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देसी खेल भाग 1

प्रस्तुति -विपुल

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गुल्ली डंडा – अट्टी डंडा

गुल्ली डंडा एक प्राचीन भारतीय खेल है जो एकल और टीम दोनों तरह से खेला जा सकता है।कन्नौज के आसपास के क्षेत्रों में इसे अट्टी डंडा कहते हैं।
भिन्न भिन्न भारतीय स्थानों पर यह भिन्न भिन्न नामों से जाना जाता है।

आवश्यक वस्तुयें


दो डंडे और एक गुल्ली इसके लिये आवश्यक हैं और खुला मैदान भी।
ये एक आउटडोर खेल है।हालांकि एक डंडे की जगह ईंट या पत्थर भी रख सकते हैं।

एक बड़ा सा गोला खींचना पड़ता है जमीन पर ,जो इतना बड़ा होना चाहिए कि अगर कोई वयस्क आदमी दोनों हाथ फैलाए तो उसके दोनों हाथ उस गोले के अंदर रहे।
इस गोले के सबसे आगे की तरफ एक डंडा रखा जाता है ।दूसरा डंडा न होने पर ईंट भी रख सकते हैं।
फिर एक गुल्ली और एक डंडा चाहिए होता है।
गुल्ली लकड़ी की एक छोटी सी टुकड़ी होती है जो दोनों तरफ नुकीली होती है और बीच में गोल होती है।
डंडा लगभग एक से डेढ़ फुट का होता है जो गोल होता है ।

गुल्ली को जमीन पर रखकर डंडे से इस की नोक पर मारा जाता है और जब गुल्ली हवा में उड़ती है तो डंडे से मार कर इस गुल्ली को दूर तक फेंका जाता है।

गुल्ली डंडा के खेल के नियम


पहली बार में इस गोले के अंदर से खिलाड़ी गुल्ली को डंडे से बाहर फेकता है उसके बाद दूसरी टीम का खिलाड़ी इस गुल्ली को जहां पर वह गिरी है वहां पर से ऐसे निशाना लगाकर फेंकता है कि गुल्ली उस गोले के अंदर गिरे जिस गोले के अंदर से दूसरे पक्ष के खिलाड़ी ने खड़े होकर गुल्ली को बाहर मार कर फेंका है।
अगर उसके फेंकने पर गुल्ली गोले के अंदर नहीं भी गिरती है तब भी अगर गुल्ली उस गोले के ऊपर रखे डंडे या ईंट से टकराती है तो खिलाड़ी आउट मान लिया जाता है ।
और दूसरे खिलाड़ी को चांस मिलती है
गोले के सिरे पर रखे डंडे या ईंट पर जब प्रतिपक्षी खिलाड़ी द्वारा फेंकी गई गुल्ली टकराती है तो इसको जूता मारना कहते हैं।
किसी खिलाड़ी के लिए बड़े हर्ष और गर्व की बात होती है कि वह दूसरे पक्ष के खिलाड़ी के ऐसे जूता मारे ।
इसके बाद अगर दूसरी पक्ष का खिलाड़ी पहले पक्ष के खिलाड़ी के गोले के अंदर नहीं डाल पाया या जूता नहीं मार पाया तो जिस खिलाड़ी ने गुल्ली पर डंडे से वार किया था उसे जीवनदान मिलता है और उसको तीन बार गुल्ली को डंडे से मारने को मिलता है जिसको टिल्ले कहते हैं ।

टिल्ला ,टिल्लेबाजी टिल्लेबाज और डंडे


मतलब अगर पहली बार गुल्ली को डंडे से मारने वाला खिलाड़ी जिसको आप टिल्लेबाज कह सकते हैं बच गया तो उसको फिर 3 टिल्ले मारने की इजाज़त मिलती है।
इसमें से भी एक टिल्ला वह टिल्लेबाज
गुल्ली को अच्छी तरह से सेट
करने के लिए सरेंडर कर सकता है ।
और अमूमन 90 परसेंट खिलाड़ी ऐसा ही करता है। बहुत कम ऐसा होता है कि खिलाड़ी को बिल्कुल बनी हुई गुल्ली मिले ।
इसके बाद वह टिल्लेबाज 3 टिल्लों में गुल्ली को अपने गोले से जितना कर सकता है ,उतना दूर पहुँचाता है ।
और उसके बाद वह दूसरे पक्ष से अंतिम टिल्ले में गुल्ली जहाँ तक पहुंच पाती है वहां पर से गोले की दूरी तक अंदाजन डंडे मांगता है ।
मतलब यह इतनी दूरी लगभग उतने डंडों की दूरी होती है जो गोले से और अन्तिम टिल्ले से गिरी हुई गुल्ली के बीच की होती है ।
प्रतिपक्षी खिलाडी अगर संतुष्ट हो हो जाता है और मानता है कि लगभग इतने डंडे हो सकते हैं (उस गोले से इस गुल्ली तक)
तो वह ,उतने डंडे देने को तैयार हो जाता है औऱ बैटिंग टीम का खाता खुल जाता है।
और इस तरीके से टीम नंबर वन के खिलाड़ी जिसको हम टिल्लेबाज कह सकते हैं उसकी टीम में डंडे जुड़ने लगते हैं।
इन डंडो को आप क्रिकेट के रन की तरह मान सकते हैं ।
उसके बाद फिर से अगर ये खिलाड़ी आउट नहीं होता है मतलब ना तो उसके गोले के अंदर दूसरे खिलाड़ी गुल्ली को पहुंचा पाते हैं और ना ही उसके जूता पड़ता है
( मतलब उसके गोले के ऊपर रखे डंडे पर गुल्ली नहीं पड़ती है) तो उस खिलाड़ी को फिर चान्स मिलती है ।
और तब तक मिलती रहती है जब तक प्रतिपक्षी खिलाड़ी द्वारा फेंकी गई गुल्ली इस खिलाड़ी के गोले के अंदर नहीं पहुंच जाती या उसके गोले के ऊपर रखे डंडे या ईंट पर गुल्ली नहीं पड़ जाती ।

कैच आउट और डंडे गुडुप

खिलाड़ी के आउट होने का दूसरा तरीका और है ।कैच आउट।

इसमें टिल्लेबाज खिलाड़ी के मारे गए टिल्ले को प्रतिपक्षी खिलाड़ी हवा में कैच कर ले तो टिल्लेबाज आउट तो होता ही है साथ ही उस खिलाड़ी द्वारा बनाए गए जितने भी डंडे होते हैं वह गुडुप हो जाते हैं ।
मान लीजिए टिल्लेबाज ने 500 डंडे बना लिये लेकिन कैच आउट हो गया तो वो 500 डंडे समाप्त ।टिल्लेबाज का स्कोर जीरो। इसीलिए कैच आउट होना गुल्ली डंडा में सबसे खराब माना जाता है ।
कैच आउट में खिलाड़ी को उसके बनाए गए डंडों का कोई फल नहीं मिलता है।

चल्ला और हारजीत

यदि केवल दो खिलाड़ी ही खेल रहे हैं तो पहले खिलाड़ी के आउट होने के बाद दूसरा खिलाड़ी अपनी चल्ला लेता है ।
पहले वाले खिलाड़ी से एक डंडा भी ज्यादा बनाने पर वह जीता हुआ मान लिया जाता है ।
दूसरा गेम टीम गेम होता है जिसमें एक टीम में 1 2 से लेकर 10 खिलाड़ी तक हो सकते हैं और एक टीम की बारी पूरी हो जाने पर दूसरी टीम अपनी चल्ला लेती है ।
इसमें भी दूसरी वाली टीम को पहली वाली टीम से ज्यादा डंडे बनाने पड़ते हैं ।
कुछ खेल इसके अलावा ऐसे भी होते हैं जिसमें 5000 डंडे या 10000 डंडे का टारगेट होता है जो टीम पहले बना लेती है वह जीत जाती है ।
यह एक अत्यंत मनोरंजक खेल है लेकिन जिसके लिए बहुत बड़ा ग्राउंड चाहिए बल्कि ग्राउंड क्या ईडन गार्डन जैसे दसियों ग्राउंड इसके लिए छोटे पड़ जायेंगे।

हिलडुल और बनचुन

हिलडुल और बनचुन
हिलडुल और बनचुन गुल्ली
डंडा के खेल के दो महत्वपूर्ण अवयव हैं।
जैसे टिल्लेबाज खिलाड़ी अगर “हिलडुल मेरी” बोल देता है तो उसके टिल्ला मारने के पहले अगर गुल्ली हिलती भी है तो उसको आउट नहीं माना जाएगा।I
जबकि प्रतिपक्षी खिलाड़ी अगर “हिलडुल मेरी” बोल देता है तो टिल्ला मारने के पहले अगर टिल्लेबाज खिलाड़ी से गुल्ली हिल जाती है तो उसको आउट मान लिया जाएगा ।
इसी तरीके से “बनचुन मेरी” के द्वारा टिल्लेबाज विपक्षी टीम से अपनी गुल्ली को टिल्ला मारने के लिये उपयुक्त दशा में बनाने की आज्ञा ले लेता है ,
कि उसके टिल्ले मारने के लिये गुल्ली की नोंक सेट रहे।
जबकि यही अगर विपक्षी खिलाड़ी बोल देता है
“बनचुन मेरी “
तो टिल्लेबाज को या तो अपना एक टिल्ला सरेंडर कर के गुल्ली बनाना पड़ता है ।
या फिर अगर वह ऐसा नहीं करता है और गुल्ली बनाने की कोशिश बगैर “बनचुन मेरी “कहे करता है तो उसको आउट मान लिया जाता है।

आप हंसना चाहे तो हंस सकते हैं लेकिन मैंने बहुत गंभीर होकर यह लेख लिखा है क्योंकि मुझे नहीं लगता कि हमसे एक पीढ़ी आगे भी गुल्ली डंडा के खेल की बारीकियां तो छोड़िए गुल्ली डंडा को भी जान पायेगी।
प्रस्तुति –
पूर्व अट्टी डंडा खिलाड़ी

विपुल

सर्वाधिकार सुरक्षित -Exxcricketer.com


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2 thoughts on “गुल्ली डंडा

  1. Waise isme hamare yaha 1aur niyam bhi tha:
    Agar Khiladi gulli ko Java me 2 baar dande se maar deta hai to phir wo gulli ki lambai ke hisab se ank(score) maang sakta hai

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