अर्शदीप महाजन
विश्व टेस्ट चैंपियनशिप फाइनल की हार
अर्शदीप महाजन
दूसरी विश्व टेस्ट चैंपियनशिप के फाइनल के आख़िरी दिन का खेल भी वैसा ही हुआ जैसा होने की संभावना मैच के पहले दिन ही दिख गई थी। दूसरी बार फाइनल में पहुँची भारत की टीम अच्छी पोजीशन में नहीं थी और आख़िरी दिन भारत को जीत के लिए 7 विकेट शेष रहते 280 रन और बनाने थे।
भारतीय टीम मैच में बने रहने के लिए जूझी थी और वह इस काबिल है कि हम आख़िरी दिन उनसे एक चमत्कार की उम्मीद कर सकते थे। लेकिन प्रश्न यह है कि क्यूँ एक बार फिर भारतीय टीम आईसीसी इवेंट के फाइनल में इस जगह पर पहुँची गई कि एक चमत्कारी पारी उसे बचाने आती।
हम खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर उँगली उठा सकते हैं, कभी ऊपरी क्रम पर, कभी मध्यक्रम पर तो कभी गेंदबाज़ी पर। हम IPL को भी बुरा भला कह सकते हैं। लेकिन अगर आप पिछले 6 वर्षों के भारतीय प्रदर्शन को देखें, जहाँ आपको असफलताओं के साथ भारतीय टीम का अद्भुत प्रदर्शन और अच्छी विजय भी देखने को मिलेंगी, लेकिन आपको एक चीज़ की निरन्तरता अवश्य मिलेगी। वह है बीसीसीआई का खिलाड़ियों से छोटा होना और मिस मैनेजमेंट।
भारत में सचिन से बड़ा खिलाड़ी कोई नहीं हुआ। 25 वर्ष के अपने अंतरराष्ट्रीय करियर में लगभग एक दशक तक टीम को अकेले ढोया है सचिन ने। फिर भी टीम सचिन से हमेशा बड़ी ही रही। लेकिन आज, ना केवल खिलाड़ी टीम से बड़े हो गये हैं बल्कि बीसीसीआई भी टीम से छोटी हो चुकी है। क्या कारण है कि टीम में खिलाड़ी नहीं नाम खेलते है? क्या कारण है कि अनुशासन, प्रदर्शन और निर्णयों को लेकर किसी की भी कोई जवाबदेही तय नहीं है अब? क्या कारण है कि खिलाड़ी अपने खेल से अधिक पीआर की वजह से सुर्ख़ियों में रहते हैं? टीम में क्षेत्रीय क्रिकेट बोर्डों का दखल क्या कम था कि अब कॉर्पोरेट घरानों का भी हो गया दिखता है? क्या कारण है कि वर्तमान खिलाड़ी पूर्व खिलाड़ियों से मार्गदर्शन नहीं लेते अब? क्यों अब खेल पत्रकार खिलाड़ियों की आलोचना करने से कतराते हैं?
क्या कारण है कि मैच प्रैक्टिस की जगह नेट प्रैक्टिस और नेट प्रैक्टिस की जगह स्विमिंग पूल ने ले ली है? क्या कारण है कि लगभग आधी टीम कप्तानों से भरी पड़ी है? क्या कारण है कि आपके गेंदबाज़ तो बल्लेबाज़ी करके आप को बार बार बचाने आते रहते हैं लेकिन आपका कोई भी बल्लेबाज़ गेंदबाज़ी करने को तैयार नहीं? क्या कारण है कि ना तो खिलाड़ियों के चयन में कोई निरंतरता है और ना उनको बाहर बिठाने में? क्या कारण है कि एक खिलाड़ी का टीम में चयन उसके सुनहरे दौर के हिसाब से नहीं बल्कि जिसको हटाना है उसके ख़राब दौर के हिसाब से किया जाता है?
क्यों खिलाड़ी अपनी पीक फॉर्म में निरंतर रन बनाते केवल रणजी खेलते रह जाते हैं और नाम केवल इसलिए खेलते रहते हैं क्योंकि उनकी असफलता में इक्के दुक्के पचासों की वजह से निरन्तरता नहीं आई अभी? क्या कारण है रणजी से जिन्होंने टेस्ट टीम में जगह बनाई हो पिछले एक दशक में, ऐसे किसी खिलाड़ी का नाम भी याद करना मुश्किल हो जाता है?
आज के दौर में जितनी क्रिकेट खेली जाती है, क्या इतनी क्रिकेट में एक खिलाड़ी लगातार तीनों फॉर्मेट और IPL खेल कर लंबे समय तक फिट रह सकता है? क्या कारण है कि पाँच वर्षों में लगभग पच्चीस तेज गेंदबाज़ों को परखने के बाद भी विश्व चैंपियनशिप के फाइनल में अश्विन को बाहर बैठाना पड़ा क्यूँकि तीन तेज गेंदबाज़ सौ प्रतिशत फिट नहीं थे और एक चौथा तेज़ गेंदबाज़ चाहिए था?
क्या कारण है कि हार्दिक पण्ड्या तीन साल से फिट नहीं हो पाये? क्या कारण है कि कपिल देव के बाद तीन दशकों से अंतरराष्ट्रीय स्तर का हम एक भी आल राउंडर नहीं ढूँढ पाये?
IPL ज़रूरी है। ना केवल खिलाड़ियों और बीसीसीआई की आर्थिक संपन्नता के लिए बल्कि डोमेस्टिक खिलाड़ियों को इतना बड़ा मंच देने के लिए भी। लेकिन क्या केवल टी ट्वेंटी और IPL के सिर पर यह खेल जीवित रह सकता है? क्या टेस्ट टीम में खेलने के लिए टी ट्वेंटी और IPL का प्रदर्शन ही काफ़ी है? क्या एक दिवसीय की कोई आवश्यकता नहीं रह गई है? रणजी के साथ टी ट्वेंटी से एक दिवसीय और एक दिवसीय से टेस्ट टीम क्या सही रास्ता नहीं होगा एक मज़बूत खिलाड़ी और मज़बूत टी ट्वेंटी, एक दिवसीय और टेस्ट टीम बनाने के लिए? जब खिलाड़ी थक रहे हैं और चोटिल हो रहे हैं तो क्यों ना सीनियर खिलाड़ियों को एकदिवसीय और टेस्ट तक और युवा खिलाड़ियों को टी ट्वेंटी और एक दिवसीय तक ही सीमित रखा जाए? प्रदर्शन के आधार पर एक फॉर्मेट से दूसरे फॉर्मेट में अदल बदल होती रहे और IPL सब खेलें। जब एक टीम टेस्ट खेल रही हो तो दूसरी किसी और देश में टी ट्वेंटी खेले और एक दिवसीय के लिए दोनों टीमों के खिलाड़ी इकट्ठे हो जाएँ। इससे एक दिवसीय फॉर्मेट भी बचेगा और टेस्ट भी। सीनियर खिलाड़ियों के पास समय होगा और युवा खिलाड़ियों के पास अधिक मौक़े। खिलाड़ी कम थकेंगे तो चोटिल भी कम होंगे। बीसीसीआई कुछ और भी सोच सकता है लेकिन प्रश्न यह है कि क्या वह सोच रहा है? जब आप जीती हुई टेस्ट सीरीज बीच में छोड़ कर IPL खेलने चले जाते हैं, तो ऐसा लगता तो नहीं।
दो साल तक चलने वाली चैंपियनशिप आपके लिए बस एक मज़ाक़ है क्योंकि इसके लिए आप दो महीने की IPL के बाद केवल 8 दिन का समय रखते हैं। क्या कारण है कि दो महीने थका देने वाले IPL के एक सप्ताह बाद टीम को विश्व टेस्ट चैंपियनशिप का फाइनल खिला दिया गया?
क्या मैदान पर खिलाड़ी थके हुए दिखाई नहीं दिये? क्या मैच प्रैक्टिस की कमी नहीं दिखी? क्या खिलाड़ियों में कोई बटन है जो दबा देने से IPL और टेस्ट मॉड बदला जा सकता है? खिलाड़ी खेलना और जीतना चाहते हैं। योग्य और सक्षम भी हैं। मानसिक और शारीरिक तौर पर हो सकता है कि पूर्ण स्वस्थ भी रख लें ख़ुद को, पर क्या दो महीने इतने दबाव वाले टी ट्वेंटी फॉर्मेट में खेलने के बाद एक दम से आप टेस्ट फॉर्मेट वाले अपने स्किल्स में स्विच कर सकते हैं क्या? क्या यही सब कुछ पिछले फाइनल में एक महीने का समय मिलने पर भी नहीं किया गया?
WTC2021 में बारिश और मौसम की वजह से पिच तेज गेंदबाज़ी के लिए अधिक मददगार बन गई थी। पूरे मैच में अश्विन और शमी ने 4-4, ईशांत ने 3 और जडेजा ने 1 विकेट लिया था। हम तीसरी और चौथी पारी में बल्लेबाज़ी और गेंदबाज़ी की असफलता के चलते हारे थे और ठीकरा अश्विन के सर फोड़ दिया गया था कि अगर चौथा तेज गेंदबाज़ होता तो शायद जीत जाते। अश्विन ने लो स्कोरिंग मैच में कुल 29 रन भी बनाये थे। WTC2023 की पिच उस पिच से कहीं बेहतर थी और अश्विन का ही खेलना बनता था। लेकिन उसे बाहर बैठा दिया गया जो ऑस्ट्रेलियन लेफ्टहैण्ड बैट्समैन के विरुद्ध आपकी बेस्ट बेट था। आपको ज़रूरत चौथे तेज गेंदबाज़ की नहीं बल्कि तीन तेज गेंदबाज़ों के पूरे फिट होने की थी याँ एक तेज गेंदबाज़ी ऑलराउंडर की थी। आप पिछले पाँच वर्षों में लगभग 25 तेज गेंदबाज़ खिला चुके हो, मैं लिस्ट दे सकता हूँ आपको। फिर भी आपके पास 3 तेज गेंदबाज़ नहीं थे जो पूरे फिट हों विश्व टेस्ट चैंपियनशिप फाइनल खेलने के लिये। 2021 का फाइनल अगर हमने आधे फिट बुमराह के साथ खेल था तो 2023 का आधे फिट उमेश यादव के साथ।
यह और ऐसे कई प्रश्न पिछले 6 वर्षों से निरन्तर बने हुए हैं जो ना तो बीसीसीआई से पूछे गये है और ना ही बीसीसीआई के पास इनका कोई उत्तर होगा। क्योंकि बोर्ड के पास ना तो अब इतना सोचने का समय है और ना ही ताक़त।
बीसीसीआई तो अपनी कमियाँ किसी ना किसी खिलाड़ी के पीछे छुपा लेता है लेकिन हम क्रिकेट फैन्स, जो कि सबसे बड़े हैं, हम अपनी कमियाँ कहाँ छुपायेंगे। हमने अपनी कमियों की वजह से एक दिवसीय को लगभग समाप्त कर दिया है और टेस्ट को बस एक फ़ॉर्मलिटी। कोई कमी तो है हम में भी जो हमारी आवाज़ क्रिकेट बोर्ड तक नहीं पहुँचती। हम तो अपने अपने गैंग बना बैठे हैं अब। रोहित गैंग, कोहली गैंग, माही गैंग। खेल बड़ा है, खिलाड़ी नहीं। और खेल से भी बड़े हैं खेल को देखने वाले। हमें अपनी ताक़त खेल को बचाने, बढ़ाने और पारदर्शी बनाने में लगानी होगी। नहीं तो यह प्रश्न ऐसे ही खड़े रहेंगे और हम कुछ चमत्कारी प्रदर्शनों का इंतज़ार करते रहेंगे जीतने के लिए। अगर एक दिवसीय विश्व कप भी इन्ही प्रश्नों और चमत्कारी प्रदर्शन की उम्मीद में खेल जाएगा तो परिणाम भिन्न होने की उम्मीद बिलकुल भी मत रखियेगा।
अर्शदीप महाजन
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