धर्म अर्थ और काम
प्रस्तुति -विपुल मिश्रा
चलो आज थोड़ा गंभीर चर्चा कर लें।
काम और आराम के बीच।
प्राचीन भारत के शास्त्रों के अनुसार चार पुरुषार्थ हैं।
धर्म ,अर्थ ,काम और मोक्ष।
निष्कर्ष ये निकलता है कि अगर आप धर्म अर्थ और काम का अपने जीवन में सही समन्वयन रखते हैं तो आपको मोक्ष मिलेगा।
कुल मिलाकर धर्म भी उतना जरूरी है जितना अर्थ ,और अर्थ भी उतना जरूरी है जितना काम।
मतलब तीनों चीजों का अनुपात आपकी जिन्दगी में एक तिहाई ही होना चाहिए।
न कम न ज्यादा।
धर्म का मतलब यहां पर आपके कर्तव्यों से होता है जैसा कि सबको पता है कि संस्कृत के धर्म शब्द का अर्थ बहुत व्यापक है।
इसे यहां अपने रीति रिवाजों और परिवार समाज के प्रति कर्तव्यों और पूजा पाठ सबसे जोड़ सकते हैं।
अर्थ का मतलब जीविकोपार्जन के लिए आपका प्रयास !
नौकरी ,खेती या स्वरोजगार कुछ भी।
काम का मतलब प्रेम संबंध, यौन संबंध, संतानोत्पत्ति, आपका मनोरंजन और कुछ भी जो आपको दुनिया की रंगीनियों से जोड़े रहे।
जब आप इन तीनों चीजों में सही संतुलन स्थापित करते हैं तो ही ईश्वर आपको मोक्ष के काबिल समझता है।
न तो अपने जीवन के पूरे समय को काम में समर्पित करने वाले को मोक्ष मिलता है, न पूरे जीवन (गृहस्थ की बात हो रही) धर्म कार्य करने वाले को मोक्ष मिलता है ।
और न कमाई की अंधी दौड़ में अपने परिवार को भूलने वाले को मोक्ष मिलता है।
जरा सोचो।
राम कृष्ण और शिव सब हिंदू देवों की पत्नी हैं , परिवार हैं तो अपनी पत्नी और परिवार को भूल कमाई की अंधी दौड़ में दौड़ने वाले को वो क्यों पसंद करेंगे ?
आपका परिवार भी उतना ही जरूरी है जितना आपका काम। धर्म अर्थ और काम तीनों आवश्यक हैं।
एक भी चीज की कमी होने पर आपको मोक्ष नहीं मिलेगा।
ये मेरा विचार है।
आप सहमत या असहमत होने को स्वतंत्र हैं।
🙏
विपुल मिश्रा
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बहुत ही अच्छा लिखा गया है। 👍🙏