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निष्पक्षता मात्र एक भ्रम है
आपका -विपुल

निष्पक्षता मात्र एक भ्रम है।कोई भी निष्पक्ष नहीं होता।अगर आप मानव हैं और विवेकशील हैं तो निष्पक्ष नहीं हो सकते।
एक छोटे से उदाहरण से समझिये,कुछ देशों में लेफ्ट हैंड ड्राइविंग का प्रावधान है और कुछ देशों में राइट हैंड ड्राइविंग का।
मतलब या तो वाहन सवार सड़क की दाईं पट्टी पर चलेंगे या सड़क की बाईं पट्टी पर।
कोई भी सड़क के बीचोबीच नहीं चलता।
सरकार समाज और संस्कृति आपको कभी निष्पक्ष रहने को नहीं कहते।
निष्पक्षता प्राकृतिक नहीं है,ये कानूनी नहीं है और ये सामाजिक भी नहीं है।
तटस्थ और निष्पक्ष होने में फर्क है।आप तटस्थ तो हो सकते हैं, तटस्थ दिख सकते हैं पर निष्पक्ष नहीं।
उदाहरण के तौर पर अगर अमेरिका और नेपाल में लड़ाई होती है और भारत तटस्थ रहने की घोषणा करे तो ये सीधे सीधे अमेरिका के हित में होगा।
रूस के यूक्रेन पर हमले पर अगर भारत तटस्थ रहने की घोषणा करता है तो ये सीधे सीधे रूस का पक्ष लेता दिख रहा है भारत।
दरअसल कोई भी कभी भी कहीं भी निष्पक्ष नहीं हो सकता।


पर निष्पक्ष दिखने का प्रयास जरूर कर सकता है।
निष्पक्ष न होना कोई गुनाह नहीं है।पक्षपाती होना कोई गुनाह नहीं है।जरा सोचिये आपको अगर भिंडी पसंद है और टमाटर नहीं तो क्या आपने कोई गुनाह कर दिया ?
आपको कॉमेडी फिल्में पसंद हैं और एक्शन नहीं तो क्या आप अपराधी हो गये?
पक्षपाती होने से तब तक फर्क नहीं पड़ता जब तक किसी की जान और ईमान पर बात न बन आये।
वैसे किसी अबला की इज्जत पर कोई हाथ डाल रहा हो और आप वहां मौजूद हैं तो क्या आप निष्पक्ष रहना पसंद करेंगे?
एक और बात!एक उदाहरण दिया जाता है कि अगर सांप मेंढक को खा रहा है या बिल्ली चूहे को तो आप क्या करेंगे?
क्योंकि मेंढक सांप का भोजन है और चूहा बिल्ली का,अगर आप मेंढक या चूहे को बचाते हैं तो सांप या बिल्ली का भोजन छीनते हैं जो उसे बड़ी मुश्किल से मिलता है।
वहीं अगर मेंढक या चूहे को सांप या बिल्ली के उदर में जाने देते हैं तो ये उस बेचारे मासूम प्राणी की हत्या है जो आप अपनी आंखों के सामने होते देख रहे हैं।


आप अगर यहां तटस्थ रहते हैं और मेंढक या चूहा,सांप या बिल्ली के उदर में चला जाता है तो तटस्थ रहते हुये भी आप बिल्ली या सांप के पक्ष के हुये और कुछ करते हैं और मेंढक या चूहे को बचा लेते हैं तो आप मेंढक या चूहे के पक्ष के हुये।
दोनों तरह से आप पक्षपाती ही हुये।
निष्पक्षता मात्र एक भ्रम है जिसे हम अपने अवचेतन मन में खुद को महान दिखाने के लिये ढोते रहते हैं।
कोई भी निष्पक्ष नहीं हो सकता! दिख सकता है पर हो नहीं सकता।
एक और बात!बात यहां बुद्धिजीवियों,पत्रकारों और सत्ताधारी नेताओं की,सरकारी अफसरों की कर लें जिनके बारे में आप कहेंगे कि उन्हें निष्पक्ष होना चाहिये।
मेरा यहां थोड़ा सा आपसे मतभेद रहेगा।
उन्हें निष्पक्ष रहने की जरूरत नहीं,निष्पक्ष दिखने की जरूरत है।अगर ऊपर लिखे तबकों में से कोई निष्पक्ष है तो मतलब उसका दिमाग काम नहीं कर रहा,उसे सही गलत का अंदेशा नहीं।
एक जज मुकदमा सुनते समय दोनों पक्षों को तटस्थ होकर अपने सबूत पेश करने का मौका दे सकता है,पर निर्णय वो वादी या प्रतिवादी एक के पक्ष में ही देगा
एक सत्ताधारी राजनेता अगर खुद को निष्पक्ष कह कर खुद के दल और विपक्ष के दल को निष्पक्ष होकर एक तराजू में तौलेगा क्या सही होगा?
एक पत्रकार क्या एक भुक्तभोगी और एक अपराधी के लिये एकदम निष्पक्ष होकर बात कर सकता है क्या?
हर विवेकशील व्यक्ति सही या गलत जानता है और अपने मन में अपने हिसाब से सही निर्णय ही लेता है कि उसे कौन सा राजनीतिक दल,कौन सा राजनेता,कौन सी राजनैतिक विचारधारा पसंद है और वो किसके साथ है।
इसमें सही गलत जैसा कुछ नहीं।
पत्रकार लेखक और विचारक भी एक समझदार प्रजाति है। आजकल वैसे टी वी एंकर्स को भी पत्रकार बोलने लगे हैं।


अच्छा हां !वैसे पत्रकार संवाददाता और टीवी एंकर में फर्क होता है।
वास्तविक संवाददाता जो सीधे घटना स्थल से खबर भेजते हैं। पत्रकार जो लिखने का काम करते हैं,कभी कभी फील्ड पर भी चले जाते हैं।
संवाददाता और पत्रकार अखबारों में सिर्फ ये दो ही होते हैं।
तीसरी प्रजाति टीवी पर होती है, टीवी एंकर !
टीवी एंकर जो संवाददाता की भेजी रफ रिपोर्ट के आधार पर पत्रकार द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट को अपने स्टाइल में टीवी पर आकर पेश करते हैं।
आपको इन तीनों का अंतर जानना चाहिये।
एक संवाददाता और एक पत्रकार तटस्थ रहते हुये तथ्यों के आधार पर रिपोर्ट तैयार करते हैं। पर जब टी वी एंकर इन्हें टीवी पर प्रस्तुत करता है तो वो निष्पक्षता का दिखावा नहीं करता।
आजकल तो निष्पक्ष दिखने का फैशन भी नहीं रह गया।
टी वी डिबेट में भी (वैसे अब टीवी डिबेट फूहड़ हो चुकी हैं) में भी संचालक को निष्पक्ष दिखने की जरूरत नहीं होती।सही चीजों पर सहमत होना पड़ेगा और बदतमीजी करने वाले को चुप कराना पड़ेगा।
वैसे भी ये निष्पक्ष नहीं होती अब और निष्पक्ष होना जरूरी भी नहीं।
आप मेरी ऊपर लिखी बातों से सहमत या असहमत हो सकते हैं।पर आपको मानना पड़ेगा कि प्रिंट मीडिया और सोशल मीडिया में कोई भी व्यक्ति कभी भी निष्पक्ष नहीं हो सकता।
पूरा पत्रकारिता का व्यापार विज्ञापन दाताओं की चाटुकारिता और राजनेताओं और राजनैतिक दलों की पत्तेचाटी से चलता है तो वो क्यों निष्पक्ष होंगे?
अगर आप उन्हें निष्पक्ष मानते हैं तो ये आपकी कमी है। पत्रकारिता जगत भी पैसों से चलता है।किसी और व्यापार की तरह प्रिंट और टीवी मीडिया भी एक व्यापार ही है जहां वेतन लिये दिये जाते हैं,ठेके उठते हैं और मुनाफा कमाने की होड़ होती है।पत्रकारिता जगत निर्मोही संत नहीं चलाया करते।
अगर भाजपा दैनिक जागरण के प्रबंधक को राज्यसभा टिकट देती है और कांग्रेस नेशनल हेराल्ड की संपादिका को अपना कार्यकर्ता बनाती है तो क्या निष्पक्ष होंगे ये सब?
2011 का पूरा अन्ना आंदोलन तत्कालीन मीडिया का खड़ा किया प्रोपोगंडा था।आशुतोष से लेकर राजदीप तक सब बाद में केजरीवाल के साथ ही दिखे।
क्या आपको तब ही नहीं समझ जाना चाहिये था कि छद्म निष्पक्षता का युग समाप्त हो चुका?


हां अन्ना आंदोलन से एक बात याद आई,बताता चलूं।
मैंने अपने भाई से कहा था, “कुंबले ने भारत के लिये बहुत विकेट लिये।”7
भाई का जवाब था -“जब पूरा दिन कुंबले ही गेंदबाजी करेगा तो किसी और को विकेट कैसे मिलेंगे?”
वही बात अन्ना आंदोलन में दिखी थी।जब सारे चैनल दिन भर सुबह शाम 24 घंटे केवल अन्ना को ही दिखाएंगे तो वो प्रसिद्ध ही हो जायेगा न?उस समय ऐसा लग रहा था,देश दुनिया में कोई खबर ही न बची।जबकि दिल्ली के बाहर इस अन्ना आंदोलन का शायद ही कोई प्रभाव था।महाराष्ट्र के बाहर अन्ना हजारे को बहुत कम लोग ही जानते थे।
अंत में मेरा ये कहना है कि किसी से निष्पक्ष होने की उम्मीद करना ही बेवकूफी है।क्योंकि कोई भी निष्पक्ष नहीं हो सकता।
एक मां बाप की खुद की चार औलादें होती हैं,उन तक में तो वो मां बाप निष्पक्षता नहीं रख पाते, कारण कुछ भी रहते हों, तो आप बाकी किसी से निष्पक्ष होने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं।
निष्पक्ष दिखने की कोशिश करना अलग बात है,पर वास्तविकता में निष्पक्ष कोई नहीं होता।निष्पक्ष न होने में कोई बुराई भी नहीं।
वैसे भी निष्पक्षता एक भ्रम है, एक छलावा है।
आपका – विपुल
सर्वाधिकार सुरक्षित- Exxcricketer.com


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