आपका -विपुल
बालक यौन शोषण
बालक यौन शोषण, बालकों के साथ कुकर्म एक ऐसी समस्या है जिस पर भारतीय समाज में कोई जल्दी चर्चा करने को तैयार नहीं होता और मुझे भी नहीं पसंद।
लेकिन वास्तविक समाज की क्रूर वास्तविकताओं में से एक इस बालक यौन शोषण समस्या पर बात किये बिना अब मुझसे रहा नहीं जा रहा और इसका सीधा संबंध वर्तमान भारत के सर्वोच्च न्यायाधीश द्वारा चलाई जा रही समलैंगिक विवाह वाली मुहिम से है।
बुधवार 10 मई 2023 को भारत के सुप्रीम कोर्ट में बच्चे को गोद लेने के नियम पर सुनवाई करते हुये सर्वोच्च न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हमारे कानूनों में अकेला व्यक्ति भी बच्चा गोद ले सकता है जो कि सिंगल सेक्स रिलेशन शिप में हो।ये भी कहा कि अपना बच्चा रखने के लिये आदर्श परिवार से अलग परिस्थितियां भी हो सकती हैं।
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग द्वारा समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का विरोध करने और समलैंगिक जोड़ों को बच्चा गोद लेने से रोकने के लिये कानून बनाने की मांग पर कोर्ट में सुनवाई के दौरान ये कहा गया, दैनिक जागरण की खबर की तस्वीर संलग्न है।
अब मैं यहां कुछ कहना चाहता हूं। हंगरी में समलैंगिकता के खिलाफ कानून पास है। सारे मुस्लिम देशों में समलैंगिकता अपराध है।
शायद अमेरिका या इंग्लैंड में एक समलैंगिक जोड़ा ऐसा पाया गया था जो बच्चों को अपनी यौन वासना की पूर्ति के लिये गोद लेता था और फिर मार भी देता था।
सत्य घटना है।सोशल मीडिया पर ढूंढेंगे, मिल जायेगी।मुझे याद नहीं किस देश की है ये घटना।
दूसरी बात जो चीज प्रकृति ने बनाई है, वो कुछ सोच समझ के ही बनाई है।
हर जैव प्रजाति के नर और मादा एक दूसरे को देख कर उत्तेजित होते हैं। वीर्य और रज का, शुक्राणु और अंडाणु का संगम होता है और एक नया जीव उत्पन्न होता है।
ये स्वाभाविक है, ये नैसर्गिक है।
ये ऐसा ही है जैसा ईश्वर ने बनाया है , प्राकृतिक है।
प्रजनन अंगों का विकास होने के बाद नर और मादा एक दूसरे की तरफ आकर्षित होते हैं, ये प्रकृति का नियम है क्योंकि नर और मादा के मिलने से ही नए जीव का सृजन होता है और प्रकृति आगे बढ़ती है।
कोई भी व्यक्ति अगर हाथों के सही होते हुए भी पैरों की उंगलियों से लिखने की जिद करे तो ये मानसिक विकार होगा।
आप आंखों से सुन नहीं सकते और कानों से देख नहीं सकते।
जो अंग जिस काम के लिए हैं, वही काम करते हैं।
जिस दिन प्रकृति चाहेगी, प्रजनन बंद हो जायेगा उस प्रजाति का।
तो समलैंगिकता मेरी नजर में सिर्फ दिमागी बीमारी के अलावा कुछ है ही नहीं।
अब बात बालक यौन शोषण की यहीं से शुरू होती है।
शायद ही कोई ऐसा पुरूष हो जिसने बचपन में ये अनुभव न किया हो कि कोई व्यक्ति उसे गलत तरीके से छू रहा है।
मैंने भी महसूस किया जब मैं अपने पिताजी के साथ सीतापुर से कानपुर आ रहा था बस में।
मैं 8 9 साल का था और मेरे पीछे बैठा व्यक्ति अजीब तरह से मेरी पीठ, गाल, जांघों को छू रहा था।पिताजी को बताया तो उन्होंने उसे पीट दिया था।
मुझे सालों बाद समझ आया वो क्या था।
बालकों की कुकर्म के बाद हत्या की खबरें मैंने कई देखी हैं।
खबर ये भी देखी थी कि एक लड़के का यौन शोषण उसके कजिन करते रहे और उसे पता था कि सेक्स ऐसे ही होता, जब वो इंजीनियरिंग कॉलेज पहुंचा और उसे पता चला कि असली सेक्स ये नहीं होता उसने आत्महत्या कर ली।सुसाइड नोट छोड़ के गया था
ये भी सही खबर है।अखबार में ही पढ़ी थी कानपुर में।
तो एक तो ऐसे ही बालक यौन शोषण बड़ी समस्या है, उस पर अगर समलैंगिक विवाह के बाद ऐसे जोड़ों को बच्चा गोद लेने का अधिकार प्राप्त हो गया तो आप स्थिति की भयावहता का आंकलन नहीं कर सकते।
ऐसे बालक जिन्हें ये समलैंगिक जोड़े गोद लेंगे, पहले तो ये गारंटी नहीं कि वो बालक ऐसे मनोरोगियों के यौन शोषण से बच ही जायेंगे, और दूसरे अगर बच भी गये तो प्राकृतिक सेक्स और प्रजनन के संबंध में उनके विचार कैसे विकसित होंगे, ये भी बड़ी समस्या होगी।
नोट:-मैं समलैंगिकता के खिलाफ हूं, इसे केवल एक मनोरोग समझता हूं और समलैंगिक विवाह के और समलैंगिक जोड़ों के बच्चा गोद लेने के खिलाफ हूं। क्योंकि मुझे स्पष्ट रूप से ये बालक यौन शोषण की शुरुआत लग रही है।
और ये मेरा स्पष्ट मत है।
आपका:-विपुल
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