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आपका -विपुल

क्रिकेट में ऑनलाइन सट्टेबाजी

कल कुछ लड़कों ने कहा था कि इस विषय पर लिखो, तो आज मैं भारतीय क्रिकेट में इस समय हावी सट्टेबाजी एप पर कुछ लिखने की कोशिश कर रहा हूं।
बात शुरू मैं 1994 95 से करना चाहूंगा जब उत्तर प्रदेश में लॉटरी का कारोबार चरम पर था।
1 रुपए,2 रुपए,5 रुपए की लॉटरी आती थीं।और रोज का था ये।

अंतिम अंक मिलने पर 1 रुपए पर 7 2 रुपए पर 15 रुपए का इनाम था।तीन अंक मिलने पर 1500 रुपए मिलते थे।
सबसे बड़ा इनाम एक लाख।
रोज अलग अलग नामों से लॉटरी निकलती थी।मणिपुर स्टेट,पंजाब,हरियाणा, यूपी, पता नहीं सरकारी थी या नहीं।
पर तब इसका नशा हो चुका था आम लोगों में।
अखबारों में रिजल्ट निकलता था इसका।

मेरे साथ के लड़के खेलते थे। मोहल्ले की दीदियां, चाचियां, दादियां तक खेलती थीं। रोज गुणा भाग लगते थे कि कल सत्ता आया तो आज अठ्ठा आ सकता है या जीरो।बड़े बड़े स्टाल लगते थे।बड़ा बिजनेस था। इनाम जीतने पर भी लॉटरी ज़रूर खरीदनी पड़ती थी। जैसे 7 रुपए जीते तो 1 ,15 जीते तो 2 लॉटरी खरीदनी अनिवार्य सा था।

और हुआ यूं कि कई नौजवान इस लॉटरी के नशे में बरबाद हुए।कर्जे में गए।फांसी लगाई। अपराध बढ़े।चोरी,छिनैती बढ़ गई। लॉटरी के पैसों के फेर में हत्या,लूट और किडनैपिंग तक हुईं।
मायावती सरकार आई और एक झटके में उसने यूपी में लॉटरी बैन कर दीं।
बहुत रोना गाना हुआ पर मायावती ने फैसला न पलटा।

मायावती के और फैसले जो भी रहे हों पर लॉटरी बंद करने का ये विशुद्ध सामाजिक भलाई का फैसला था।मायावती को उनके इस फैसले के लिए आज भी सम्मान दिया जाता है जो किसी राजनैतिक लाभ से प्रेरित नहीं था।इससे शायद उनके ही वोट कट सकते थे,पर उन्होंने खतरा मोल लिया और अपनी विश्वसनीयता स्थापित की।

अब वहां से बात क्रिकेट के इस ऑनलाइन एप के सट्टे पर लाते हैं।
3 साल पहले मेरे पड़ोस के एक हलवाई के भाई ने फांसी लगाई।मुझे लगा शायद लड़की वगैरह का मामला होगा।कई दिनों बाद पता चला वो क्रिकेट सट्टेबाजी में कई रुपए हार चुका था।कुछ दिन पहले मेरे पड़ोस के ऑटो वाले ने अपना ऑटो बेच दिया।

अच्छा लड़का था,पता चला क्रिकेट सट्टे में रुपए हार गया बहुत से।मुझे लगता है 4- 5 साल में वही स्थिति होने वाली है जो 1994 95 में यूपी में लॉटरी के दुष्प्रभावों से हुई थी।गौर करें तो आईपीएल पहले इतना ज्यादा लोग नहीं देखते थे।अब स्कूली बच्चे और कामगार तबका की भी भी आईपीएल में बहुत रुचि दिख रही है आजकल।

कल एक स्पेस में कल शंकर जाट नाम के भाई ने बोला था कि उनके लेबर जो 10 हजार कमाते हैं,क्रिकेट कभी नहीं देखते थे, अब क्रिकेट देखते हैं, 1200 इन्हीं एप में हार चुके हैं।और उन लेबरों को किसी ने बताया कि पड़ोस के गांव में एक व्यक्ति 1 करोड़ जीता है।
उनकी बात के बाद मैंने गौर किया, मेरे मोहल्ले में भी लगभग ऐसा है।

कई ऐसे लड़के जो बढ़ई गिरी, राज मिस्त्री का , प्लंबरिंग का काम करते थे और कभी क्रिकेट न खेलते थे, न देखते थे।आईपीएल पर ड्रीम 11 या ऐसे ही एप की टीम बनाते हैं रोज।
कल शाम को मेरा नाई भी मुझसे आईपीएल की बात कर रहा था। वो एक बार जीता था कभी, तब से हार ही रहा है।
अपने आसपास भी देखिए, ऐसा ही मिलेगा शायद।

और यहां मैं ईमानदारी से कहूं तो ड्रीम 11 पर मैंने 2020 में पहली बार टीम बनाई जब मैं एक ऑटो में जा रहा था और उसके ड्राइवर ने अपनी बहन से फोन पर बात करके कुछ पैसे ट्रांसफर किए और खुशी से बताया कि उसकी बहन ये खेलती है और कई बार जीत चुकी है।
मुझे तब लालच आया।49 रुपए मैं भी कई बार हारा।

इस साल आईपीएल में आपने पुलिस द्वारा सट्टेबाजों को पकड़ने की कोई खबर शायद ही सुनी हो।
जब सरकारी तौर पर स्वीकृत सट्टा इन सट्टेबाजी एप से खेल सकते हो तो कोई रिस्क क्यों लेगा?
और आपको कोई सट्टेबाज भी नहीं कहेगा।
प्लेयर बोलेगा प्लेयर।
अब इसके आगे जो कहूंगा, वो मेन प्वाइंट है।


इंग्लैंड में क्रिकेट मूल रूप से सट्टेबाजों का ही खेल था। अभी भी है और वहां लीगल है।
भारत में सट्टेबाजी लीगल नहीं है।और क्रिकेट मैच पर पैसा लगा कर पैसा जीतना सट्टेबाजी के अलावा क्या कहा जा सकता है।
इसे ऑनलाइन गेम का सोफिस्टिकेटेड और पॉश नाम देने के बाद भी ये सट्टा ही रहेगा।

कॉलगर्ल और सेक्स वर्कर भी वैश्या ही होती है। नाम बदलने से फ़र्क नहीं पड़ता भाई। तीनपत्ती हो या कट पत्ती या फ्लश सब जुएबाजी ही होती है।
कैसीनी में खेलो या खंडहर में। जुए खेलने वाला जुआरी ही होता है और सट्टा खेलने वाला सट्टेबाज ही होता है
बस हमारी सरकार आंखें मूंदे है।
क्यों?

और एक बहुत महत्वपूर्ण बात।
ड्रीम 11 और एमपीएल जैसे सट्टेबाजी एप बीसीसीआई के प्रायोजक रहे हैं।
बीसीसीआई प्रेसीडेंट सौरव गांगुली अपने पद पर रहते हुए सट्टेबाजी एप का विज्ञापन कर रहे थे।

आईपीएल और आईसीसी के ऑफिशियल पार्टनर तक ये ऐप हैं
कोहली गांगुली धोनी रोहित जैसे बड़े खिलाड़ी इनसे जुड़े हैं।

तो इस बात की क्या गारंटी है कि ये सट्टेबाजी कंपनियां मैच फिक्सिंग या स्पॉट फिक्सिंग या प्लेइंग इलेवन की फिक्सिंग नहीं करवाती होंगी?
संस्था में उनका दखल, ड्रेसिंग रूम में उनका दखल, बड़े खिलाड़ी उनके पास, उनके आदमी हर स्टेडियम हर ऑफिस, हर खिलाड़ी से मिलने को स्वतंत्र।
तो क्या ये मैच फिक्सिंग के लिए उपयुक्त माहौल नहीं?

ज्यादा कुछ खुल के मैं नहीं बोलूंगा
बॉब वूल्मर और हँसी क्रोनिए के साथ जो हुआ, उसकी बात कितने लोग करते हैं?


दो साल लगातार दो आईपीएल टीमें बैन रहीं।
उन टीमों के बड़े खिलाड़ी फिर भी खेलते रहे। मुद्गल कमेटी की रिपोर्ट का लिफाफा पता नहीं कब खुलेगा।ये सब बातें करने का औचित्य ही नहीं अभी।

जिस देश के क्रिकेट में फिक्सिंग के दोषी पाए गए मोहम्मद अजहरुद्दीन हैदराबाद क्रिकेट संघ के अध्यक्ष बने बैठे हों।और फिक्सिंग की सजा पाए बैठे अजय जडेजा बीसीसीआई के कॉमेंटेटर बन के ज्ञान बांच रहे हों, वहां फिक्सिंग रोकने की बात करना ही बेवकूफी है।
इसलिए वो बात नहीं करूंगा।

मैं अपने देखे उस क्रिकेट मैच की बात भी नहीं करूंगा जो मनोज प्रभाकर और नयन मोंगिया जान बूझ कर धीमी बैटिंग करके हारे थे। शायद कानपुर में था। वेस्टइंडीज के खिलाफ।इन को सजा भी मिली थी कुछ।
मोंगिया और प्रभाकर भी बीसीसीआई की तरफ से स्वतंत्र हैं अभी।

इसलिए मैं केवल भारत सरकार से मांग करूंगा कि इन सभी ऑनलाइन सट्टेबाजी एप को भारत में तत्काल प्रतिबंधित किया जाये।
प्रतिबंधित कर देगें तो बीसीसीआई और आईपीएल इनको अपना पार्टनर नहीं बना पाएगा।
वैसे गौर करना,
आईपीएल और बीसीसीआई इन्हीं बेटिंग एप के पैसों से चल रहा है।
बस गौर करना।
इन सट्टेबाजी एप को प्रतिबंधित करते ही आईपीएल में लगा पैसा अचानक कम हो सकता है और खिलाड़ियों की सैलरी भी।
फिर भी मैं बच्चों को सट्टेबाजी से बचाने को इन एप को प्रतिबंधित करने की मांग करूंगा।
🙏🙏🙏🙏🙏

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आपका -विपुल

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