोती में था।
एक बजे के शो का टिकट था। मॉल में नीचे दो समोसे और एक काफी पीने के बाद लिफ्ट से ऊपर पहुंचा।
और थियेटर एरिया में घुसते ही हक्का बक्का रह गया जब सफेद रंग की शॉर्ट स्कर्ट टॉप में एक गोरी चिट्टी गदराई लड़की मुझसे खुशी से चीख के लिपट गई और इतना ही काफी नहीं था।
मेरे एक तरफ सात्विक शुक्ला और दूसरी तरफ सिमरन थी और दोनों के मुंह फटे के फटे रह गए थे।
“अरे संभालिए खुद को!”
मैंने उसे परे धकेला।
“क्या बदतमीजी है ये?”
“सॉरी मैं खुद पर काबू नहीं रह पाई।”वो नवयौवना इठलाई।
“इतने बड़े लेखक को सामने देख कर?”
“बड़ा लेखक?”
सात्विक ने चौंक के मुझे देखा!
” ये बड़े लेखक कब से बन गये? दस रुपए पर लेटर के हिसाब से मोहल्ले के लड़कों के लव लेटर लिखने वाले बड़े लेखक होते क्या?”
“अरे आप नहीं जानते इन्हें!”
वो नवयौवना बिलकुल गदगद ही थी।
“ये बहुत बड़े लेखक हैं।
साली से सालाना संभोग, सहेली की सुहागरात, साजन का सुपाड़ा जैसी बड़ी बड़ी वेबसीरीज लिखी हैं इन्होंने!”
“साजन का सुपाड़ा?”
“सॉरी! साजन का चौबारा “
वो नवयौवना खिलखिलाई।
मैंने झेंप के देखा। सिमरन पहले ही निकल ली थी उधर से। अब तो उसकी नज़रों में मैं शायद उससे भी ज्यादा गिर चुका था जितना मोदी भक्तों की नज़रों में चिदंबरम गिरे हुए हैं।
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“वैसे मेरा नाम मंजू बाला कुमारी है।”उसने अपना हाथ बढ़ाया।
“कुछ ओटीटी एप पर कई सीरीज में काम कर चुकी हूं और एक बड़े ब्रेक की तलाश में हूं।”
“मेरा नाम विपुल है।”
मैंने हाथ मिलाया।
“आपको कौन नहीं जानता?”
“हमारा पार्षद ही नहीं जानता।”
सात्विक बड़े इत्मीनान से पॉपकॉर्न चबाता बोला जो उसने अभी अभी खरीदे थे शायद।
“क्या फर्क पड़ता है? आई हेट पॉलिटिशियंस।”
मंजू बाला कुमारी अपने लंबे बाल झटक के बोली।
“तुम यहां क्या कर रहे हो?”
मैंने गुस्से से सात्विक को देखा।
“फिल्म देखने आया।”
वो बेफिक्री से पॉपकॉर्न चबाए जा रहा था।
सात्विक निकला।
मैं भी मंजू बाला कुमारी से बच के निकला। मुझे कुछ सही नहीं लग रही थी वो।
मैं अपनी सीट पर बैठा एल वन और बगल ही एल 2 पर मंजू बाला कुमारी आ गई।
थोड़ा सा अजीब लग रहा था मुझे।
मैं चुपचाप बैठा ही था कि उसने अपने पॉपकॉर्न मेरी तरफ बढ़ाए।
“खा लीजिए।”
“मैं पॉपकॉर्न नहीं खाता।”
मैंने मना किया।
थोड़ी देर में वो मेरे कान में फुसफुसाई।
“वो तृप्ति ढिमरी वाला सीन कब आयेगा?”
“पता नहीं।”
मैं उससे बात नहीं करना चाह रहा था। पर वो मुझसे चिपकी ही जा रही थी।
“मैं शरीफ आदमी हूं। ज्यादा नाटक मत करो और ये वेबसीरीज में राइटर के तौर पर अपना असली नाम नहीं देता। तुम्हें कैसे पता चला ?”
मैं गुस्से से बोला
“एकता जी एक नया ओटीटी एप शुरू कर रही हैं। प्रेम भावना। उन्हें एक रफ टफ हीरो की ज़रूरत भी है।आप को परदे पर आने का चांस मिलेगा। आपकी स्क्रीनिंग चल रही है कास्टिंग डायरेक्टर मैं ही हूं।आप पर एकता जी की नजर है। आपको हीरो के तौर पर चाहती हैं इसलिये मुझे खुद आना पड़ा।”
मंजू बाला कुमारी ने सधी आवाज में कहा। एकदम प्रोफेशनल सी।
“मुझे परदे पर नहीं आना।”
“एक लाख प्रति एपिसोड”
“नहीं चाहिए।”
“16 एपिसोड होंगे।”
“नहीं चाहिए “
“तीन सीजन होंगे सीरीज के।”
“नहीं चाहिए।”
“तीनों सीजन में से हर सीजन में कम से कम तीन अलग अलग हीरोइन होंगी।!”
“कॉन्ट्रैक्ट कब साइन करना है?”
मैं टूट गया था अब।
9 अलग अलग हीरोइनों की बात नहीं थी।48 लाख बहुत होते हैं मेरे जैसे आदमी के लिये।
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मंजू बाला ने बताया कि पहले वो मेरा स्क्रीन टेस्ट लेगी।
स्क्रीन टेस्ट में मुझे उसका किस करना था।
एक दो बार थियेटर में और एक बार जेंट्स वाशरूम में मैने स्क्रीन टेस्ट दिया।
जिसे उसने अपने मोबाइल के सेल्फ कैमरे से रिकॉर्ड किया।
साथ ही उसने मुझे स्क्रीन टेस्ट के लिए दस हजार का एक चेक भी दिया। अपना फोन नंबर दिया।
फिल्म के बाद हमने साथ में काफी भी पी।
मैं जब दस हजार रुपए का चेक और मंजू बाला कुमारी का फोन नंबर लेकर मॉल से निकला तो बहुत खुश था। अच्छा किस करती थी।
मुझे पता था पलंगतोड़ के अगले सीजन में मुझे हीरो देख मेरी बीवी और परिवार नाराज होगा, पर मैं रुपयों से उनका मुंह बंद कर सकता था
जल्दी घर जाना नहीं था। तो चिड़ियाघर भी घूम आया।
शाम को साढ़े सात बजे घर पहुंचा।
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मैं जो नई एलईडी टीवी खरीद के लाया था, इंस्टाल हो रही थी।
सात्विक लगा हुआ था।
उसे देख के ही मूड खराब हो गया
“ये यहां क्यों है?”
मैंने गुस्से से पूंछा।
“लो भैया चाय पी लो।”
मेरी बात को नजरंदाज करते हुए श्रीमती जी बोलीं।
“चलो तुम इतना कर तो रहे हो। एक हफ्ते से टीवी ऐसे ही पड़ी इन्हें फुरसत ही नहीं।”
मैं किलकिला के रह गया। मुझे चाय भी नहीं मिली थी।
“भाभी , इस टीवी को मोबाइल से जोड़ दो तो मोबाइल टीवी पर भी चलने लगेगा।!”
सात्विक चाय की चुस्की लेता बोला।। वो टीवी इंस्टाल कर चुका था। मेरे ठीक आगे जमीन पर बैठा था।
“अच्छा?”
श्रीमती जी ने आंखें फैलाई।
“बिट्टी! पापा को बिना शक्कर वाली चाय दो लाके “साथ ही आदेश भी दिया बेटी को।
“हे भगवान! मुझे शुगर कब से हो गई?”
मैंने मन ही मन श्रीमती जी को गाली दी ये औरत जीना दूभर किये है।
“हां भाभी ये देखो।”
सात्विक बोला।
“पहले मैं अपना मोबाइल कनेक्ट करके दिखा दूं।”
ये कह के सात्विक ने अपना मोबाइल टीवी से कनेक्ट किया।
उसके मोबाइल के वॉलपेपर पर भगवान की फोटो लगी थी।
मैंने जय हो बोला।
“और ये पहला वीडियो भगवान जी वाला।”
बोल कर सात्विक ने अपनी मोबाइल की गैलरी से एक वीडियो चलाया।
थोड़ा गोल गोल कुछ घूमा स्क्रीन पर
फिर
“खटाक!”
” छछूंदर फस गया मम्मी!”
“छन् छपाक और चाय का कप गिर के चाय फैलने की और कप टूटने की आवाज “
“Bsdk”
“व्हाट द फक?”
“हैं???”
ये सब आवाज़ें एक साथ आईं।
मेरे ही घर में मेरी ही खरीदी नई नई टीवी पर मेरी ही बीवी के सामने मेरे और मंजू बाला कुमारी के किसिंग सीन चल रहे थे।
वो भी थोड़े से अश्लील वाले।
“वो मैं पलंग तोड़ सीरीज का स्क्रीन टेस्ट दे रहा था। पता नहीं इसके पास वीडियो कहां से आ गया।”
मैं सहमते हुए बोला।
वो मुझे खा जाने वाली नज़रों से घूर रही थीं।
“एक लाख पर एपिसोड मिलेगा।48 एपिसोड हैं।”
“भैया तुम जरा बाहर पहरेदार बनना। आज मैं इन्हें पलंगतोड़ चरम सुख देना चाहती हूं।”
श्रीमती जी शब्दों को चबा चबा के बोलीं। शाकाल जैसे।
बेटी इतनी समझदार हो चुकी थी कि मेरी चमड़े की बेल्ट, चमड़े के जूते, और लकड़ी के हैंडल वाली कलछुली गर्म करके अपनी मम्मी को पकड़ा गई।
आगे बहुत कुछ बताने लायक नहीं।
इतना कुटने पिटने के बाद भी मुझे बहुत संतोष था कि कम से कम मंजू बाला कुमारी जैसी खूबसूरत लड़की के जिस्म के मजे तो ले लिए।
किस तो ले लिए।
अगले रोज घर से निकलने का सवाल ही नहीं था। मुझे पता चल गया था कि ये सब सात्विक की करामात थी। मैंने उसकी बेइज्जती की थी। मेरी पत्नी ने मेरे लिए फिल्म की टिकट भी उसी से बुक करवाई थी तो उसे मेरी सीट नंबर पता ही थी।खेल खेल गया था वो मेरे साथ।उसने बदला ले लिया।
बताने की ज़रूरत नहीं कि मंजू बाला का दिया गया दस हजार का चेक जाली था। मैं सिमरन की नज़रों में गिर चुका था और मेरी बीवी ने मुझे सिर्फ पीटा ही नहीं कूटा भी था, वो भी तबियत से।
मेरी शारीरिक आर्थिक और मानसिक क्षति केवल इस लिए हुई कि मैंने एक मोदीभक्त से पंगा लिया।
मोदीभक्तों से पंगा नहीं ले सकते भाई लोग।
ये लोग तन मन और धन तीनों की हानि कर देते हैं दुश्मनी में।
तीसरे दिन घर से निकला।
सात्विक मिल गया घर के बाहर रोड पर
बोला।
“भाई साहब दो बातें बतानी थीं।”
“एक मोदी भक्तों से पंगे नहीं लेते। मंहगा पड़ता है।”
“दूसरी?”
“दूसरी ये कि वो मंजू बाला कुमारी नहीं, मंजू बाला कुमार था।”
Bsdk
पतंजलि के टूथपेस्ट से दिन भर कुल्ला कर रहा हूं।
जी अभी भी घिना रहा।
एनीमल ठीक ठाक फिल्म है पर तृप्ति ढिमरी का न्यूड सीन आधा सेकंड भी नहीं है।
आपका -विपुल
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