वामपंथ एक रोग है
आपका -विपुल
वामपंथ विकृत मस्तिष्क के बुद्धिजीवियों की वैचारिक वासना का एक विकृत रूप है।
मैं वामपंथ को एक विचारधारा भी समझने वालों को बुद्धिमान नहीं मान सकता और इस बारे में कुछ बात ज़रूर कहना चाहूंगा।
वामपंथ मूल रूप से व्यवस्था के प्रति विद्रोह, सबको समान समझने, ऊंच नीच दूर करने और नास्तिकतावाद के इर्द गिर्द घूमता है जहां आपका अपनी जाति या कुल पर गर्व करना शर्म का विषय माना जाता है। अपने पुरुषार्थ और पैसे पर गर्व करना निंदनीय माना गया और परिवार संस्था और वैवाहिक रीतियों में न पड़ने का संदेश भी देते हैं ये लोग।
नए नए जवान हुए बच्चे इन इंकलाबी बातों में आ भी जाते हैं और अपनी युवावस्था की शक्ति और संपत्ति इन भूखे भेड़ियों के हवाले कर देते हैं जो वामपंथी विचारधारा के नाम पर अपने साथियों का शोषण करके अपने परिवार और खुद के लिए पूंजी बनाते हैं। कट्टर कम्युनिस्ट नेताओं और विचारकों के परिवार के लोग, उनके बच्चों की शिक्षा दीक्षा, व्यवसाय के बारे में आप कभी खुद जानना।
हम बताएंगे तो आपको विश्वास ही नहीं होगा।
कुछ बातें जो ज़रूर करना चाहूंगा जो वामपंथ के मूल पर सवालिया निशान लगाते हैं।
पहली चीज वामपंथी साम्यवाद पर ही बात कर लें।
साम्यवादी विचारधारा के अनुसार सब लोगों को समान होना चाहिये।
समाज में सबको समान मात्रा में पूंजी और भोजन का वितरण होना चाहिए।
गंभीर बात आगे करेंगे, पहले हल्की बात कर लें।
मैं 80 किलो का हूं मेरी पत्नी 48 किलो की है।
मैं 8 रोटी खाता हूं। मेरी पत्नी 4 रोटी खाती है।
अगर साम्यवादियों की मानें तो हम दोनों को 12 रोटियों में से ठीक आधी यानी 6 -6 खानी चाहिए।
लेकिन अगर ऐसा होगा तो मैं भूख से बीमार पडूंगा और मेरी पत्नी को ज्यादा खाने से बीमारी हो जायेगी।
मतलब कुल मिला कर साम्यवाद को मानोगे तो आपका बीमार होना तय ही है।
अब गंभीर बात कर लें।
ईश्वर ने ही प्रकृति को साम्यवाद के अनुसार नहीं बनाया।
यहां की हर चीज अनूठी और अलबेली जो किसी भी दूसरे से बिल्कुल अलग है। सूक्ष्म से सूक्ष्म जीवाणुओं में से भी एक की पहचान दूसरे से अलग होती है। एक जीवाणु भी किसी दूसरे के समान नहीं होता।
पुरुष और महिला की संरचना अलग है। तमाम बकवास के बाद भी किसी पुरुष को किसी महिला जैसी प्रसव पीड़ा नहीं हो सकती। और तमाम महिला समानता की बकवास के बाद भी कोई महिला किसी दूसरी महिला को मां नहीं बना सकती।
पुरुष और महिला अलग अलग ही हैं।
साम्यवाद आपके परिश्रम और पुरुषार्थ को महत्व नहीं देता, मुफ्तखोरी को महत्व देता है जहां कुछ भी काम न करता व्यक्ति भी उसी आदमी जितना पैसा चाहता है जो बहुत मेहनत से पैसे कमाता है।
अलावा इसके नास्तिकतावाद भी एक छलावा है। किसी नास्तिक वामपंथी के लड़के बच्चे परिवार के शादी संबंध क्या किसी नास्तिक तरह से होते हैं?
मरने के बाद वो और उसके परिवार के लोग दफनाए या जलाए ही जाते हैं किसी न किसी धर्म के रिवाजों के अनुसार।
और बात करें इनके नायकों की।
हमारा नायक राम है या कृष्ण, जो अपने परिवार और समाज के साथ अच्छे से पेश आता है, उनके लिए लड़ता है।
इनका नायक चे ग्वारा है जो अपना देश छोड़ दूसरे देशों में लड़ता है और कई औरतों के साथ अय्याशियां छोड़ो, बलात्कार भी करता है।
वामपंथ का इस्तेमाल केवल किसी देश या समाज के दुश्मन इनके बड़े लोगों को पैसों या अन्य चीजों का प्रलोभन देकर करते हैं।
और अंत में एक बात बताओ भाई!
ये पूरी सृष्टि ही एक व्यवस्था से चल रही है जहां सब कुछ एक गणितीय तरीके से होता है। दिन रात, मौसम, जीवन, मृत्यु।
किसी बड़े वैज्ञानिक के शब्द थे कि ईश्वर निश्चित तौर पर एक गणितज्ञ है।
तो अगर आप भगवान को माने तब तो वामपंथ आपके लिए नहीं और भगवान को न मानो तो प्रकृति तो है ही आपके सामने जहां सब कुछ एक नियत व्यवस्था के तहत चल रहा है।
दोनों ही सूरत में व्यवस्था का विरोध अप्राकृतिक ही दिखता है।
ये वामपंथ अप्राकृतिक ही है और इसीलिए ये अप्राकृतिक मैथुन के समर्थक भी होते हैं।
बस इतना ही।
आपका -विपुल
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बहुत ही शानदार विचार
Wonderful article sir..